"प्राणायाम" योग का एक महत्वपूर्ण अभ्यास है। यह शरीर को ऊर्जा देने वाली क्रिया है। लेकिन इसकी सम्पूर्णता 'कुम्भक' से है। पतंजलि योगसूत्र मे कुम्भक को ही वास्तविक प्राणायाम बताया है (देखें :- योगसूत्र 2.49)। प्राणायाम के वास्तविक लाभ कुम्भक से ही मिलते है। कुम्भक प्राणायाम क्या है? इसका अभ्यास कैसे किया जाता है? तथा इसके लाभ व सावधानियां क्या है? ये सब इस लेख मे आगे बताया जायेगा।
विषय सुची :-
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कुम्भक प्राणायाम, लाभ व सावधानियां।
देखें :- पतंजलि योगसूत्र मे प्राणायाम की परिभाषा।
महर्षि पतंजलि इस सूत्र मे बताते हैं कि जो श्वास हम सहज गति से लेते और छोड़ते है, उस की गति को (अपनी क्षमता के अनुसार) रोक देना ही प्राणायाम है। इसी अवस्था को कुम्भक कहा गया है। प्राणायम मे श्वसन बहुत महत्वपूर्ण है। श्वसन क्या है? आईए पहले इसके बारे मे जान लेते हैं।
श्वसन क्या है?
शरीर के लिये 'श्वसन' एक महत्वपूर्ण क्रिया है। यह जन्म से लेकर मृत्यु तक निरंतर चलने वाली क्रिया है। नासिका द्वारा से प्राण-वायु को "अन्दर लेने" (Inhaling) व "बाहर छोड़ने" (Exhaling) को श्वसन कहा गया है। प्राणायाम मे श्वसन की तीन अवस्थाएं बताई गई हैं :-
1. पूरक :- नासिका से प्राण-वायु को अन्दर भरना श्वास या "पूरक" कहा जाता है। प्राणायाम मे हम इसको लम्बा तथा गहराई तक भरते हैं।
2. रेचक :- भरे हुए श्वास को बाहर छोड़ने की स्थिति को प्रश्वांस या "रेचक" कहा जाता है। प्राणायाम मे हम रेचक करते समय श्वास को पूरी तरह खाली करते हैं।
3. कुम्भक :- श्वांस-प्रश्वांस को रोकने की स्थिति को "कुम्भक" कहा गया है। यह पूरक व रेचक दोनो स्थितियों मे लगाया जाता है।
कुम्भक क्या है?
श्वास को अन्दर या बाहर रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा जाता है। अर्थात् यह 'पूरक' व 'रेचक' दोनो अवस्थाओं मे लगाया जाता है। यह शब्द "कुम्भ" से लिया गया है। संस्कृत भाषा मे पानी के बरतन को कुम्भ (घड़ा) कहा गया है।
यहां कुम्भक की परिभाषा मे "शरीर" की तुलना घङे (कुम्भ) से की गई है। और "प्राण-शक्ति" की तुलना पानी से की गई है। जिस प्रकार "घड़ा" पानी को बांध कर रखता है, उसी प्रकार कुम्भक से हम अपनी प्राण शक्ति को बांध कर रख सकते हैं।
पतंजलि योगसूत्र में कुम्भक के प्रकार
कुम्भक को श्वास की दोनो अवस्थाओं मे लगाया जाता है। प्राणायाम मे ये तीन प्रकार के बताये गये हैं। इसके साथ "बन्धों" का प्रयोग भी किया जाना चाहिए। महर्षि पतंजलि इसको परिभाषित करते हुए एक सूत्र देते हैं :- बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभि परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्म:।। 2.50 ।।
इस सूत्र मे महर्षि पतंजलि प्राणायाम की तीन अवस्थाओं का वर्णन करते है। इसी अवस्था को कुम्भक कहा गया है। ये तीन अवस्थाएं इस प्रकार हैं :-
तीन प्रकार के कुम्भक
1. बाह्य कुम्भक :- "रेचक स्थिति" मे श्वास को रोकना बाह्य कुम्भक कहा गया है। अर्थात् जब हम श्वास छोड़ने के बाद खाली श्वास की स्थिति मे ठहरते हैं, तो यह बाह्य कुम्भक है। इसको बाह्य वृति प्राणायाम भी कहा जाता है।
2. आन्तरिक कुम्भक :- "पूरक स्थिति" मे श्वास को रोकना आन्तरिक कुम्भक कहा गया है। अर्थात् जब हम श्वास को अन्दर रोकते हैं, तो यह आन्तरिक कुम्भक है। इस स्थिति को आभ्यन्तर प्राणायाम भी कहा गया है।
3. कैवल्य कुम्भक :- इस को स्तम्भ वृति भी कहा गया है। यह तीसरे प्रकार का कुम्भक है। यह अप्रयास (बिना प्रयास के) लगता है। यह साधक के लिये एक आनन्द की स्थिति होती है। इसको खाली व भरे श्वास दोनो स्थितियों मे अनुभव किया जा सकता है।
कुम्भक प्राणायाम : स्वास्थ्य लाभ व सावधानियां
योगाभ्यास में सभी प्राणायाम करने के बाद अंत मे इस को करना अधिक उत्तम है। अर्थात् पहले आप कपालभाति, अनुलोम-विलोम, नाड़ीशोधन आदि प्राणायाम करें। ये सब करने के बाद कुम्भक प्राणायाम करें।
कुम्भक प्राणायाम कैसे करें?
1. बैठने की स्थिति :- पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। रीढ व गरदन को सीधा रखें। दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। आँखें कोमलता से बन्ध करें। ध्यान को श्वासो पर केन्द्रित करें।
2. आन्तरिक कुम्भक :-- धीरे-धीरे लम्बा गहरा श्वास भरें। धीमी गति से श्वास का पूरक करें। पूरी तरह श्वास भरने के बाद मूल बन्ध लगाये। गरदन को आगे झुकाते हुये ठोडी कण्ठ से लगाये। भरे श्वास (आन्तरिक कुम्भक) की स्थिति मे कुछ देर रुकें। स्थिति मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकें।
बाह्य कुम्भक मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे से बन्धों को खोलते हुए श्वास का पूरक करे। और दूसरी आवर्ती के लिये फिर से वही क्रिया दोहराये। आरम्भ मे दो या तीन आवर्तियां ही करें। प्राणायाम के अंत मे श्वास सामान्य करे।
देखे :- बन्ध व कुम्भक क्या है?
कुम्भक प्राणायाम के स्वास्थ्य लाभ
1. ऊर्जादायी :- यह शरीर को ऊर्जा देने वाला प्राणायाम है। बन्धों के साथ कुम्भक लगाने से ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होती है। यह मूलाधार से उठ कर सहस्रार की ओर जाती है।
2. श्वसनतंत्र :- यह श्वसनतंत्र को प्रभावित करने वाला प्राणायाम है। यह लंग्स को एक्टिव रखता है तथा श्वसन प्रणाली को सुदृढ करता है। यह श्वास की परेशानियों से बचाव करता है।
3. हृदय :- यह शरीर मे आक्सीजन की पर्याप्त मात्रा मे आपूर्ती करता है। इस क्रिया से शरीर मे आक्सीजन अधिक देर तक रुकती है। यह हृदय को मजबूती देने वाला प्राणायाम है।
4. प्राण शक्ति :- इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से प्राण-शक्ति की वृद्धि होती है।
5. रक्तचाप (BP) :- यह हृदय को मजबूती देने वाला प्राणायाम है। अत: यह रक्त चाप को सामान्य रखने मे सहायक होता है।
6. रोग प्रतिरोधक (Immunity) :- यह रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की वृद्धि करने वाला प्राणायाम है।
सावधानियां :
1. श्वास का पूरक करते समय धीरे-धीरे लम्बा व गहरा श्वास भरें। रेचक करते समय श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ें। यह ध्यान रखें कि 'पूरक' मे श्वास पूरी तरह से भरे तथा 'रेचक' मे श्वास पूरी तरह खाली हो जाये।
2. इस प्राणायाम को अपने श्वासो की स्थिति के अनुसार ही करे। यदि श्वासो की स्थिति ठीक नही है तो यह प्राणायाम न करें।
3. अपनी क्षमता के अनुसार श्वास रोकें। श्वास रोकने के लिये अनावश्यक बल प्रयोग न करें। नये अभ्यासी आरम्भ मे कम समय के लिये कुम्भक लगाएं। धीरे-धीरे इसका समय बढ़ाएं।
4. श्वास रोगी तथा हृदय रोगी इस प्राणायाम को न करें। प्रारम्भिक रोगी अपने चिकित्सक की सलाह से ही इस अभ्यास को करें।
5. उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति किसी प्रशिक्षक के निर्देशन मे सावधानी से करें।
सारांश :--
प्राणायाम मे श्वास की 3 अवस्थाएं हैं :- पूरक, रेचक और कुम्भक। कुम्भक 3 प्रकार के है :- आन्तरिक, बाह्य व कैवल्य कुम्भक। कुम्भक प्राणायाम लाभदायी प्राणायाम है। लेकिन इसे कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए।
Disclaimer :-
यह लेख किसी प्रकार के रोग का उपचार करने का दावा नही करता है। प्रस्तुत लेख का उद्देश्य केवल प्राणायाम की जानकारी देना है। लेख मे बताई गई क्रियाएं केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। गम्भीर रोगी इस क्रिया को न करें।