आज के समय मे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग को एक उत्तम विधि माना जाता है। चिकित्सक भी स्वास्थ्य के लिए योग की सलाह देते हैं। यह शरीर को निरोग रखने के लिए एक प्राचीन तथा विज्ञान सम्मत शारीरिक क्रिया है। लेकिन क्या योग से रोग उपचार सम्भव है? क्या इस विधि से रोगों का इलाज भी किया जा सकता है? प्रस्तुत लेख मे इसी का वर्णन किया जायेगा।
विषय सूची :
क्या योग से रोगों का उपचार हो सकता है?
योग मूलत: एक आध्यात्मिक क्रिया है। आरम्भ मे इसे ध्यान साधना (Meditation) के लिए किया जाता था। स्वस्थ शरीर से ही ध्यान-साधना तथा मन को एकाग्र किया जा सकता है। इस लिए हमारे ऋषियों ने आसन-प्राणायाम को आविष्कृत किया। ये दोनो क्रियाएं शरीर को स्वस्थ रखने मे सहायक होती हैं। इसलिये आसन व प्राणायाम को प्राचीन समय से किया जाता रहा है।
प्राचीन समय मे लोगों का जीवन योगमय था, इस लिये वे स्वस्थ व लम्बा जीवन जीते थे। उस समय लम्बी आयु का यही कारण था। योग आज भी स्वास्थ्य के लिये प्रभावी है। लेकिन क्या योग से रोग उपचार किया जा सकता है? क्या यह चिकित्सा का विकल्प है? लेख मे आगे इसकी चर्चा करेंगे।
क्या योग चिकित्सा का विकल्प है?
यह सही है कि योग रोगों से बचाव करता है। यह शरीर को स्वस्थ रखने की उत्तम विधि है। लेकिन यह बिमारियों का इलाज करने का साधन बिलकुल नही है। रोग से लड़ने का काम हमारा शरीर स्वयं करता है। यह शक्ति हमारे शरीर को प्रकृति द्वारा प्रदान की गई है। इसे Immunity कहा गया है। यह रोगों को ठीक करने मे सहायक होती है। योग इसी शक्ति का संरक्षण करता है।
योग शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की वृद्धि करता है। यह शरीर की 'रोगों से लड़ने की क्षमता' को बढाता है। शरीर के आन्तरिक अंगों को सक्रिय करता है। इन अंगों के प्रभावित होने से शरीर मे रसों व रसायनों का निर्माण नियमित हो जाता हैं। योग शरीर को मजबूती देता है।
देखें :- स्वस्थ जीवन के तीन आधार।
योग करे रोगों से बचाव :
नियमित योग हमें रोगों से बचाता है। यह शरीर को ऊर्जा देता है। आन्तरिक व बाह्य अंगों को सक्रिय रखता है। नियमित योग शरीर को निरोग रखने मे सहायक होता है। लेकिन क्या रोगग्रस्त होेने के बाद योग से रोग उपचार हो सकता है? यह लेख मे आगे समझेंगे। लेकिन पहले यह जान लेते हैं कि योग हमे कैसे निरोग रखता है।
योग मे "आसन" शरीर को मजबूती देते हैं। "प्राणायाम" श्वांसों को सुदृढ करते हैं। ये दोनो क्रियाएं शरीर के लिये ऊर्जादायी हैं। आईए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
योग आसन
योगासन हमारे शरीर को सुदृढ करते हैं। यह शरीर के स्थिल पड़ने वाले अंगों को सक्रिय करते है। शरीर के रक्त संचार तथा शरीर के सभी तत्वों को सन्तुलित रखते हैं।
1. आन्तरिक अंगो पर प्रभाव :- योगासन पेट के आन्तरिक अंगों को प्रभावित करते हैं। ये पाचनतंत्र को सुदृढ करते हैं। किडनी, लीवर व पेनक्रियाज को सक्रिय करते हैं। आसन पेट रोगों से बचाव करते हैं।
प्रभावी आसन :- पश्चिमोत्तान आसन, शशांक आसन, अर्ध मत्स्येंद्रासन, मकरासन व पवन मुक्तासन।
2. रीढ को स्वस्थ रखते हैं :- रीढ शरीर का आधार है। शरीर सभी अंग तथा मस्तिष्क रीढ से जुड़े हुए हैं। इस लिये इसका स्वस्थ रहना जरूरी है। योग मे आसनों का विशेष प्रभाव रीढ पर ही होता है। ये रीढ को फ्लैक्सिबल व स्वस्थ बनाये रखते हैं।
प्रभावी आसन :- हस्त पाद आसन, भुजंग आसन, उष्ट्रासन, सर्वांग आसन, हलासन व चक्रासन।
3. रक्तचाप (BP) नियंत्रण :- स्वास्थ्य के लिये रक्तचाप (BP) का सामान्य रहना आवश्यक है। योगाभ्यास मे "आसन" शरीर के रक्त संचार को नियमित करते हैं। ये BP को सामान्य रखने मे सहायक होते हैं।
प्रभावी आसन :- सर्वांग आसन, मत्स्यासन, हलासन व शीर्ष आसन।
4. सुगर नियन्त्रण :- योगासन पेट के अंगो को प्रभावित करते है। ये अंग सुगर को नियंत्रित करने मे सहायक होते हैं।
प्रभावी आसन :- अर्ध मत्स्येन्द्र आसन, बालासन व शशांक आसन।
5. अस्थि जोड़ो व मासपेशियों के लिये :- आसन शरीर की हड्डियों के जोड़ों सक्रिय रखते हैं। ये मासपेशियों को मजबूती देते हैं।
प्रभावी आसन :- हस्तपाद आसन, त्रिकोण आसन, कटि चक्रासन व पश्चिमोत्तान आसन,
प्राणायाम
प्राणायाम शरीर को लिये ऊर्जादायी होते हैं। ये मुख्यत: श्वास व प्राण को प्रभावित करते हैं।
1. श्वांसों को मज़बूती :- प्राणायाम एक श्वसन अभ्यास है। श्वास शरीर का आधार है। श्वसनतंत्र के कमजोर पड़ने पर श्वास रोग होने लगते हैं। प्राणायाम श्वसनतंत्र को सुदृढ़ करता है। यह श्वास रोगों से बचाव करता है।
प्रभावी प्राणायाम :- कपालभाति, अनुलोम विलोम
2. प्राण :- भौतिक शरीर (फिजिकल बॉडी) का अस्तित्व प्राणों से है। प्राणायाम प्राणिक नाड़ियों के अवरोधों को हटते हैं। यह प्राणों को मजबूती देते हैं।
प्रभावी प्राणायाम :- नाड़ी शोधन प्राणायाम।
3. हृदय :- प्राणायाम से श्वसनतंत्र सुदृढ़ होता है। इस कारण शरीर मे ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है। इस क्रिया से रक्त चाप नियंत्रित रहता है। ये सब हृदय को स्वस्थ रखने मे सहायक होते हैं।
प्रभावी प्राणायाम :- कपालभाति के साथ अनुलोम-विलोम तथा भस्त्रिका प्राणायाम।
4. लंग्स :- सामान्यत: हम जो श्वास लेते और छोड़ते हैं, वे बहुत छोटे-छोटे होते हैं। ये पर्याप्त नही होते हैं। इस कारण हमारे फेफड़े (Lungs) स्थिल होने लगते हैं। इनके स्थिल होने के और भी कई कारण हैं। प्राणायाम लंग्स को सक्रिय (एक्टिव) करते हैं।
प्रभावी प्राणायाम :- कुम्भक प्राणायाम।
5. ऊर्जा :- प्राणायाम ऊर्जादायी हैं। ये शरीर को ऊर्जावान बनाये रखते हैं। इस क्रिया मे बंध व कुम्भक विशेष ऊर्जादायी होते हैं।
प्रभावी प्राणायाम :- अश्विनि मुद्रा तथा प्राणायाम मे बन्ध व कुम्भक का प्रयोग।
नियमित योगाभ्यास शरीर को मजबूती देते हैं, ऊर्जावान बनाये रखते हैं। ये शरीर को रोगों से बचाते हैं। लेकिन क्या रोगग्रस्त (बीमार) होने पर योग करना चाहिए? क्या योग से रोग का उपचार हो सकता है? आईए इस विषय को समझ लेते हैं।
क्या रोगग्रस्त होने पर योग करें?
यह सत्य है कि नियमित योग हमे निरोग रखने मे सहायक होता है। योग केवल स्वस्थ व्यक्ति को ही करना चाहिए।यदि एक स्वस्थ व्यक्ति नियमित योग करता है, तो उसके रोग ग्रस्त होने की सम्भावना कम होती है। लेकिन जो व्यक्ति पहले से ही किसी रोग से पीड़ित है उसे चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।
बिमारी की स्थिति मे क्या करें? :- गम्भीर रोग की स्थिति मे कोई योग क्रिया न करें। 'योग' को चिकित्सा का विकल्प समझ कर औषधियां न छोड़ें। चिकित्सक या वैद्य से सलाह ले। रोग की अवस्था मे औषधि सेवन बन्ध न करें। रोग ठीक होने पर चिकित्सक या वैद्य की सलाह से योगाभ्यास करें।
योग किस स्थिति मे वर्जित है?
योग सरल है। इसको सभी स्त्री-पुरुष, युवा-वृद्ध अपनी क्षमता के अनुसार कर सकते हैं। लेकिन कुछ स्थितियों मे योग वर्जित है, तथा कुछ स्थितियों मे सावधानी से करना चाहिए ।
वर्जित :
कुछ स्थितियों मे योगाभ्यास वर्जित है। इन स्थितियों मे योग नही करना चाहिए। पहले चिकित्सा सहायता ले और ठीक होने के बाद योग करें।
1. हृदय रोगी :- गम्भीर हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को योगाभ्यास नही करना चाहिए।
2. अस्थमा पीड़ित :- अस्थमा पीड़ित व्यक्ति को कठिन आसनों से बचना चाहिए । कुम्भक वाले (श्वास रोकने वाले) प्राणायाम न करें। श्वास रोगी के लिये कठिन आसन व कुम्भक वाले प्राणायाम हानिकारक हो सकते हैं।
देखें :- अस्थमा पीङित के लिये योग।
3. आंत व पेट के गम्भीर रोगी :- आंत रोग या पेट मे कोई जख्म है तो पेट पर दबाव डालने वाली क्रिया न करें।
4. सर्जरी होने पर :- यदि हाल ही मे कोई सर्जरी हुई है तो योगासन न करें। स्वस्थ होने के बाद चिकित्सक की सलाह ले कर योग क्रियाएं करें।
सावधानी के साथ कर सकते हैं :
रोग की आरम्भिक अवस्था मे कुछ सावधानियों के साथ योग कर सकते है। लेकिन अपने चिकित्सक के निर्देश के अनुसार योग क्रियाएं करें। औषधि सेवन बन्ध न करें। इन स्थितियों मे योग सावधानी से कर सकते हैं :-
1. उच्च रक्त चाप (High BP) मे :- उच्च रक्त चाप वाले व्यक्ति प्रशिक्षक के निर्देशन मे योग करें। सरल योगासन करें। तीव्र गति वाले प्राणायाम न करें।
2. आरंम्भिक श्वास रोगी :- यदि श्वास रोग आरम्भिक अवस्था मे है तो सरल योग क्रियाएं करे। सरल आसन करे। जिस आसन को करने मे पीड़ा का अनुभव हो वह आसन न करें। सरल प्राणायाम करें। तीव्र गति वाले प्राणायाम न करें।
3. आरम्भिक हृदय रोगी :- तीव्र गति वाले आसन व प्राणायाम न करें। सरल योग क्रियाएं प्रशिक्षक की देख-रेख मे करें। औषधी का सेवन करते रहें। योग क्रियाएं करने से पहले चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
लेख का सार :
नियमित योग शरीर को निरोग रखने मे सहायक होता है। लेकिन इसे चिकित्सा का विकल्प नही समझना चाहिए। रोग से पीड़ित व्यक्ति को चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।
Disclaimer :- किसी प्रकार के रोग का उपचार करना इस लेख का उद्देश्य नही है। केवल योग के विषय मे जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है। योग क्रिया क्रियाएं स्वस्थ व्यक्ति के लिये हैं। गम्भीर रोगी योग क्रियाएं न करें।