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सामान्यत: हमारे शरीर  की शक्तियाँ "अधोगामी" होती हैं। अर्थात् ये शक्तियाँ ऊपर से नीचे की ओर विचरण करने वाली होती हैं। इस कारण इन शक्तियों का ह्रास (नुकसान) होता रहता है। और धीरे धीरे शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है। अश्विन मुद्रा एक ऊर्जादायी योग अभ्यास है। इसका अभ्यास शरीर की ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी (नीचे से ऊपर की ओर विचरण करने वाली) करता है। इसका ऊपर की ओर जाना शरीर को ऊर्जावान बनता है। इसके अतिरिक्त इस मुद्रा के और भी कई लाभ हैं। इनका वर्णन आगे इस लेख मे किया जायेगा।

विषय सुची :-

  • अश्विनी मुद्रा क्या है?
  • अश्विनी मुद्रा कैसे करें?
  • लाभ।
  • सावधानियाँ।


शक्ति वर्धक "अश्विनी" मुद्रा क्या है?

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योगाभ्यास में आसनप्राणायाम व मुद्रा (Mudra) बताई गई हैं। ये न केवल शरीर को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि ऊर्जा शक्ति बढाने वाले भी होते हैं। "आसन" शरीर के अंगो को व "प्राणायाम" प्राणों को सुदृढ करते हैं। इसी प्रकार कुछ मुद्रा (Mudra) बताई गई हैं। ये शरीर को ऊर्जा देने वाली क्रिया होती हैं। इन मे क्रियाओं मे अश्विनी मुद्रा (Ashwini Mudra) विशेष प्रभावी है। यह मुद्रा युवाओं की युवा-शक्ति को संरक्षित करती है और वृद्धों के लिए ऊर्जादायी है। अश्विनी मुद्रा क्या है? इसको कैसे करना चाहिए? तथा इसके क्या लाभ हैं? प्रस्तुत लेख मे आगे इन विषयों को विस्तार से बताया जायेगा।

देखें :- ऊर्जा के लिये योगासन

अश्विनी मुद्रा की विधि, लाभ व सावधानी

इस मुद्रा का नाम 'अश्व' से लिया गया है। अश्व का अर्थ है "घोड़ा"। अश्व, "शक्ति" (Power) का प्रतीक है। इसी लिए 'शक्ति' का माप 'अश्व-शक्ति' से किया जाता है। इसका क्या कारण है? पृथ्वी पर तो और भी कई शक्तिशाली प्राणी हैं। फिर अश्व को ही क्यों शक्ति का प्रतीक माना गया है?

प्राचीन समय मे हमारे ऋषियों ने अश्व शक्ति का रहस्य जान लिया था। उन्होने यह अध्ययन किया कि अश्व मल-त्याग (लीद) करने के बाद मल-द्वार को बार-बार संकुचित करता है। इसी क्रिया से इसकी शक्ति की वृद्धि होती है। अत: हमारे ऋषियों ने इस क्रिया का विश्लेषण किया और पाया कि यह क्रिया मानव शरीर के लिए भी शक्ति देने वाली है। 

अश्विनी मुद्रा की विधि :

यह मुद्रा बहुत सरल है। सभी स्त्री-पुरुष, युवा-वृद्ध कर सकते हैं। युवाओं के लिए यह शक्ति बढाने वाली मुद्रा है। यह वृद्धा-अवस्था मे होने वाले कई रोगों मे सहायक होती है। वृद्धों के लिए यह विशेष लाभकारी है।

इस क्रिया में मल-द्वार (Anus) को संकुचित करना और ढीला छोड़ना होता है। संकुचित करते समय ऊपर की ओर बल लगाया जाता है। आईए क्रिया की विधि को विस्तार से जान लेते हैं।

यहां पर दो विधियां बताई जाएंगी। पहली विधि नए योग-अभ्यासी (Beginners) के लिए है। नियमित अभ्यासी, प्रवीण साधक दूसरी विधि से करें।

पहली विधि (नए अभ्यासियों के लिए) :-

  • पद्मासन, सुखासन या किसी अन्य सुखपूर्वक स्थिति मे बैठें। यदि घुटने मोड़ कर बैठने मे परेशानी है तो कुर्सी पर बैठें।
  • रीढ (कमर से ऊपर के भाग) को सीधा रखें। झुक कर न बैठें।
  • दोनो हाथों से घुटनों को पकड़ें। (हाथों को ज्ञान मुद्रा मे भी रख सकते हैं)
  • लम्बा-गहरा श्वास भरें। (श्वास का पूरक करें)
  • पूरा श्वास भरने के बाद श्वास खाली करें। (श्वास का रेचक करें)।
  • श्वास का फिर से पूरक करते हुए, "मल-निष्कासन अंग" (Anus) और "जननेन्द्रिय अंग" पर दबाव बनाएं। और दोनो अंगों को ऊपर की ओर खींचें। श्वास खाली करते हुए अंगों को ढीला छोड़ें फिर श्वास भरें, निष्कासन अंगो का संकुचन करें। और श्वास खाली करते हुए अंगो को ढीला छोड़े। इस प्रकार 5 आवर्तिया करें।
  • इस क्रिया को क्षमता के अनुसार करने के बाद सामान्य स्थिति मे आ जाएं।
  • कुछ देर रुकें। श्वासों को सामान्य करें।
  • यह क्रिया की आरम्भिक स्थिति है। आरम्भ मे कुछ दिन इसका अभ्यास करें। इसका अभ्यास होने के बाद इसे दूसरी विधि से करें।

विशेष :-  नए योग-अभ्यासी (Beginners) आरम्भ में सामान्य श्वास के साथ करें। केवल निष्कासन अंगों का संकुचन व प्रसारण ही करें। अभ्यास होने के बाद ही इस क्रिया को श्वासों के साथ जोड़े।

दूसरी विधि :-

यह क्रिया सुदृढ़ श्वसन वाले नियमित अभ्यासियों के लिए है। इस क्रिया को क्रमशः "भरे श्वास" और "खाली श्वास" की स्थिति में करें। दोनों अवस्थाओं मे निष्कासन अंगो को सिकोड़ कर ऊपर की ओर खींचें, तथा ढीला छोड़ें। आईए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।

  • पद्मासन या सुखासन में बैठें। रीढ को सीधा रखें। हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखे (या हथेलियां पलटकर घुटने पकड़ ले।)
  • लम्बा-गहरा श्वास भरें। भरे हुए श्वास मे इस क्रिया को करें। निष्कासन अंगों का संकुचन करना व ढीला छोड़ना गतिपूर्वक करें। श्वास की क्षमता के अनुसार क्रिया करें। अपनी क्षमता के अनुसार करने के बाद श्वास खाली करें। श्वास सामान्य करें।
  • श्वास सामान्य होने के बाद यही क्रिया खाली श्वास की स्थिति में करें। खाली श्वास की अवस्था में निष्कासन अंगों का संकुचन और प्रसारण करें। पेट को भी आगे पीछे प्रभावित करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। श्वास सामान्य होने के बाद क्षमता अनुसार अन्य आवृत्तियां करें।

इस विधि को केवल योग के नियमित अभ्यासी ही करें। नए अभ्यासी तथा कमजोर श्वसन वाले व्यक्ति इस अभ्यास को कुछ सावधानियों के साथ करें। श्वास-रोगी, पेट-रोग ग्रस्त व्यक्ति यह अभ्यास न करें।

अश्विनी मुद्रा के लाभ :

यह सभी आयु-वर्ग के व्यक्तियों के लिए लाभकारी क्रिया है। यह युवाओं के लिए यौवन शक्ति बढाने वाली क्रिया है। बुजुर्गों की प्राण-शक्ति मे वृद्धि करता है।

  • अश्विनी-मुद्रा स्त्री-पुरुष, युवा-वृद्ध सभी के लिए लाभकारी है।
  • यह प्राण शक्ति को ऊर्ध्वगामी करने वाली क्रिया है। इस को करने से "शक्ति" नीचे से उठ कर ऊपर की ओर विचरण करती है। ऊर्जा का प्रवाह मूलाधार से सहस्रार की ओर हो जाता है।
  • मूल बंध लगाने मे सहायक होती है।
  • यह क्रिया 'ध्यान' 'कुंडलिनी-जागरण' में सहायक है।
  • यह युवाओं के लिए शक्ति वर्धक मुद्रा है।
  • यह गुदा-द्वार (Anus) के रोगों को दूर करने मे सहायक है। बवासीर जैसे रोगों मे लाभकारी है।
  • यह क्रिया अपान प्राण को प्रभावित करती है। इस लिए यह महिलाओं के "जनन अंग" रोगों मे सहायक है। वृद्ध-पुरुषों मे होने वाले प्रोस्टेट रोग (मुत्र-रोग) को नियंत्रित करती है।.

किस समय करें? और कितना करें?

समय :- अश्विनी मुद्रा को करने का उत्तम समय सुबह का है। इसे दिन मे भी किया जा सकता है। खाना खाने के तुरंत बाद इस क्रिया को नही करना चाहिए। इस क्रिया को खाली पेट से ही किया जाना चाहिए।

कितनी मात्रा मे करें :- योग मे प्रत्येक क्रिया अपने शरीर की क्षमता के अनुसार ही करें। उसी प्रकार अश्विनी मुद्रा को भी क्षमता के अनुसार ही करें। आरम्भ मे आवर्तियों की मात्रा कम रखें। धीरे-धीरे अभ्यास को बढ़ाएं। क्रिया को सरलता से करें। बलपूर्वक न करें।

अश्विनी मुद्रा की सावधानियाँ

यह एक सरलता से किए जाने वाली क्रिया है। लेकिन इसको कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए।

  • यदि कोई गम्भीर "गुदा-रोग" है तो इसे नही करना चाहिए।
  • महावारी (पीरियड्स मे) तथा गर्भवती महिलाओ को यह क्रिया नही करनी चाहिएं।
  • उच्च रक्त-चाप वाले व्यक्ति कम आवर्तियाँ करे।
  • हृदय रोगी व श्वास रोगी प्रशिक्षक की देख-रेख मे ही करें। तथा चिकित्सक की सलाह से करें।
  • कमजोर श्वसन वाले व्यक्ति श्वास को बलपूर्वक अधिक देर तक न रोकें।
लेख सार :-

अश्विनी मुद्रा सभी आयु के व्यक्तियों के लिए लाभकारी है। इस को करने की विधि सरल है। इस क्रिया मे मल-द्वार (Anus) तथा जननेन्द्रिय पर दबाव डाल कर ऊपर की ओर खींचना और स्थिल करना (ढीला छोड़ना) होता है।

Disclaimer :-

किसी प्रकार के "रोग का उपचार करना" इस लेख का उद्देश्य नहीं है। अश्विनी मुद्रा के लाभ से अवगत करना ही इस लेख का उद्देश्य है। रोग-ग्रस्त होने पर चिकित्सक से सलाह ले।और ठीक होने के बाद ही क्रिया को करें। क्षमता से अधिक अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

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