ad-1

Dosplay ad 11may

 

प्राण क्या है? प्राण जीवन है, प्राण ऊर्जा है। इसके बिना शरीर निर्जीव है। "श्वांस" प्राण नही है। बल्कि प्राणों के कारण हम श्वांस लेते और छोड़ते हैं। प्राण-ऊर्जा हमारे पूरे शरीर मे व्याप्त है। प्राणी के शरीर में इसका निर्माण मां के गर्भ से ही आरम्भ हो जाता है। और यह मृत्यु पर्यन्त जारी रहता है। प्राण क्या है? इसके कितने प्रकार हैं। और प्राणायाम कैेसे प्रभावित करता है? प्रस्तुत लेख मे इन विषयों के बारे मे बताया जायेगा।

विषय सुची :--

• प्राण क्या हैं?
• उप प्राण क्या हैं?
• प्राण का महत्व।
• श्वास व प्राण।
• श्वास की तीन अवस्थाएं।
• प्राणायाम का प्राणों पर प्रभाव।

प्राण क्या है? प्राणायाम का प्राणों पर प्रभाव

प्राण जीवन का आधार है। भौतिक शरीर का अस्तित्व प्राण से ही है। श्वास लेना-छोड़ना, शरीर का रक्त संचार, पाचन क्रिया तथा अन्य अंगों पर नियंत्रण प्राणों के कारण ही है। प्राण पाँच प्रकार के बताये गये हैं। इन पाँच प्राणों के पाँच उप-प्राण हैं। इनके स्थान तथा कार्य अलग-अलग हैं।

प्राणायाम का प्रभाव :- "श्वास" प्राण का आधार है। और प्राणायाम श्वासों पर आधारित क्रिया है। यह क्रिया प्राणों को सीधा प्रभावित करती है। प्राणायाम श्वसनतंत्र तथा प्राणों को सुदृढ करता है। यह प्राणिक-नाड़ियों का शोधन करता है। प्राण तथा उप-प्राण कोन से हैं, आईए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।

प्राण तथा उप-प्राण क्या हैं?

हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने शरीर के बारे मे गहन अध्यन किया था। उन्होने बताया कि हमारे शरीर मे पाँच "प्राण" हैं। तथा इनके पाँच 'सहायक-प्राण' हैं। इन सहायक-प्राणों को उप-प्राण कहा जाता है। शरीर मे इन सभी प्राणों के अलग-अलग स्थान हैं। इन के कार्य भी अलग-अलग हैं।

पाँच प्राण।

शरीर प्राण 5 प्रकार के बताए गए हैं। ये पूरे शरीर का संचालन करते हैं। इन पाँचों प्राणों के कार्य तथा स्थान निर्धारित हैं। पाँच प्राण ये हैं :--

  1. मुख्य प्राण। 
  2. अपान प्राण। 
  3. समान प्राण। 
  4. उदान प्राण। 
  5. व्यान प्राण।

शरीर मे इन की स्थिति कहाँ पर है तथा इनके कार्य क्या हैं, यह आगे विस्तार से समझ लेते हैं।

1. मुख्य प्राण :- इस का स्थान नासिका से हृदय तक है। यह पाँचों प्राणों मे मुख्य प्राण है। नासिका से श्वास ले कर अन्य प्राणों तक आक्सिजन (प्राण वायु) को पहुँचाना इसी का कार्य है। अनाहद चक्र की स्थिति यही पर है। पाँच प्राणों मे यह मुख्य प्राण है। 

2. अपान प्राण :- यह प्राण नाभि से पैरों तक स्थित है। गुदा व जननेन्द्रय पर इसी प्राण का नियन्त्रण होता है। मल-मुत्र त्याग तथा दूषित वायु का निकास इसी से होता है। इस के कमजोर पड़ने के कारण ही मल-मुत्र निष्कासन पर  नियन्त्रण खत्म हो  जाता है।

महिलाओ मे रजोवृति व गर्भवति महिला द्वारा शिशु को जन्म देने मे यही प्राण सहायक है। यहाँ मूलाधार चक्र की स्थिति है। मूलबंध तथा अश्विनि-मुद्रा से 'अपान प्राण' को प्रभावित किया जा सकता है।

3. समान प्राण :- इस प्राण की स्थिति हृदय से नाभि तक है। पाचनतंत्र का कार्य इसी प्राण के कारण होता है। खाये हुए भोजन से जो रस बनता है उस से रक्त, मज्जा आदि धातुओं का निर्माण इसी प्राण से होता है। यहाँ पर मणिपूर चक्र स्थित है।

अग्निसार क्रिया तथा नौली क्रिया से इस प्राण को प्रभावित किया जा सकता है।

4. उदान प्राण :- उदान प्राण का स्थान कण्ठ से सिर तक है। कण्ठ से मस्तिष्क तक के कार्य इसी के नियंत्रण में हैं। बोलना, सुनना इसी के कारण होता है।

यहाँ विशुद्धि चक्र की स्थिति है। उज्जायी प्राणायाम से इसे प्रभावित किया जा सकता है।

5. व्यान प्राण :- व्यान प्राण का स्थान  सम्पूर्ण शरीर मे फैली रक्त वाहिकाओं (नसों)  तथा प्राणिक नाड़ियों मे होता है। सम्पूर्ण शरीर में रक्त प्रवाह  व प्राण संचार इसे से होता है।

यह प्राण स्वाधिष्ठान चक्र से प्रभावित है। इसे नाङीशौधन प्राणायाम से सुदृढ किया जा सकता है।

उप-प्राण।

पांच मुख्य प्राणों के पांच सहायक प्राण बताये गये हैं :-

1. नाग :- इस उप प्राण का स्थान कण्ठ से मुख तक है। डकार तथा हिचकी आना इसी के करण होता है। यह मुख्य प्राण का सहायक प्राण है।

2. कूर्म :- नेत्र के गोलक इसका स्थान है। पलक झपकना तथा नेत्र बन्ध करना-खोलना इसके कार्य हैं। यह अपान का उप प्राण है।

3 कृकल :- छींकना इसी उप-प्राण के कारण होता है।श्वसनतंत्र के अवरोध इस क्रिया से दूर होते है। यह समान-प्राण का उप प्राण है।

4. देवदत्त :- जम्हाई, उबासी तथा निद्रा इसके कार्य हैं। यह उदान का उप प्राण है।

5. धनन्जय :- यह व्यान प्राण का उप प्राण है। यह पूरे शरीर मे ऊर्जा देता है। मृत्यु के कुछ समय बाद तक भी शरीर मे इसकी उपस्थिति रहती है।

प्राण का महत्व

प्राण शरीर के लिए महत्वपूर्ण हैं। प्राण के बिना भौतिक-शरीर का अस्तित्व नही है। प्राण के बिना शरीर केवल एक ढाँचा है। शरीर की सभी क्रियाएं प्राणों के कारण ही हैं। शरीर का रक्त-संचार, पाचनतंत्र, सभी आंतरिक व बाह्य अंग, तथा मस्तिष्क सभी प्राणों के कारण संचालित होते हैं।

इन पाँचो प्राणो मे से कोई भी काम करना बंद कर दे तो शरीर निष्क्रिय हो जाता है। उप-प्राणों के असंतुलित होने पर हमारा शरीर अस्वस्थ हो जाता है। प्राणायाम इनको स्वस्थ रखने के लिए एक प्रभावी क्रिया है। प्राणायाम का आधार श्वास है। प्राण के लिये श्वास का क्या महत्व है, आईए इसको समझ लेते हैं।

श्वास और प्राण

श्वासों का प्राण से गहरा सम्बंध है। श्वास, प्राण का आधार हैं। यह क्रिया जन्म से लेकर मृत्यु तक बिना रुके लगातार चलती रहती है। सामान्य तौर पर हम छोटे-छोटे श्वास लेते और छोड़ते है। ये पर्याप्त नही होते। प्राणायाम मे श्वासों के लेने व छोड़ने का सही तरीका बताया जाता है।

श्वास की अवस्थाएँ :- सामान्यत: श्वास की दो ही अवस्थाएँ होती हैं :-

1. श्वास लेना।
2. श्वास छोड़ना।

लेकिन प्राणायाम मे ये तीन होती हैं। ये तीन अवस्थाएँ कोन सी हैं, इसको समझ लेते हैं।

श्वास की तीन अवस्थाएं

प्राणायाम मे श्वास की तीन अवस्थाएँ होती हैं।

1. पूरक :-- श्वास को अन्दर लेने की अवस्था को "पूरक" कहा जाता है।
2. कुम्भक :-- श्वास को रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है :--
• आन्तरिक कुम्भक (श्वास को अंदर रोकना)।
• बाह्य कुम्भक (श्वास छोड़ कर बाहर रोकना)।

3. रेचक :-- श्वास को बाहर छोड़ना रेचक कहलाता है।

प्राणायाम का प्राणों पर प्रभाव

प्राणायाम  का प्राणों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह  श्वासों पर आधारित क्रिया है। यह श्वसनतंत्र को सुदृढ करती है। इस क्रिया से Lungs एक्टिव होते हैं और श्वसन प्रणाली मे आने वाले अवरोध दूर होते हैं।

प्राणायाम प्राणों की वृद्धि करता है। हमारे शरीर में बहत्तर हजार प्राणिक नाड़ियां है। इन के द्वारा पूरे शरीर में प्राणों का संचार होता है। इन नाड़ियों में कई बार कुछ कारणों से अवरोध आ जाते हैं। ये अवरोध शरीर में रोगों का कारण बनते हैं। नियमित प्राणायाम का अभ्यास इन अवरोधों को हटाने में सहायक होता है।

इस क्रिया में श्वास को एक सही तरीके से लेना, रोकना और छोड़ना बताया जाता है। प्राणायाम के वास्तविक लाभ  बन्ध व कुम्भक  से ही मिलते है। लेकिन नए अभ्यासी कुम्भक का प्रयोग सावधानी से करें।

सारांश :-
  • प्राण के बिना "भौतिक शरीर" का अस्तित्व नहीं है।
  • हमारे शरीर मे पाँच प्राण तथा पाँच उप-प्राण हैं।
  • शरीर मे सभी प्राणों की स्थिति व कार्य अलग अलग है।
  • श्वास और प्राण का गहरा सम्बन्ध है।
  • प्राणायाम से हम प्राणों को सुदृढ कर सकते हैं।
Disclaimer :- प्राणायाम अपने श्वासो की स्थिति के अनुसार किये जाने चाहिए। श्वासो के साथ अनावश्यक बल प्रयोग न करें। श्वास रोगी व हृदय रोगी प्रशिक्षक के निर्देशन मे सरल क्रिया करें, तथा कुम्भक का प्रयोग न करें।

Post a Comment