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Yoga

'योग' भारत की एक प्राचीन जीवन-शैली है। यह विश्व को भारत की एक अनमोल देन है। आज पूरा विश्व जिस योग को अपना रहा है उसमे महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान है। आरम्भ में यह धार्मिक ग्रंथों में बिखरी हुई अवस्था में था। उस समय यह बहुत कठिन भाषा में था। महर्षि पतंजलि ने उसी योग को सरलता से सूत्रो द्वारा परिभाषित किया और आम जन तक पहुंचाया। इस लेख में बताया जाएगा कि पतंजलि कोन थे और पतंजलि-योग क्या है? 

लेख की विषय-सुची :

• पतंजलि के अनुसार योग।
• पतंजलि का संक्षिप्त परिचय।
• पतंजलि की रचनाएं।
• योगसूत्र।
• योग अनुशासन।
• चित्त वृत्तियां।
• अष्टांगयोग।

पतंजलि योग क्या है?

प्राचीन काल मे योग केवल ऋषि-मुनियों के आश्रमों तक सीमित था। उस समय योग को केवल ऋषि-मुनि और आश्रम के विद्यार्थी ध्यान-साधना के लिए करते थे। पहले यह आम-जन की पहुंच मे नही था।

धार्मिक ग्रंथों में योग का विस्तार से वर्णन मिलता है। लेकिन इसको एकत्रित करने और आम लोगो तक पहुंचाने का काम महर्षि पतंजलि ने ही किया है। उन्होने योग को सरल रूप से परिभाषित किया है। उनके द्वारा लिखी गई योगसूत्र एक महान रचना है। यह महान ग्रंथ आज भी योग का मार्गदर्शन करता है।

पतंजलि के अनुसार योग क्या है?

पतंजलि योग क्या है? यह जानने से पहले महर्षि पतंजलि के बारे मे जानना अवश्यक है। यह जानना जरूरी है कि वे कोन थे तथा उनका योग के प्रति क्या योगदान था?

पतंजलि कोन थे?

प्राचीन भारत में अनेकों ऋषि-मुनि हुए है। इन सभी ने योग को आगे बढाया और परिभाषित किया। महर्षि पतंजलि उन ही मे से एक ऋषि थे। उनका काल खण्ड आज से लगभग 2000 से 2500 वर्ष पूर्व माना जाता है। ऐसा वर्णन आता है कि वे सुंग-वंश के राजा पुष्यमित्र को सम-कालीन थे। वे महर्षि पाणिनि के शिष्य थे। वे सुप्रसिद्ध योगाचार्य, व्याकरणाचार्य तथा रशायन-शास्त्र के ज्ञाता थे।

योग का प्रचलन पतंजलि से पहले होता आ रहा था। लेकिन इस की पहुंच आम-जन तक नही थी। उस समय यह धार्मिक ग्रंथों मे बिखरा हुआ था और यह आश्रमों तक ही सीमित था। 

महर्षि पतंजलि ने उस बिखरे हुए योग को सूत्रों मे एकत्रित किया तथा परिभाषित किया। आज हमारे सामने जो योग है वह महर्षि पतंजलि की देन है। आज पूरा विश्व पतंजलि-योग का अनुसरण कर रहा है।

पतंजलि का संक्षिप्त परिचय

महर्षि पतंजलि का काल-खण्ड लगभग 200 से 250 ईसा पूर्व माना जाता है। इतिहासकार मानते है कि वे शुग-वंश के शासन काल मे हुए हैं। वे एक महान चिकित्सक तथा महान व्याकरणाचार्य भी थे। उन के विषय मे राजा भोज का एक कथन आता है :--

योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन। 
योअपाकरोत्तं प्रवरं मुनिनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतो अस्मि।।

अर्थात् चित्त की शुद्धि के लिए  योग, भाषा की शुद्धि के लिए व्याकरण और शरीर की शुद्धि के लिए वैद्यकशास्त्र देने वाले, मुनिश्रेष्ठ पतंजलि को मै प्रणाम करता हूँ।

पतंजलि की रचनाएं

महर्षि पतंजलि योग विशेषज्ञ होने के साथ एक संस्कृत भाषा के विशेषज्ञ भी थे। वे रशायन शास्त्र के ज्ञाता तथा एक चिकित्सक भी थे। उन्होने संस्कृत भाषा पर तथा वैद्यक (चिकित्सा) पर कई ग्रंथ लिखे है। उन सुप्रसिद्ध ग्रंथ हैं :- महाभाष्य तथा योगसूत्र।

महाभाष्य :--  यह ग्रंथ संस्कृत-व्याकरण पर लिखा गया है। यह अष्टाध्यायी नामक ग्रंथ पर लिखी गई टीका है। यह आज भी 'संस्कृत भाषा व्याकरण' का प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है।

योगसूत्र :-- दूसरी उनकी महान रचना योगसूत्र आधुनिक योग का आधार है। 

योगसूत्र के चार पाद (अध्याय) हैं।

  • समाधि पाद (51 सूत्र)
  • साधना पाद (55 सूत्र)
  • विभूति पाद (55 सूत्र)
  • कैवल्य पाद (34 सूत्र)
आईये आगे देखते हैं कि योगसूत्र के अनुसार योग क्या है?

योगसूत्र के अनुसार योग क्या है?

इस ग्रंथ मे महर्षि पतंजलि ने योग के बारे मे विस्तार से वर्णन किया है। इसमें बताया गया है कि योग क्या है? योग की बाधाएं क्या है? इसमें अष्टांग योग को परिभाषित किया गया है। आईए इसको समझ लेते है कि इस ग्रंथ के अनुसार योग क्या है?

अनुशासन

महर्षि पतंजलि के अनुसार योग एक अनुशासन है। वे योगसूत्र का आरम्भ ही "अथ योगानुशासनम्" से करते हैं। यह उनका प्रथम सूत्र है। योग सूत्र के आरम्भ मे वे लिखते है कि "आईए अब हम योग अनुशासन का आरम्भ करते हैं।" इसका अर्थ है कि वे योग को एक अनुशासन मानते हैं।

योग केवल आसन-प्रणायाम नही है। यदि जीवन अनुशासित है, तो योग है। बिना अनुशासन के योग सम्भव नहीं है। समय पर सोना, समय पर सो कर उठना, उचित खान-पान तथा नियमित योगाभ्यास योग है।

चित्त वृत्तियां

सम्पूर्ण पतंजलि योग "चित्त वृत्तियों के निरोध" पर आधारित है। योगसूत्र के दूसरे सूत्र मे योग की परिभाषा दी गई हैं :- 

योगश्चित्तवृत्ति निरोध:।। 1.2 ।। 

(अर्थ :- चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है।)

पतंजलि योग के अनुसार चित्तवृत्तियों का निरोध करना ही योग है।

आगे के सूत्रों मे चित्त वृत्तियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। बताया गया है कि वृत्तियाँ पाँच प्रकार की है। ये वृत्तियाँ क्लिष्ट और अक्लिष्ट होती हैं।

(देखें :- क्लिष्ट और अक्लिष्ट चित्तवृत्तियाँ क्या हैं)

 चित्तवृत्तियों का निरोध कैसे करें?

आगे के सुत्रों मे चित्तवृत्तियों के निरोध का उपाय बताया गया है। इसके लिए अष्टाँग योग का प्रतिपादन किया गया है। अष्टाँगयोग सपूर्ण योग है। इसमे आठ अंग बताये गये है। 
  1. यम।
  2. नियम।
  3. आसन।
  4. प्राणायाम।
  5. प्रत्याहार।
  6. धारणा।
  7. ध्यान।
  8. समाधि।
चित्तवृत्तियों निरोध के लिए इन आठों अंगो का पालन करना चाहिए। आईए इसके बारे मे विस्तार से जान लेते हैं।

अष्टाँग योग क्या है?

अष्टाँगयोग महर्षि पतंजलि की देन है। इसके आठ अंग बताये गये है। आधुनिक समय मे केवल आसन, प्राणायाम, व ध्यान पर ही जोर दिया जाता है। लेकिन अष्टाँगयोग सम्पूर्ण योग है। 

अधिक जानकारी के लिये देखें:- अष्टाँग योग क्या है?

1. यम (Yama)

पतंजलि-योगसूत्र मे 'साधन पाद' के 30वे सूत्र मे इसे परिभाषित किया गया है। अहिंसासत्यास्तेयब्रमचार्यापरिग्राहा: यमा:।अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचार्य और अपरिग्रह ये पाँच यम (Yama) हैं। इस मे सामाजिक नैतिकता बताई गई है।
ये पाँच प्रकार के है--

  • अहिंसा। 
  • सत्य।
  • अस्तेय।
  • ब्रह्मचार्य।
  • अपरिग्रह।

2. नियम (Niyama)

शौचसंतोषतप: स्वाध्यायेश्वरप्राणिधानानि नियमा:।। 2.32 ।। अर्थात्  शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर-प्राणिधान ये पाँच प्रकार के नियम हैं। ये व्यक्तिगत नैतिक्ता के लिए बताए गये हैं।

  • शौच।
  • संतोष।
  • तप।
  • स्वाध्याय।
  • ईश्वर-प्राणिधान।

3. आसन (Asana)

पतंजलि के योगसूत्र मे आसनो की संख्या नही बताई गई है। इसमे आसन की परिभाषा दी है "स्थिरसुखम् आसनम्"।। 2.46 ।।

इसका अर्थ है स्थिरता पूर्वक और सुख पूर्वक जिस 'पोज' मे बैठ सकते है वह आसन है। साधारण शब्दों में इसका अर्थ यह है कि आप आसनों मे स्थिरता से रुकें और सरलता से आसन करें। 

आसन करते समय शरीर के साथ बल प्रयोग न करें। आसन करते समय अपने शरीर की क्षमता का ध्यान रखे। सरलता से किया गया आसन लाभदायी होता है। स्थिरता के साथ और सुख पूर्वक रुकना ही "आसन" है।

कुछ मुख्य आसन :---

  • सूर्य नमस्कार
  • वज्रासन
  • उष्ट्रासन
  • शशांक आसन
  • अर्धमत्स्येन्द्र आसन
  • सर्वांग आसन
(आसनों की विधि के बारे में जानकारी के लिए हमारे अन्य लेख देखें)

4. प्राणायाम

प्राणायाम का अर्थ है, प्राणों को आयाम देना। इस क्रिया से प्राण सुदृढ होते है। यह श्वासों पर आधारित क्रिया है। इस क्रिया मे श्वास लेने और छोड़ने का सही तरीका बताया जाता है। श्वास को रोकने की विधि बताई जाती है।इस क्रिया से श्वसन प्रणाली, हृदय और फेफड़े सुदृढ होते है। प्राण-शक्ति मे वृद्धि होती है।

प्राणायाम, पतंजलि योग में :- महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र के '2.49वें' सूत्र मे इसे परिभाषित किया है :-

तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।। 2.49 ।। 

(अर्थ :- आसन के सिद्ध हो जाने बाद श्वास लेने व छोड़ने की सहज गति को रोक देना (क्षमता अनुसार) ही प्राणायाम है।)

सूत्र का भावार्थ :- इस सूत्र का साधारण शब्दों मे अर्थ यह है,कि भरे श्वास और खाली श्वास मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकना ही प्राणायाम है। इस स्थिति को कुम्भक भी कहा गया है।

(आगे के सुत्रों मे प्राणायाम की चार अवस्थाएं बताई गई हैं।)

देखें :- प्राणायाम की चार अवस्थाएँ।

कुछ मुख्य प्राणायाम :---
  • कपालभाति
  • अनुलोम विलोम 
  • भस्त्रिका
  • नाड़ी शोधन 
(इन सभी प्राणायामों की जानकारी हमारे अन्य लेखों मे उपलब्द है।)

5. प्रत्याहार

स्वविषयासंप्रयोगे चित्तस्वरुपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहार:।। 2.54 ।। अर्थात् जब इन्द्रियाँ अपने विषयो से सम्बध न होकर। चित्त के वास्तविक रूप मे स्थित हो जाती हैं तो यह प्रत्याहार है।

साधारण शब्दों में प्रत्याहार का अर्थ है, इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना।

6.धारणा

धारणा का अर्थ है, चित्त को शरीर के विशेष स्थान पर केंद्रित करना। योगसूत्र के तीसरे अध्याय के प्रथम सूत्र मे इसका वर्णन है। देशबन्धश्चितस्य धारणा:।। 3.1 ।। 

इन्द्रियों के अन्तर्मुखी हो जाने पर जब साधक प्रत्याहार मे स्थित हो जाता है। उसके बाद चित्त को शरीर के किसी भाग पर केन्द्रित करना ही धारणा है।

7.ध्यान

तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।। 3.2 ।। अर्थात् जिस स्थान पर धारणा को स्थापित किया गया है, उसको एक स्थान पर केन्द्रित करना ध्यान है।

धारणा मे चित्त को एक स्थान पर केंद्रित करने  के बाद, निर्विचार और निराकार भाव मे स्थित होना ध्यान है।

8.समाधि

तदेवार्थमात्रनिर्मासं स्वरूपशून्यमिव समाधि।। 3.3 ।। अर्थात् जब साधक अपने स्वरूप को भूल कर ध्येय (जिसका ध्यान किया जा रहा है) मे लीन हो जाता है, तब यह समाधि की स्थिति होती है।

महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र के तीसरे सूत्र मे इसे परिभाषित किया है। यह योग की पूर्ण स्थिति है। इस में समस्त चित्त वृतियाँ पूरी तरह निरोध हो जाती है।

'अष्टाँग योग' सरल शब्दों में

अष्टाँग योग को सरल शब्दों मे  इस प्रकार 
समझा जा सकता है--

  • उचित और सही खान-पान।
  • अनुशासित जीवन।
  • सामाजिक नैतिकता का पालन।
  • नियमित योगाभ्यास।
योगाभ्यास मे पहले आसन करें। आसन के बाद प्राणायाम और ध्यान करें।

योग कौन कर सकता है?

युवा-वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी व्यक्ति योग कर सकते है। योग सब के लिए है। योग सभी धर्म, जाति व साम्प्रदायों के लिए है। सभी स्वस्थ व्यक्ति योग कर सकते है।

योगाभ्यास करते समय अपनी शारीरिक अवस्था तथा क्षमता का ध्यान रखें। यदि अस्वस्थ हैं तो योगाभ्यास न करें। शरीर की अवस्था के अनुसार आसन-प्राणायाम करें। सरल आसन-प्राणायाम करें। बलपूर्वक कोई क्रिया न करें।

योग किसको वर्जित है?

  • बिमार व्यक्ति स्वस्थ होने के बाद योग कर सकते हैं। 
  • हृदय रोगी, अस्थमा पीङित तथा उच्च रक्तचाप (High BP) वाले व्यक्ति आसन- प्राणायाम धीमी गति से करें। 
  • गर्भवती महिलाएँ तथा ऐसे व्यक्ति जिनका कोई ऑपरेशन (सर्जरी) हुआ है तो वे आसन ना करें।

सारांश :

योग प्राचीन भारतिय जीवन शैली है। आधुनिक योग महर्षि पतंजलि की देन है। आम जनमानस तक पहुँचाने का श्रेय महर्षि पतंजलि को दिया जाता है। योग सूत्र उनकी एक महान रचना है। पतंजलि योग चित्त वृत्तियो के निरोध पर आधारित है। अष्टाँग योग द्वारा इनका निरोध किया जा सकता है।

Disclaimer :

सभी योग क्रियाएँ अपने शरीर की स्थिति व क्षमता के अनुसार ही करें। क्षमता से अधिक तथा बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

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