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प्राणायाम, योग की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। इसके वास्तविक लाभ बन्ध और कुम्भक मे ही निहित है। योग  के नियमित अभ्यासी को प्राणायाम मे इनका प्रयोग अवश्य करना चहाए। प्राणायाम मे बंध व कुम्भक का महत्व क्या है? और कैसे लगाए जाते है? यह इस लेख का विषय है।

(Read this article in English :- Bndhas and Kumbhka.)

बन्ध और कुम्भक

विषय सुची :-
  • बंध व कुम्भक का महत्व।
  • श्वास क्या है? तथा श्वास की अवस्थाएँ।
  • कुम्भक क्या है?
  • बंध क्या है?
  • बंध व कुम्भक के लाभ तथा सावधानी।

'बंध' और 'कुम्भक' का महत्व

"श्वसन" हमारे शरीर के लिये महत्वपूर्ण है। इसके लिए हमारे श्वसनतंत्र का सुदृढ होना जरूरी है। कई बार हमारी श्वसन प्रणाली मे अवरोध आ जाते हैं। प्राणायाम इन अवरोधो को दूर करता है। श्वसन प्रणाली को स्वस्थ और सुचारु (Active) रखने के लिए हम प्राणायाम करते है। लेकिन प्राणायाम का वास्तविक लाभ बन्ध व कुम्भक से ही मिलता है।

प्राणायाम मे "कुम्भक" का विशेष महत्व बताया गया है। लेकिन बन्ध के साथ कुम्भक विशेष लाभदायी होता है। "कुम्भक" श्वास की एक अवस्था है। बंध व कुम्भक के बारे मे जानने से पहले हमे "श्वास" के विषय को समझना होगा। यह जानना होगा कि श्वास क्या है? और इसकी कितनी अवस्थाएँ है?

श्वास क्या है? तथा श्वास की कितनी अवस्थाएँ हैं?

श्वास हमारे जीवन की एक महत्वपूर्ण और अवश्यक क्रिया है। यह क्रिया जन्म से लेकर अन्त तक लगातार बिना रुके चलती रहती है। इस क्रिया को श्वसन क्रिया कहा गया है।

प्राणायाम मे श्वासो का बहुत अधिक महत्व है। प्राणायाम श्वासो पर आधारित क्रिया है। यही प्राणों का आधार है। इस क्रिया मे श्वासो को सही तरीके से लेने व छोङने की तकनीक बताई जाती है। प्राणायाम मे श्वासों की कितनी अवस्थाएँ है? इसके बारे मे समझ लेते हैं।

प्राणायाम में श्वास की कितनी अवस्थाएँ हैं?

साधारणतया श्वास को दो अवस्थाएँ होती हैं। ये दो अवस्थाएँ हैं - श्वास लेना और श्वास छोङना। ये दोनो क्रियाएँ दिन-रात, सोते-जागते चलती रहती हैं। यह आजीवन चलने वाली क्रिया है। लेकिन प्राणायाम मे श्वास की तीन अवस्थाएँ हैं। ये तीनो स्थितियाँ प्राणायाम का आधार हैं। ये अवस्थाएँ हैं :- "श्वास लेना", "श्वास छोङना" और "श्वास को रोकना"।

श्वास की तीन अवस्थाएँ :-
  1. पूरक :--  नासिका से 'श्वास का लेना'  पूरक कहा जाता है।
  2. रेचक :--- 'श्वास बाहर छोङना' रेचक कहलाता है।
  3. कुम्भक :--- 'श्वास रोकने' की स्थिति को कुम्भक कहते है। 

प्राणायाम में 'कुम्भक' क्या है?

पतंजलि 'योगसूत्र' मे कुम्भक को ही प्राणायाम बताया गया है। महर्षि पतंजलि प्राणायाम को परिभाषित करते हुये लिखते हैं :-
"तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:" ।। योगसूत्र 2.49।।

अर्थात् - श्वास लेने व छोङने की गति को विराम देना (क्षमता अनुसार रोक देना) प्राणायाम है।

उपरोक्त सूत्र मे "गति विच्छेद" ही कुम्भक है। इस सूत्र मे महर्षि पतंजलि ने कुम्भक को ही प्राणायाम बताया है।

कुम्भक का अर्थ :- 'कुम्भक' शब्द 'कुम्भ' से लिया गया है। कुम्भ का अर्थ है :- घङा (पानी का बर्तन)। यहाँ शरीर की तुलना एक घङे से की गई है। जिस प्रकार खुले जल को घङे मे भरके बाँध दिया जाता है उसी तरह श्वास को रोक कर 'ऊर्जा' को बाँध लिया जाता है। 

कुम्भक हमारे शरीर की ऊर्जा को जागृत करता है। यह ऊर्जा के प्रवाह को सही दिशा देता है। प्राण शक्ति (Prana Energy) की वृद्धि करता है। प्राणिक नाङियों के अवरोधो के दूर करता है।

कुम्भक के प्रकार

श्वास को 'पूरक' या 'रेचक' करने के बाद श्वास को रोकना कुम्भक कहा गया है। यनि कि श्वास रोकने की अवस्था को कुम्भक कहते है। कुम्भक 'खाली श्वास' और 'भरे श्वास' दोनो अवस्थाओ मे लगाया जाता है। 

नये अभ्यासियों के लिये मुख्यत: कुम्भक दो प्रकार के होते हैं।

1. आन्तरिक कुम्भक :--- 'श्वास भर के अंदर  रोकना' आांतरिक कुम्भक है।

2. बाह्य कुम्भक :--- 'श्वास बाहर छोङ' कर खाली श्वास मे रुकना बाह्य कुम्भक है।

(तीसरा कुम्भक कैवेल्य कुम्भक होता है। इसे स्तम्भ वृत्ति भी कहा गया है। यह अप्रयास और स्वत: लगता है। नये अभ्यासी को आरम्भ में पहले दो कुम्भक का अभ्यास करना चहाए।)

कुम्भक के साथ 'बन्ध' का प्रयोग करना अधिक लाभकारी होता है। नियमित अभ्यासी को कुम्भक के साथ 'बन्ध' भी लगाने चहाये। आईये, बन्ध के विषय को समझ लेते हैं।

बंध क्या है? और कैसे लगाएँ?

बंध का शाब्दिक अर्थ है "बांधना" या "रोक लगाना"। जिस प्रकार नदी की बहती जलधारा को "बांध" से रोक कर जल को उचित दिशा देते है। उसी प्रकार प्राणायाम मे हम कुम्भक लगाने के बाद बंध का प्रयोग करते है और "प्राण शक्ति" को सही दिशा देते है।

बंध तीन प्रकार के है:--

1. मूल बंध।

2. उड्डियन बंध।

3. जलंधर बंध।

1. मूल बंध क्या है, और कैसे लगाएँ?

जननेन्द्रिय व निष्कासन अंगों (anus) पर दबाव बनाते हुए ऊपर की ओर खिचाव रखने की क्रिया को मूल बंध कहा गया है। 

मूल बंध को "आँतरिक "व "बाह्य" दोनो कुम्भक अवस्थाओ मे लगाया जाता है। अर्थात् मूल बंध को खाली श्वास तथा भरे श्वास मे बारी-बारी लगाया जाना चहाए।

मूल बंध कैसे लगाएँ?

आंतरिक कुम्भक में :- श्वास का पूरक करें। पूरी तरह श्वास भरने के बाद आंतरिक कुम्भक लगाएँ। मूल बंध लगाने के लिए दोनो निष्कासन अगो पर दबाव बनाएँ तथा ऊपर की ओर खिचाव रखें।

बाह्य कुम्भक में :- श्वास का रेचक करें। पूरी तरह श्वास के खाली होने पर बाह्य कुम्भक लगाएँ। खाली श्वास मे निष्कासन अंगो पर दबाव बनाते हुए ऊपर की ओर खिचाव रखें।

(मूलबंंध को सफलता पूर्वक लगाने के लिये "अश्विनी मुद्रा" का अभ्यास करें।)

देखें :-- अश्विनी मुद्रा क्या है?

2. उड्डियन बंध क्या है, और कैसे लगाएँ?

पेट को अंदर की ओर खीँचने की क्रिया को उड्डियन बंध कहा जाता है। इस क्रिया मे पेट पर दबाव बनाते हुए अंदर की ओर खिचाव रखा जाता है।

उड्डियन बंध कैसे लगाएँ?

यह बंध श्वास की रेचक स्थिति (बाह्य कुम्भक) मे ठीक प्रकार से लगता है। श्वास की पूरक स्थिति (आंतरिक कुम्भक) मे कम लगता है। लेकिन दोनो अवस्थाओ मे लगाने का प्रयास करना चहाए।

3. जालँधर बंध क्या है, और कैसे लगाएँ?

गरदन को आगे की ओर झुका कर ठोडी को सीने से लगाना जालँधर बंध कहा जाता है। इस क्रिया मे गरदन को आगे की ओर झुकाया जाता है।

जालंधर बंध कैसे लगाएँ?

यह बंध दोनो अवस्थाओ मे लगाया जाता है। इस बंध को आंतरिक व बाह्य कुम्भक दोनो दोनो स्थितियो मे लगाना उत्तम है।

त्रीबंध :-- तीनो बंध एक साथ लगाने की स्थिति को त्रिबंध कहा गया है। यह प्राणायाम की उत्तम स्थिति है।

बंध व कुम्भक के लाभ

  • प्राण शक्ति ऊर्ध्वगामी होती है। अर्थात् प्राण शक्ति मूलाधार से सहस्रार की ओर गमन करती है।
  • प्राणिक नाडियाँ शुद्ध होती है। प्राणिक नाङियो के अवरोध दूर होते हैं।

  • श्वसनतंत्र सुदृढ होता है। लंग्स एक्टिव होते हैं।

  • शरीर को आक्सिजन पर्याप्त मात्रा मे मिलती है। आक्सिजन-लेवल सही मात्रा मे रहता है।

  • हृदय को मजबूती मिलती है।

  • शरीर की "रोग प्रतिरोधक क्षमता" (Immunity) की वृद्धि होती है।

सावधानी

कुम्भक मे :- अपनी क्षमता के अनुसार कुम्भक लगाएँ। नये साधक कुम्भक का समय धीरे धीरे बढाए। बल पूर्वक श्वास को न रोकें। सरलता से कुम्भक लगाएँ। आरम्भ मे प्रशिक्षक के निर्देशन मे करे। अस्थमा पीङित, हृदय रोगी कुम्भक न लगाएँ।

बंध मे :- आँत रोगी, पेट का ऑपरेशन हुआ है या पेट मे कोई गम्भीर बिमारी है तो उड्डियन बंध न लगाएँ। गर्भवती तथा महावारी पीरियड्स मे महिलाएँ बंध का प्रयोग न करें।

सारांश :

प्राणायाम के वास्तविक लाभ बंध व कुम्भक लगाने से ही मिलते हैं। लेकिन इनका प्रयोग स्वस्थ व्यक्ति को ही करना चहाए।

Disclaimer :

बन्ध व कुम्भक का प्रयोग केवल प्राणायाम के नियमित अभ्यासी ही करें। नये अभ्यासी इसका प्रयोग न करें। नये अभ्यासी को आरम्भ मे बन्ध व कुम्भक के बिना अभ्यास करना चहाये। कुम्भक अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार लगाएँ। क्रिया को क्षमता से अधिक करना हानिकारक हो सकता है।

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