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"योग" स्वास्थ्य के लिए एक सरल और उत्तम विधि है। आज पूरा विश्व इसको अच्छे स्वास्थ्य के लिए अपना रहा है। इसका अभ्यास  सभी के लिए लाभदायी है। लेकिन यह अभ्यास सही क्रम से किया जाना चाहिए। ऐसा करना अधिक लाभकारी होता है। योगाभ्यास का सही क्रम "Right sequence of yoga" क्या है, प्रस्तुत लेख मे आगे यह विस्तार से बताया जाएगा।

Read this article in English :--  Right sequence of Yoga.

विषय सुची :-

  • योग का सही क्रम :- आसन, प्राणायाम और ध्यान 
  • आसनों का सही क्रम
  • प्राणायाम का सही क्रम
  • अंत में ध्यान का अभ्यास 

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योग का सही क्रम क्या है? Right sequence of Yoga.

स्वास्थ्य के लिए योगाभ्यास मे आसन, प्राणायाम और ध्यान का विशेष महत्व है। ये तीनों योग के महत्वपूर्ण अंग हैं। आसन शरीर के अंगों को सुदृढ़ करता है।प्राणायाम श्वसन तंत्र को मजबूत करता है तथा शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। ध्यान का अभ्यास मानसिक शांति देता है।

योगाभ्यास में ये तीनों क्रियाएं लाभदायी हैं, लेकिन प्रश्न यह पूछा जाता है कि इन तीनों का अभ्यास किस क्रम से करना चाहिए? इसको समझने के लिए हमें अष्टांगयोग को समझना होगा। पतंजलि योग में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।

सही क्रम पतंजलि योगसूत्र के अनुसार 

अष्टांगयोग को पतंजलि योगसूत्र में विस्तार से परिभाषित किया गया है। इसी को वास्तविक योग कहा है। आसन, प्राणायाम और ध्यान इसी के अंग हैं। यहां "यम नियम" के बाद आसन का क्रम बताया गया है। आसन के बाद प्राणायाम और ध्यान का क्रम आता है। अत: पतंजलि के अनुसार योगाभ्यास का सही क्रम इस प्रकार है :-

1. आसन
2. प्राणायाम
3. ध्यान

योगाभ्यास में पहले आसन का अभ्यास क्यो करना चाहिए, यह जानने से पहले हमे आसन के विषय को समझना होगा। आसन क्या है, आइए पहले इसको समझ लेते हैं।

आसन क्या है?

महर्षि पतंजलि ने आसन को परिभाषित करते हुए बताया है :- 
"स्थिरता पूर्वक और सुखपूर्वक जिस पोज मे ठहरते हैं, वह आसन है"।
इसका अर्थ यह है कि आसन स्थिरता से और सरलता से किए जाने चाहिएं। 

आसन अष्टांगयोग का तीसरा अंग है। यम, नियम के बाद आसन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह हमारे स्थूल शरीर (Physical-Body) को सीधा प्रभावित करता है। अत: योगाभ्यास का आरम्भ आसन से ही करना उचित है। आसन करने से पहले कुछ सुक्ष्म व्यायाम करना उत्तम है।

पहले आसन क्यों?

योग वास्तव में एक आध्यात्मिक क्रिया है। योग हमारे शरीर की ऊर्जा को जागृत करता है। ध्यान और समाधी इसके अंतिम चरण हैं। आसन और प्राणायाम मन को एकाग्र करने के लिए किये जाते हैं। और मन की एकाग्रता तभी होगी जब हमारा शरीर स्वस्थ होगा।

ध्यान क्रिया के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। इसी लिए आसन को आरम्भ मे रखा गया है। तथा आसन के बाद प्राणायाम का क्रम आता है।

शरीर स्वस्थ होगा तभी मन एकाग्र होगा। यदि शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो मन की एकाग्रता नही हो सकती। इसलिए हमें योगाभ्यास का आरम्भ आसन से ही करना चाहिए।

आसन का सही क्रम :

आसन का अभ्यास भी सही क्रम से किया जाना चाहिए। सही क्रम (Right sequence) से किया गया अभ्यास ही लाभकारी होता हैं। गलत क्रम से किया गया अभ्यास हानिकारक भी हो सकता है।

सूक्ष्म व्यायाम :- योगाभ्यास के आरम्भ पहले कुछ सुक्ष्म व्यायाम अवश्य करें। शरीर को सूक्ष्म व्यायाम से वार्म अप करना जरूरी है। अत: आसन से पहले यह अवश्य करें।

पूरक आसन :- एक आसन के बाद उसका पूरक आसन या उस का विपरीत आसन अवश्य करे। आसन लाभकारी तभी है जब उसके साथ पूरक आसन भी किया जाए।

(देखें :- पूरक आसन क्या है?)

विश्राम :- एक अभ्यास करने के बाद कुछ देर विश्राम अवश्य करें। विश्राम करने के बाद ही अगले आसन की स्थिति में जाएं। विश्राम करने के लिए शरीर को ढीला छोड़ कर श्वांसों को सामान्य करे।

सरल आसन :- योग की सभी क्रियाएं अपने शरीर की क्षमता के अनुसार ही करें। आरम्भ मे कठिन आसन न करें। सरल अभ्यास ही करें, शरीर के साथ अनावश्यक बल प्रयोग न करें।

आसन का सही क्रम Right sequence for Asana :-

  1. खड़े हो कर
  2. बैठ कर
  3. पेट के बल लेट कर
  4. पीठ के बल लेट कर

खड़े होकर किये जाने वाले आसन

मैट या कपड़े का आसन (सीट) बिछा कर खड़े हो जायें। और आसन करने से पहले कुछ सूक्ष्म व्यायाम करें। सूक्ष्म व्यायाम करने के बाद नीचे बताये गये आसन सही क्रम से करें।

1. सूर्य नमस्कार :


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इस आसन की बारह मुद्राएं है। खड़े होकर किये जाने वाले आसनों मे यह पर्याप्त है। सूर्य नमस्कार के बाद आसन पर बैठ जाएं ये और बैठ कर किये जाने वाले अभ्यास करें। इस आसन बारह आवर्तियां है।

विस्तार से देखें :- सूर्य नमस्कार आसन।

2. त्रिकोण आसन + ताड़ आसन :

इन दोनों आसनों का सही कॉम्बिनेशन है। पहले त्रिकोण आसन करे और उसके बाद ताड़ासन का अभ्यास करें।

विधि त्रिकोण आसन :

  • दोनों पैरों को अधिकतम दूरी पर रखें।
  • दोनो हाथों को शरीर के दांएं-बांए रखें।
  • कमर से झुकते हुए बारी-बारी दांया हाथ बांए पैर के पंजे के पास और बांया हाथ दांये पंजे के पास ले जाये।
  • दूसरा हाथ पीठ के पीछे ले जाएं। यह क्रिया तीव्र गति से करें।
  • यथा शक्ति अभ्यास करने के बाद पैरो की दूरी सामान्य करके विश्राम करें।

विधि ताड़ आसन :

  • कुछ सैकिंड विश्राम के बाद दोनो पैर एक साथ रखते हुए दोनो हाथ ऊपर ले जाएं।
  • श्वास भरें और दोनो हाथो को ऊपर की ओर खींचे।
  • हाथो व गर्दन को थोडा पीछे की ओर झुकाएं।
  • कुछ देर रुकने के बाद श्वास छोड़ते हुए वापिस आ जाएं।
  • हाथो को नीचे ले आएं। विश्राम की स्थिति मे रुकें।

दोनो आसन एक साथ करने से लाभ :

पहले आसन मे कमर को आगे की तरफ झुकाया जाता है और दूसरे आसन मे कमर को सीधा करके हाथो तथा शरीर के ऊपरी भाग को ऊपर की ओर खिंचाव दिया जाता है। इस कारण आसन के लाभ मे वृद्धि होती है।

3. हस्त पाद आसन + अर्ध चक्र आसन :

ये दोनों आसन एक दूसरे के विपरीत दिशा मे किये जाते हैं इस लिये इन दोनो आसनों का कॉम्बिनेशन है। पहले हस्त पाद आसन करे उसके बाद अर्ध चक्रासन करें। दोनो आसनों को इस क्रम से करें।

विधि हस्त पाद आसन :

  • दोनों पैरों को मिलाएं। एड़ी मिली और पंजे खुले रखें। दोनो घुटने मिला कर रखें। श्वास भरते हुए दोनो हाथ ऊपर ले जाएं (ताड़ आसन)।
  • श्वास छोड़ते हुए कमर से आगे की ओर झुकें।
  • माथा घुटनों के पास ले जाने का प्रयास करें। 
  • दोनो हथेलियां पैरों के पास ले जाने का प्रयास करें। घुटनों को सीधा रखें।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे-धीरे ऊपर उठें और विश्राम करें।

सावधानी :-- सरलता से जितना झुक सकते हैं उतना ही झुकें। माथा घुटनो से नही लगता है, तो अधिक प्रयास न करें। कमर या रीढ मे कोई परेशानी है तो यह आसन न करें।

विधि अर्ध चक्र आसन :

  • कुछ देर विश्राम के बाद अर्ध चक्रासन करे।
  • दोनो पैरों को मिला लें।
  • दोनों हाथों को ऊपर ताड़ आसन की स्थिति मे ले जाएं। 
  • दोनो हाथों मे खिंचाव रखते हुए पीछे की ओर झुकाएं।
  • सरलता से जितना पीछे झुक सकते है उतना ही झुकें। नये व्यक्ति पीछे अधिक न झुके।
  • नये व्यक्ति केवल हाथों व गर्दन को हल्का सा पीछे की ओर झुकाएं।

सावधानी :-- रीढ तथा गर्दन की परेशानी वाले इस आसन को न करें।

लाभ दोनो आसन करने से :

पहले आसन में रीढ को आगे की ओर तथा दूसरे आसन में रीढ को पीछे की ओर प्रभावित किया जाता है। ऐसा करने से रीढ मे लचक (फ्लैक्सिबिलिटी) बनी रहती है। दोनो आसन करने से मिलने वाले लाभ मे वृद्धि होती है।

बैठ कर किये जाने वाले आसन :

खड़े हो कर आसन करने के बाद सीट पर आराम की स्थिति मे पैर फैला कर बैठ जाएं।दोनों हाथ पीछे की ओर टिकाएं। गरदन को ढीला छोड़ कर कुछ सेकिंड विश्राम करें। बैठ कर किये जाने वाले आसनों का सही क्रम इस प्रकार है :-

1. पश्चिमोत्तान आसन + पूर्वोत्तान आसन :

इन दोनो आसनों का अच्छा कॉम्बिनेशन है। पश्चिमोत्तान आसन से पेट, पीठ, कमर तथा कमर से नीचे का भाग प्रभावित होता है। पूर्वोत्तान आसन से रीढ व कमर सीधी हो कर पूर्व स्थिति मे आ जाती है।

पश्चिमोत्तान आसन की विधि :

  • पैरों को सीधा करके बैठें।
  • दोनो हाथ घुटनों पर रखें।
  • रीढ को सीधा रखें।
  • श्वास भरते हुए दानों हाथों को ऊपर ले उठाएं। हाथों मे खिंचाव रखें।
  • श्वास छोड़ते हुए कमर से आगे की तरफ झुकें तथा दोनो हाथ सिर के साथ लगे रहें।
  • माथा घुटनों से लगाने का प्रयास करें।
  • दोनो हाथों से पैर के पंजों को पकड़ ने का प्रयास करें।
  • पूर्ण स्थिती मे यथा शक्ति रुकें। और धीरे धीरे वापिस पूर्व स्थिति में आ जाएं।
  • पैरों को सुविधा पूर्वक स्थिति मे खोल कर रखें। हाथ पीछे टिका कर विश्राम करें।

सावधानी :-- यदि माथा घुटनों तक नही पहुंच सकता है और हाथ पंजों तक नहीं पहुंच रहे है, तो अधिक प्रयास न करें। शरीर के साथ अनावश्यक बल प्रयोग हानिकारक हो सकता है।

पूर्वोत्तान आसन की विधि :

पश्चिमोत्तान आसन में आगे की तरफ झुकने से कमर व रीढ आगे की तरफ प्रभावित होती है। दूसरे आसन मे कमर व रीढ को सीधा किया जाता है।

  • दोनों पैर मिलाएं। दोनों हाथ शरीर के पास दांएं-बांएं रखें।
  • एड़ी, पंजे व घुटने मिला कर रखें। हाथों और एड़ी पर दबाव बनाते हुए शरीर का मध्य भाग ऊपर उठा दें।
  • पूरे शरीर का भार एड़ी व हाथों पर आने के बाद गर्दन को ढीला छोड़ कर सिर को धीरे से नीचे की ओर लटक जाने दे।
  • स्थिति मे कुछ देर रुकें। पूर्व-स्थिति में आने के लिए शरीर के मध्य भाग को धीरे से नीचे टिकाएं।
  • हाथों को पीछे रख कर कुछ देर विश्राम करें।

दोनों आसन एक साथ करने का लाभ।

ये दोनों आसन साथ-साथ करने से रीढ व कमर के झुकने का बैलेंस बना रहता है।पहला आसन करने के बाद दूसरा आसन करते है तो मिलने वाले लाभ मे वृद्धि होती है।

2. अर्ध मत्स्येन्द्र आसन :

बैठ कर किये जाने वाले आसनों मे यह एक महत्वपूर्ण आसन है। आरम्भ मे नये व्यक्तियों के लिए यह थोड़ा कठिन आसन है। लेकिन बहुत लाभकारी आसन है। नये व्यक्ति यदि आसन की पूर्ण-स्थिति तक नही जा सकते हैं, तो जितना कर सकते है उतना करें। कम करने पर भी आसन का लाभ मिलेगा।

विधि :-- 
  • बिछे हुए आसन पर बैठ जाएं।
  • दोनो पैरों का सीधा करें।
  • पीठ व गरदन को सीधा रखें।
  • दांया पैर मोड़ें और बांई जंघा के नीचे रखे।
  • बांए पैर को उठा कर दांई जंघा के पास रखें। बांया घुटना सीने (Chest) के पास रहे।
  • दोनो हाथों से घुटने को सीने की तरफ दबाएं।
  • दांया हाथ ऊपर उठाये। और हाथ के उपरी भाग से घुटने को सीने की ओर दबाव बनाते हुए पैर के पंजे को पकड़ें।
  • बांया हाथ पीठ की पीछे ले जायें।
  • गरदन को बांई तरफ घुमा कर ठुड्डी को बांए कंधे से लगाएं। यह आसन की पूरण स्थिति है। पूर्ण स्थिति मे अपनी क्षमता के अनुसार रुके।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे-धीरे वापिस आ जाएं। पैरों को सीधा करें। आये हुए तनाव को दूर करने के लिए कुछ क्षण विश्राम करे।
  • यह क्रिया दूसरी तरफ से दोहराएं।
विस्तार से देखें :-  अर्धमत्स्येन्द्र आसन

विश्राम :-- किये गये आसन के बाद दोनो पैरों को सीधा करें। दोनों पैरों में सुविधा के अनुसार दूरी रखें। हाथों को को पीछे टिका कर सहारा लें। गरदन को ढीला छोड़ कर सिर को पीछे झुकाएं। कुछ देर इस स्थिति मे विश्राम करें।

सावधानी :-- आसन को अपनी क्षमता के अनुसार करें। यदि आसन की पूर्ण स्थिति तक नही पहुंच सकते है तो बल प्रयोग न करे। सरलता से जितना कर सकते है उतना ही करें। आंत के रोगी तथा रीढ की परेशानी वाले व्यक्ति इस आसन को न करें। घुटने मोड़ने मे परेशानी है या कोई सर्जरी हुई है तो यह आसन न करें।

3. वज्रासन मुद्रा में किये जाने वाले आसन :

वज्रासन एक ऐसा आसन है जो योगाभ्यास मे भी किया जाता है तथा इसे दिन मे भी किया जा सकता है। भोजन करने के बाद  किया जाने वाला यह एक मात्र आसन है। इस मुद्रा मे दिन मे कभी भी बैठा जा सकता है।

वज्रासन की विधि :

  • दोनों घुटने मोड़ते हुए घुटनों के बल बैठें।
  • घुटने मिला कर रखें।
  • दोनो पैरों के अंगूठे एक दूसरे को स्पर्श करते हुए रखें।
  • एड़ियां खुली हुई, तथा दोनों एड़ियों के बीच मे मध्य भाग टिकाएं।
  • दोनो हाथ घुटनों पर रखें। रीढ व गर्दन को सीधा रखें।

(वज्रासन की पूरी विधि जानने के लिए हमारा अन्य लेख देखें :--- वज्रासन कैसे करें?)

योगाभ्यास में वज्रासन की स्थिति मे किये जाने वाले आसनों का ग्रुप कॉम्बिनेशन इस प्रकार हैं :-

उष्ट्रासन + शशांक आसन :

ये दोनों आसन एक दूसरे के विपरीत दिशा मे किये जाने वाले आसन है। दोनो आसन साथ साथ करने से दोनो आसनों से मिलने वाले लाभ मे वृद्धि होती है। पहले उष्ट्रासन और उसके बाद शशांक आसन करें।

उष्ट्रासन की विधि :

  • यह आसन वज्रासन की मुद्रा मे किया जाता है। मुड़े हुए घुटनो पर उठें।
  • घुटनों मे थोड़ा गैप रखें। पीछे पंजे भी समान दूरी पर रखें।
  • दोनो हाथ कमर पर। अंगूठे रीढ की तरफ और उंगलियां कमर पर रखे। थोड़ा सा गर्दन को पीछे झुकाएं।

(यदि आसन को पहली बार कर रहे व्यक्तियो को कोई परेशानी लगे तो यहां से वापिस आ जाएं।)

  • धीरे धीरे रीढ को पीछे की ओर झुकाएं।
  • रीढ पर धनुषाकार घुमाव आने के बाद दांया हाथ कमर से हटा कर दांई एड़ी पर रखें। बांया हाथ हटा कर बांई एड़ी पर रखें।
  • यह आसन की पूर्ण स्थिती है। इस स्थिती मे कुछ देर रुकें।
  • आसन की स्थिति से वापिस आने के लिए पहले दांया हाथ और उसके बाद बांया हाथ कमर पर ले आएं।
  • कमर को सीधा करें।
  • वज्रासन की मुद्रा मे बैठ जाएं। विश्राम करें।

सावधानी :-- रीढ की परेशानी वाले व्यक्ति इस आसन को न करें। नये व्यक्ति सावधानी से करें और पूर्ण स्थिति मे न जाएं।

शशांक आसन की विधि :

  • वज्रासन की मुद्रा मे बैठें।
  • दोनो हाथ घुटनों पर रखें।
  • श्वास भरते हुए दोनो हाथ ऊपर उठाएं।
  • दोनो हाथों को ऊपर की ओर खींचें।
  • श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुके।
  • दोनों हाथ सिर के दांये बांए लगे रहें।
  • पहले हथेलियां, फिर कोहनियां और उसके बाद माथा जमीन से लगाएं।
  • श्वास सामान्य लेते छोड़ते हुए स्थिति में रुकें।
  • वापसी के लिए श्वास भरते हुए ऊपर उठें। हाथ सिर के साथ लगे रहें।
  • श्वास छोड़ते हुए दोनो हाथ घुटनो पर ले आएं। विश्राम करें।


लाभ दोनो आसनों का :

दोनो आसन रीढ के लिए उत्तम आसन है। दोनो आसनों मे रीढ का घुमाव आगे पीछे दोनो दिशाओं मे होता है। रीढ तथा पेट के लिए उत्तम आसन हैं।

पेट के बल किये जाने वाले आसन :

पेट के बल लेट कर किये जाने वाले आसानों का सही क्रम क्या है? वज्रासन के बाद पेट के बल "स्थिल आसन" में लेट जाएं। दांया कान आसन पर, बांया कान ऊपर की ओर रखें। दांए हाथ-पैर को सीधा रखें। बांए हाथ-पैर मुड़े हुए रखें। इस स्थिती मे कुछ देर विश्राम करें।

भुजंग आसन + शलभ आसन :

ये दोनो आसन एक दूसरे के सहायक आसन माने जाते है। इस लिए इन दोनो को सही क्रम से करना चाहिए।भुजंग आसन से शरीर का उपरी भाग प्रभावित होता है।शलभ आसन  करने से कमर के नीचे का भाग प्रभाव में आता है।

भुजंग आसन की विधि :

  • सीने के बल लेट जाएं दोनो पैरों को सीधा रखें और पंजों को खिचे हुए रखें।
  • दोनो हाथ कोहनियों से मोड़ कर हथेलियां सिर के दांए बांए रखें। माथा आसन पर लगा कर रखें।
  • धीरे से सिर को ऊपर उठाएं।
  • हाथों पर कम से कम दबाव डालते हुए रीढ के सहारे सीना ऊपर उठाएं।
  • अधिकतम ऊपर उठने के बाद रुक जाएं।
  • पूर्ण स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद धीरे-धीरे वापिस आ जाएं।
  • पहले सीना और फिर माथा आसन से लगाएं। बांई तरफ से स्थिल आसन में विश्राम करें।

स्थिल आसन मे विश्राम :-- बांया कान आसन से लगाएं। बांए हाथ और बांए पैर को सीधा रखें तथा दांए हाथ व पैर को मोड़ कर रखें।

शलभ आसन की विधि :

  • शलभ आसन के लिए पेट के बल आ जाएं।
  • दोनों हाथों की हथेलियों को दोनो जंघाओं के नीचे रखें। ठुड्डी आसन से लगाएं।
  • दोनो मिले हुए पैर, घुटने सीधे रखते हुए ऊपर उठाएं। स्थिती मे रुकें।
  • कुछ देर रुकने के बाद दोनो मिले हुए पैर धीरे से नीचे रखें।
  • स्थिल आसन मे विश्राम करे दांई ओर से।

स्थिल आसन में विश्राम :-- दांई करवट से विश्राम करें। दांया कान आसन से लगाएं। दांया हाथ-पैर सीधे। बांए हाथ-पैर मोड़ कर रखें। 

पीठ के बल लेट कर किये जाने वाले आसन :

दांया हाथ ऊपर करते हुए, धीरे से करवट बदलें और पीठ के बल आ जाएं। कुछ आसन इस स्थिति मे करें। लेट कर आसन आरम्भ करने से पहले हाथों को ऊपर ले जाकर ताड आसन करे।

लेट कर किये जाने वाले आसनों का क्रम :

पीठ के बल लेट कर किये जाने वाले आसनों का सही क्रम इस प्रकार है :--

सर्वांग आसन+मत्स्य आसन :

ये दोनो आसन साथ साथ किये जाने चहाएं।पहले सर्वांग आसन करें। सर्वांग आसन के बाद मत्स्य आसन करे। मत्स्य आसन सर्वांग आसन का पूरक आसन है।

सर्वांग आसन करने की विधि :
  • आसन पर सीधे लेट जाएं।
  • दोनों पैर मिला कर रखें। हाथ दांए-बांए कमर के साथ रखें।
  • श्वास भरते हुए धीरे-धीरे दोनों पैर ऊपर उठाएं। पैर ऊपर उठाते समय घुटने सीधे रखें। 
  • पैर ऊपर उठने के बाद पंजों मे खिंचाव देते हुए कुछ देर रुकें।
  • श्वास छोड़ते हुए पैरों को सिर की ओर ले जाएं। हलासन की स्थिति मे कुछ देर रुके।
  • श्वास भरते हुए धीरे-धीरे पैरो को बीच मे ले आएं। आकाश की ओर पैरो को खींच कर रखें।
  • दोनो हाथो से पीठ को सहारा देते हुए मध्य- भाग ऊपर उठाएं। पैरो को आकाश की ओर खींच कर रखे।
  • स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद कमर को धीरे-धीरे नीचे टिकाएं। हाथो को कमर से हटा कर दांए-बांए रखें।
  • घुटने सीधे रखते हुए पैरो को नीचे ले कर आएं।पैर नीचे आने के बाद दोनो पैरों मे दूरी बनाएं। श्वास सामान्य करते हुए विश्राम करें। 

सर्वांग आसन के बाद मत्स्य आसन अवश्य करें। यह इसका पूरक आसन है।

मत्स्य आसन करने की विधि :

  • आसन पर लेटे हुए दांया पैर बांई जंघा पर रखे। बांया पैर दांई जंघा पर रखें। लेटे हुए पद्मासन की स्थिति बनाएं।
  • दोनों हाथों से पैरो के अंगूठे पकड़े।
  • कोहनियों का सहारा ले कर मध्य भाग ऊपर उठाएं। स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद वापिस आये। पैर खोल कर विश्राम करें।

दोनो आसन करने का लाभ :

ये दोनों एक दूसरे के विपरीत आसन है। सर्वांग आसन के बाद मत्स्य आसन करना लाभकारी होता है। इसलिए इन दोनो को इसी क्रम से किया जाना चाहिए।

पादोत्तान आसन + पवन मुक्त आसन :

ये दोनो आसन क्रमश: साथ-साथ किये जाने चाहिएं। पहले पादोत्तान आसन करें उसके बाद पवन मुक्त आसन करें। 

पादोत्तान आसन की विधि:

  • लेटने की स्थिती मे हाथों को ऊपर ले जाएं।
  • श्वास भरते हुए हाथो और पैरो मे खिंचाव देते हुए ताड़ आसन करें।
  • श्वास सामान्य करे। हाथो को वही पर रखे।
  • घुटने सीधे रखते हुए, दोनो पैर मिला कर लगभग 3-4 इंच ऊपर उठाएं। और यही पर रुकें।
  • दांया पैर थोड़ा और ऊपर ले जाएं और बांया हाथ घुटने के पास ले जाएं। कुछ देर रुके।
  • दांया पैर नीचे ले आएं।
  • यही क्रिया बांए पैर और दांए हाथ से करें।
  • दोनो मिले हुए पैर घुटने सीधे रखते हुए ऊपर उठाएं। जमीन से लगभग 60 डिग्री पर रुकें।
  • दोनो हाथ घुटनो के पास ले जाने का प्रयास करे।
  • धीरे से पैर आसन पर रखें। हाथो को शरीर के बराबर मे ले आएं।
  • पैर खोल कर विश्राम करें।

पवन मुक्त आसन की विधि :

यह आसन पहले किये गये आसन का सहायक आसन है। पहले किये गये आसन के लाभ को बढाता है। एकत्रित हुई दुषित वायु को बाहर निकालता है। इसलिए इसका नाम पवन मुक्त आसन है।

  • दोनों पैर मोड़ कर दोनो हाथों से घुटनों को पेट की ओर दबाएं।
  • सिर ऊपर उठाते हुए नासिका घुटनो के पास ले जाने का प्रयास करे।
  • पूर्ण स्थिती मे कुछ देर रुके।
  • कुछ देर रुकने के बाद वापिस आ जाएं। दोनों घुटने सीधे करें।
  • दोनो पैरो को धीरे से नीचे टिकाएं।
  • विश्राम करें।

शव आसन :

सभी आसनों के अंत में शवासन में विश्राम करें। सीधे लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें। श्वास सामान्य करे। कुछ देर विश्राम करने के बाद उठ कर बैठ जाये और प्राणायाम करें।

प्राणायाम का सही क्रम क्या है?

आसन करने के बाद कुछ देर विश्राम करें। कुछ देर विश्राम के बाद ही प्राणायाम करें। प्राणायाम का अभ्यास भी सही क्रम से करना चाहिए। प्राणायाम का सही क्रम इस प्रकार है :-

प्राणायाम का सही क्रम :

  • प्राणायाम के लिए पद्मासन मे बैठना उत्तम है। यदि पद्मासन मे नही बैठ सकते है तो आराम दायक सुखासन मे बैठें।
  • प्राणायाम के आरम्भ मे लम्बे-गहरे श्वास लें और छोड़ें।
  • उसके बाद कपालभाति करें।
  • कपालभाति के बाद श्वास सामान्य करें और अनुलोम विलोम प्राणायाम का अभ्यास करें।
  • कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम करना अधिक लाभकारी है।
  • श्वांस सामान्य करने के बाल शीतली या शीतकारी प्राणायाम करे। ये प्राणायाम केवल गर्मी के मौसम मे ही करें।
  • यदि सर्दी का मौसम है तो भस्त्रिका प्राणायाम या सूर्यभेदी प्राणायाम करें। गर्मी के मौसम मे चंद्रभेदी प्राणायाम का अभ्यास करें। 
  • अंत मे नाड़ी शोधन प्राणायाम करें।
  • सभी अभ्यास पूरे करने के बाद श्वांसों को सामान्य करें।
(प्राणायाम के बारे मे विस्तार से जानने के लिये हमारे अन्य लेखों का अवलोकन करें।)

विशेष सावधानी :

लेख में बताये गये आसनप्राणायाम स्वस्थ व्यक्तियों के लिए हैं। अस्वस्थ व्यक्ति योग्य चिकित्सक की सलाह लें। अपने शरीर की क्षमता के अनुसार आसन व प्राणायाम का अभ्यास करें।


लेख का सारांश :

योगाभ्यास में पहले आसन का अभ्यास करें। आसन के बाद प्राणायाम और प्राणायाम के बाद ध्यान करें। योगाभ्यास को सही क्रम से किया जाना अधिक लाभकारी होता है। एक आसन करने के बाद उसका पूरक आसन या विपरीत आसन करने से आसनों मे बैलेंस बना रहता है।

Disclaimer :-- यह लेख किसी प्रकार के रोग का उपचार करने के लिए नही है। किसी प्रकार के रोग से पीड़ित होने पर आसन न करे और चिकित्सक की सलाह लें। हमारा उद्देश्य आम लोगो को योग के प्रति जागरूक करना है।

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