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योगाभ्यास मे सभी आसन सही संयोजन (Right Combination) के साथ किए जाने चाहिए। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कुछ आसनों के 'पूरक आसन' भी होते हैं। "पूरक-आसन" को "विपरीत आसन" भी कहा जाता है। ये आसन पहले किए गए आसन के लाभ को बढाते हैं। योग मे आसनों का सही संयोजन है, पूरक आसन।

इस लेख में बताया जायेगा कि योग में पूरक-आसन क्या है? पूरक आसनों का क्या महत्व है?  इनका अभ्यास कैसे करें?

लेख सारणी :-

  • पूरक-आसन क्या है?
  • पूरक-आसन क्यों करें?
  • पूरक-आसन, विपरीत आसन कोन से हैं?
  • उष्ट्रासन और शशांक आसन।
  • सर्वांग आसन और मत्स्य आसन।
  • भुजंग आसन और शलभ आसन।

पूरक-आसन क्या है?

योगाभ्यास मे कुछ आसन शरीर के अंगो को केवल एक ओर ही प्रभावित करते हैं। अत: ऐसे आसनों को संतुलित करने के लिए उनके विपरीत दिशा के आसन अवश्य किए जाने चाहिए। ऐसे आसन को "पूरक आसन" कहा जाता है। यह आसनों का सही कॉम्बिनेशन है।

इसका सीधा अर्थ यह है कि यदि एक आसन में आगे की तरफ झुकते है, तो दूसरे आसन में पीछे की तरफ भी झुकना चाहिए। इन को विपरीत आसन भी कहा गया है। इसी प्रकार कुछ आसनों पूरक-आसन होते हैं जो इनके विपरीत स्थिति में लिए जाते हैं। ये क्यों जरूरी हैं, इसको विस्तार से समझ लेते हैं।

पूरक-आसन क्यो करें?

कुछ आसन करते समय हमारे एक तरफ के अंग अधिक प्रभावित होते हैं और दूसरी तरफ के कम। जैसे कि उष्ट्रासन में पीछे की तरफ झुकते है तो रीढ पीछे की ओर झुकाई जाती है। यदि अगले आसन मे रीढ को आगे की तरफ (विपरीत दिशा) में नही ले जायेंगे तो उष्ट्रासन  का लाभ नही मिलेगा।

पूरक-आसन नहीं करने पर लाभ की बजाय हानि भी हो सकती है। इस लिए आसन को बैलेंस करने के लिए हमें एक आसन करने के बाद उसका विपरीत आसन अवश्य करना चाहिए। ये पहले किए गये अभ्यास के लाभ की वृद्धि करते हैं।

"पूरक-आसन" योगासन का सही Combination.

प्रत्येक आसन का अभ्यास सही संयोजन से करना लाभदायी होता है। यहां हम आपको कुछ मुख्य आसन और उनके साथ किये जाने वाले पूरक या विपरीत आसन बतायेगें।

1. उष्ट्रासन और शशांक आसन :

ये दोनों आसन एक दूसरे के विपरीत दिशा में किये जाने वाले आसन हैं। दोनो को साथ-साथ करना लाभदायक होता है। पहले उष्ट्रासन मे रीढ को पीछे की ओर प्रभावित किया जाता है। तथा शशांक आसन मे रीढ आगे की ओर प्रभाव मे आती है।

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उष्ट्रासन :

  • वज्रासन की स्थिती में घुटने मोड़ कर बैठें।
  • घुटनों में थोड़ा गैप रखते हुए ऊपर उठें। दोनो हाथ कमर पर ले जाएं। अंगूठे पीठ पर रीढ के पास रखें।
  • धीरे से गरदन को पीछे की तरफ थोड़ा सा झुकाए।
  • अंगूठों से पीठ पर दबाव रखते हुए कमर से पीछे की तरफ झुकें।
  • रीढ में धनुष के आकार मे घुमाव आने के बाद दाँया हाथ दांई एडी पर रखें।
  • बांया हाथ बांई एड़ी पर रखें।
  • पूर्ण स्थिति मे अपनी क्षमता के अनुसार रुके।
  • कुछ देर रुकने के बाद धीरे से रीढ को सीधा करते जाएं और बारी-बार दोनो हाथ कमर पर ले आएं।
  • खुली एड़ियों के बीच मे मध्य भाग को टिका कर बैठ जाएं। दोनो हाथ घुटनो पर रखें। कमर (रीढ) को सीधा रखें।

सावधानी :- इस आसन को सावधानी से करें। रीढ की परेशानी वाले व्यक्ति इस आसन को न करें। जो व्यक्ति इस आसन को पहली बार कर रहे हैं वे आसन की पूर्ण स्थिति मे धीरे-धीरे जाएं। चक्कर आने या कोई परेशानी अनुभव होने पर वापिस आ जाये। अभ्यास को धीरे धीरे बढाएं।

वज्रासन के बाद शशांक आसन करें 

वज्रासन करने के बाद कुछ सैकिंड विश्राम करें। विश्राम के बाद शशांक आसन का अभ्यास करें।

शशांक आसन :

शशाँक आसन

विधि :--
  • दोनों हाथ धीरे-धीरे ऊपर उठाये। हथेलियां नीचे की तरफ रखें।
  • हाथों को ऊपर ले जाएं। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर खिंचाव रखें।
  • श्वास छोड़ते हुए आगे की तरफ झुकें।
  • झुकने के बाद माथा घुटनो पर या जमीन पर लगाने का प्रयास करें। लेकिन मध्य भाग एड़ियों पर टिका रहे।
  • कोहनियों को थोड़ा सा मोड़ते हुए हथेलियां नीचे रखें।
  • श्वास सामान्य लेते-छोड़ते हुए इस स्थिति में कुछ देर रुकें।

  • कुछ देर रुकने के बाद श्वास भरते हुए ऊपर उठें। हाथ कानो के पास और सीधे रखें।

  • श्वास छोड़ते हुए दोनो हाथ घुटनो पर ले आएं।

सावधानी :-

आंत रोग से पीड़ित व्यक्ति शशांक आसन सावधानी से करें।

दोनो आसनों के लाभ :-

  • दोनों आसन करने पर रीढ  पीछे और आगे झुकने से रीढ मे लचीला पन बना रहता है।
  • रीढ मे लचीला-पन (फ्लैक्सिबिलिटी) बने रहने से रीढ स्वस्थ रहती है।
  • रीढ के स्वस्थ रहने से शरीर का नाड़ीतंत्र स्वस्थ रहता है।
  • दोनो आसन करने से इन से मिलने वाले लाभ मे वृद्धि होती है।

2. सर्वांग आसन और मत्स्य आसन :

मत्स्य आसन, सर्वांग आसन का पूरक आसन है। पहले सर्वांग आसन किया जाना चाहिए और उसके बाद मत्स्य आसन करना चाहिए।

सर्वांग आसन

सर्वांग आसन :

इस आसन में शरीर के सभी अंग प्रभावित होते हैं इसलिए इसका नाम सर्वांग आसन है।  

सर्वांग आसन की विधि :

  • बिछे हुए आसन (योगा मैट) पर सीधे लेट जाएं।
  • दोनों हाथ शरीर के साथ, हथेलियां नीचे की ओर रखें।
  • दोनों पैरो को मिला कर रखें।
  • धीरे-धीरे मिले हुए दोनो पैर एक साथ ऊठाएं।
  • पैरों को पीछे हलासन की स्थिति मे ले जाएं।
  • कुछ सैकिंड रुकने के बाद पैरों को बीच मे ले आएं।
  • दोनों हाथ कमर के नीचे रखें। हाथों का सहारा लगाते हुए मध्य भाग ऊपर उठाएं। पैर 90डिग्री पर आसमान तरफ।घुटने सीधे और पंजे खिचे हुए।
  • पूर्ण स्थिति मे कुछ देर रुकें।
  • धीरे-धीरे वापिस आएं।
  • वापसी में घुटने सीधे रखे, पैरों को मिला कर रखें। पैरो को जमीन पर धीरे से रखें।
  • विश्राम करें और आये हुए तनाव को दूर करें।

सावधानी :-

आंत रोग से पीड़ित तथा हृदय रोगी इस आसन को न करें। उच्च रक्त-चाप (High BP) वाले व्यक्ति इस आसन को सावधानी से करें।

(इस आसन के बाद मत्स्य आसन करें।)

मत्स्य आसन :-

यह आसन सर्वांग आसन का पूरक आसन है।सर्वांग आसन के बाद इस आसन को अवश्य करना चाहिए।

 विधि :-

  • सर्वांग आसन के बाद लेटने की स्थिति में पैरों को मोङें और पद्मासन लगाएं।
  • दोनो हाथों से पैरो के अंगूठे पकड़े।
  • कोहनियों का सहारा लेते हुए मध्य भाग ऊपर उठाएं।
  • गरदन को पीछे की तरफ मोड़ते हुए सिर को आसन से लगाये
  • पूर्ण आसन मे रुकने का प्रयास करें।

मत्स्य आसन मे सावधानी :-

यदि आपके गरदन या रीढ मे कोई परेशानी है तो इस आसन को न करें।

लाभ दोनो आसनों का :-

सर्वांग आसन में सिर से लेकर पैरो तक सभी अंग प्रभाव मे आते है। मत्स्य आसन इस से मिलने वाले लाभ को बढा देता है।

3. भुजंग आसन और शलभ आसन

ये दोनो आसन पेट के बल लेट कर किये जाने वाले उत्तम आसन हैं। पहले भुजंग आसन करें।भुजंग आसन के बाद शलभ आसन करें।

भुजंग आसन

भुजंग आसन :-

  • पेट के बल लेट जाएं।
  • माथा आसन से लगाएं। दोनो हाथो को कोहनियों से मोड़ कर हवेलियां सिर के दांये बांये रखें।
  • घुटने मिला कर रखें। पंजे सीधे रखें।
  • धीरे से सिर ऊपर उठाये।
  • श्वास भरते हुए सीना ऊपर उठाएं। रीढ का सहारा ले कर ऊपर उठें,हाथों पर दबाव न डाले।
  • कुछ देर रुकने के बाद श्वास छोड़ते हुए वापिस आ जायें। पहले सीना और उसके बाद माथा आसन पर रखें।
  • कुछ देर  विश्राम करें। विश्राम के लिये बांया हाथ व पैर सीधे रखें। बांया कान आसन पर। दांया हाथ व पैर मोड़ कर रखें।
  • कुछ देर विश्राम के बाद शलभ आसन करें।

शलभ आसन :-

भुजंग आसन के बाद शलभ आसन करे।

  • दोनों हाथ जंघाओं के नीचे रखें।
  • ठोडी आसन पर रखें।
  • दोनों मिले हुए पैर आसन से थोड़ा ऊपर उठाएं।
  • पैरो मे खिंचाव बना कर कुछ देर रुकें।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे से पैरों को आसन पर रखें।
  • दांई तरफ से विश्राम करें।

लाभ दोनो आसनों का :-

  • भुजंग आसन से पेट से ऊपर के अंग प्रभावित होते है। इसमें पेट, सीना और गरदन प्रभाव में आते हैं।
  • शलभ आसन से पेट तथा पेट से नीचे के अंग प्रभावित  होते है। इसमें पेट की आंतें,कमर तथा पैर प्रभाव मे आते है।
  • दोनो आसनों से रीढ मजबूत होती है।

लेख का सार :-

पूरक आसन और विपरीत करने आवश्यक है। एक आसन करने के बाद उसका पूरक आसन या विपरीत करने से आसन का बैलेंस बना रहता है और लाभ मे वृद्धि होती है।


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