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अस्थमा या दमा एक श्वसन रोग है। अनियमित दिनचर्या, प्रदूषित वातावरण तथा धुम्रपान इसका मुख्य कारण बनते हैं। नियमित योग इसके लिये प्रभावी है। स्वस्थ व्यक्ति के लिए नियमित योग इस रोग से बचाव मे सहायक होता है। लेकिन रोग पीड़ित व्यक्ति को कुछ सावधानियों के साथ योग करना चाहिए। अस्थमा (दमा) के लिये योग (Yoga for Asthma) क्या है? और रोग पीड़ित व्यक्ति योग कैसे करें? ये सब इस लेख मे बताया जायेगा।

विषय सुची :-

• स्वस्थ व्यक्तियों के लिये योगाभ्यास।
• आरम्भिक श्वास रोगी के लिये योगाभ्यास।
• गम्भीर रोगी के लिये योगाभ्यास।
श्वसन के लिये प्रभावी आसन।
श्वसन के लिये लाभदायी प्राणायाम।

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दमा (श्वास रोग) और योग। Yoga for Asthma.

दमा (Asthma) एक श्वास रोग है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार श्वसन-नलिकाओं मे अवरोध आने के कारण यह रोग होता है। अनियमित जीवनशैली, प्रदुषण तथा धुम्रपान जैसे कई कारण हैं, जो हमारे श्वसनतंत्र व लंग्स को प्रभावित करते हैं। इनके प्रभावित होने पर कफ (बलगम) एकत्रित होने लगता है। श्वास लेने मे परेशानी होने लगती है।

इस के लिये योग एक विशेष प्रभावी क्रिया है। योगाभ्यास में आसन प्राणायाम दोनो लाभदायी हैं। लेकिन योगाभ्यास करते समय अस्थमा पीड़ित व्यक्तियों को कुछ सावधानियां रखनी चाहिए श्वास रोगी योगाभ्यास कैसे करे, इसे समझ लेते हैं।

श्वास रोगी योगाभ्यास कैसे करें?

श्वास रोगों से बचाव के लिये योग कैसे किया जाये, यह समझने के लिये हम इस लेख को तीन श्रेणियों मे विभाजित करेंगें :-

1. स्वस्थ व्यक्ति
2. आरम्भिक रोगी
3. गम्भीर रोगी

1. स्वस्थ व्यक्तियों के लिये योगाभ्यास

स्वस्थ व्यक्ति को नियमित योगाभ्यास करना चाहिए। यह श्वास रोगों से बचाव करने मे सहायक होता है। योगाभ्यास मे पहले "आसन" किये जाने चाहिएं। आसन के बाद "प्राणायाम" करना उत्तम है।

आसन :- आसन करते समय श्वासों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। श्वास छोड़ते हुए आसन की स्थिति मे जाएं। पूर्ण स्थिति मे पहुंच कर खाली श्वास मे कुछ देर रुकें (क्षमता अनुसार)। यदि आसन की पूर्ण स्थिति मे अधिक देर तक रुकना है तो श्वासों को सामान्य करके रुकें। श्वास भरते हुए स्थिति से वापिस आएँ। वापिस आने पर श्वासों को सामान्य करें।

प्राणायाम :-  प्राणायाम एक श्वसन अभ्यास है। यह श्वसनतंत्र तथा फेफड़ों को स्वस्थ करने वाली क्रिया है। यह क्रिया श्वसनतंत्र मे आने वाले अवरोधों को हटाने मे सहायक होती है। नियमित प्राणायाम श्वसन रोगों के लिए  लाभदायी हैं।

योगाभ्यास करते समय सावधानियां :

स्वस्थ व्यक्ति अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार सभी आसन-प्राणायाम कर सकते हैं। लेकिन नये योग-अभ्यासियों (Beginners) को योगाभ्यास करते समय कुछ सावधानियां रखनी चाहिए।

पहले आसन का अभ्यास करें, आसन के बाद प्राणायाम करें। 
• अपनी क्षमता के अनुसार अभ्यास करें।
• केवल "सरल आसन" व "सरल प्राणायाम" ही करें।
• एक आसन करने के बाद अगला आसन करने से पहले कुछ देर विश्राम करें।
प्राणायाम क्रिया लगातार न करें। एक क्रिया करने के बाद श्वासों को सामान्य करें।
यदि श्वास की स्थिति ठीक है तो *कुम्भक का प्रयोग करें।
(*कुम्भक :- अपनी क्षमता के अनुसार श्वास को अन्दर या बाहर रोकने की स्थिति को "कुम्भक" कहा जाता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें :- रेचक,पूरक व कुम्भक क्या है। )

2. आरम्भिक श्वास रोगी के लिये।

अस्थमा के आरम्भिक रोगी के लिये योग लाभदायी है। लेकिन आसन व प्राणायाम सावधानी से किये जाने चाहिएं। असावधानी से किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

अस्थमा (दमा) के आरम्भिक रोगी ये सावधानियां अवश्य रखें।

सावधानियां :

चिकित्सक द्वारा बताई गई औषधि का सेवन करते रहें।
• योग-प्रशिक्षक के निर्देशन मे अभ्यास करें।
चिकित्सक की सलाह से अभ्यास करें।
• "कठिन आसन" व "कठिन प्राणायाम" न करें।
सीमित संख्या मे अभ्यास करें।
तनाव वाले आसन न करें।
प्राणायाम मे कुम्भक न लगाएं। बिना कुम्भक का प्राणायाम करें। श्वासों की स्थिति को ध्यान मे रखें।
लगातार अभ्यास न करें। एक अभ्यास करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। 

3. गम्भीर श्वास रोगी के लिये योग।

गम्भीर श्वास रोगी के लिये योग क्रियाएं वर्जित हैं। ऐसे व्यक्तियों को योगाभ्यास या कोई व्यायाम नही करना चाहिए। ऐसी स्थिति मे चिकित्सा सहायता लें और चिकित्सक की अनुमति से कुछ सुक्ष्म अभ्यास करें। 

सूक्ष्म अभ्यास :- खड़े हो कर या बैठ कर धीरे-धीरे हाथों व पैरों को गति पूर्वक हिलाएं। धीरे-धीरे जोड़ों की मूवमैंट करें।
पैदल टहलना :- गम्भीर हृदय रोग पीड़ित व्यक्ति के लिये धीमी गति से टहलना उत्तम है।
लम्बे-गहरे श्वास :- श्वास के गम्भीर रोगी को प्राणायाम नही करना चाहिएं। ऐसे व्यक्तियो के लिये लम्बे व गहरे श्वास का अभ्यास लाभदायी होता है।
अनुलोम-विलोम :- यह एक सरल प्राणायाम है। चिकित्सक की अनुमति से इसका अभ्यास कर सकते हैं। बांई नासिका द्वार से श्वास भरना दांए से खाली करना। दांए से श्वास भरके बांए से खाली करना। यह अनुलोम विलोम है।

सरल आसन करें।

आसन को परिभाषित करने के लिये पतंजलि योगसूत्र मे कहा गया है :- स्थिरसुखम् आसनम्। 

अर्थात् स्थिरता से और सुखपूर्वक किये गये आसन ही लाभदायी होते हैं। अत: जिस आसन को करने मे सुख का अनुभव हो वही आसन करना चाहिए। कष्ट देने वाले आसन न करें।

सरल आसनों की सुची :

ताड़ आसन :- बिछे हुए आसन (योगा सीट) पर खड़े हो जाएं। हाथों को ऊपर करें। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की खींचें। हाथ, गरदन व रीढ को थोड़ा पीछे की ओर झुकाएं। श्वास छोड़ते हुए हाथों को नीचे ले आएँ।

हस्त पाद आसन :- ताड़ासन के बाद हस्त पाद आसन का अभ्यास करें। श्वास भरते हुए हाथो को ऊपर की ओर खींचे। श्वास खाली करते हुये आगे की ओर झुकें। घुटने सीधे रखें। हाथों को पैरों के पास नीचे टिकाने का प्रयास करें। सिर के घुटनों के पास ले जाने का प्रयास करे। कुछ देर खाली श्वास (या श्वास को सामान्य करके) रुकें और श्वास भरते हुए ऊपर उठें। हाथों को नीचे ले आयें।

• कमर चक्रासन :- आसन (सीट) पर पैर सीधे करके बैठें। दोनो पैरों को अधिकतम दूरी पर रखें। कमर से झुकते हुए क्रमश: दांया हाथ बांए पैर के पास, बांया हाथ दांए पैर के पास ले जाये। दूसरे हाथ की स्थिति पीठ पर रखें। यह अभ्यास करते समय श्वास छोड़ते हुए नीचे झुकें, और श्वास भरते हुए ऊपर उठें। क्षमता अनुसार अभ्यास करने के बाद हाथ पीछे टिका कर विश्राम करें।

• पश्चिमोत्तान आसन :- कमर चक्रासन के बाद पश्चिमोत्तान आसन करें। दोनो पैरो को एक साथ रखें। दोनों हाथ घुटनों पर, रीढ व गरदन को सीधा रखें। श्वास भरते हुए दोनो हाथों को ऊपर करें। श्वास छोड़ते हुए आगे झुक कर पैरों के पंजे पकड़ने का प्रयास करें। माथा घुटनो के पास ले जाये। पूर्ण स्थिति मे खाली श्वास या श्वास सामान्य करके रुकें। श्वास भरते हुए वापिस आये। श्वास सामान्य करते हुए विश्राम करें। 

वज्रासन :- दोनो पैरों को मोड़ कर घुटनों के बल बैठें। पंजे मिले हुए तथा एड़ियां खुली रखें। दोनो एड़ियों के बीच मध्य भाग को टिका कर बैठें। रीढ व गरदन को सीधा तथा दोनो हाथ घुटनों पर रखें।

• भुजंग आसन :- पेट व सीने के बल लेट जाये। दोनो पैरों को एक साथ मिला कर रखें। माथा नीचे टिकाएं तथा हाथों को मोड़ कर हथेलियां सिर के दांए बांए रखें। गरदन को पीछे करते हुए सिर को ऊपर उठाये। श्वास भरते हुए सीना ऊपर उठायें। अधिकतम ऊपर उठने के बाद श्वास सामान्य करके रुकें। स्थिति से वापिस आएँ और विश्राम करें।

मकर आसन :- पीठ के बल लेटें। दोनो पैर मोड़ कर घुटने ऊपर की ओर रखें। हाथों को दांए-बांए सीधा करें। भरे श्वास मे क्रमश: दोनो घुटनों को दांए-बांए नीचे टिकाएं। गरदन को घुटनों से विपरीत दिशा मे रखें। दो या तीन आवर्तियां करने के बाद पैरों को सीधा करें।

पवन मुक्तासन :- पीठ के बल लेटे रहें। दोनो घुटनों को मोड़ें। श्वास भरें और दोनों हाथों से घुटनों को पेट की ओर दबाएं। श्वास खाली करते हुए माथा घुटनों के पास ले जाएं। श्वास सामान्य करके कुछ देर रुकें और वापिस आ जाये।
शवासन :- सभी आसनों का अभ्यास करने के बाद शवासन मे विश्राम करें। पीठ के बल सीधे लेटें। शरीर को तनाव रहित ढीला छोड़ दें। श्वासों को सामान्य रखें। आँखें बंध रखे। पूरे शरीर पर ध्यान को केन्द्रित करें।

(योगासन के अभ्यास की पूरी जानकारी के लिए  देखें :- आसन का सही क्रम)

सावधानियां :

ये आसन केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं।
• आरम्भिक श्वास रोगी आसन सावधानी से करें। चिकित्सक की सलाह के बिना आसन न करें।
• गम्भीर श्वास रोगी आसन का अभ्यास न करें।

सरल प्राणायाम :

प्राणायाम अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार करें। बलपूर्वक अभ्यास न करें। सरलता से किया गया अभ्यास लाभदायी होता है।

सरलता से किये जाने वाले प्राणायाम :-

• कपालभाति
• अनुलोम विलोम प्राणायाम
• भ्रामरी प्राणायाम।
• नाड़ी शोधन प्राणायाम

(इन प्राणायाम क्रियाओं की सही विधि, लाभ और सावधानियों के बारे मे विस्तार से जानने के लिये  देखें :- ऊर्जादायी प्राणायाम)

सावधानियां :

ये प्राणायाम स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं।
आरम्भिक श्वास रोगी सावधानी से करें।
गम्भीर श्वास रोगी ये प्राणायाम न करें।

लेख सारांश :

नियमित योगासन श्वास रोगों से बचाव करते हैं। लेकिन श्वास रोगी को योगाभ्यास सावधानी से करना चाहिए तथा चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।

Disclaimer :-

यह लेख चिकित्सा हेतू नही है। इस लेख का उद्देश्य केवल योग क्रियाओं के लाभ व सावधानियों के बारे मे बताना है। लेख मे बताए गये आसन-प्राणायाम स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। रोग पीड़ित व्यक्ति चिकित्सा सहायता अवश्य लें। श्वास रोग पीड़ित बिना चिकित्सक की सलाह के योगाभ्यास न करें।

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