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सम्पूर्ण योग चित्तवृत्तियों के निरोध पर आधारित है। महर्षि पतंजलि अपने योगसूत्र के आरम्भ में योग को परिभाषित करते हैं :- योगश्चित्तवृत्ति निरोध:।। 1.2 ।।अर्थात् चित्तवृत्तियों का निरोध करना ही योग है। चित्त वृत्तियाँ क्या हैं, जो निरोध करने योग्य है? ये वृत्तियाँ कितने प्रकार की है? क्लिष्ट अक्लिष्ट वृत्तियाँ क्या हैं? प्रस्तुत लेख मे इस विषय पर विचार किया जायेगा।

क्लिष्ट अक्लिष्ट वृतियाँ

विषय सुची :-
  • क्लिष्ट और अक्लिष्ट वृत्तियाँ।
  • चित्त वृत्तियाँ क्या हैं?
  • 1. प्रमाण वृत्ति।
  • 2. विपर्यय वृत्ति।
  • 3. विकल्प वृत्ति।
  • 4. निद्रा वृत्ति।
  • 5. स्मृति वृत्ति।

क्लिष्ट और अक्लिष्ट वृत्तियाँ।

"क्लिष्ट अक्लिष्ट वृत्तियों" के बारे मे जानने से पहले यह जानना अवश्यक है कि वृत्तियाँ क्या हैैं? क्या ये शरीर को प्रभावित करती हैं? क्या ये योग मे बाधक हैं? कैसे इनका निरोध किया जाना चहाए? 

चित्त की वृत्तियाँ।

योगदर्शन में चित्त की पाँच वृत्तियाँ बताई गई हैं। योगसूत्र के समाधि पाद (प्रथम अध्याय) में वृत्तियों के बारे मे बताया गया है :-- वृत्तय: पञ्चतय्य: क्लिष्टाक्लिष्टा:।। 1.5 ।। महर्षि पतंजलि पहले अध्याय के इस पाँचवे सूत्र मे बताते हैं कि वृत्तियाँ पाँच प्रकार की हैं। इन पाँचो प्रकार की वृत्तियों के दो भेद हैं :- क्लिष्ट और अक्लिष्ट।

क्लिष्ट :-- ये क्लेश (कष्ट) करक वृतियाँ होती हैं। ये अज्ञानता और अवैराग्य की ओर ले जाने वाली हैं। तथा योग मे बाधक होती हैं। ये तमोगुण प्रधान होती हैं।

अक्लिष्ट :-- ये वृत्तियाँ मोक्ष कारक (सुख देने वाली) हैं। ये ज्ञान और वैराग्य की ओर ले जाती हैं। ये वृत्तियाँ योग में सहायक तथा सत्वगुण प्रधान होती हैं।

चित्त वृत्ति निरोध :- पतंजलि-योग मे चित्तवृत्ति के निरोध को योग कहा है। योग साधक को पहले अक्लिष्ट-वृत्तियों से क्लिष्ट-वृत्तियों को हटाना चहाए। फिर अक्लिष्ट-वृत्तियों का भी निरोध करके योग सिद्ध करना चहाए।

चित्तवृत्ति निरोध का साधन :- योगसूत्र मे इसका साधन अष्टाँग योग बताया है। (देखें :- अष्टाँगयोग क्या है?)

पाँच वृत्तियाँ :-- योगसूत्र में वृत्तियों की संख्या पाँच बताई गई है। प्रथम पाद के छठे सूत्र मे इन के बारे मे बताया गया है :-- प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतय:।।1.6।।अर्थात् प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति ये पाँच वृत्तियाँ हैं।

इन के दो भेद हैं :- क्लिष्टअक्लिष्ट। अर्थात् ये पाचों वृत्तियाँ क्लिष्ट भी हो सकती हैं और अक्लिष्ट भी। आईये इन के बारे मे विस्तार से जान लेते हैं।

1. प्रमाण वृत्ति।

प्रमाण शब्द 'प्रमा' से बना है। इसका अर्थ है सत्य का ज्ञान। जिस साधन से या उपाय से यथार्थ का ज्ञान होता है वह प्रमाण है। यह इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव करके, अनुमान से या शब्द द्वारा (पढकर, सुन कर) अनुभव किया जाता है। यह संशयरहित यथार्थ ज्ञान होता है।

योगसूत्र में प्रमाण वृति तीन प्रकार की बताई गई हैं :- (प्रत्यक्षानुमानागमा:प्रमाणानि।। 1.7 ।।)
अर्थात् :- प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम ये तीन प्रमाण वृत्तियाँ हैं। ये तीनो वृतियाँ क्लिष्ट (क्लेश देने वाली) या अक्लिष्ट (सुख देने वाली) हो सकती हैं। आईये इन तीनो को विस्तार से देख लेते हैं।

प्रत्यक्ष प्रमाण :-- 'प्रत्यक्ष' का अर्थ है आँखों के सामने। किसी घटना को या स्थिती को इन्द्रियो से अनुभव किया जाए वह प्रत्यक्ष प्रमाण है। जैसे अपनी आँखों से कोई घटना या दुर्घटना को देखना, स्पर्ष करके या स्वाद से अनुभव करना प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। 

अनुमान प्रमाण :-- जब किसी स्थिति का ज्ञान अनुमान से होता है उसे अनुमान प्रमाण कहते हैं। उदाहरण के लिये यदि हम पर भीङ देखते है तो अनुमान लगाते है कि कोई दुर्घटना हुई है। धूआँ देख कर आग लगने का या गीला देख कर वर्षा होने का अनुमान लगाते हैं।

आगम प्रमाण :-- इसे शब्द प्रमाण भी कहा गया है। यह प्रमाण न प्रत्यक्ष है, ना इसका अनुमान है। यह दूसरों के द्वारा बतया गया या  ग्रंथों को पढ कर प्राप्त किया गया ज्ञान है।

उदाहरण के लिए यदि कोई कहे कि दूसरे शहर मे इतनी वर्षा हुई है कि वहाँ बाढ आ गई। इसे हमने देखा नही। न हमे अनुमान है। केवल बताने वाले के शब्दो पर विश्वास करते है। यह आगम प्रमाण है।

यदि कोई ईश्वर के विषय मे वर्णन करता है या ग्रंथों मे पढते है। यद्यपि ईश्वर को देखा नही है। लेकिन बताये गये या पढे गये शब्दों के अनुसार चित्त में ईश्वर का चित्रण हो जाता है।

2. विपर्यय वृत्ति।

विपर्यय वृत्ति के विषय मे महर्षि पतंजलि परिभाषा देते हैं :--  विपर्ययो मिथ्याज्ञानम् अतद्रूपप्रतिष्ठम् ।। 1.8 ।।  अर्थात् विपर्यय वृत्ति मिथ्या ज्ञान है। यह प्रमाण द्वारा खण्डित किया जा सकता है। मिथ्या ज्ञान के कारण किसी वस्तु को वास्तविक समझ लेना जो अपने उस स्वरूप मे प्रतिष्ठित है ही नही। इसे विपर्यय वृत्ति कहा गया है।

विपर्यय का अर्थ है विपरीत। यह एक भ्रम की स्थिति होती है। जैसे अंधेरे में रस्सी को साँप समझ कर भयभीत हो जाना। इन्द्रिय जनित सुखों को वास्तविक सुख समझना। नित्य को अनित्य तथा अनित्य को नित्य मान लेना। ये सब विपर्यय वृति के उदाहरण हैं।

3. विकल्प वृत्ति।

यह वृत्ति शब्दों की कल्पना पर आधारित है। लेकिन वास्तव मे उसका अस्तीत्व नही है। जैसे कि कोई कहे "सींगों वाला मनुष्य"। यह सुन कर चित्त मे सींगों वाले मनुष्य की आकृति तो बनेगी लेकिन यह भी ज्ञान रहेगा कि यह असम्भव है। 

विकल्प वृत्ति के विषय मे योगसूत्र मे बताया गया है "शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्प:।।1.9।। अर्थात् यह शब्द जनित ज्ञान है। इसमे उस वस्तु का अस्तीत्व शूून्य है।

4. निद्रा वृत्ति।

अविद्या के कारण अज्ञान के अंधकार मे फँसे रहना निद्रा वृत्ति है। सुषुप्त अवस्था को भी निद्रा कहा गया है। योगसूत्र के 10 वे सूत्र मे इस वृत्ति को परिभाषित किया गया है :-- अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिनिद्रा।। 1.10 ।। अर्थात् अभाव के ज्ञान का आवलम्बन करने वाली वृत्ति निद्रा है।

5. स्मृति वृत्ति।

यह भी एक वृत्ति है जो क्लिष्ट या अक्लिष्ट हो सकती है। स्मृति के विषय मे महर्षि पतंजलि लिखते हैं:-   "अनुभूतविषयासंप्रमोष: स्मृति।। 1.11 ।।" अर्थात् अनुभव किये गये विषय का फिर से प्रकट हो जाना स्मृति है।

पहले बताई गई चारो वृत्तियों से प्राप्त अनुभव पुन: जागृत होता है उसे ही स्मृति कहा गया है। जैसे प्रमाण, अनुमान, आगम, विपर्यय या निद्रा वृत्ति से किसी घटना को देखा या अनुभव किया। तथा बाद मे वही अनुभव प्रकट हो जाता है तो यह वृत्ति स्मृति है।

सारांश :-

चित्तवृत्तियों की संख्या पाँच है। इन पाँच वृत्तियों के दो भेद हैं :- क्लिष्ट और अक्लिष्ट। ये सभी चित्तवृत्तियाँ क्लिष्ट और अक्लिष्ट दोनो प्रकार की होती है। ये निरोध करने योग्य होती है। क्लिष्ट वृत्तियाँ क्लेश कारक, दुखदायी, योग मे बाधक तथा तमोगुण प्रधान होती हैं। अक्लिष्ट वृत्तियाँ योग मे सहायक होती हैं। पहले अक्लिष्ट वृत्तियों से क्लिष्ट वृत्तियों को हटाना चहाये। फिर अक्लिष्ट वृत्तियों का भी निरोध करना चहाये।

1 टिप्पणियाँ

Dr S M Jain ने कहा…
आपने अंत में सभी वृत्तियाँ क्लेशकारी कह कर छोड़ दिया जबकि सभी वृत्तियाँ बदल कर मोक्षदायी हो सकती हैं। वृत्तियाँ ही तो हमें चलाती हैं अच्छी हों या बुरी। क्या कहते हैं?