योगाभ्यास में प्राणायाम श्वास की एक अवस्था है। सामान्यत: हमारे श्वास की दो अवस्थाएं हैं - श्वास का अंदर लेना और बाहर निकलना। लेकिन योगाभ्यास में ये तीन अवस्थाएं होती हैं - श्वास लेना, रोकना और छोड़ना। पतंजलि योग में श्वास (क्षमता अनुसार) रोकने की स्थिति को प्राणायाम बताया है। ये स्थिति कौनसी होती है, लेख में आगे विस्तार से बताया जायेगा।
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श्वास की एक अवस्था : प्राणायाम
श्वास हमारे शरीर की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। यह जीवन का आधार है। इसके बिना जीवन असम्भव है। यह दिन-रात, आजीवन, बिना रुके चलने वाली क्रिया है। साधारणतया इसकी दो स्थितियां होती हैं - श्वास लेना और श्वास छोड़ना। प्राणायाम (श्वास को कुछ देर तक रोकना) इसकी तीसरी अवस्था है। पतंजलि योग में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।
प्राणायाम : पतंजलि योग में
महर्षि पतंजलि ने श्वास की तीन स्थितियों का वर्णन किया है। वे प्राणायाम को परिभाषित करते हुए एक सूत्र देते हैं :-
तस्मिन सति श्वास-प्रश्वासयोर्गति विच्छेद: प्राणायाम:।
अर्थात् आसन (Aasan) की सिद्धि के बाद श्वास-प्रश्वास का गति विच्छेद ही प्राणायाम है। यहां श्वास की तीन अवस्थाओं का वर्णन किया गया है :-
आगे इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
श्वास की तीन अवस्थाएं
योगाभ्यास में तीनों महत्वपूर्ण है। लेकिन तीसरी अवस्था का विशेष महत्व है। पतंजलि योग में इसी को प्राणायाम कहा गया है। आइए इन तीनों को विस्तार से समझ लेते हैं।
1. पूरक
नासिका द्वारा श्वास को अंदर भरना पूरक कहा गया है। इस क्रिया से शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है।अभ्यास में लंबा और गहरा श्वास भरना चाहिए। श्वास के पूरक से वायु लंग्स में जाती है और शरीर में ऑक्सीजन अवशोषित होती है। लंबा और गहरा श्वास भरना उत्तम होता है। श्वास का पूरक करने के बाद कुछ देर भरे श्वास की स्थिति में रुकना चाहिए।
सावधानी :- श्वास अपनी क्षमता अनुसार ही रोकें।
2. रेचक
श्वास बाहर निकालने की स्थिति को रेचक कहा जाता है। श्वास का पूरक करने के बाद शरीर में ऑक्सीजन अवशोषित हो जाती है। श्वास की रेचक क्रिया से बची हुई वायु तथा दूषित पदार्थ बाहर निकलते हैं। इस क्रिया में श्वास पूरी तरह बाहर निकाल देना चाहिए। श्वास का पूरी तरह रेचक करने के बाद कुछ देर स्थिति में रुकना चाहिए।
सावधानी :- रेचक अवस्था में श्वास अपनी क्षमता अनुसार रोकें।
3. कुम्भक
श्वास रोकने की स्थिति को कुम्भक कहते हैं। यह श्वास की तीसरी अवस्था है। इसी अवस्था को वास्तविक प्राणायाम कहा गया है। यह पूरक और रेचक दोनों स्थितियों में लगाया जाना चाहिए। अर्थात् भरे श्वास और खाली श्वास में कुछ देर रुकना कुम्भक की स्थिति है।
पूरक अवस्था में कुम्भक :- लंबा और गहरा श्वास भरें। श्वास का पूरक धीमी गति से करें। पूरा श्वास भरने के बाद क्षमता अनुसार भरे श्वास में रुकें। अपनी क्षमता अनुसार रुकने के बाद धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ें।
(इस स्थिति को आंतरिक कुम्भक भी कहा जाता है।)
रेचक अवस्था में कुम्भक :- भरे हुए श्वास का धीमी गति से रेचक करें। पूरी तरह सांस खाली करने के बाद स्थिति में कुछ देर रुकें। क्षमता अनुसार रुकने के बाद सांस का पूरक करें।
(विशेष : - कुम्भक के साथ बंधों का अभ्यास भी किया जाना चाहिए। पूरी जानकारी के लिए देखे - बंध व कुम्भक का महत्व )
सावधानियां :
- यह क्रिया केवल स्वस्थ व्यक्तियों को ही करनी चाहिए।
- कमजोर श्वसन और श्वास रोगी को कुम्भक नहीं लगाना चाहिए।
- नए अभ्यासी को कुंभक कम अवधि का लगाना चाहिए। धीरे-धीरे अभ्यास का समय बढ़ाएं।
- बलपूर्वक या क्षमता से अधिक देर तक सांस को नहीं रोकना चाहिए।
कुम्भक प्राणायाम के लाभ :
- श्वसन तंत्र को सुदृढ़ करता है।
- श्वास रोगों से बचाव करता है।
- शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।
- रक्तचाप को संतुलित रखता है।
- ऑक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में करता है।
सारांश:
योगाभ्यास में श्वास की तीन अवस्थाएं होती हैं। प्राणायाम श्वास की एक अवस्था है।
Disclaimer :
योग के अनुसार श्वास को कुछ देर रोकना प्राणायाम है। यह श्वास की एक स्थिति है। यह योग की लाभदायी क्रिया है, लेकिन इसका अभ्यास स्वस्थ व्यक्तियों को ही करना चाहिए। बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।