प्राणायाम योग की एक उत्तम क्रिया है। यह एक ऊर्जादायी श्वसन अभ्यास है। यह "अष्टांगयोग" का चौथा चरण है। इसका नियमित अभ्यास श्वसन तंत्र सुदृढ़ करता है। यह शरीर को ऊर्जा देने वाला अभ्यास है। स्वास्थ्य के लिए प्राणायाम का क्या महत्व है? Pranayam for health क्या है? इसकी विधि, स्वास्थ्य लाभ (Health benefits) व सावधानियां क्या हैं? प्रस्तुत लेख मे यह विस्तार से जानकारी दी जायेगी।
- प्राणायाम क्या है?
- प्राणायाम पतंजलि के अनुसार।
- प्राणायाम की तीन अवस्थाएं।
- सही विधि।
- मुख्य अभ्यास।
- प्राणायाम के स्वास्थ्य लाभ। Health Benefits.
प्राणायाम, इसके स्वास्थ्य लाभ व सावधानियां
योगाभ्यास मे यह एक उच्च कोटी की क्रिया है। यह श्वास पर आधारित अभ्यास है। इस क्रिया में श्वास लेने-छोड़ने और श्वास रोकने की उचित तकनीक बताई जाती है। यह क्रिया श्वसन तंत्र को मजबूत करती है और फेफड़ों को सक्रिय रखती है।
प्राणायाम से प्राणशक्ति (Prana energy) की वृद्धि होती है। इस क्रिया से श्वसनतंत्र के अवरोध दूर होते हैं। इस के नियमित अभ्यास से शरीर को Oxygen पर्याप्त मात्रा मे मिलती है। Oxygen पर्याप्त मात्रा मे मिलने से हृदय स्वस्थ रहता है। इसके स्वास्थ्य लाभ बहु आयामी हैं। इसकी विधि तथा लाभ जानने से पहले, प्राणायाम क्या है, इसको समझ लेते हैं।
प्राणायाम की परिभाषा योगसूत्र के अनुसार :
प्राणायाम, 'प्राण' (Prana) और 'आयाम' (Aayama) दो शब्दों से मिल कर बना है। 'प्राण' का अर्थ है, ऊर्जा-शक्ति जो हमारे शरीर संचारित होती है। 'आयाम' का अर्थ है, एक निश्चित उंचाई या लक्ष्य। यह अभ्यास प्राण ऊर्जा को आयाम देकर निश्चित उंचाई तक ले जाता है।
यह श्वासों पर आधारित क्रिया है। इस मे श्वासों का अधिक महत्व है। सामान्यत: दिन-रात हम जो श्वास लेते-छोड़ते हैं, वे बहुत छोटे-छोटे होते हैं। ये शरीर के लिये पर्याप्त नही होते है। प्राणायाम से इसकी पूर्ति की जा सकती है।
'प्राणायाम' पतंजलि के अनुसार :
परिभाषा का अर्थ :-- आसन की सिद्धि हो जाने पर "श्वास लेने" व "छोड़ने" की सहज गति को स्थिर करना (रोकना) प्राणायाम है। अर्थात् जो प्राणवायु श्वास द्वारा अन्दर भरते है। और प्रश्वांस द्वारा बाहर छोड़ते हैं, उसकी गति सामान्य होती है। जब हम इस सहज गति को अन्दर या बाहर रोक लेते हैं, तो यह प्राणायाम है।
(परिभाषा सरल शब्दो मे :- लम्बे-गहरे श्वास लेना व छोड़ना तथा क्षमता अनुसार श्वास रोकना प्राणायाम है)
इस सूत्र मे महर्षि पतंजलि श्वांस-प्रश्वांस और गति विच्छेद का वर्णन करते हैं। अर्थात् प्राणायाम मे तीन विषय महत्वपूर्ण हैं।
- श्वास :- प्राणवायु को अन्दर भरना। यह पूरक स्थिति है।
- प्रश्वांस :- भरे हुए श्वास को बाहर निकालना। यह रेचक स्थिति है।
- गति विच्छेद :- श्वास को अन्दर या बाहर रोकना। यह कुम्भक स्थिति है।
प्राणायाम की तीन अवस्थाएं :
महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम की तीन अवस्थाएं बताई हैं। वे साधन पाद के 50वें सूत्र मे इसको परिभाषित करते हैं।
बाह्य आभ्यन्तर स्तम्भवृति देश काल संख्याभि: परिदृष्ट: दीर्घ सूक्ष्म:।। 2.50 ।।
सूत्र का अर्थ :-- बाह्य वृत्ति, आभ्यन्तर वृत्ति और स्तम्भ वृत्ति, ये प्राणायाम की तीन अवस्थाएं है। इनको देश (श्वास के स्थान की स्थिति), काल (श्वास लेने-छोड़ने का समय) और संख्या (गणना) पूर्वक करने से श्वास दीर्घ व सूक्ष्म हो जाता है। (अर्थात्, प्राण-शक्ति सुदृढ हो जाती है)।
इस सूत्र में प्राणायाम की तीन अवस्थाएं बताई गई हैं।
1. बाह्य वृत्ति :- श्वास को पूरी तरह बाहर छोड़ना बाह्य वृत्ति है। इसको रेचक भी कहा जाता है। रेचक स्थिति मे श्वास को बाहर रोकते हैं तो इसे बाह्य कुम्भक कहा जाता है।
2. आभ्यन्तर वृत्ति :- प्राणवायु को गहराई से अन्दर भरना आभ्यन्तर वृत्ति है। इसे पूरक स्थिति भी कहा जाता है। पूरक स्थिति में श्वास रोकने को आन्तरिक कुम्भक कहा गया है।
3. स्तम्भ वृत्ति :- पहले बताई गई दोनो अवस्थाओं का सफलता पूर्वक अभ्यास होने के बाद यह अवस्था आती है। श्वास जिस स्थिति मे है (अन्दर या बाहर), श्वास को स्थिर कर देना स्तम्भ वृत्ति है। इसे कैवल्य कुम्भक भी कहा गया है।
देश :- यहां देश का अर्थ स्थान से है। इसमें हमे यह देखना है कि नासिका द्वारा लिया गया श्वास कितनी गहराई (स्थान) तक जाता है।
काल :- काल का अर्थ वह 'समय' है, जो श्वास अंदर लेने व बाहर निकलने मे लगता है। अर्थात् हमे यह देखना है कि पूरक व रेचक मे कितना समय लग रहा है।
संख्या :- संख्या का अर्थ 'गणना' से है। पूरक व रेचक मे जब कुम्भक लगाया जाता है, उसमे लगने वाले समय की गणना करे।
इस प्रकार किये गए प्राणायाम से प्राण 'दीर्घ' (लम्बे) और 'सूक्ष्म' होते हैं। अर्थात् प्राण-शक्ति सुदृढ हो जाती है।
(प्राणायाम की चौथी अवस्था :- बाह्याभ्यन्तर विषयाक्षेपी चतुर्थ: ।।2.51।।)
प्राणायाम कैसे करें?
स्वास्थ्य लाभ के लिए सही विधि से प्राणायाम करना चाहिए। पतंजलि योग मे बताया गया है कि आसन के बाद ही इसका अभ्यास किया जाना चाहिए। पहले आसन करें और आसन के बाद प्राणायाम का अभ्यास करें। यदि श्वास की स्थिति ठीक है तो कुम्भक का प्रयोग करें। प्राणायाम के लाभ कुम्भक से ही मिलते हैं।
यदि आप प्राणायाम के सुरुआती (Beginner) है, तो बिना कुम्भक के प्राणायाम करें। आरम्भ में सरल प्राणायाम करें। कुम्भक का अभ्यास धीरे धीरे बढाएं।
प्राणायाम विधि :
- प्राणायाम करने के लिए "पद्मासन" या "सुखासन" में बैठ जाएं।
- हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें और आंखें कोमलता से बन्द कर लें।
- धीरे धीरे लम्बा व गहरा सांस ले, यथा शक्ति सांस को अंदर रोके "आन्तरिक कुम्भक" मे कुछ देर रुकें।
- अब धीरे धीरे सांस का 'रेचक' करे और "बाह्य कुम्भक" मे रुकें।
- यह एक आवर्ती हुई। नये साधक इस प्रकार चार-पांच आवर्तियां करें और धीरे धीरे अभ्यास बढाएं।
- प्रवीण साधक कुम्भक के साथ "बन्धों"का प्रयोग करें। श्वासों को सामान्य करें।
- आगे बताए गये प्राणायाम विधिपूर्वक करें।
नये साधकों के लिए मुख्य प्राणायाम
नीचे बताये गये प्राणायाम नियमित करें तथा इसी क्रम से करें।
प्राणायाम के करने के बाद श्वाँसो को सामान्य करे। कुछ देर निर्विचार हो कर ध्यान की स्थिति मे बैठें। आंखें बंद रखते हुए ध्यान को आज्ञा चक्र मे केन्द्रित करे।
प्राणायाम के स्वास्थ्य लाभ Health Benefits
- प्राणायाम से श्वसन प्रणाली सुदृढ होती है। अस्थमा जैसे रोगों से बचाव होता है। फेफड़े (Lungs) सक्रिय रहते हैं।
- शरीर को आक्सीजन पर्याप्त मात्रा मे मिलती है। हृदय स्वस्थ रहता है।
- प्राण-शक्ति मे वृद्धि होती है। प्राणिक नाड़ियों का शौधन (शुद्धि करण) होता है। इस क्रिया से प्राणिक नाड़ियों के अवरोध दूर होते हैं।
- रक्त-चाप (BP) सामान्य रहता है।
- कफ, वात व पित्त का संतुलन (बैलेंस) बना रहता है।
- नियमित प्राणायाम करने से 'सुगर' तथा शरीर के अन्य 'रसायन' सही मात्रा मे रहते है।
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (IMMUNITY) बढती है। इस कारण हमारा शरीर रोगों से लड़ने मे सक्षम होता है।
सावधानियां :
- प्राणायाम अपने शरीर की क्षमता के अनुसार करें।
- कुम्भक लगाते समय अपने श्वासों की स्थिति का विशेष ध्यान रखें।
- आरम्भ मे सरल प्राणायाम करें। कुम्भक कम लगाएं।
- श्वास रोगी और हृदय रोगी कुम्भक न लगाएं।
- श्वासों के साथ बल प्रयोग न करें। अभ्यास को धीरे-धीरे बढाएं।
सारांश : "प्राणायाम" योग की एक उत्तम क्रिया है। यह स्वास्थ्य के लिये लाभकारी है। महर्षि पतंजलि ने "योगसूत्र" मे सरलता से परिभाषित किया है। प्राणायाम को आसन करने के बाद किया जाना चाहिए। अनुभवी साधकों को कुम्भक का प्रयोग करना चाहिए। नये साधक कुम्भक का प्रयोग सावधानी से करें।
Disclaimer :
किसी प्रकार के रोग का उपचार करना लेख का विषय नही है। लेख का उद्देश्य केवल प्राणायाम की जानकारी देना है।