प्राणायाम एक श्वांसों पर आधारित क्रिया है। यह योग का महत्वपूर्ण अंग है तथा अष्टांगयोग का चौथा चरण है। महर्षि पतंजलि ने इसको योगसूत्र में विस्तार परिभाषित किया है। यह शरीर को ऊर्जा देने वाला अभ्यास है। लेकिन इस का अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए। प्राणायाम कितने प्रकार के होते हैं? इसके स्वास्थ्य लाभ व सावधानियां क्या है? प्रस्तुत लेख का यही विषय है।
विषय सुची :--
- पतंजलि के अनुसार प्राणायाम क्या है?
- प्राणायाम के प्रकार। Types of Pranayam.
- प्राणायाम के लाभ। Health Benefits.
- प्राणायाम की सावधानियां। Precautions.
प्राणायाम के प्रकार, लाभ व सावधानियां
योग भारत की "प्राचीन जीवनशैली" है। प्राणायाम योग का एक अंग है। यह श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। प्राण-शक्ति मे वृद्धि करता है। यह अभ्यास शरीर के लिए ऊर्जादायी है।
प्राचीन भारत मे कई ऋषि-मुनि तथा योगी हुए हैं। उन्होने कई प्रकार की आसन व प्राणायाम की मुद्राएं बताई है। तथा कई प्रकार की प्राणायाम विधियां बताई हैं। प्राय: प्रश्न पूछा जाता है कि प्राणायाम के कितने प्रकार है? लाभ व सावधानियां क्या हैं? आगे के लेख मे इस विषय पर चर्चा करेगे।
Read this article in English - Types of Pranayama.
प्राणायाम क्या है? कितने प्रकार के हैं?
प्राणायाम शब्द 'प्राण' और 'आयाम' से मिल कर बना है। इसका अर्थ है "प्राण-शक्ति" को आयाम देना। इस क्रिया से प्राण-शक्ति सुदृढ होती है। प्राणों को एक निश्चित आयाम तक पहुंचाना ही प्राणायाम है।
यह प्राण-शक्ति को विस्तार देने वाली क्रिया है। इसके नियमित अभ्यास से प्राण ऊर्ध्वगामी हो जाते हैं। प्राण-ऊर्जा नीचे से उठ कर ऊपर सहस्रार की ओर विचरण करने लगती है।
प्राणायाम, पतंजलि के अनुसार
सूत्र का अर्थ
तस्मिन् सति :-- ऐसा (आसन की सिद्धि ) हो जाने पर।
श्वास :-- प्राणवायु को भरके (पूरक स्थिति)।
प्रश्वासयो: :-- प्राणवायु को बाहर छोड़ कर (रेचक स्थिति)।
गति विच्छेद: :-- श्वास के लेने व छोड़ने की सहज गति को (क्षमता के अनुसार) रोक देना।
प्राणायम: :-- प्राणायाम है।
महर्षि पतंजलि ने इस सूत्र मे "प्राणायाम" की जो परिभाषा दी है, उसे सरल शब्दों मे इस प्रकार समझें :-- जब आसन की सिद्धि हो जाती है तब श्वास की सहज गति रोक देना (अंदर या बाहर) ही प्राणायाम है।
1. आसन की सिद्धि।
2. श्वास (प्राणवायु का पूरक)।
3. प्रश्वांस (प्राणवायु का रेचक)।
4. गति विच्छेद (प्राणवायु को अंदर या बाहर रोकना)।
आईए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
1. आसन की सिद्धि :-- इस सूत्र मे महर्षि यह स्पष्ट बताते है कि प्राणायाम से पहले आसन का अभ्यास करना चाहिए। आसन मे स्थिरता आने के बाद ही प्राणायाम करें। इसका सीधा अर्थ यह है कि योगाभ्यास में पहले आसन करें। आसन करने के बाद प्राणायाम करें।
2.श्वास (पूरक) :-- प्राणवायु का नासिका से अंदर भरना श्वास कहा गया है। यह पूरक स्थिति है।
3. प्रश्वांस (रेचक) :-- पूरक की गई वायु को बाहर निकलना प्रश्वांस है। यह रेचक स्थिति बताई गई है।
4. गति विच्छेद :-- 'श्वास प्रश्वांस' की सामान्य गति को रोक देना "गति विच्छेद" है। अर्थात् पूरक व रेचक स्थिति मे श्वास को क्षमता के अनुसार रोकना प्राणायाम है। प्राणायाम में इस स्थिति को कुम्भक कहा गया है।
महर्षि पतंजलि के अनुसार योगाभ्यास मे पहले आसन करें। और आसन करने के बाद प्राणायाम करें। श्वास की सहज गति को पूरक व रेचक स्थिति मे रोकना ही प्राणायाम बताया गया है। अर्थात् कुम्भक ही वास्तविक प्राणायाम है।
प्राणायाम के प्रकार Types of Pranayam
- बाह्य वृत्ति
- आभ्यन्तर वृत्ति
- स्तम्भवृत्ति
- बाह्याभ्यन्तर विषयाक्षेपि
आईए इनके बारे मे विस्तार से समझ लेते है।
चार प्रकार के प्राणायाम कोन से हैं?
महर्षि पतंजलि योगसूत्र "साधन पाद" के '50वे' तथा '51वे' सूत्र में इनका वर्णन किया है।
बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभि: परिदृष्टो दीर्घ सूक्ष्म: ।। 2.50 ।।
(बाह्य आभ्यन्तर स्तम्भवृत्ति देश काल संख्याभि: परिदृष्ट: दीर्घ सूक्ष्म:)
अर्थ :-- बाह्य वृत्ति, आभ्यन्तर वृति तथा स्तम्भ वृत्ति तीन प्रकार के प्राणायाम को स्थान, समय और गणना पूर्वक देख कर किए जाने से प्राण दीर्घ व सूक्ष्म हो जाता है।
सरल शब्दों मे अर्थ :-- इस सूत्र में तीन प्रकार के प्राणायाम बताए हैं। और यह भी बताया गया है कि इनको स्थान, समय तथा गणना द्वारा किए जाने पर प्राण लम्बा व हल्का हो जाता है।
इस सूत्र मे (देश) स्थान, (काल) समय और गणना का वर्णन आया है। आइए इसका अर्थ समझ लेते हैं। यहाँ स्थान का अर्थ है नासिका से लिया गया श्वास कितनी गहराई तक जाता है। समय का अर्थ है श्वास के पूरक और रेचक मे कितना समय लगता है। गणना का अर्थ उस समय की गिनती से है जो हम पूरक, रेचक व कुम्भक मे रुकते हैं।
इस सूत्र (2.50) में तीन प्रकार के प्राणायाम बताए हैं। चोथा प्राणायाम अगले सूत्र (2.51) में बताया गया है।
बाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थ:।। 2.51 ।।
(बाह्य आभ्यन्तर विषय आक्षेपी चतुर्थ:)
अर्थ :-- श्वास को बाहर या अन्दर रोकने के विषय के विपरीत यह चौथा प्राणायाम है।
(चौथे प्राणायाम के विषय मे आगे वर्णन किया जायेगा)
इन दोनो सूत्रो मे चार प्रकार के प्राणायाम बताए है। आईये इनको विस्तार से देख लेते हैं।
1. बाह्य वृत्ति :-- श्वास को बाहर निकाल कर (या बलपूर्वक बाहर फेंक कर), श्वास को बाहर रोकना बाह्य वृत्ति प्राणायाम है। इसको बाह्य कुम्भक भी कहा जाता है। यह श्वास की रेचक स्थिति है।
2. आभ्यन्तर वृत्ति :-- श्वास को अन्दर भरके, श्वास को अन्दर रोकना। यह आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम है। इसको आन्तरिक कुम्भक भी कहा जाता है। यह श्वास के पूरक स्थिति है।
3. स्तम्भ वृति :-- श्वास जिस स्थिति मे है वही पर रोक देना स्तम्भ वृत्ति है। अर्थात् श्वास अन्दर है या बाहर है, उसी स्थिति मे श्वास को रोक देना ही यह प्राणायाम है। इसे कैवल्य कुम्भक भी कहा जाता है। पहले बताये गये दोनो प्राणायाम के सिद्ध हो जाने के बाद यह स्थिति बनती है।
4. चतुर्थ (चौथा) प्राणायाम :-- साधन पाद के 2.51 सूत्र इसका वर्णन है। यह पहले सूत्र मे बताये गये तीनो प्राणायामों से भिन्न है। यह बाह्य वृत्ति और आभ्यन्तर वृत्ति दोनो प्राणायाम के विषयो के विपरीत प्राणायाम है।
चतुर्थ प्राणायाम का अर्थ :-- जब हम बाह्य वृत्ति प्राणायाम में श्वास को बाहर निकाल कर रुकते हैं। यथा शक्ति श्वास को बाहर रोकने के कुछ देर बाद श्वास लेने की इच्छा होती है। उस समय यदि हम श्वास का पूरक करते है तो यह बाह्य वृत्ति प्राणायाम हो जाएगा। लेकिन श्वास "भरने की इच्छा" के विपरीत श्वास को बाहर की ओर धकेल कर रुकते है। तो यह चतुर्थ (चौथा) प्राणायाम हो जाता है।
इसी प्रकार आभ्यन्तर वृत्ति मे जब हम श्वास भरते हैं (पूरक करते हैं), और यथा शक्ति भरे श्वास में रुकते हैं। कुछ देर रुकने के बाद श्वास को "बाहर छोड़ने" की इच्छा होती है। यदि हम श्वास को बाहर छोड़ते हैं तो यह आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम हो जाएगा। लेकिन श्वास "बाहर छोड़ने ने की इच्छा" के विपरीत श्वास को फिर से भरते है, तो यह चतुर्थ (चौथा) प्राणायाम है।
(विस्तार से देखें :- चतुर्थ प्राणायाम क्या है?)
विशेष सावधानी :-- यदि आप नए साधक हैं। तो यह चतुर्थ (चौथा) प्राणायाम न करे। यदि आप प्राणायाम केवल स्वास्थ्य के लिए करते हैं, तो यह प्राणायाम न करे। ऐसे साधकों को केवल पहले बताये गये तीन प्राणायाम ही करने चाहिए। यह चौथा प्राणायाम प्रवीण साधकों के लिए है।
प्राणायाम के लाभ व सावधानियां
प्राणायाम एक लाभकारी क्रिया है। इसे कुछ सावधानियों के साथ युवा-वृद्ध सब कर सकते हैं। आईए देखते है कि प्राणायाम के लाभ व सावधानियां क्या हैं?
प्राणायाम के लाभ Health benefits
- प्राणायाम श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। लंग्स को एक्टिव रखता है।
- प्राण-शक्ति की वृद्धि करता है। शक्तियां ऊर्ध्वगामी (ऊपर की ओर विचरण करने वाली) होती हैं।
- प्राणिक नाड़ियों मे आने वाले अवरोधों को दूर करता है। यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढाता है।
- प्राण-वायु (Oxygen) की पर्याप्त मात्रा मे आपूर्ति होती है। इस कारण हृदय को मजबूती मिलती है। यह श्वास-रोग मे लाभकारी होता है।
- रक्त-चाप (BP) तथा सुगर सामान्य रहता है।
- शरीर की रशायन-क्रिया संतुलित रहती है।
- कफ, वात व पित्त मे संतुलन रहता है।
- यह क्रिया ध्यान की स्थिति मे ले जाने में सहायक होती है।
सावधानियां Precautions
- योगाभ्यास खाली पेट से करें। पहले आसन करें। आसन के बाद प्राणायाम करें।
- आरम्भ मे नए व्यक्तियों को सरल प्राणायाम करने चाहिए।
- यदि आप नए साधक (Beginner) हैं तो कुम्भक का प्रयोग न करे।
- प्राणायाम अपनी आयु के अनुसार करें।
- अपनी शारीरिक क्षमता का ध्यान रखें।
- श्वास रोकने मे बल प्रयोग न करें।
- रोग की अवस्था मे प्राणायाम न करे। अस्थमा पेशंट तथा हृदय रोगी "तीव्र गति" वाले प्राणायाम न करें।
- मौसम के अनुसार प्राणायाम करें।
लेख सारांश :--
महर्षि पतंजलि के अनुसार प्राणायाम चार प्रकार के हैं। यह एक लाभकारी क्रिया है, लेकिन इसे सावधानी से किया जाना चाहिए।
Disclaimer :--
यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार का दावा नही करता है। इसका उद्देश्य केवल योग की जानकारी देना है।