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"योग" भारत की एक प्राचीन जीवनशैली रही है। अनेक ऋषि-मुनियों ने योग को अपने अनुसार परिभाषित किया है। इसी प्रकार महर्षि पतंजलि ने सूत्रों द्वारा सम्पूर्ण योग को परिभाषित किया है। प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। अष्टांगयोग का यह चौथा चरण है। यह एक श्वसन अभ्यास है। प्राणायाम श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है, हृदय व लंग्स को स्वस्थ रखता है। प्रस्तुत लेख मे हम यह देखेंगे कि पतंजलि योग में प्राणायाम क्या है?

विषय सुची :-

• पतंजलि और योगसूत्र।
• पतंजलि का  जीवन परिचय।
• योगसूत्र के अनुसार प्राणायाम।
• पतंजलि के 3 प्राणायाम सूत्र।
• बाह्य वृत्ति प्राणायाम।
• आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम।
• स्तम्भ वृत्ति प्राणायाम।
• चतुर्थ (चौथा) प्राणायाम।

Yogsutra pranayam

प्राणायाम, पतंजलि योगसूत्र में

भारत मे अनेकों ऋषि-मुनि व योगी हुए हैं। सभी ने योग को आगे बढाया है। सभी योगियों ने प्राणायाम को परिभाषित किया है, इसके कई प्रकार व मुद्राएं (पोज) बताई हैं। लेकिन महर्षि पतंजलि ने इसे सूत्रों द्वारा परिभाषित किया है।

योगसूत्र महर्षि पतंजलि की एक महान रचना है। इसमें सम्पूर्ण योग को सूत्रो द्वारा परिभाषित किया है। इसके दूसरे अध्याय मे प्राणायाम के विषय मे विस्तार से बताया गया है। पतंजलि योगसूत्र मे प्राणायाम क्या है? यह जानने से पहले पतंजलि तथा उनकी रचना योगसूत्र के विषय मे जान लेना जरूरी हैं।

महर्षि पतंजलि तथा योगसूत्र :

महर्षि पतंजलि भारत मे एक महान ऋषि हुए हैं। "योगसूत्र" उनका एक महान ग्रंथ है। यह आधुनिक योग का आधार है। इस ग्रंथ मे योग को सरल भाषा मे समझाया गया है। इसमें अष्टांगयोग को 'योग का मार्ग' बताया है। "प्राणायाम" इसी का एक अंग है।

पतंजलि का जीवन परिचय :

पतंजलि का काल-खण्ड आज से लगभग 2200 से 2300 वर्ष पूर्व माना गया है। ऐसा माना जाता है कि वे 200 ई• पू• से 250 ई• पू• हुए हैं। वे प्रसिद्ध योगाचार्य थे। उनका संस्कृत भाषा के लिये भी विशेष योगदान रहा है। इसके साथ वे एक आयुर्वेदाचार्य भी थे।

महर्षि पतंजलि का योग को आगे बढाने मे विशेष योगदान रहा है। 'योग' के अतिरिक्त 'चिकित्सा' तथा 'भाषा' के क्षेत्र मे भी उनको श्रेय दिया जाता है। 

योग के प्रति योगदान :- योग के प्रति महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान रहा है। उन्होने योग को संकलित करके सरल भाषा मे आम लोगो तक पहुंचाया। योगसूत्र उनका एक महान ग्रंथ है।

भाषा के प्रति योगदान :- उस समय संस्कृत आम जन मानस की भाषा थी। उन्होने संस्कृत भाषा के व्याकरण के लिये विशेष कार्य किया। उन्होने "महाभाष्य" नामक ग्रंथ  पर एक टीका लिखी। यह आज भी संस्कृत व्याकरण का मार्गदर्शन करती है।

चिकित्सा के क्षेत्र में :- राजभोज का एक प्रसिद्ध कथन आता है। इस कथन मे वे पतंजलि को एक सुप्रसिद्ध योगाचार्य, भाषा विशेषज्ञ तथा एक कुशल चिकित्सक मानते हैं। वे मानते हैं कि पतंजलि 'तन' के साथ 'मन' के भी चिकित्सक थे।

योगसूत्र तथा प्राणायाम :

महर्षि पतंजलि की कई प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनमे "योगसूत्र एक महान ग्रंथ है। यह आज भी योग के लिये प्रेरणा है। यह आधुनिक योग का आधार है। इसमें चित्त वृत्तियों का निरोध कराना ही योग बताया है। इसके लिये अष्टांगयोग का वर्णन किया गया है।

प्राणायाम अष्टांगयोग का ही एक चरण है। "योगसूत्र" के  दूसरे अध्याय मे इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।

पतंजलि के अनुसार प्राणायाम :

सभी महान योगियों ने प्राणायाम को परिभाषित किया है। महर्षि पतंजलि ने भी अपने महान ग्रंथ "योगसूत्र" मे सूत्रों द्वारा परिभाषित किया है। प्राणायाम का वर्णन दूसरे अध्याय मे आता है। इस अध्याय मे 49वें, 50वें तथा 51वे सूत्र मे प्राणायाम का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन तीन सूत्रो के विषय मे आगे चर्चा करेंगे।

पतंजलि योग मे प्राणायाम के तीन सूत्र :

प्राणायाम को समझने के लिये योगसूत्र के ये तीन सूत्र बहुत महत्वपूर्ण हैं।

1. तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:। (2.49)।
(इस सूत्र मे प्राणायाम को परिभाषित किया गया है।)

2. बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्ति देशकालसंख्याभि परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्म:। (2.50)।
(इस सूत्र मे प्राणायाम के प्रकार तथा प्राणायाम मे श्वास की स्थितियां बताई हैं।)

3. बाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थ:। (2.51)। 
(इस सूत्र मे चौथे प्राणायाम के विषय मे बताया गया है।)

आगे लेख में इन तीन सूत्रों का विस्तार से वर्णन किया जायेगा।

पतंजलि योग मे प्राणायाम की परिभाषा :

योगसूत्र मे प्राणायाम को श्वास पर आधारित क्रिया बताया गया है। सामान्यत: हम दिन-रात सहज गति से श्वास लेते और छोड़ते हैं। महर्षि पतंजलि "योगसूत्र" मे प्राणायाम की परिभाषा देते हैं :- तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गति विच्छेद: प्राणायाम:।।  2.49 ।।

(तस्मिन् सति श्वास प्रश्वासयो गति विच्छेद: प्राणायाम:।)

भावार्थ :- ऐसा (आसन की सिद्धि) हो जाने के बाद, श्वास लेने व छोड़ने की सामान्य गति को (क्षमता अनुसार) रोक देना ही प्राणायाम है।

"योगसूत्र" के दूसरे अध्याय का यह 49वाँ सूत्र है। इसमें सम्पूर्ण प्राणायाम की परिभाषा है। इस सूत्र मे बताया गया है कि आसन के सिद्ध हो जाने के बाद सहज गति से "लिये" और "छोड़े" जाने वाले श्वास को विराम देना (या रोक देना) ही प्राणायाम है। आईए इस सूत्र को विस्तार से समझ लेते हैं।

तस्मिन् सति :- इसका अर्थ है  "ऐसा हो जाने पर"। यहाँ पर "ऐसा हो जाने" का अर्थ है, आसन की सिद्धि हो जाना। अर्थात् प्राणायाम से पहले आसन करना आवश्यक है। आसन की सिद्धि के बाद प्राणायाम किया जाना चाहिए।

श्वास प्रश्वासयो :- श्वास प्रश्वास का अर्थ है, प्राण वायु को नासिका से अन्दर लेना और बाहर छोड़ना। यह लगातार चलने वाली एक सामान्य क्रिया है। यह बिना रुके दिन-रात आजीवन चलती रहती है। यह क्रिया सहज गति से होती रहती है।

गति विच्छेद: प्राणायाम: - 'गति विच्छेद:' का अर्थ है, "गति को रोक देना"। अर्थात् जो श्वास हम सहज गति से लेते और छोड़ते हैं, उसे रोक देना ही प्राणायाम है। यहाँ रोकने का अर्थ है "श्वास को अपनी क्षमता के अनुसार रोकना"। इसी क्रिया को कुम्भक कहा गया है।

सूत्र का भावार्थ :

यहाँ महर्षि पतंजलि बताते हैं, सहज गति से लिये और छोड़े जाने वाले श्वास को रोकना ही प्राणायाम है। अर्थात् कुम्भक ही वास्तविक प्राणायाम है। लेकिन यह क्रिया अपने श्वास की स्थिति के अनुसार ही करनी चाहिए। एक नए अभ्यासी को बल पूर्वक तथा क्षमता से अधिक समय तक श्वास नहीं रोकना चाहिए।

प्राणायाम के प्रकार :

पतंजलि योगसूत्र मे 4 प्रकार के प्राणायाम बताये गये हैं। इसके 50वे सूत्र मे तीन प्रकार के प्राणायाम बताये हैं। चौथे प्राणायाम का वर्णन 51वें सूत्र मे किया गया है।

बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्ति देशकालसंख्याभि परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्म:।। 2.50 ।।

(बाह्य आभ्यन्तर स्तम्भ वृत्ति देश काल संख्याभि परिदृष्टो दीर्घ सूक्ष्म:)

अर्थ :- बाह्य वृत्ति, आभ्यन्तर वृत्ति व स्तम्भ वृति, ये तीन प्रकार के प्राणायाम हैं। इनको स्थान (शरीर मे), समय तथा गणना पूर्वक देखकर किये जाने से प्राण दीर्घ व सूक्ष्म हो जाते हैं।

महर्षि पतंजलि इस सूत्र मे प्राणायाम के तीन भेद बताते हैं। ये तीन भेद हैं :- 

  1. बाह्य वृत्ति
  2. आभ्यन्तर वृत्ति
  3. स्तम्भ वृत्ति

1. बाह्य वृत्ति प्राणायाम :- प्राणायाम की यह "रेचक" स्थिति है। भरे हुए श्वास को नासिका द्वारा बाहर छोड़ कर कुछ देर रुकना "बाह्य वृत्ति प्राणायाम" है। इसको बाह्य कुम्भक कहा गया है।

2. आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम :- प्राणायाम की यह "पूरक" स्थिति है। भरे हुए श्वास मे क्षमता अनुसार रुकना "आभ्यन्तर वृत्ति" प्राणायाम है। इसे आन्तरिक कुम्भक कहा गया है।

3. स्तम्भ वृत्ति प्राणायाम :- यह प्राणायाम की तीसरी स्थिति है। ऊपर बताये गये दोनो प्राणायाम मे सफलता मिलने के बाद यह स्थिति स्वत: बनती है। इस मे अधिक प्रयास की अवश्यकता नही होती है। प्राणायाम मे दोनो कुम्भक सफलता पूर्वक लगने बाद एक आनन्ददायक स्थिति बनती है।

इसमें कुछ देर के लिये श्वास लेने या छोड़ने का मन नही करता है। इसे अनुभव करने के लिये श्वास को जिस स्थिति मे है (अन्दर या बाहर), रोक कर देखें। इसे "कैवल्य कुम्भक" भी कहा गया है।

चौथा प्राणायाम

महर्षि पतंजलि अपने योगसूत्र के '51वें' सूत्र मे चौथे प्राणायाम का वर्णन करते हैं। यह ऊपर बताये गये तीन प्राणायामों से अलग हैं। इस प्राणायाम को परिभाषित करने के लिए वे एक सूत्र देते हैं :- 

बाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थ:।। 2.51 ।।

(बाह्य आभ्यन्तर विषय: आक्षेपी चतुर्थ:)

अर्थ :- प्राणायाम मे श्वास को बाहर रोकने या अन्दर रोकने की इच्छा को त्यागना (या इच्छा के विपरीत कार्य करना) चौथा प्राणायाम है।

चौथा प्राणायाम क्या है? यह जानने के लिये इस सूत्र को विस्तार से समझना होगा।

जब हम श्वास को बाहर छोड़ कर खाली श्वास मे रुकते हैं, तो कुछ देर बाद श्वास को अन्दर भरने का मन करता है। यदि हम श्वास भर लेते है तो यह बाह्य वृत्ति प्राणायाम हो जायेगा। लेकिन श्वास का पूरक करने की इच्छा के विपरीत यदि श्वास को बाहर की तरफ धकेलते है, तो यह चौथा प्राणायाम हो जायेगा।

इसी प्रकार श्वास भरने के बाद जब हम भरे श्वास की स्थिति मे रुकते हैं, तो कुछ देर बाद श्वास को बाहर छोड़ने का मन करता है। यदि हम श्वास को बाहर छोड़ देते हैं तो यह आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम हो जायेगा। लेकिन उस इच्छा का त्याग करते हुए श्वास को और भर लेते हैं, तो यह चौथा प्राणायाम हो जायेगा।

सूत्र का सार :- बाह्य कुम्भक की स्थिति कुछ देर रुकने के बाद श्वास अन्दर लेने की इच्छा होती है। और आन्तरिक कुम्भक के बाद श्वास को बाहर निकालने की इच्छा होती है। श्वास लेने व छोड़ने की इच्छा के विपरीत कार्य करते है तो यह चौथा प्राणायाम है।

सावधानी :- यह चौथा प्राणायाम नये साधकों के लिये नही है। यदि श्वास की स्थिति ठीक नही है तो यह प्राणायाम नही करना चाहिए। यह प्राणायाम केवल नियमित अभ्यासियों के लिये है।

लेख सारांश :- 

महर्षि पतंजलि ने अपने महान ग्रंथ योगसूत्र मे प्राणायाम के 4 भेद बताये हैं। सामान्य अभ्यासियों के तीन प्राणायाम है :- बाह्यवृत्ति, आभ्यन्तर वृत्ति तथा स्तम्भ वृत्ति। चौथा प्राणायाम केवल योग के नियमित साधकों के लिये है।

 Disclaimer :-

कुम्भक केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। हृदय रोगी, श्वास रोगी कुम्भक न लगाएं। लेख मे बताये गये प्राणायाम केवल स्वस्थ व नियमित अभ्यासियों के लिये हैं। इस लेख का उद्देश्य केवल योग की जानकारी देना है।

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