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साधारणतया हमारी ऊर्जा ऊपर से नीचे की ओर विचरण करती है। नीचे की ओर गमन करने वाली इस ऊर्जा को अधोगामी कहा गया है। यह ऊर्जा "अधोगामी" होने के कारण लगातार नष्ट होती रहती है। ऊर्जा के लिये प्राणायाम बहुत महत्वपूर्ण है। ये ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी करते हैं और संरक्षित करते हैं।

नियमित प्राणायाम करने से ऊर्जा ऊपर की ओर विचरण करने लगती है। अर्थात् यह मूलाधार से उठ कर ऊपर  सहस्रार चक्र की ओर विचरण करने लगती है। बन्ध व कुम्भक का विशेष महत्व है, अत: प्राणायाम मे इनका प्रयोग करना उत्तम है। आइए कुछ ऊर्जा देने वाले प्राणायाम के बारे मे समझ लेते हैं।

pranayam for energy

विषय सुची :-

* ऊर्जा देने वाले 3 प्राणायाम :
1. कपालभाति
2. अनुलोम विलोम
3. नाड़ी शौधन

* ध्यान

(Read this article in English - Pranayama energy।)

ऊर्जा के लिये प्राणायाम का महत्व

प्राणायाम श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। यह प्राण-शक्ति की वृद्धि करता है, तथा प्राणिक नाड़ियों के अवरोधो को दूर करता है। यह शरीर की ऊर्जा को बढाता है और इसको संरक्षित करता है।

नियमित प्राणायाम शरीर के लिये ऊर्जादायी होते हैं। इनको नियमपूर्वक व कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए। लेख मे आगे 3 विशेष प्राणायाम का वर्णन किया जायेगा। ये ऊर्जा देने वाले प्राणायाम हैं।

1. कपालभाति :

कपालभाति, कपाल भाग की शुद्धि करने वाली एक  महत्वपूर्ण क्रिया है। यह क्रिया मुख्यत: मस्तिष्क को प्रभावित करती है। इस क्रिया से प्राण-ऊर्जा प्रभाव मे आती है।

कपालभाति से श्वसनतंत्र सुदृढ होता है। यह हृदय तथा लंग्स को मजबूती देने वाली क्रिया है। इस क्रिया से प्राण शक्ति की वृद्धि होती है।

कपालभाति की विधि :

1. पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। दोनों हाथों को घुटनो पर रखें। रीढ व गरदन को सीधा रखें।आँखें कोमलता से बंध कर लें।

2. पेट पर दबाव डालते हुए  श्वास को तीव्र गति से बाहर निकालें। श्वास लेने की गति सामान्य रखें। केवल श्वास को बाहर छोड़ने मे गति रखें। श्वास बाहर निकलते समय पेट को अन्दर की ओर प्रभावित करें।

3. क्रिया करते समय मूल बंध लगा कर रखें। (गुदा का संकोचन करना मूलबंध कहा गया है।)

4. क्रिया को अपनी क्षमता के अनुसार करें। अंत मे पूरा श्वास बाहर निकालें। पेट को पीछे की ओर खींचें। गरदन को आगे की ओर झुकाएं। खाली श्वास मे कुछ देर रुकें।(यह बाह्य कुम्भक की स्थिति है)

5. अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद गरदन को सीधा करें और श्वास भरें। पूरा श्वास भरने के बाद फिर से गरदन को आगे की ओर झुकाएं। मूल बंंध ढीला हो गया हो तो उसे फिर टाईट करे। कुछ देर भरे श्वास मे रुकें।  (यह आन्तरिक कुम्भक की स्थिति है)

6. अपनी क्षमता के अनुसार कुम्भक मे रुकने के बाद  धीरे धीरे श्वास बाहर करें। श्वासों को सामान्य करें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अन्य आवर्तियां करें। अन्य आवर्तियां अपनी क्षमता अनुसार करें।

कपालभाति का प्रभाव :

यह एक प्रभावी क्रिया है। इसको "शुद्धि क्रिया" तथा "प्राणायाम" दोनो के लिये  किया जाता है। इसको करने से कई क्षेत्र प्रभाव मे आते है।

इस क्रिया से श्वसनतंत्र सुदृढ होता है। तथा श्वसनतंत्र के अवरोध दूर होते है।

• हृदय को मजबूती मिलती है। फेफड़े सक्रिय होते हैं।

• कपाल क्षेत्र की शुद्धि होती है। इस के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क भी प्रभावित होता है।

• कुम्भक लगाने से ऊर्जा शक्ति ऊर्ध्वगामी होती है। यह ऊर्जा के लिये महत्वपूर्ण प्राणायाम क्रिया है।

सावधानियां :

इस क्रिया को कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए।

• नये अभ्यासी अपनी क्षमता का ध्यान रखें। आरम्भ मे कम आवर्तियां करे। धीरे-धीरे अभ्यास को बढाएं। कुम्भक अपने श्वास के स्थिति के अनुसार लगाएं।

• श्वास रोगीहृदय रोगी कुम्भक का प्रयोग न करें। प्रशिक्षक के निर्देशन मे धीमी गति मे सरलता से करें। चिकित्सक की सलाह से क्रिया को करें।

• श्वास की स्थिति ठीक नही है तो इस क्रिया को बिना कुम्भक लगाएं भी किया जा सकता है। नये अभ्यासी आरम्भ मे इस क्रिया को बिना कुम्भक के ही करें।

2. अनुलोम विलोम प्राणायाम।

कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम अवश्य करना चाहिए। यह अभ्यास चंद्रनाड़ी  तथा सूर्यनाड़ी दोनों को प्रभावित करता है। यह मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला तथा ऊर्जादायी प्राणायाम है।

यह सरलता से किया जाने वाला प्राणायाम है। इसको सभी व्यक्ति सरलता से  कर सकते हैं।

अनुलोम-विलोम की विधि :

1. कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम करें। यह एक सरल प्राणायाम है। सभी व्यक्ति इसको सरलता से कर सकते हैं। इसकी विधि बहुत सरल  है।

2. पद्मासन, सुखासन या किसी आरामदायक स्थिति मे बैठे। वृद्ध व्यक्ति घुटने मोड़ कर नही बैठ सकते है तो कुर्सी पर बैठें।

3. रीढ व गरदन को सीधा रखें। बांया हाथ बांए घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे तथा दांया हाथ नासिका के पास प्राणायाम मुद्रा रखें। आँखें कोमलता से बन्ध कर लें।

(प्राणायाम मुद्रा :- अंगूठे के साथ वाली दो उंगलियां मोड़ लें।अंगूठा नासिका के दांई तरफ और तीसरी उंगली नासिका के बांई तरफ रखें।)

4. अंगूठे से दांई नासिका को बन्ध करें। धीरे-धीरे बांई नासिका से श्वास भरें। बांई नासिका को बन्ध करें। दांई तरफ से श्वास खाली करें।

5. पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दांई नासिका से श्वास भरें। दांई नासिका को बन्ध करें। बांई तरफ से श्वास बाहर निकालें। श्वास को पूरी तरह खाली करें।

6. यह एक चक्र (राउंड) पूरा हुआ। दूसरे राउंड के लिये फिर बांई तरफ से श्वास भरें और उसी प्रकार क्रिया को दोहराएं। आवर्तियां अपनी अवश्यकता के अनुसार करें। प्राणायाम के अंत मे हाथ नीचे ले आये। श्वासों को सामान्य करें।

अनुलोम विलोम का प्रभाव :

• सरल होते हुए भी यह एक प्रभावशाली प्राणायाम है। यह पहले किये गये कपालभाति के लाभ को बढाने वाला प्राणायाम है। अत: इसको कपालभाति के बाद किया जाना उत्तम है।

• यह ऊर्जा के लिये प्राणायाम मे महत्वपूर्ण है। इस प्राणायाम से चंद्रनाड़ी व सूर्यनाड़ी प्रभाव मे आती हैं। ये दोनो नाड़ियां ऊर्जादायी हैं।

• यह मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला प्राणायाम है। इसके अभ्यास से मस्तिष्क का दांया भाग व बांया भाग क्रमश: प्रभाव मे आते हैं।

सावधानियां :

• यह एक सरल प्राणायाम है, लेकिन इस अभ्यास मे भी कुछ सावधानियों को ध्यान मे रखें।

• नासिका को बन्ध करते समय अंगूठे या उंगली का हल्का दबाव बनाएं।

• श्वास का पूरक करते समय लम्बा-गहरा श्वास भरें। रेचक करते समय श्वास पूरी तरह खाली करें।

• इस प्राणायाम मे कुम्भक नही लगाया जाता है। अत: केवल एक नासिका से श्वास भरें, और बिना श्वास रोके दूसरी तरफ से श्वास को खाली करें।

• अपनी अवश्यकता के अनुसार इस का अभ्यास करें।

3. नाड़ी शोधन प्राणायाम :

यह शरीर की 72,000 प्राणिक नाड़ियों का शोधन करने वाला प्राणायाम है। यह प्राण-ऊर्जा की वृद्धि व संरक्षण करने वाला प्राणायाम है।

इस की विधि अनुलोम विलोम से मिलती-जुलती है। इन दोनो मे अंतर केवल कुम्भक का है। अनुलोम विलोम मे कुम्भक का प्रयोग नही होता है। इस प्राणायाम मे कुम्भक का प्रयोग किया जाता है।

(देखें :- अनुलोम विलोम व नाङीशौधन मे अंतर )

नाड़ी शोधन की विधि :

1. पद्मासन, सुखासन या किसी आरामदायक स्थिति मे बैठें। घुटने मोड़ कर बैठने मे परेशानी है तो कुर्सी पर बैठें।

2. रीढ व गरदन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बन्ध करें। बांया हाथ ज्ञान मुद्रा मे और दांया हाथ नासिका के पास प्राणायाम मुद्रा में रखें।

3. दांई नासिका को बन्ध करें। बांई नासिका से धीरे-धीरे लम्बा गहरा श्वास भरें। पूरा श्वास भरने के बाद बांई नासिका को भी बन्ध करें। भरे श्वास की स्थिति मे कुछ देर रुके।

4. अपनी क्षमता के अनुसार भरे श्वास मे रुकने के बाद धीरे-धीरे दांई तरफ से श्वास बाहर निकालें। पूरी तरह श्वास खाली होने की बाद दांई तरफ से श्वास भरें।

5. पूरी तरह श्वास भरने के बाद दांई नासिका को बन्ध करें। भरे श्वास की स्थिति मे कुछ देर रुकें। अपनी क्षमता के अनुसार भरे श्वास की स्थिति मे रुकें।

6. भरे श्वास मे कुछ देर ठहरने के बाद धीरे-धीरे बांई तरफ से श्वास को बाहर निकालें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार दूसरी आवर्ती के लिए फिर बांई तरफ से श्वास भरे और क्रिया को दोहराये।

नाड़ी शोधन प्राणायाम का प्रभाव :

योगाभ्यास मे यह एक महत्वपूर्ण प्राणायाम है। इस के अभ्यास से कई लाभ मिलते हैं।

नाड़ियों का शुद्धिकरण :- इस प्राणायाम का मुख्य प्रभाव प्राणिक नाड़ियों पर पड़ता है। यह प्राणिक नाड़ियों मे आने वाली रुकावटों को दूर करता है। यह नाड़ियों का शुद्धिकरण करने वाली क्रिया है।

प्राण ऊर्जा की वृद्धि :- प्राणिक नाड़ियों अवरोध हटने से प्राणों के प्रवाह की स्थिति उत्तम होती है। इस के नियमित अभ्यास से प्राण ऊर्जा की वृद्धि होती है।

श्वसनतंत्र पर प्रभाव :- यह श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। इसके नियमित अभ्यास से फेफड़े (Lungs) सक्रिय होते है। यह श्वसनतंत्र के अवरोधो को दूर करने वाला उत्तम प्राणायाम है।

हृदय को मजबूती :- इस प्राणायाम के अभ्यास से शरीर मे प्राण-वायु (Oxygen) की आपूर्ति होती है। इस के अभ्यास से शरीर मे ऑक्सीजन लेवल पर्याप्त मात्रा मे बना रहता है। इस करण हृदय को मजबूती मिलती है।

सावधानियां :

• यह श्वसनतंत्र तथा प्राण ऊर्जा के लिये लाभदायी प्राणायाम है। लेकिन इसे कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए।

• इस प्राणायाम को अपने श्वासो की क्षमता के अनुसार करें। अपनी क्षमता के अनुसार कुम्भक का प्रयोग करें। श्वासो के साथ अनावश्यक बल प्रयोग न करें।

• गम्भीर श्वास रोगी व हृदय रोगी इस प्राणायाम को न करें। प्रारम्भिक रोगी अपने चिकित्सक की सलाह से इस प्राणायाम को करें।

• नये अभ्यासी आरम्भ मे कम समय के लिये कुम्भक लगाएं। धीरे धीरे अभ्यास को बढाएं।

अंत मे ध्यान की स्थिति मे बैठें :

• सभी प्राणायाम करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। सामान्य श्वास ले और छोड़े। तनाव को दूर करे। प्राणायाम से आये हुए प्रभाव को अनुभव करें।

• प्राणायाम के बाद थोड़ी देर के लिये ध्यान की स्थिति मे बैठे। ध्यान को श्वासो पर केन्द्रित करे। आते-जाते श्वासो को अनुभव करें।

• ध्यान को श्वासो से हटा कर आज्ञा चक्र पर केन्द्रित करें। इसके लिये ध्यान को अपने ललाट (माथे) के मध्य मे केन्द्रित करें। बन्ध आखों से अपने किसी भी आराध्य के दर्शन करे। कुछ देर निर्विचार भाव से बैठे।

• धीरे धीरे ध्यान की स्थिति से वापिस आये। पीठ के बल लेटे। शवासन मे विश्राम करें।

और विस्तार से देखें :- ध्यान की सही विधि

लेख सारांश :

ऊर्जा के लिये प्राणायाम महत्वपूर्ण हैं। लेख मे बताये गये प्राणायाम ऊर्जादायी है। ये अपनी क्षमता के अनुसार नियमपूर्वक किये जाने ।

Disclaimer :

यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार हेतू नही है। इस लेख का उद्देश्य केवल योग की जानकारी देना है। लेख मे बताये गये प्राणायाम केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। किसी प्रकार के रोगी अपने चिकित्सक की सलाह के बिना कोई योग क्रिया न करें।


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