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""प्राणायाम" योग की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। नियमित प्राणायाम से Lungs और श्वसनतंत्र मजबूत होते हैं और शरीर मे Oxygen की आपूर्ति होती है। इस क्रिया में दो प्राणायाम बहुत महत्वपूर्ण हैं, वे हैं - अनुलोम-विलोम और नाड़ीशौधन। 

दोनो प्राणायाम को करने की मुद्रा एक जैसी है। दोनो की विधि मे भी कुछ समानताएं दिखाई देती हैं। लेकिन इन दोनो मे एक बड़ा अंतर है। इस लेख मे हम यह बताएंगे कि अनुलोम-विलोम और नाड़ीशौधन प्राणायाम मे अन्तर क्या है? और इनकी विधि क्या है?


विषय सूची :--
  • अनुलोम-विलोम और नाड़ीशौधन।
  • विधि अनुलोम विलोम।
  • विधि नाड़ीशौधन प्राणायाम।
  • दोनों मे समानता।
  • अनुलोम-विलोम और नाड़ीशौधन मे अन्तर।

अनुलोम-विलोम और नाड़ी शोधन

दोनों प्राणायाम एक समान मुद्रा मे किये जाते है। दोनो का आरम्भ व समापन चंद्र नाङी (बाँयी नासिका) से किया जाता है। दोनो प्राणायाम क्रियाओ मे बाँयी नासिका (चंद्र नाङी) से लम्बा-गहरा श्वास भरा जाता है और दाँयी नासिका (सूर्य नाङी) से श्वास छोङा जाता है। फिर दाँये से श्वास का पूरक करके बाँये से रेचक किया जाता है।

एक समान दिखाई देने वाली दोनो क्रियाओ मे कुछ महत्वपूर्ण अन्तर भी हैं। अनुलोम-विलोम और नाङीशौधन प्राणायाम मे क्या अन्तर है? यह जानने से पहले यह जान लेते है कि इन दोनो की विधि क्या है, और इन मे समानता क्या है?

दोनों प्राणायाम क्रियाओ की विधि

प्राणायाम मे अनुलोम-विलोम और नाङी शौधन दोनो लाभकारी प्राणायाम हैं। दोनो को करने की मुद्रा एक समान है। आइये आगे यह जानते है कि इन दोनो की विधि क्या है?

अनुलोम विलोम व नाङीशौधन मे अंतर

विधि अनुलोम-विलोम

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें।
  • पीठ व गरदन को सीधा रखे।
  • आँखें कोमलता से बंद करें।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे रखे।
  • दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाएँ (अंगूठे के साथ वाली दो उँगलियाँ मोङे) 
  • दाँया हाथ नासिका के पास इस प्रकार रखे कि अँगूठा नासिका के दाँयी तरफ और तीसरी उँगली नासिका के बाँयी तरफ रहे।
  • अँगूठे से दाँयी नासिका बंद करे।
  • बाँयी नासिका से धीरे-धीरे लम्बा-गहरा श्वास भरें।
  • पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका बंद करें।
  • दाँयी नासिका से श्वास धीरे-धीरे खाली करें।
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दाँयी नासिका से धीरे-धीरे श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद दाँयी नासिका बंद कर लें।
  • धीरे-धीरे बाँयी नासिका से श्वास खाली करे।
  • यह एक आवर्ती (एक राउँड) पूरी हुई।
  • सुविधानुसार चार-पाँच आवर्तियाँ करें।

प्राणायाम विधि का सार

इस क्रिया में धीरे-धीरे बाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरे। और दाँयी तरफ से श्वास धीरे-धीरे खाली करे। दाँयी तरफ से धीरे-धीरे श्वास भरके बाँयी तरफ से खाली करे।

विधि नाड़ीशौधन

  • नाङीशौधन प्राणायाम के लिए पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
  • पीठ व गरदन को सीधा रखें।
  • आँखे कोमलता से बन्द करें।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञानमुद्रा मे रखें।
  • दाँये हाथ से प्राणायाम-मुद्रा बनाएँ।
  • दाये हाथ को नासिका के पास इस प्रकार रखें कि अंगूठा नासिका के दाँयी तरफ और तीसरी उँगली नासिका के बाँयी तरफ रहे।
  • अंगूठे से दाँयी नासिका बन्द करें।
  • बाँयी नासिका से धीरे-धीरे श्वास भरें।
  • पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका को भी बन्द करे और भरे श्वास मे रुके (आन्तरिक कुम्भक)।
  • यथा शक्ति आन्तरिक कुम्भक मे रुकने के बाद दाँयी नासिका से श्वास खाली करें।
  • दाँयी नासिका से श्वास पूरी तरह खाली करने के बाद खाली श्वास मे रुक कर बाह्य कुम्भक लगाएँ।
  • यथा शक्ति खाली श्वास मे रुकने के बाद धीरे धीरे दाँयी तरफ से श्वास भरे।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद दाँयी नासिका बन्द करके यथा शक्ति आन्तरिक कुम्भक मे रुकें।
  • कुछ देर भरे श्वास मे रुकने के बाद धीरे धीरे बाँयी तरफ से श्वास को खाली करें।
  • यह एक आवर्ती (एक राउँड) हुई। इस प्रकार क्षमता के अनुसार 3-4 आवर्तियाँ करे।

प्राणायाम विधि का सार

इस क्रिया मे बाँयी तरफ से धीरे-धीरे श्वास भरें। यथा शक्ति श्वास रोकें और धीरे-धीरे दाँयी नासिका से श्वास खाली कर दें। कुछ देर खाली श्वास मे रुकें। उसी प्रकार धीरे धीरे दाँयी तरफ से श्वास भरके यथा शक्ति रुकें और बाँयी तरफ से श्वास खाली करे।

आरम्भ मे नये व्यक्ति अपने श्वास को क्षमता के अनुसार रोके। अभ्यास बढने के बाद यह क्रिया अनुपातिक क्रम से करे। श्वास भरने मे जितना समय लगता है उस से लगभग दुगना समय कुम्भक लगाये और उतना ही समय श्वास छोङने मे लगाये।

नाङीशौधन की सावधानी

  • आरम्भ मे नये व्यक्ति कुम्भक अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार लगाएँ।
  • हृदय रोगी, श्वास रोगी इस प्राणायाम को न करें।

दोनों मे समानता

  • दोनो  की मुद्रा एक समान है।
  • दोनो का आरम्भ और समापन बाँयी नासिका (चंद्र नाङी) से किया जाता है।
  • दोनो ही लाभकारी प्राणायाम है। दोनो प्राणायाम Lungs और श्वसनतंत्र को सुदृढ करते  हैं।

दोनो मे अन्तर

एक जैसी लगने वाली दोनो प्राणायाम क्रियाओं मे अंतर इस प्रकार हैं :--

1. कुम्भक :

दोनों क्रियाओं में मुख्य अंतर कुम्भक का है। श्वास को अन्दर या बाहर रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।

  • अनुलोम-विलोम :-- इस क्रिया मे कुम्भक नही लगाया जाता। इस क्रिया मे केवल एक नासिका से लम्बा-गहरा श्वास भरना और दूसरी नासिका  से छोङना होता है।
  • नाङीशौधन :---  इस क्रिया में कुम्भक लगाया जाता है। नये व्यक्ति आरम्भ मे अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार कुम्भक लगाएँ। अभ्यास बढने के बाद अनुपातिक क्रम से कुम्भक लगाएँ। (अनुपातिक क्रम--यदि श्वास भरने मे  5 सैकिंड लगते है तो श्वास रोकने मे 10 सैकिंड लगें और खाली करने मे भी 10 सैकिंड लगें। यह 1:2:2 का अनुपात है।)

2. प्रभाव :

दोनो क्रियाओ के प्रभाव मे भी अंतर है।

  • अनुलोम-विलोम :-- इस प्राणायाम से हमारी चंद्रनाङी व सूर्यानाङी तथा मस्तिष्क विशेष प्रभावित होते हैं। कपालभाति करने के बाद अनुलोम-विलोम करना विशेष लाभकारी होता है।
  • नाङीशौधन :--- इस प्राणायाम को करने से 72,000 प्राणिक नाङियों को शौधन होता है। प्राणिक नाङियों मे आने वाले अवरोधोंं (रुकावटों) को इस प्राणायाम से ठीक किया जा सकता है। नाङियों के शुद्धिकरण के लिए यह एक उत्तम प्राणायाम है।

 3. वर्जित :

  • अनुलोम-विलोम :-- यह एक सरल प्राणायाम है। इस क्रिया को सभी व्यक्ति सरलता से कर सकते है।
  • नाङीसोधन :--- यह प्राणायाम कुछ  व्यक्तियों  के लिए वर्जित है। श्वास रोगी तथा हृदय रोगी व्यक्तियों को यह क्रिया नहीं करनी चहाए। इस प्राणायाम को केवल ऐसे व्यक्ति ही करें जिनके श्वासों की स्थिति ठीक है।

सारांश :--

दोनो प्राणायाम क्रियाओं को करने की मुद्रा मे समानता है लेकिन दोनो मे अन्तर है। अनुलोम विलोम और नाङीसोधन प्राणायाम मे अन्तर मुख्ययत: कुम्भक का है।

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