आसन और प्राणायाम योग के महत्वपूर्ण अंग हैं। इन दोनों का अभ्यास स्वास्थ्य के लिए लाभदाई होता है। लेकिन प्रश्न यह है कि इन दोनों में से पहले कौन सा अभ्यास करना उचित है? पहले आसन का अभ्यास करें, या प्राणायाम का? कुछ योग प्रशिक्षक प्राणायाम का अभ्यास पहले करवाते हैं। लेकिन कई योगाचार्य पहले आसन का अभ्यास करने का निर्देश देते हैं। इन दोनों में क्या सही है, आज के लेख में इसी विषय पर आगे विचार करेंगे।
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योगाभ्यास में पहले आसन या प्राणायाम?
जैसा कि आप जानते हैं कि योग मूलतः एक आध्यात्मिक क्रिया है। इसे आज स्वास्थ्य के लिए एक उत्तम विधि माना जाता है। स्वास्थ्य हेतू योगाभ्यास में आसन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास किया जाना चाहिए। इस अभ्यास में "आसन" बाह्य शरीर (Outer Body) को, "प्राणायाम" आंतरिक शरीर (Inner body) को और "ध्यान" मन (Mind) को प्रभावित करते हैं।
इस अभ्यास को सही क्रम से करना अधिक लाभदाई होता है। प्राचीन योग ग्रंथों के अनुसार योगाभ्यास का आरम्भ आसन से करना ही उचित माना गया है।
देखें :- योगाभ्यास का सही क्रम
पहले आसन क्यों?
योगाभ्यास स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाने वाली क्रिया है। इसलिए पहले आसन का अभ्यास किया जाना चाहिए। यह अभ्यास स्थूल शरीर को प्रभावित करता है। (भौतिक शरीर को स्थूल शरीर कहा गया है, जो दृश्य है।)
इसके बाद प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करते हैं। (स्थूल शरीर को संचालित करने वाली प्राणऊर्जा को सूक्ष्म शरीर कहा गया है। यह शरीर अदृश्य होता है।)
देखें :- स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर क्या हैं?
हालांकि, कुछ योग प्रशिक्षक आसन से पहले प्राणायाम अभ्यास करने का निर्देश देते हैं। प्राणायाम के बाद आसन का अभ्यास करवाते हैं। ये उनका विशिष्ट प्रशिक्षण हो सकता है। लेकिन प्राचीन योग ग्रंथों के अनुसार योगाभ्यास का आरम्भ आसन से ही करना चाहिए। आसन के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना उचित है।
योग ग्रंथों के अनुसार सही क्रम
प्राचीन भारतीय योग ग्रंथों में पहले आसान के अभ्यास का निर्देश दिया गया है। आसन के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना उचित बताया है। अंत में ध्यान का अभ्यास करने को कहा गया है। यह योगाभ्यास का पारंपरिक व सामान्य क्रम है।
हठ योग प्रदीपिका : हठ योग प्रदीपिका के अनुसार प्राणायाम से पहले शारीरिक स्थिरता और शुद्धि आवश्यक है। इसलिए प्राणायाम से पहले आसन का निर्देश दिया है। आसन का अभ्यास रक्त संचार को व्यवस्थित करता है तथा एकाग्रता से शरीर को प्राणायाम के लिए तैयार करता है।
घेरंड संहिता :- इस ग्रन्थ में भी प्राणायाम से पहले षट्कर्म व आसन-अभ्यास की सलाह दी गई है। आसन का अभ्यास शरीर को ऊर्जावान बनाता है और प्राणायाम के लिए मन को एकाग्र करता है।
पतंजलि योग-सूत्र :- महर्षि पतंजलि को योग का जनक कहा गया है। योगसूत्र उनका एक महान ग्रन्थ है। इसमें अष्टांगयोग को संपूर्ण योग बताया है। आठ अंगों वाले इस अष्टांगयोग में यम-नियम पहला चरण है। आसन और प्राणायाम को क्रमशः दूसरा व तीसरा स्थान दिया गया है।
देखें :- अष्टांगयोग क्या है?
पतंजलि योग के अनुसार यम-नियम का पालन करते हुए पहले आसन का अभ्यास करना चाहिए। आसन के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना उचित है।
योग शास्त्रों के अनुसार सही विधि
योग शास्त्रों के अनुसार सही विधि इस प्रकार है :-
आइए इनको विस्तार से समझ लेते हैं।
1. आसन का अभ्यास
योगाभ्यास की शुरुआत आसन के अभ्यास से करें। यह शरीर को मजबूती देता है और आंतरिक अंगों को सक्रिय करता है। यह अभ्यास अपने शरीर की क्षमता अनुसार करना चाहिए।
प्रभाव :-
- बाह्य अंगों की मजबूती।
- आंतरिक अंगों को सक्रिय करता है।
- रक्त संचार को व्यवस्थित करता है।
- शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।
- प्राणायाम के लिए मन को एकाग्र करता है।
कौनसे आसन का अभ्यास करें :- सभी व्यक्तियों के शरीर की स्थिति अलग-अलग होती हैं। इसलिए सभी व्यक्तियों को यह अभ्यास अपने शरीर की स्थिति के अनुसार करना चाहिए। जो आसन आप सरलता से कर सकते हैं, उस का अभ्यास अवश्य करें। जिस आसन की स्थिति में अधिक देर तक रुक सकते हैं, वह आपके लिए लाभकारी होता है। कठिन आसन हानिकारक हो सकते हैं।
सावधानी :- आसन का अभ्यास अपने शरीर की क्षमता अनुसार करना चाहिए। सरलता से किए जाने वाले अभ्यास लाभकारी होते हैं। बलपूर्वक तथा क्षमता से अधिक अभ्यास करना हानिकारक हो सकता है।
2. प्राणायाम का अभ्यास
आसन के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। यह योग का एक श्वसन अभ्यास है। अत: यह अभ्यास अपने श्वास की स्थिति के अनुसार करना चाहिए।
प्रभाव :-
- श्वसन तंत्र को सुदृढ़ करता है।
- ऑक्सीजन की आपूर्ति को पर्याप्त मात्रा में करता है।
- हृदय को स्वस्थ रखता है।
- प्राण शक्ति की वृद्धि करता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है।
- शरीर के तत्वों व रसायनों को संतुलित करता है।
- रक्तचाप को नियमित करता है।
कौनसे प्राणायाम का अभ्यास करें?
यह योग का श्वसन अभ्यास है। क्योंकि सभी व्यक्तियों के श्वास की स्थिति अलग-अलग होती है। इस लिए प्राणायाम का अभ्यास सभी व्यक्तियों को अपने श्वास की क्षमता के अनुसार करना चाहिए।
सामान्यत: किए जाने वाले अभ्यास :-
- कपालभाति
- अनुलोम विलोम
- भ्रामरी
- नाड़ी शोधन
कुम्भक का अभ्यास :- श्वास को कुछ देर रोकने की अवस्था को कुम्भक कहा गया है। यही वास्तविक प्राणायाम है। प्राणायाम के लाभ कुम्भक से ही प्राप्त होते हैं। लेकिन यह अभ्यास अपने श्वास की क्षमता से अधिक नहीं करना चाहिए।
सावधानी :-
- यह अभ्यास अपने श्वास की क्षमता अनुसार ही करें।
- बलपूर्वक अधिक देर श्वास न रोकें।
- नए अभ्यासी कम अवधि का कुम्भक लगाएं।
- श्वास रोगी व कमजोर श्वसन वाले व्यक्ति यह अभ्यास न करें।
- हृदय रोगी तथा हाई बीपी वाले व्यक्ति केवल सरल अभ्यास करें।
3. ध्यान (Meditation)
आसन व प्राणायाम के बाद ध्यान का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। ध्यान ही योग का मूल उद्देश्य है। आसन-प्राणायाम के बाद मन स्थिर और एकाग्र हो जाता है।
ध्यान का अभ्यास कैसे करें :
- प्राणायाम का अभ्यास करने के बाद यह अभ्यास करें।
- पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठें।
- रीढ़ को सीधा रखें।
- आँखें बंद रखें।
- दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रखें।
- शांत मन तथा एकाग्रता से कुछ देर इस स्थिति में बैठें।
- ध्यान को आज्ञाचक्र (माथे के बीच) में स्थिर करें।
- कुछ देर ध्यान अवस्था में बैठने के बाद वापिस आ जाएं। सीधे लेट कर कुछ देर विश्राम करें।
प्रभाव :- यह अभ्यास मन को शांत और स्थिर करता है। यह मानसिक शांति देने वाला अभ्यास है।
सावधानी :- योगाभ्यास के अंत में ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। बैठने की स्थिति का सही चयन करें। रीढ़ को सीधा करके बैठें।
सारांश:
योगाभ्यास में पहले आसन, आसन के बाद प्राणायाम और अंत ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। यह योग शास्त्र अनुसार सही विधि है।
Disclaimer:
योग का अभ्यास अपने शरीर की स्थिति और क्षमता अनुसार करना चाहिए। क्षमता से अधिक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।