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हमारे ऋषि-मुनियों ने शरीर का गहन अध्यन किया है। उन्होने हजारों वर्ष पहले शरीर के बारे मे सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त कर लिया था। शरीर के बारे मे जो ज्ञान वे हजारों वर्ष पहले प्राप्त कर चुके थे, आधुनिक शरीर विज्ञान वहाँ तक आज भी नही पहुँच सका है। आधुनिक शरीर-विज्ञान की पहुँच केवल मात्र भौतिक शरीर तक ही है। हजारों वर्ष पूर्व भारतीय योग गुरुओ ने बता दिया था कि शरीर क्या है? शरीर को योग कैसे प्रभावित करता है? प्रस्तुत आलेख मे इस विषय पर चर्चा करेंगे कि शरीर कितने प्रकार के है? क्या योग शरीर को प्रभावित करता है।

विषय सुची :--

  • शरीर क्या है? योग का शरीर पर प्रभाव। 
  • शरीर के प्रकार।
  • योग शरीर को कैसे प्रभावित करता है।

body and yoga

शरीर क्या है? योग का शरीर पर प्रभाव। 

आधुनिक शरीर-विज्ञान "शरीर" को केवल एक भौतिक देह (Physical Body) ही मानता है। योग की भाषा मे इसे स्थूल शरीर कहा गया है। लेकिन योग के अनुसार शरीर की परिभाषा बहुत व्यापक है। 

योग Physical Body की तो बात करता ही है, लेकिन उस से आगे की बात भी करता है। योग मे बताया गया है कि शरीर क्या है, और शरीर कितने प्रकार के हैं। तथा यह भी बताया गया है कि योग शरीर को कैसे प्रभावित करता है?

योग मे विस्तार से बताया गया है कि तीनो शरीर अलग नहीं है। सम्पूर्ण शरीर मे पाँच कोषों का आवरण है। आईये यह जान लेते है कि शरीर क्या है?

शरीर क्या है?

समस्त ब्रह्माण्ड पाँच तत्वो से निर्मित है। उसी प्रकार हमारा शरीर भी पाँच तत्वों से बना है। ये पाँच तत्व हैं, आकाश, वायु, अग्नि, जल, व पृथ्वी। हमारा शरीर भी ब्रह्माण्ड की तरह ही है।

पँचतत्वों से निर्मित यह शरीर तीन प्रकार का है।

  1. स्थूल शरीर।
  2. सूक्ष्म शरीर।
  3. कारण शरीर।

ये तीनों शरीर एक दूसरे से अलग नहीं हैं। ये तीनों एक ही हैं तथा ये एक दूसरे को प्रभावित भी करते हैं। आईये इन तीनों शरीरों के बारे में विस्तार से जान लेते है।

1. स्थूल शरीर Physical Body.

हाड, माँस का बना यह शरीर जो दिखाई देता है, उसे स्थूल शरीर कहा गया है। यही शरीर जनम लेता है, सुख-दुख को अनुभव करता है। यही युवा अवस्था तथा वृद्धावस्था को प्राप्त होता है। मृत्यु भी इसी शरीर की होती है।

स्थूल शरीर की विशेषताएँ :--

  • यह दिखाई देने वाला शरीर है। यह Visible Body है। सभी दिखाई देने वाले आंतरिक व बाह्य अंग स्थूल शरीर है। 
  • यही शरीर माँ के गर्भ से जनम लेता है। बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था को प्राप्त होता है। इसी को नाम से जाना जाता है। मृत्यु भी इसी की होती है।
  • जिन पाँच तत्वों से ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है, यह शरीर भी उन ही पँचतत्वों से निर्मित है। ये पँच तत्व हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल, व पृथ्वी।
  • यह शरीर अन्न (Food) द्वारा पोषित है। इसलिए इसे अन्नमय शरीर भी कहा गया है। क्योकि इसका पोषण अन्न से होता इस लिए 'अन्न' स्थूल शरीर प्रभावित करता है।
  • यह स्थूल शरीर ही रोगग्रस्त (बिमार) होता है।
  • यह अन्न तथा मन (चित्त) से प्रभावित होता है।
  • इस शरीर को योगासन से प्रभावित किया जा सकता है।

सूक्ष्म शरीर क्या है?

यह दिखाई न देने वाला शरीर है। अर्थात् यह Invisible Body है। यह शरीर इतना सुक्ष्म है कि इसे किस यंत्र से भी नही देखा जा सकता है। 

जिस प्रकार हम विद्युत उपकरणों को तो देख सकते है लेकिन उन मे प्रवाहित विद्युत को नही देख सकते। 

रेडियो, TV तथा इनके पार्टस को तो देखा जा सकता है लेकिन इनमे संचार करने वाली तरंगों को देखना असम्भव है। 

इसी प्रकार हम स्थूल शरीर को तो देख सकते हैं लेकिन सूक्ष्म शरीर को देखना असम्भव है।

सूक्ष्म शरीर की विशेषताएँ :--

  • यह अत्यन्त सूक्ष्म है।
  • इस शरीर के 17 अंश बताए गये हैं। पाँच प्राण, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, मन व बुद्धि ये सूक्ष्म शरीर के अंश हैं।
  • सूक्ष्म शरीर का अस्तीत्व स्थूल शरीर के बिना नही है। और स्थूल शरीर का अस्तीत्व भी सूक्ष्म शरीर के कारण ही है। 
  • यह स्थूल शरीर की तरह नाश्ववर नहीं है।
  • यह मनोमय कोष भी है।
  • स्थूल शरीर व सुक्ष्म शरीर दोनो एक दूसरे को प्रभावित करते है।
  • प्राणायाम व ध्यान से इस को प्रभावित किया जा सकता है।

कारण शरीर।

यह स्थूल व सूक्ष्म दोनो का बीज रूप है। यह इन दोनो का कारण है। इसी लिए इसको कारण शरीर कहा गया है।

शरीर को योग कैसे प्रभावित करता है?

स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर दोनो को योग द्वारा प्रभावित किया जा सकता है।

योग का स्थूल शरीर पर प्रभाव।

सभी सांसारिक कार्य स्थूल शरीर से ही किये जाते है। इसके बिना जीवन सम्भव नही है। यह स्थूल शरीर ही रोगग्रस्त होता है। इसी लिए योग मे इसको स्वस्थ रखने पर अधिक ध्यान दिया गया है।

लेख मे आगे उन विषयों पर चर्चा करते हैं जो स्थूल शरीर को पर प्रभाव डालते हैं। ये है, आहार, विचार, शुद्धि क्रियाएँ तथा आसन-प्राणायाम।

आहार का प्रभाव।

क्योकि स्थूल शरीर अन्न द्वारा निर्मित और पोषित है। इसलिए आहार इसे सीधा प्रभावित करता है। योग मे आहार का महत्व पूर्ण स्थान है।

योग के लिए शाकाहार उत्तम आहार बताया गया है।आहार संतुलित हो तथा अनुशासित हो, यह योग के लिय जरूरी है।

विचारों का प्रभाव।

हमारे विचार भी शरीर को प्रभावित करते है।अष्टाँगयोग के अरम्भ मे यम-नियम मे बताया गया है कि हमारा आचरण कैसा हो। इस लिए योग साधक को यम-नियम का पालन अवश्य करना चहाए। ये मनुष्य के चरित्र-निर्माण मे सहायक हैं।

योग मे यह बताया गया है कि ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध आदि को शरीर के लिए हानिकारक बताया गया है। इसी लिए अष्टाँगयोग में यम-नियम को पहले रखा गया है।

शुद्धि क्रियाएँ।

शरीर मे आने वाले अवरोधो तथा अशुद्धियों को दूर करने के लिए षट्कर्म बताए गये हैं। आसन-प्रणायाम से पहले ये शुद्धि क्रियाएँ करना अवश्यक है। शुद्धि क्रियाओ के लिए ये षट् कर्म बताए गये है--

  • धोति-- इस क्रिया में पाचन तंत्र के लिए कुंजल तथा वस्त्र धोति के बारे मे बताया गया है। भोजन नली मे आने वाले अतिरिक्त अम्ल व पित्त को इस क्रिया से बाहर निकाला जाता है।
  • वस्ति-- आँतों की स्वच्छता के लिए।
  • नेति-- नासिका व कण्ठ क्षेत्र की शुद्धि के लिए जलनेति व सूत्रनेति करें।
  • त्राटक-- नेत्र की पेशियों के लिए तथा एकाग्रता के लिए।
  • नोली-- उदर रोगों के लिए।
  • कपालभाति-- कपाल भाग की शुद्धि के लिए कपालभाति करे।

आसन का प्रभाव।

स्थूल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योगासन अवश्यक है। आसन से भी अंग प्रभाव मे आते है। शरीर के आंतरिक अंग किडनी, लीवर, व पेनक्रियाज सक्रिय होते है। इनके सक्रिय होने के कारण शरीर के सभी राशायन संतुलित रहते है।

आसन से शरीर के हारमोंस का संतुलन बना रहता है। रक्तचाप (BP) व सुगर सामान्य रहता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की वृद्धि होती है।

मुख्य आसन।

आसन अपने शरीर की क्षमता व अवस्था के अनुसार करें। नये अभ्यासी कठिन आसन न करे। सरलता से किये गये आसन लाभदायी होते हैं। पहले आसन करें। आसन के बाद प्राणायाम करें। (देखें :- आसन-प्राणायाम का सही क्रम क्या है?)

1. हस्त पाद आसन।
2. त्रिकोण आसन।
3. कटि चक्रासन।
4. पश्चिमोत्तान आसन।
5. अर्ध मत्स्येन्द्र आसन।
6. वज्रासन।
7. भुजंग आसन।
8. सर्वांग आसन।

(सभी आसनो के बारे मे जानकारी के लिए हमारे अन्य लेख देखें)

सूक्ष्म शरीर।

दोनो शरीर एक दूसरे को प्रभावित करते है। जो क्रियाए स्थूल शरीर के लिए करते है वे सूक्ष्म शरीर को भी प्रभावित करती है। 

प्राणायाम का स्थूल शरीर पर प्रभाव।

प्राणायाम एक श्वासों पर आधारित क्रिया है। यह श्वसन क्रिया को सुदृढ करती है। यह क्रिया लंग्स को एक्टिव रखती है। प्राणायाम शरीर के ऑक्सीजन लेवल को ठीक रखता है। इस कारण यह हृदय को मजबूती देने वाली क्रिया है।

इसके नियमित अभ्यास से रक्त-संचार अच्छी स्थिति मे रहता है। इस से रक्त चाप सामान्य रहता है। यह क्रिया कफ, वात व पित्त मे संतुलन रखती है।

प्राणायाम का सूक्ष्म शरीर पर प्रभाव।

सूक्ष्म शरीर विशेषत: प्राणायाम द्वारा प्रभावित किया जा सकता है। प्राणायाम श्वासों की क्रिया है। यह सूक्ष्म शरीर को  प्रभावित करती है।

प्राण सूक्ष्म शरीर का एक घटक है तथा  प्राणायाम से प्राणो का विस्तार होता है। प्राणायाम प्राण शक्ति को प्रभावित करता है

यह मनोमय कोष भी है। प्राणायाम से मन की एकाग्रता बढती है। मन के प्रभावित होने से सूक्ष्म शरीर भी प्रभावित होता है।

मुख्य प्राणायाम।

नये अभ्यासी को आरम्भ मे सरल प्राणायाम करने चहाये। सरलता से किये गये प्राणायाम लाभदायी होते है। अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही क्रिया को करें।

1. कपालभाति।
2. अनुलोम विलोम।
3. भस्त्रिका।
4. नाङीशौधन।

(प्राणायाम के बारे मे अधिक जानकारी के लिए हमारे अन्य लेख देखें)


ध्यान  Meditation.

ध्यान के द्वारा भी सूक्ष्म शरीर तो प्रभावित किया जा सकता है। ध्यान एक ऐसी क्रिया है जिस से मन को एकाग्र किया जाता है। मन को अन्तर्मुखी करने की क्रिया है।

आसन व प्राणायाम करने के बाद ध्यान  की अवस्था मे आने पर चित्त की वृतियों का निरोध होने लगता है। इस लिए ध्यान सूक्ष्म शरीर पर गहरा प्रभाव डालता है।


सारांश :--
शरीर तीन प्रकार के हैं :-- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। आसन द्वारा स्थूल शरीर तथा प्राणायाम व ध्यान से सूक्ष्म शरीर को प्रभावित किया जा सकता है।

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