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आधुनिक समय में बहुत से लोग हृदय रोग से प्रभावित हो रहे हैं। यह परेशानी किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को हो सकती है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार "गलत खानपान" तथा "अनियमित जीवनशैली" इसका मुख्य कारण बनता है। इस के लिए चिकित्सक संतुलित आहार और नियमित योगाभ्यास की सलाह देते हैं। योगाभ्यास में आसन और प्राणायाम दोनो लाभदाई होते हैं। हृदय रोग (Heart Disease) से बचाव के लिए प्राणायाम विशेष प्रभावी होता है। लेकिन एक हृदय रोगी यह अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए। आगे लेख में इसका विस्तार से वर्णन किया जाएगा।

pranayam for heart disease
Pexels photo 

हृदय रोग में प्राणायाम का प्रभाव

चिकित्सकों के अनुसार असंतुलित रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल तथा डायबिटीज हृदय रोग का मुख्य कारण बनते हैं। योगाभ्यास में प्राणायाम इनको संतुलित करने में सहायक होता है। यह अभ्यास शरीर के रक्त संचार को व्यवस्थित करता है। इसका नियमित अभ्यास श्वसन तंत्र को सुदृढ़ तथा हृदय को स्वस्थ रखता है। स्वस्थ व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार सभी अभ्यास कर सकते हैं लेकिन रोग ग्रस्त व्यक्ति को कुछ सावधानियों  साथ अभ्यास करना चाहिए।

प्राणायाम अभ्यास की सही विधि

प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह योग का श्वसन अभ्यास है। इसका आधार श्वास है, इसलिए यह अभ्यास अपने श्वास की क्षमता अनुसार ही करना चाहिए। एक स्वस्थ व्यक्ति को पहले योगासन करने चाहिए और उसके बाद प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। लेकिन हृदय रोगी कठिन आसनों का अभ्यास न करें (सरल आसन कर सकते हैं)।

अभ्यास, स्वस्थ व्यक्ति के लिए :

नियमित योगाभ्यास स्वस्थ व्यक्ति को हृदय रोग से बचाए रखने में सहायक होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति को आसन और प्राणायाम दोनो का अभ्यास करना चाहिए। योग का आरम्भ आसनों से करे। नियमित आसन का अभ्यास शरीर के अंगो को सक्रिय करता है और रक्त संचार को व्यवस्थित करता है।

विस्तार से देखें :-  Yoga for Heart

आसन का अभ्यास करने के बाद कुछ देर लेट कर विश्राम करें। विश्राम के बाद उठ कर बैठ जाएं और प्राणायाम का अभ्यास करें।

 हृदय के लिए लाभदाई प्राणायाम

प्राणायाम अभ्यास के लिए पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठें। रीढ़ को सीधा रखें। हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में और आंखे कोमलता से बंध करे। लंबे गहरे श्वास ले और छोड़ें। श्वास सामान्य होने के बाद इन प्राणायामों का अभ्यास करें :-

1. कपालभाति :- यह अभ्यास मुख्यत: शरीर के शीर्ष (कपाल) भाग को प्रभावित करता है। यह अभ्यास कपाल-शुद्धि के साथ श्वसन तंत्र को भी सुदृढ़ करता है। इसका नियमित अभ्यास शरीर के रक्तचाप को व्यवस्थित करता है, लंग्स को सक्रिय करता है और हार्ट को स्वस्थ रखता है।

2. अनुलोम विलोम :- कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम का अभ्यास किया जाना चाहिए। यह कपालभाति से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को संतुलित करता है। इसका नियमित अभ्यास शरीर के रक्तचाप को व्यवस्थित करता है, लंग्स को सक्रिय तथा हार्ट को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।

3. भस्त्रिका प्राणायाम :- यह फेफड़ों को सुदृढ़ करने वाला तथा हृदय को स्वस्थ रखने वाला उत्तम प्राणायाम है। इसका नियमित अभ्यास ब्लड प्रेशर को सामान्य रखने में सहायक होता है। लेकिन इसका अभ्यास केवल स्वस्थ व्यक्तियों को ही करना चाहिए। हृदय रोगी और श्वसन रोगी इसका अभ्यास न करे।

(यह अभ्यास शरद ऋतु में करना चाहिए गर्मी के मौसम में यह अभ्यास वर्जित है)

4. नाड़ी शोधन  :- यह नाड़ियों का शुद्धि कारण तथा श्वसन को सुदृढ़ करने वाला प्राणायाम है। यह हृदय को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति करने वाला अभ्यास अभ्यास है।

सावधानियां

प्राणायाम का अभ्यास करते समय इन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए :-

  • अपने शरीर की अवस्था के अनुसार अभ्यास करें।
  • एक अभ्यास करने के बाद श्वासो को सामान्य करे। श्वास सामान्य होने के बाद अगला प्राणायाम करें।
  • श्वास रोकने वाले (कुम्भक का) अभ्यास श्वास की क्षमता अनुसार ही करें। (विस्तार से देखें :- कुम्भक क्या है?)
  • सुदृढ़ श्वसन वाले व्यक्ति ही कुम्भक प्राणायाम का अभ्यास करें। कमजोर श्वसन तथा हृदय रोगी केवल सरल प्राणायाम का अभ्यास करें।
  • बलपूर्वक कोई अभ्यास न करें।

हृदय रोगी के लिए वर्जित प्राणायाम

प्राणायाम का अभ्यास स्वस्थ व्यक्तियों के लिए है। हृदय रोगी को अपने चिकित्सक की सलाह से सरल अभ्यास करना चाहिए। रोग प्रभावित लोगों के लिए कुछ प्राणायाम वर्जित होते हैं, इस लिए उनको ये अभ्यास नहीं करने चाहिए :-

भस्त्रिका प्राणायाम :- यह रक्तचाप की वृद्धि करने वाला अभ्यास है, इसलिए हृदय रोगी को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

सूर्यभेदी प्राणायाम :- यह सूर्य नाड़ी को प्रभावित करने वाला अभ्यास है। रोग ग्रस्त व्यक्ति को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

कपालभाति :- हृदय रोग प्रभावित व्यक्ति के लिए तीव्र गति का कपालभाति अभ्यास वर्जित है। रोग की आरम्भिक अवस्था में धीमी गति से कम अवधि का अभ्यास किया जा सकता है।

कुम्भक प्राणायाम :- प्राणायाम अभ्यास में श्वास रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा जाता है। यह क्रिया केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिए है। हृदय रोगी  के लिए यह अभ्यास हानिकारक हो सकता है। अतः रोग प्रभावित लोगों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

सारांश :

नियमित प्राणायाम हृदय रोगों से बचाव करने में सहायक होता है। लेकिन रोग प्रभावित लोगों को प्राणायाम का अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए।

Disclaimer :

यह लेख चिकित्सा हेतु नहीं है। योग की सामान्य जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है। इस लेख में बताए गए अभ्यास केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिए हैं। रोग प्रभावित लोगों को चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए। चिकित्सक की सलाह के बिना कोई अभ्यास न करें।


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