ad-1

Dosplay ad 11may

क्या आप नियमित योगाभ्यास करते हैं? क्या  मौसम के अनुकूल प्राणायाम करते हैं? प्राणायाम अष्टाँगयोग की एक उत्तम क्रिया है। इस को आसन के बाद किया जाना चहाए? तथा इसे मौसम के अनुसार ही करना उचित है।

आप प्राणायाम को सर्दी, गर्मी या बरसात प्रत्येक मौसम मे कर सकते हैं। लेकिन कुछ अभ्यास शरद ऋतु मे तथा कुछ गर्मी के मौसम में लाभकारी होते हैं। इनको मौसम के अनुसार करना लाभदायक होता है। मौसम के अनुकूल प्राणायाम कैसे करे? और इनको करना क्यों जरूरी है? इस लेख में इन प्रश्नों का उत्तर दिया जाएगा।

मौसम के अनुसार प्राणायाम

प्राणायाम और अनुकूल मौसम

हमारे शरीर में ऊर्जा का असीमित भण्डार है। लेकिन यह सुषुप्त (Sleeping) अवस्था में होता है। योग इसे जागृत कर सकता है। हमारे शरीर की ऊर्जा ही हमे मौसम के दुष्प्रभाव से बचाती हैं। 

योग के नियमित अभ्यास से यह ऊर्जा जागृत होती है। नये योग अभ्यासी (Beginner) को प्राणायाम मौसम के अनुकूल ही करना चहाए। आइये इसको विस्तार से समझते हैं।

अनुकूल मौसम क्या है?

नियमित योगाभ्यास से हमारे शरीर की ऊर्जा जगृत होती है। शरीर की ऊर्जा ही मौसम के कुप्रभाव से बचाती है। आइये देखते है कि मौसम के अनुकूल प्राणायाम कोनसे हैं?

कुछ प्राणायाम सर्दियों मे तथा कुछ गर्मियों मे लाभकारी हैं। कई प्राणायाम ऐसे है जो प्रत्येक मौसम में किये जा सकते हैं।

मौसम के अनुकूल प्राणायाम क्यो?

योगसूत्र मे महर्षि पतंजलि एक सूत्र देेते हैं :-
ततो द्वद्वानभिघात:।।यो.सूत्र 2.48।।
अर्थात् योग के सिद्ध हो जाने से कोई भी द्वंद्व (सर्दी-गर्मी, सुख-दुख आदि) प्रभावित नही करते हैं। इसका भावार्थ है कि 'सिद्ध-योगी' को मौसम प्रभावित नही करता है। उसके के लिए सभी मौसम अनुकूल होते हैं। इस लिए वे सभी प्राणायाम प्रत्येक मौसम मे कर लेते है। 

लेकिन सामान्य योग-अभ्यासी को मौसम प्रभावित कर सकता है। इस लिए प्राणायाम करते समय मौसम को ध्यान मे रखना जरूरी है। मौसम के अनुसार ही प्राणायाम करने चहाये। क्योकि कुछ प्राणायाम सर्दी मे, और कुछ गर्मी मे अनुकूल होते है। 

मौसम के प्रतिकूल (विपरीत) प्राणायाम से हानि

मौसम के उलट प्राणायाम करना उचित नही है। जो प्राणायाम हमारे शरीर को गर्मी देते है उनको गर्मी के मौसम मे करना हानिकारक हो सकता है। 

इसी प्रकार कुछ प्राणायाम शरीर को शीतलता देने वाले होते हैं। अत: इनको शरद ऋतु मे  करने करने से हानि हो सकती है।

इसलिए यह हमेशा ध्यान रहे की मौसम से प्रतिकूल (उलट) कोई क्रिया न करें।

सर्दियों मे अनुकूल प्राणायाम

शरद ऋतु में हमारे शरीर को अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। अत: इस मौसम मे शरीर को गर्मी देने वाले क्रियाएँ ही करने चहाएँ।

ये प्राणायाम गर्मी के मौसम मे वर्जित हैं। इनको केवल शरद ऋतु मे ही करना लाभकारी है। आइये देखते है कि शरद ऋतु मे कौन से प्राणायाम लाभकारी हैं।

1. भस्त्रिका

शरद ऋतु में किया जाने वाला यह एक उत्तम प्राणायाम है। यह शरीर को ऊर्जा देने वाली क्रिया है।
(विधि, लाभ व सावधानियाँ विस्तार से जानने के लिए हमारे अन्य लेखों का अवलोकन करें)

विधि :--

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें। 
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। 
  • दोनो हाथ घुटनों पर रखें। 
  • दोनों नासिकाओ से श्वास ले और छोडें। श्वास लेना और छोङना तीव्र गति से करें। 
  • पहले धीमि गति से आरम्भ करे। धीरे धीरे गति बढाएँ। 
  • यथा शक्ति क्रिया को करें। 
  • धीरे-धीरे गति को धीमी करे। 
  • यथा शक्ति क्रिया करने के बाद वापिस आएँ। श्वास सामान्य करे।

भस्त्रिका के बाद उज्जायी प्राणायाम अवश्य करें। यह भस्त्रिका के लाभ मे वृद्धि करता है।  (देखें :- उज्जायी प्राणायाम कैसे करें?)

लाभ :--

  • शरद ऋतु में शरीर को ऊर्जा देता है।
  • कफ, वात व पित्त का संतुलन रखताहै।

2. सूर्य भेदी

यह प्राणायाम सूर्य नाड़ी को प्रभावित करता है। सूर्य नाड़ी शरीर को गर्मी (ऊर्जा) देती है। इस प्राणायाम में दांई नासिका से लम्बा गहरा श्वास लेना है। और यथा शक्ति श्वास रोकने के बाद बांई नासिका से श्वास छोड़ना है।

विधि :--

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें। 
  • कमर व गरदन को सीधा रखें। 
  • बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे तथा दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाये।
  • तीसरी उँगली से बाँयी नासिका बन्ध करें। 
  • दाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरें। 
  • यथा शक्ति श्वास को रोकें। और बाँयी तरफ से श्वास खाली करें। 
  • यह एक चक्र पूरा हुआ। दूसरी आवर्ति के लिए फिर दाँयी नासिका से पूरक और बाँयी नासिका से रेचक करें।
  • इसी प्रकार 4 या 5 आवर्तियाँ करें। 
  • अंत में श्वास सामान्य करें।

लाभ :-- 

  • सूर्य नाङी प्रभावित होती है।
  • शरीर को गर्मी मिलती है।
  • चंद्रनाङी के साथ संतुलन स्थापित करती है।
  • निम्न रक्त-चाप (Low-BP) मे लाभकारी है।
  • कफ-दोष मे प्रभावी है।
सावधानी :-- उच्च रक्त-चाप (High BP) वाले व्यक्ति को इसे नही करना चहाए।

(सूर्य भेदी प्राणायाम को विस्तार से जानने के लिए हमारा अन्य लेख देखें)

गर्मियों मे अनुकूल प्राणायाम

गर्म मौसम में हमे शीतलता की जरुरत होती है।इस लिए इस मौसम में शीतलता देने वाली क्रियाएं अवश्य करने चाहिए। इस ऋतु मे कौन से प्राणायाम लाभकारी हैं?

1. शीतली प्राणायाम

यह शरीर को शीतलता देने वाला प्राणायाम है। गर्मी के मौसम मे इसे अवश्य करना चाहिए।

विधि :--

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। 
  • दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में रखें। 
  • आँखे कोमलता से बंद करें। 
  • जीभ को थोङा बाहर निकालें। जीभ को दोनो तरफ से मोङते हुए नली का आकार दें।
  • जीभ की नली से श्वास भरें। 
  • पूरा श्वास भरने के बाद यथा शक्ति श्वास को रोकें। 
  • गरदन झुका कर ठोढी सीने से लगाए (जालंधर बंध)।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद गरदन को सीधा करें।नासिका से श्वास बाहर छोङे।
  • यह एक आवर्ती पूरी हई। दूसरी आवर्ती के लिए जीभ की नली से फिर श्वास भरें। यथा शक्ति आंतरिक कुम्भक मे रुकें। और नासिका से श्वास बाहर निकाले।
  • इस प्रकार 5 आवर्तियाँ करे। या सामर्थ्य के अनुसार करें।
लाभ :--

यह शरीर को शीतलता देने वाला प्राणायाम है। 


2. शीतकारी प्राणायाम

यह भी ग्रीष्म ऋतु का एक अनुकूल प्राणायाम है।

विधि :--
  • पद्मासन या सुविधापूर्वक स्थिति में बैठें।
  • हाथ ज्ञान मुद्रा में और आँखे कोमलता से बंद रखें।
  • ऊपर व नीचे के जबङो (दाँतों) को दबाव डालते हुए बंध करें।
  • जीभ को तालु से लगाएँ। होठ खुले रखें।
  • दाँतो के बीच से श्वास खीँच कर पूरक करे।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद यथा शक्ति आंतरिक कुम्भक तथा जालंधर बंध लगाएँ।
  • सामर्थ्य के अनुसार रुकने के बाद गरदन को सीधा करे। और नासिका से श्वास खाली करे।
  • यह एक आवर्ति पूरी हुई। इसी प्रकार सुविधा के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
  • अंत मे श्वास सामान्य करें।
लाभ :-- यह भी शीतलता देने वाला प्राणायाम है।

3. चंद्रभेदी प्राणायाम

यह चंद्रनाड़ी को प्रभावित करने वाला उत्तम प्राणायाम है। यह नाड़ी शरीर को शीतलता देती है। यह गर्मी के मौसम मे एक अनुकूल प्राणायाम है।

विधि :--

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठें।
  • बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखें।
  • दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनायें।
  • अंगूठे से दाँयी नासिका को बंद करें। बाँयी नासिका (चंद्रनाङी) से लम्बा गहरा श्वास  भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका भी बंद करें।
  • भरे श्वास मे यथा शक्ति रुके।
  • क्षमता के अनुसार रुकने के  बाद दाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। दूसरी आवर्ती के लिए फिर बाँये से श्वास भरें। यथा शक्ति श्वास रोके और दाँये से खाली करें।
  • इसी प्रकार अवश्यकता केअनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
  • अंत में श्वास सामान्य करें।
लाभ :--
  • चंद्रनाथङी प्रभाव में आती है।
  • शरीर को शीतलता मिलती है।
  • सूर्यनाडी के साथ संतुलन कायम करती है।
  • शरीर के पित्त दोष मे लाभकारी है।
  • उच्च-रक्तचाप (High BP) मे लाभकारी है।
सावधानी :--

निम्न रक्त-चाप (Low BP) वाले व्यक्ति इस को न करें। यह प्राणायाम कफ दोष मे भी हानिकारक हो सकता है।

सभी मौसम मे किये जाने वाले प्राणायाम

जो प्राणायाम गर्मियों में वर्जित है, उनको इस मौसम में न करें। तथा सर्दी में वर्जित है, उनको सर्दी मे न करें। बाकी सभी प्राणायाम प्रत्येक मौसम मे कर सकते हैं। कुछ मुख्य प्राणायाम जो प्रत्येक मौसम मे किये जा सकते हैं :--

1. कपालभाति क्रिया।

मुख्यत: यह एक शुद्धि क्रिया है। लेकिन इसे प्राणायाम के तौर पर भी किया जा सकता है। यह क्रिया प्रत्येक मौसम में की जा सकती है। यह  कपाल भाग को प्रभावित करती है।

कपालभाति श्वसनप्रणाली को भी प्रभावित करती है।

विधि :--

  • इस क्रिया को करने के लिए पद्मासन मे बैठना उत्तम है। पद्मासन मे नही बैठ सकते है तो किसी आरामदायक स्थिति मे बैठें। 
  • कमर व गरदन को सीधा रखें। हाथ घुटनो पर और आँखे कोमलता से बंद रखें।
  • सामान्य गति से श्वास का पूरक करे और तीव्र गति से रेचक करें। पेट को अंदर की ओर करते हुए श्वास का रेचक करे। ध्यान केवल श्वास छोङने पर केंद्रित करे।
  • यथा शक्ति क्रिया को करे के बाद वापिस आएँ। श्वास सामान्य करें।
  • कपाल भाति के बाद अनुलोम विलोम अवश्य करें।
लाभ :--
  • इस क्रिया को प्रत्येक मौसम में किया जा सकता है।
  • कपाल भाग की शुद्धि के लिए उत्तम क्रिया है।
  • लंग्स एक्टिव होते हैं।
  • कफ, वात और पित्त में संतुलन रहता है।

2. अनुलोम विलोम।

यह एक सरल प्राणायाम है। इसे प्रत्येक व्यक्ति कर सकता है। कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम अवश्य किया जाना चहाए। 

विधि :-- 

इस प्राणायाम की विधि बहुत सरल है। 

  • पद्मासन मे बैठना उत्तम है। पद्मासन मे नही बैठ सकते है तो सुखासन या कोई भी आरामदायक स्थिति में बैठें। 
  • बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखे।
  • दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बना कर अंगूठे से दाँयी नासिका को बंद करें।
  • बाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरें।
  • बाँयी नासिका को बंद करें। दाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दाँयी तरफ से श्वास भरे।
  • पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अन्य आवर्तियाँ करें।
  • अंत में श्वास सामान्य करें।
लाभ :--
  • कपालभाति के लाभ मे वृद्धि करता है।
  • मस्तिष्क प्रभावित होता है।
  • श्वसनतंत्र सुदृढ होता है।
  • सूर्यनाङी और चंद्रनाङी में संतुलन कायम होता है।
यह एक सरल प्राणायाम है। इसे सभी प्रकार के मौसम में किया जा सकता है।

3. भ्रामरी

यह भी एक सरल प्राणायाम है। इसको प्रत्येक ऋतु मे किया जा सकता है।

विधि :--

  • पद्मासन या सुविधाजनक स्थिति में बैठें।
  • दोनो हाथों को कोहनियों से मोङें।
  • दोनो हथेलियाँ चेहरे के सामने लेआएँ।
  • पहली दो उंगलियाँ आँखों के सामने रखें।
  • नीचे की दो उँगलियाँ नासिका के नीचे होठो के सामने रखें।
  • दोनो अंगूठों से दोनो कान के छिद्र इस प्रकार बंद करें कि बाहर की आवाज सुनाई न दे।
  • लम्बा गहरा श्वास भरें (श्वास का पूरक करें)।
  • कण्ठ से उं.उं.उं.--- की ध्वनि का गुंजन करें। मुँह को बंद रखे।
  • ध्वनि तब तक करे जब तक कि श्वास पूरी तरह खाली (रेचक) हो जाए।
  • श्वास पूरी तरह खाली होने पर फिर श्वास का पूरक करें। तथा श्वास के रेचक होने तक गुंजन करें।
  • सुविधा के अनुसार आवर्तियाँ करें।
  • यह ध्यान रहे कि केवल अपने गुंजन की आवाज ही सुनाई दे।
लाभ :--
  • श्रवण -शक्ति में वृद्धि होती है।
  • शाँति का अनुभव  होता है।
  • मस्तिष्क प्रभाव में आता है।

4. नाङीशौधन।

यह प्राणिक नाङियों का शौधन करने वाला उत्तम प्राणायाम है। इसे रोज किया जा सकता है।

विधि :--
  • पद्मासन या सुविधापूर्वक स्थिति में बैठें।
  • बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखें।
  • दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाकर अंगूठे से दाँयी नासिका बंद करें।
  • बाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरें।
  • पूरी तरह शवास भरने के बाद बाँयी नासिका को भी बंद करें।
  • श्वास रोक कर आंतरिक कुम्भक लगाएँ।
  • श्वास को क्षमता के अनुसार रोकने के बाद दाँयी तरफ से श्वास खाली करे।
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दाँयी नासिका से श्वास का पूरक करें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद दाँयी नासिका को बंद करे। और बाँयी तरफ से श्वास खाली (रेचक) करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई।
  • इसी तरह क्षमता के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
लाभ :--
  • प्राणिक नाङियों का शौधन होता है।
  • फेफङे (Lungs) सक्रिय होते है।
  • श्वसन प्रणाली सुदृढ होती है।
  • शरीर को Oxygen पर्याप्त मात्र मे मिलने से हृदय को पुष्टि मिलती है।
सावधानी :-- 

यदि श्वासों की स्थिति ठीक नही है तो कुम्भक न लगाएँ। श्वास रोगी तथा हृदय रोगी इसको न करें।

सारांश :--

योगाभ्यास में मौसम के अनुकूल प्राणायाम करने चहाए। अपने प्राणायाम ग्रुप मे कम से कम एक प्राणायाम मौसम के अनुकूल अवश्य करना चहाए। मौसम के प्रतिकूल (उलट) क्रिया हानिकारक हो सकती है। अत: जिस मौसम मे जो क्रिया वर्जित है उसे नही करनी चहाए।

Disclaimer :--

किसी प्रकार का रोग उपचार हमारा उद्देश्य नहीं है। हमारा उद्देश्य केवल योग के प्रति जागृति पैदा करना है। सभी योग क्रियाएँ अपने शरीर की क्षमता अनुसार करें।

Post a Comment