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विषय सुची :--
- सुख व दुख क्या हैं?
- दुखों का कारण।
- दुखों का निवारण।
- सम-स्थिति क्या है?
- दुख का निवारण अष्टांगयोग से।
दुखों का मूल कारण और निवारण
दुखों का मूल कारण क्या है? तथा इन का निवारण क्या है? यह जानने से पहले आईए यह समझ लेते है कि सुख और दुख क्या है?
सुख और दुख क्या हैं, ये कैसे प्रभावित करते हैं?
सुख और दुख केवल एक अनुभूति है। यदि कोई घटना या प्रस्थिति हमारे अनुकूल है, तो उसे हम सुख मान लेते हैं। और यदि प्रतिकूल है तो उसे दुख मान लेते हैं। यदि हमारी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है तो हमे वह सुख लगता है। तथा इच्छाओं की पूर्ति न होने पर दुख का अनुभव करते हैं।
क्या मात्र यही सुख और दुख की परिभाषा है? क्या केवल दुख ही शरीर पर दुष्प्रभाव डालता है? योग दर्शन के अनुसार सुख और दुख दोनो शरीर को प्रभावित करते हैं। सुख व दुख समान रूप से हानिकारक हैं।
सुख व दुख का स्थूल शरीर पर प्रभाव
आप यह तो जानते ही है कि जिस प्रकार यह ब्रह्माण्ड पांच तत्वों से बना है। उसी प्रकार हमारा यह स्थूल शरीर भी उन ही पांच तत्वों से बना है। ये तत्व है :--
ये सब मिल कर एक वातावरण बनाते है। इन तत्वों के कारण मौसम बनते बिगड़ते है। सर्दी आती है, ग्रीष्म ऋतु आती है और बरसात आती है। जब इन तत्वों का समीकरण असंतुलित हो जाता है तो मौसम भी गड़बड़ा जाता है।
जैसा वातावरण हमारे बाहर है, ठीक ऐसा ही एक वातावरण हमारे शरीर के अन्दर भी है। क्योंकि शरीर भी उन ही पांच तत्वों से बना है। जब तक शरीर के पांचों तत्वों का संतुलन बना रहता है तो मन की स्थिति सुखद रहती है। और जब इन का बैलेंस बिगड़ता है मन की स्थिती भी खराब हो जाती है। शरीर भी इसी कारण प्रभावित होता है।
सूक्ष्म शरीर का प्रभाव
सूक्ष्म शरीर भी स्थूल शरीर पर सीधा प्रभाव डालता है। सूक्ष्म शरीर का निर्माण 17 तत्वों से होता है। यह 5 प्राण, 5 कर्मेंद्रियां, 5 ज्ञानेन्द्रियां, मन तथा बुद्धि से निर्मित हैं।
सूक्ष्म शरीर को प्राण, कर्मेन्द्रियां, ज्ञानेन्द्रियां, मन तथा बुद्धि प्रभावित करते हैं। इस शरीर पर सब अधिक प्रभाव चित्त तथा चित्त की वृत्तियों का पड़ता है।
दुखों का कारण
ईर्ष्या :- ईर्ष्या दुखों का कारण है। ईर्ष्या के कारण इच्छाएं उत्पन्न होती हैं।
इच्छाएं :- मुख्यत: दुखों का कारण इच्छाएं है। यदि हम असीमित इच्छाएं रखते है, और जब उनकी पूर्ति नही होती है तो यह दुख का कारण बनती हैं।
क्रोध :- इच्छाओं की पूर्ति न होना क्रोध कारण बनता है।
मोह :-- किसी व्यक्ति या वस्तु से अत्याधिक लगाव भी दुखो का कारण बनता है। उस की प्राप्ति के बाद उसके अलगाव का भय दुखों का कारण होता है।
पतंजलि के अनुसार दुखों का कारण
महर्षि पतंजलि के अनुसार दुखों का कारण "चित्त वृत्तियां" हैं। पतंजलि योगसूत्र मे इनको दुखों का कारण माना गया है।
इन चित्त वृत्तियों का निरोध करने के लिए कहा गया है:- "योगश्चित्तवृत्ति निरोध:।"
महर्षि पतंजलि ने इन वृत्तियों के निरोध करने को ही योग बताया है।
ये वृतियां क्लिष्ट और अक्लिष्ट बताई गई हैं। ये वृत्तियां दुखों का कारण बनती हैं। ये निरोध करने योग्य होती हैं।
दुखों का निवारण कैसे?
हमने देखा कि दुखों का कारण हमारा मन ही है। चित्त की वृत्तियां शरीर को प्रभावित करती हैं। दुखों का निवारण करने का उपाय क्या है? क्या योग दुखों का निवारण है?
सम स्थिति में रहे
दुखों से निवारण के लिए हमे "सम स्थिति" मे रहना चाहिए। सम-स्थिति का अर्थ है सुख व दुख में समानता की स्थिति। सम स्थिति मे व्यक्ति सुख-दुख से प्रभावित नही होता है।
सम-स्थिति क्या है? :- शरीर के लिए केवल दुख ही हानिकारक नही है, बल्कि सुख भी उतना ही हानिकारक है। अर्थात् सुख व दुख दोनो समान रूप से हानिकारक हैं। सम स्थिति एक बीच का रास्ता है। सुख मे अधिक खुश न हो तथा दुख मे दुखी न हो। इसी प्रकार न किसी से वैर-भाव रखें और ना किसी से अधिक लगाव (मोह) रखें। यही सम-भाव है।
आईए पहले इसे विस्तार से समझ लेते हैं। यदि दुख की स्थिति आती है तो विपरीत स्थिति मे जाये। अर्थात दुख मे दुखी न हो कर आशा बनाए रखे। और उस आये हुए दुख का प्रभाव कम करें।
इसी प्रकार जब कोई खुशी की स्थिति आती है वह भी हानिकारक है। अत: खुशी की स्थिति से भी बचें। इस स्थिति से बचने के लिए भी हमे विपरीत स्थिति मे जाना चाहिए। अर्थात् यदि खुशी की स्थिति आती है तो सुख का अनुभव न करे। बल्कि इसके विपरीत जाकर उसे क्षणिक सुख समझे और मन को वहां से हटाने का प्रयास करें।
यदि क्रोध उत्पन्न होता है तो तुरंत दया-भाव मन मे लेकर आये जिसके प्रति क्रोध आया है। यह विपरीत स्थिति है।
यह स्थिति चित्त वृत्तियों के निरोध से स्थापित होती है। चित्त वृत्तियां क्या है? और कोन सी चित्त वृत्तियां दुखों का करण है? इसका आगे वर्णन करेंगे।
दुखों का निवारण योग से
योग ही दुखों का निवारण है। योग स्वयम् को स्वयम् से जोड़ता है। योग बताता है कि 'मै' कोन हूं? 'शरीर' क्या है? 'मै' शरीर से अलग कैसे हूँ? महर्षि पतंजलि ने चित्त वृत्तियों को दुखो का करण बताया है। इन वृत्तियों के निरोध कर देना ही दुखों का निवारण है।
ये कोन सी वृत्तियां है जो निरोध करने योग्य हैं? इनका निरोध करने का साधन क्या है?
चित्त वृत्तियाँ क्या हैं?
पाँच वृत्तियाँ :--
इन पाँच वृत्तियों के दो भेद है :-- क्लिष्ट और अक्लिष्ट। ये वृत्तियाँ दुखों का कारण बनती है। ये निरोध करने योग्य हैं।
चित्त वृत्तियों का निरोध कैसे करें?
सम्पूर्ण योग चित्त वृत्तियों के निरोध पर आधारित है। महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र मे इन वृत्तियो के निरोध के उपाय बताये है। इसके लिए अष्टाँग योग का प्रतिपादन किया गया है। यह कहा गया है कि अष्टाँगयोग से चित्तवृत्तियो का निरोध सम्भव है।
अष्टाँग योग क्या है:- महऋषि पतंजलि ने अष्टाँग योग को सम्पूर्ण योग बताया है। इसके आठ अंग इस प्रकार हैं :---
- यम (Yama)
- नियम (Niyam)
- आसन (Asana)
- प्राणायाम (Pranayam)
- प्रत्याहार (Pratyahar)
- धारणा (Dharna)
- ध्यान (Dhyan)
- समाधी (Smadhi)
विस्तार से देखें :- अष्टांग योग क्या है?
सारांश :--