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आज के समय मे स्वास्थ्य के लिये योग को एक उत्तम विधि माना गया है। इसका कारण है कि योग सरल व सुरक्षित है। इस क्रिया को सभी व्यक्ति अपनी शारीरिक अवस्था के अनुसार कर सकते हैं। योगाभ्यास मे आसन प्राणायाम हृदय को स्वस्थ रखने मे सहायक होते हैं। लेकिन क्या हृदय-रोगी के लिये योग लाभदायी है? क्या ऐसे व्यक्तियों को योगाभ्यास करना चाहिए? यदि हां, तो उनको कोन सी सावधानियों को ध्यान मे रखना चहिए? ये सब प्रस्तुत लेख मे बताया जाएगा।

विषय सुची :-

• हृदय रोग की "आरम्भिक अवस्था" मे योग।
• हृदय रोग की "गम्भीर अवस्था" मे योग।

yoga for heart patients
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हृदय रोग में योगाभ्यास

योगाभ्यास शरीर को स्वस्थ रखने की एक उत्तम विधि है। इस क्रिया मे "आसन" शरीर के अंगों को सक्रिय रखते हैं तथा रक्त-संचार को व्यवस्थित करते हैं। "प्राणायाम" श्वसनतंत्र को सुदृढ करते है और रक्तचाप को सन्तुलित बनाए रखते हैं। नियमित योगाभ्यास स्वस्थ व्यक्ति को हृदय रोग से बचाए रखने मे सहायक होता है। लेकिन  एक हृदय रोगी को योगाभ्यास कुछ सावधानियों के साथ करना चहिए।

हृदय रोग से प्रभावित व्यक्ति योगाभ्यास कैसे करें, यह समझने के लिये लेख को दो श्रेणियों मे विभाजित करना होगा :-

1. आरम्भिक रोगी
2. गम्भीर रोगी
आईए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।

1. हृदय रोग की आरम्भिक अवस्था में योग :

यदि हृदय रोग की आरम्भिक अवस्था है तो आसन-प्राणायाम सरलता से करें। कम अवधि की क्रिया करें। चिकित्सक की सलाह से अभ्यास करें। चिकित्सक द्वारा बताई गई औषधी का सेवन करते रहें। संतुलित आहार लें।

आसन - रोग की आरम्भिक अवस्था में :

हृदय रोग की आरम्भिक स्थित मे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार आसन किये जाने चाहिएं। आसन करते समय इन सावधानियों को ध्यान मे रखें :-

• सरल आसन करें।
• तनाव वाले आसन न करें।
• रक्तचाप की वृद्धि करने वाले तथा तीव्र गति वाले आसन न करें।
• चिकित्सक की सलाह के बिना कोई क्रिया न करें।

सरल आसन :

रोग की आरम्भिक अवस्था मे सरलता से किये जाने वाले आसन :-

• ताड़ आसन
• सूर्य नमस्कार
• त्रिकोण आसन
• तितली आसन
• वज्रासन।
• मकर आसन
• शवासन

हृदय रोगी के लिये वर्जित आसन :

हृदय रोग से प्रभावित व्यक्ति के लिये कुछ आसन वर्जित हैं। इन आसनों को नही किया जाना चाहिए। यदि आरम्भिक रोगी इन आसनों करना चाहते हैं, तो किसी योग विशेषज्ञ के निर्देशन मे करें, कम मात्रा मे करें तथा अपने चिकित्सक की सलाह से करें। गम्भीर रोगी को ये आसन नही करने चाहिएं :-

• शीर्षासन
• सर्वांग आसन
• हलासन
• चक्रासन

प्राणायाम - रोग की आरम्भिक अवस्था में :

प्राणायाम एक लाभदायी क्रिया है। नियमित प्राणायाम एक स्वस्थ व्यक्ति को हृदय रोग से बचाये रखने मे सहायक होते है। लेकिन हृदय-रोगी इन सावधानियों को ध्यान मे रखें :-

 अपने श्वासों की स्थिति के अनुसार प्राणायाम करें।
• अपनी क्षमता से अधिक अभ्यास न करें।
 तीव्र गति वाले प्राणायाम, रक्तचाप बढाने वाले प्राणायाम न करें।
 सरल प्राणायाम करें। कम आवर्तियां करें।
श्वास की स्थिति ठीक नही है, तो *कुम्भक का प्रयोग न करें।
 चिकित्सक की सलाह ले कर प्राणायाम करें।
चिकित्सक द्वारा बताई गई औषधि का सेवन अवश्य करें।

(*कुम्भक :- श्वास को अन्दर या बाहर कुछ देर रोकना कुम्भक कहा गया है।)

सरल प्राणायाम :

सरलता से किये जाने वाले प्राणायाम :-

श्वास-प्रश्वास (लम्बे-गहरे श्वास लेना व छोड़ना)।
• कपालभाति (धीमी गति से)।
• अनुलोम विलोम प्राणायाम।
• भ्रामरी प्राणायाम।

वर्जित प्राणायाम :

कुछ प्राणायाम रक्तचाप की वृद्धि करने वाले होते हैं। अत: ये क्रियाएं हृदय रोग प्रभावित व्यक्ति के लिये वर्जित हैं। गम्भीर रोगी इन क्रियाओं को न करें :-

भस्त्रिका प्राणायाम
सूर्यभेदी प्राणायाम
कपालभाति (तीव्र गति)
कुम्भक

यदि आरम्भिक रोगी इन क्रियाओं को करना चाहते हैं, तो इन बातों को ध्यान मे रखें :-

• योग प्रशिक्षक के निर्देशन मे अभ्यास करें।
• चिकित्सक की सलाह के बिना अभ्यास न करें।
• धीमी गति से अभ्यास करें।
• कम आवर्तियां करें।

2. हृदय रोग की गम्भीर अवस्था में योग :

यदि हृदय रोग की गम्भीर स्थिति है तो योगाभ्यास नही करना चाहिए। गम्भीर रोगी चिकित्सक की सलाह ले। सरल क्रियाएं करें।

गम्भीर रोगी के लिये आसन :

गम्भीर रोगी के लिये योगासन वर्जित हैं। ऐसे व्यक्ति के सूक्ष्म क्रियाएं करें।

 हृदय के गम्भीर रोगी योगासन न करें।
 सूक्ष्म आसन करें। (खड़े होकर या बैठ कर हाथ -पैरों तथा जोड़ों की मूवमेंट करना सूक्ष्म आसन कहे गये हैं।)
 धीरे-धीरे पैदल टहलना उत्तम है।
 टहलने या सूक्ष्म आसन के बाद लेट कर कुछ देर विश्राम करें।

गम्भीर रोगी के लिये प्राणायाम :

हृदय के गम्भीर रोगी के लिये प्राणायाम वर्जित हैं। अत: प्राणायाम का अभ्यास न करें। चिकित्सक की अनुमति से ये श्वसन अभ्यास करें :-

श्वास-प्रश्वास :- दोनो नासिकाओं से लम्बा-गहरा श्वास  भरें और खाली करें। यह क्रिया तीन-चार श्वासों मे या अपनी अवश्यकता अनुसार करें।
 अनुलोम विलोम :- बांई नासिका से श्वास भरें और दांई तरफ से श्वास को बाहर छोड़ें। दांए से श्वास भरके बांई तरफ से श्वास को खाली करें। यह एक आवर्ती (चक्र) हुई। अवश्यकता व क्षमता अनुसार अन्य आवर्तियां करें।

सामान्य निर्देश :

योगाभ्यास स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। योगाभ्यास हृदय रोगों से बचाए रखने मे सहायक होता है। लेकिन रोग से प्रभावित व्यक्तियों को इन निर्देशों का पालन करना चाहिए:-

1. चिकित्सक द्वारा बताई गई औषधि को लेते रहें।
2. संतुलित आहार लें।
3. योग क्रिया अपनी क्षमता से अधिक न करें।
4. प्रशिक्षक के निर्देशन मे अभ्यास करें।
5. चिकित्सक से सलाह लेते रहें।

सारांश :

योग हृदय के लिए एक लाभदायी क्रिया है। लेकिन इस रोग से प्रभावित व्यक्ति इन क्रियाओं को सावधानी से करें। असावधानी से किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

Disclaimer :

यह लेख किसी प्रकार के रोग का उपचार करने का दावा नही करता है। इस लेख का उद्देश्य योग की लाभ-हानि व सावधानियों की जानकारी देना है। कोई भी योग क्रिया करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य लें। गम्भीर रोगी तथा अधिक वृद्ध व्यक्ति योगाभ्यास न करें।

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