प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। योग का यह एक ऊर्जादायी अभ्यास है। महर्षि पतंजलि ने सम्पूर्ण योग को सूत्रों द्वारा परिभाषित किया गया है। उनके इस महान ग्रंथ का नाम "योगसूत्र" है। इसके दूसरे अध्याय में प्राणायाम का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह अष्टांग योग का चौथा चरण बताया गया है। योगसूत्र में प्राणायाम की अवस्थाएं कितनी हैं, और इसकी परिभाषा क्या है? प्रस्तुत लेख में आगे यह विस्तार से बताया जाएगा।
- योगसूत्र में प्राणायाम क्या है?
- प्राणायाम की परिभाषा
- प्राणायाम की तीन अवस्थाएं
योगसूत्र में प्राणायाम : परिभाषा तथा अवस्थाएं
प्राणायाम शब्द का अर्थ प्राण को आयाम देना है। 'प्राण शक्ति' का हमारे पूरे शरीर मे संचार होता है। श्वांस को सही प्रकार लेकर हम 'प्राण-शक्ति' को आयाम दे सकते है। अर्थात् श्वांस सही तरीके से लेकर हम अपनी प्राण शक्ति को बढ़ा सकते है। इसी को प्राणायाम कहा गया है।
पतंजलि के योगसूत्र मे प्राणायाम को विस्तार से परिभाषित किया गया है। प्राणायाम क्या है और इसकी कितनी अवस्थाएं हैं? यह योगसूत्र के दूसरे अध्याय मे बताया गया है। इसका वर्णन इस लेख मे आगे किया जायेगा। लेकिन पहले यह देख लेते हैं, कि पतंजलि योग के अनुसार प्राणायाम की परिभाषा क्या है?
(Read this article in English :- What is Pranayama? )
प्राणायाम की परिभाषा योगसूत्र में :
(तस्मिन् सति श्वास प्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम:।)
अर्थ :ऐसा हो जाने के बाद (आसन की सिद्धि हो जाने के बाद), श्वास -प्रश्वांस की सहज गति को (क्षमता अनुसार) रोक देना प्राणायाम है।
सूत्र का भावार्थ : श्वास द्वारा "प्राण वायु" को अन्दर लेने और छोड़ने की क्रिया को श्वांस प्रश्वांस कहा गया है। इस क्रिया को (क्षमता अनुसार) रोक देना ही प्राणायाम है।
इस सूत्र मे तीन विषय महत्वपूर्ण हैं :-
- श्वास
- प्रश्वांस
- गति विच्छेद
ये श्वास की तीन स्थितियां हैं। ये प्राणायाम की तीन अवस्थाएं भी है। अगले सूत्र ("2.50वे" सूत्र) इसका और विस्तार से वर्णन किया गया है। इन तीन अवस्थाओं के विषय को समझ लेते हैं।
1. श्वास (पूरक) :- प्राण-वायु को नासिका से अन्दर भरना 'श्वास' या 'पूरक' कहा गया है।
2. प्रश्वांस (रेचक) :- अन्दर भरे गये श्वास को बाहर निकालना 'प्रश्वांस' या 'रेचक' कहा गया है।
3. गति विच्छेद (श्वास को रोकना) :- भरे श्वास या खाली श्वास की स्थिति मे रुकना गति विच्छेद है। इस अवस्था को कुम्भक कहा गया है। यह अपने श्वासो की क्षमता के अनुसार किया जाना चाहिये। कुम्भक दो तरह के बताये गये है।
- आन्तरिक कुम्भक :-भरे श्वास मे रुकना।
- बाह्य कुम्भक :- खाली श्वास मे रुकना।
प्राणायाम की अवस्थाएं, योगसूत्र में :
(बाह्य आभ्यन्तर स्तम्भ वृत्ति देश काल संख्याभि परिदृष्टो दीर्घ: सूक्ष्म:।)
अर्थ :- बाह्य वृत्ति, आभ्यन्तर वृत्ति तथा स्तम्भ वृत्ति को देश (शरीर मे श्वास की गहराई) तथा समय की ध्यानपूर्वक गणना द्वारा किये जाने से श्वास लम्बा व सूक्ष्म हो जाता है।
इस सूत्र मे प्राणायाम की तीन अवस्थाओं का वर्णन आता है।
- बाह्य वृत्ति।
- आभ्यान्तर वृत्ति।
- स्तम्भ वृत्ति।
1. बाह्य वृत्ति :- श्वास को पूरी तरह बाहर निकाल कर खाली श्वास मे रुकना, बाह्य वृत्ति प्राणायाम है।
2. आभ्यन्तर वृत्ति :- श्वास को अन्दर गहराई तक भरके श्वास रोकना आभ्यन्तर वृत्ति कहा गया है।
3. स्तम्भ वृत्ति :- तीसरी स्थिति पहली दो स्थितियों से अलग है। पहले बताई गई दोनो स्थितियों मे प्रयास करना होता है। लेकिन स्तम्भ वृत्ति मे अधिक प्रयास की अवश्यकता नही होती है। यथा स्थिति में श्वास को रोकना स्तंभ वृत्ति है।
(योगसूत्र में प्राणायाम की चौथी अवस्था भी बताई गई है। लेकिन यह योग के अनुभवी साधकों के लिए है। चौथी अवस्था की पूरी जानकारी के लिए विस्तार से देखें :- चतुर्थ प्राणायाम)