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योग : इसके लाभ व सावधानियां
प्राचीन काल मे 'योग' आध्यात्म का विषय था। उस समय ऋषि-मुनि व योगी इसका अभ्यास ध्यान साधना के लिये करते थे। साधना के लिये शरीर स्वस्थ रहे, इसके लिये योग क्रियाओं को अविष्कृत किया गया। ऋषियों द्वारा बताया गया वही योग आज के समय में स्वास्थ्य के लिये एक उत्तम विधि माना जाता है।
योग का अर्थ :- योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। इस क्रिया से स्वयं को स्वयं से जोड़ने का प्रयास किया जाता है। यह अपने आप को पहचाने की क्रिया है । योग बताता है कि "मै" कौन हूं, "आत्मा" क्या है, क्या 'मै' 'आत्मा' से अलग हूं?
योग की परिभाषा :- भारतिय ऋषि मुनियों तथा महान योगियों ने योग को परिभाषित किया है। इनमें महर्षि पतंजलि की दी गई परिभाषा बहुत महत्वपूर्ण है :- योगश्चितवृति निरोध: ।। 1.2 ।।
महर्षि पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है। इसके लिए अष्टांग योग का प्रतिपादन किया गया है। आसन और प्राणायाम इसके मुख्य अंग हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए इनका नियमित अभ्यास करना चाहिए।
योग के लाभ व सावधानियां :
'योग' भारतिय ऋषि-मुनियों द्वारा अविष्कृत एक उत्तम विधि है। यह शारीरिक-स्वास्थ्य के लिये एक लाभदायी क्रिया है। यह सरल, सुरक्षित तथा विज्ञान सम्मत क्रिया है। कुछ सावधानियों के साथ सभी व्यक्ति इसका अभ्यास कर सकते हैं।
योगाभ्यास में स्वास्थ्य के लिए आसन और प्राणायाम का अभ्यास किया जाना चाहिए। आसन शरीर के अंगों को सुदृढ़ करता है। प्राणायाम श्वसन तंत्र को स्वस्थ रखता है। योग के लाभ सर्वांगीण होते हैं। आइए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
योग के लाभ :
आज के समय मे केवल आसन व प्राणायाम को योग मान लिया जाता है। यह पूर्ण सत्य नही है। सम्पूर्ण योग आठ चरणों वाला अष्टांगयोग है। आसन-प्राणायाम इसके महत्वपूर्ण अंग हैं। इस लिये "योग" को समझने के लिये अष्टांगयोग को जानना जरूरी है।
देखें :- अष्टाँगयोग क्या है?
योग के प्रभाव बहुआयामी होते हैं। यह शरीर को स्वस्थ रखने के साथ मानसिक शान्ति देने वाली क्रिया है। योग स्वास्थ्य लाभ के साथ नैतिक शिक्षा भी देता है। इसके लाभ व्यापक हैं। इनको आगे और विस्तार से समझ लते हैं।
1. चरित्र निर्माण :
योग सामाजिक तथा व्यक्तिगत नैतिकता की शिक्षा देता है। यह मनुष्य के चरित्र निर्माण मे सहायक होता है। अष्टांगयोग का पहला और दूसरा चरण है, "यम" और "नियम"। ये सामाजिक नैतिकता व व्यक्तिगत नैतिकता की शिक्षा देते हैं।
व्यक्तिगत नैतिकता :- 'नियम' अष्टांगयोग का दूसरा चरण है। यह व्यक्तिगत शुद्धता व नैतिकता की शिक्षा देता है। इसकी पांच शिक्षाएं हैं :-
2. लाभ - आसन से :
आसन अष्टांगयोग का तीसरा चरण है। यह योग का महत्वपूर्ण अंग है। आसन शरीर को मजबूती देता है। यह अस्थि जोड़ों, मांसपेशियों को सक्रिय बनाए रखता है।
• अस्थि जोड़ों व मासपेशियों के लिये :- नियमित आसन शरीर के जोड़ों को सक्रिय रखते हैं। ये मासपेशियों को सुदृढ करते हैं।
• पाचनतंत्र :- नियमित "आसन" करने से पेट के आन्तरिक अंग प्रभाव मे आते हैं। ये अंग पाचक रसों का निर्माण करते हैं। ये पाचन-क्रिया मे सहायक होते हैं।
• कब्ज (Constipation) मे लाभदायी :- आसन पेट की आंतों को सुदृढ करते हैं। ये आंतों मे जमे हुए मल को बाहर निकालने मे सहायक होते हैं।
• सुगर नियंत्रण :- नियमित आसन पेनक्रियाज को प्रभावित करते हैं। यह सुगर नियंत्रण मे सहायक होता है।
• रक्त संचार (BP) :- यह क्रिया शरीर के रक्त-संचार को नियमित करती है। यह रक्तचाप को सामान्य रखने वाली क्रिया है।
• रीढ (Spine) :- रीढ शरीर का आधार है। समस्त नाड़ी तंत्र इसी से जुड़ा है। आसन का मुख्य प्रभाव रीढ पर पड़ता है। आसन से रीढ फ्लेक्सिबल तथा स्वस्थ रहती है।
• रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) :- यह शरीर की "रोगों से बचाव करने की क्षमता" को बढाते हैं।
3. लाभ - प्राणायाम से :
'प्राणायाम' योग का एक श्वसन अभ्यास है। श्वास शरीर का आधार है। प्राणायाम श्वास पर आधारित क्रिया है। इस क्रिया मे श्वास को सही तरीके से लेना, छोड़ना तथा रोकना बताया जाता है। नियमित प्राणायाम शरीर को कई प्रकार के लाभ देते है।
• श्वसनतंत्र :- प्राणायाम श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। यह श्वसनतंत्र के अवरोधों को दूर करता है। यह हमे श्वास रोगों से बचाता है।
• लंग्स को सक्रिय रखता है :- हम सामान्यत: जो श्वास लेते और छोड़ते हैं, वह बहुत छोटे होते हैं। ये पर्याप्त नही होते है। इस कारण हमारे फेफड़े (Lungs) स्थिल हो जाते हैं। प्राणायाम इसे सक्रिय करता है। फेफड़ों के लिये यह एक लाभदायी क्रिया है।
• हृदय को मजबूती :- इस क्रिया से शरीर मे ऑक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा मे होती है। इस कारण हृदय को मजबूती मिलती है। यह क्रिया हृदय रोगों से बचाव करती है।
• प्राण शक्ति :- प्राणायाम प्राण शक्ति कि वृद्धि करते हैं। नियमित प्राणायाम स्वस्थ व दीर्घ आयु करते हैं।
• रक्तचाप नियंत्रण :- प्राणायाम रक्त चाप (BP) को सामान्य रखते हैं। यह उच्च रक्तचाप या निम्न रक्तचाप की परेशानी से बचाव करते है।
• ऊर्जादायी :- शरीर के लिये यह एक ऊर्जा देने वाली क्रिया है।
योग की सावधानियां :
योगाभ्यास मे आसन व प्राणायाम स्वास्थ्य के लिये लाभदायी होते हैं। इन क्रियाओं को सभी व्यक्ति कर सकते हैं। सभी व्यक्तियों की शारीरिक क्षमताएं अलग अलग होती हैं। इसलिए सभी को योग मे कुछ सावधानियों को ध्यान मे रखना चाहिए।
सावधानियां 'आसन' में :
• सरल आसन करें :- सरलता से किये जाने वाले आसन लाभदायी होते हैं। जिस आसन को करने मे सुख की अनुभूति हो, उसे अवश्य करें। कठिन आसन न करें। कठिन आसन हानिकारक हो सकते हैं।
• स्थिरता से रुकें :- आसन को धीमी गति से आरम्भ करें। आसन की पूर्ण स्थिति मे पहुंचने के बाद कुछ देर तक रुकने का प्रयास करें। कुछ देर रुकने के बाद धीरे धीरे वापिस आ जाएं। वापिस आने के बाद विश्राम करें।
• बल प्रयोग न करें :- यदि किसी आसन की पूर्ण स्थिति मे पहुंचना सम्भव न हो, तो अधिक प्रयास न करें। योग मे बलपूर्वक आसन करना वर्जित है।
• पूरक आसन या विपरीत आसन करें :- कुछ आसनों का झुकाव एक तरफ होता है। ऐसे आसन केवल एक तरफ अंगो को प्रभावित करते हैं। इसलिये इनका विपरीत या पूरक आसन भी करना चाहिए।
• क्षमता के अनुसार :- प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की क्षमता अलग-अलग होती है। इसलिए अपनी क्षमता के अनुसार आसन करें। क्षमता से अधिक करना हानिकारक हो सकता है।
कुछ व्यक्तियों के लिये आसन वर्जित हैं :
कुछ व्यक्तियों के लिये आसन हानिकारक हो सकते हैं। इसलिए उनको आसन का अभ्यास नही करना चाहिए । कुछ व्यक्तियों को विशेष परिस्थितियों मे आसन नही करने चाहिएं। उन परिस्थितियों के ठीक होने के बाद चिकित्सक की सलाह से आसन को कर सकते हैं।
• रोग की अवस्था मे :- रोग की अवस्था मे कोई क्रिया न करें। ठीक होने के बाद चिकित्सक की सलाह से योग क्रिया करें। आंत रोग है तो पेट पर दबाव डालने वाले आसन न करे। रीढ मे तनाव है, तो रीढ को प्रभावित करने वाले आसन न करें।
• सर्जरी के बाद :- यदि कोई अंग क्षतिग्रस्त हुआ है, तो आसन न करें। सर्जरी के बाद भी आसन न करें। रिकवरी के बाद चिकित्सक से सलाह लें।
• महिलाओ की महावारी पीरियड्स मे :- महिलाएं महावारी समय मे 3 या 4 दिन आसन न करें।
• गर्भावस्था मे :- गर्भवती माताएं गर्भावस्था मे आसन का अभ्यास न करें। शिशु को जन्म देने के बाद कुछ दिन आसन न करे। बाद मे चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही कोई क्रिया करें।
• अधिक वृद्ध व्यक्ति :- अधिक वृद्ध व्यक्ति को भी आसन नही करना चाहिए। पैदल चलना, सूक्ष्म क्रिया करना उचित है।
सावधानियां, प्राणायाम में।
"प्राणायाम" श्वासों पर आधारित क्रिया है। इसे अपने श्वास की क्षमता के अनुसार करे। प्राणायाम करते समय इन सावधानियों को ध्यान मे रखें।
• कुम्भक का प्रयोग :- यदि आप नियमित प्राणायाम के अभ्यासी हैं, श्वासों की स्थिति ठीक है, तो कुम्भक का प्रयोग अवश्य करें। क्योंकि प्राणायाम के लाभ कुम्भक से ही मिलते हैं।
(कुम्भक :- खाली श्वास या भरे श्वास मे रुकने की स्थिति को कुम्भक कहा गया है।)
• नए अभ्यासी (Beginners) :- नये प्राणायाम अभ्यासी आरम्भ मे बिना कुम्भक का अभ्यास करें। धीरे-धीरे अभ्यास को बढाएं। अभ्यास बढने के बाद कुम्भक लगाना आरम्भ करें।
• क्षमता के अनुसार करें :- प्राणायाम अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार ही करें। बलपूर्वक क्रिया न करें। श्वांसों के साथ अनावश्यक बल प्रयोग हानिकारक हो सकता है। सरलता से करना लाभदायी होता है।
• प्राणायाम मौसम के अनुसार करें :- कुछ प्राणायाम किसी एक मौसम मे वर्जित होते है, अत: उनको उस मौसम मे नही किया जाना चाहिए। "भस्त्रिका" व "सूर्यभेदी" प्राणायाम को गर्मी के मौसम मे न करें। ये सर्दी के मौसम मे लाभदायी होते हैं। इसी प्रकार शीतली, शीतकारी तथा चंद्रभेदी प्राणायाम शीतलता देने वाले होते हैं। इसलिये इनको गर्मी के मौसम मे किया जाना चाहिए।
कुछ व्यक्तियों के लिये प्राणायाम वर्जित है :
यह क्रिया कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है। उनके लिये यह क्रिया हानिकारक हो सकती है। इसलिए इन व्यक्तियों को प्राणायाम नही करना चाहिए। यदि करना हो तो धीमी गति से करें और प्रशिक्षक की देख-रेख मे करें।
• श्वास रोगी :- गम्भीर श्वास रोगी को प्राणायाम नही करना चाहिए। आरम्भिक श्वास रोगी बिना कुम्भक का सरल प्राणायाम करें। प्रशिक्षक के निर्देशन मे करें।
• हृदय रोगी :- हृदय रोगी प्राणायाम न करें। आरम्भिक रोगी बिना कुम्भक का सरल प्राणायाम करें।
• उच्च रक्तचाप (High BP) मे :- उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति को तीव्र गति के प्राणायाम नही करने चाहिएं। ऐसे व्यक्ति धीमी गति के प्राणायाम करें।
लेख सारांश :-
योग स्वास्थ्य के लिये लाभदायी है। लेकिन योग को सावधानी से करें। आसन व प्राणायाम का अभ्यास सरलता से करना चाहिए। आसन शरीर की क्षमता के अनुसार करें। प्राणायाम करते समय अपने श्वास की स्थिति को ध्यान मे रखें।
Disclaimer :-
योग केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। अस्वस्थ व्यक्ति आसन-प्राणायाम न करें। लेख मे बताई गई सावधानियों के साथ योगाभ्यास करें। किसी प्रकार का रोग उपचार करना इस लेख का उद्देश्य नही है। केवल योग की जानकारी देना, इस लेख का उद्देश्य है।