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भस्त्रिका प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अभ्यास है। यह प्राणायाम फेफङों व श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। शरीर के Oxygen Level तथा Immunity को बढाने वाला प्राणायाम है। शरद ऋतु मे यह विशेष लाभकारी है। इस लेख मे हम आपको बताएँगे कि भस्त्रिका प्राणायाम का सही तरीका, लाभ व सावधानियाँ क्या हैं? और यह भी बताया जायेगा कि इसको सही क्रम से कैसे किया जाये।


लेख में जानकारियाँ :-
  • भस्त्रिका प्राणायाम क्या है?
  • प्राणायाम करने का सही तरीका।
  • प्राणायाम के तीन चरण।
  • सावधानियाँ।
  • प्राणायाम के लाभ।

भस्त्रिका प्राणायाम क्या है?

भस्त्रिका का अर्थ है धौकनी। धौकनी एक चमङे से बना थैले जैसा यंत्र होता है। लुहार इस धौकनी से अपनी भट्ठी की अग्नि को प्रज्वलित करता है। यह प्राणायाम भी धौकनी की तरह काम करता है। इस प्राणायाम से हमारे शरीर का अग्नि-तत्व प्रभावित होता है। इस प्राणायाम में श्वास को धोकनी की तरह तीव्र गति से लेते और छोङते है। इसलिये इसका नाम भस्त्रिका प्राणायाम है।

कपालभाति प्राणायाम मे श्वास सहज गति से भरा जाता है और तीव्र गति से बाहर निकाला जाता है। लेकिन भस्त्रिका प्राणायाम  में श्वास लेने और  छोङने की गति तीव्र होती है। अर्थात् तीव्र गति से लम्बा और गहरा श्वास भरते है और तीव्र गति से ही पूरा  श्वास खाली करते हैं। आईये देखते है कि भस्त्रिका प्राणायाम का सही तरीका व लाभ क्या हैं? Bhastrika Pranayam Kya hai?

भस्त्रिका प्राणायाम कैसे करें?

भस्त्रिका प्राणायाम के लिये पद्मासन या सुखासन में बैठें। कुछ योग गुरू और योग-विशेषज्ञ इस प्राणायाम को एक चरण मे ही करवाते है। लेकिन इस प्राणायाम को तीन चरणों में किया जाना अधिक उत्तम है।
भस्त्रिका प्राणायाम तीन चरणों मे किया जाता है।

पहला चरण :

इस प्राणायाम के पहले चरण मे सूर्यनाङीचंद्रनाङी को बारी-बारी प्रभावित किया जाता है। पहले तीव्र गति से "श्वास लेने-छोङने" की क्रिया दाँयी नासिका से करें। उसके बाद श्वास सानान्य करके यही क्रिया बाँयी नासिका से करें। 

विधि :

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें।

  • दोनो हाथ ज्ञानमुद्रा में, कमर व गरदन सीधी तथा आँखे कोमलता से बन्द रखें। 
  • श्वासों को सामान्य करें।
  • बाँयी हथेली पलट कर बाँया घुटना पकङे।
  • दाँये हाथ को प्राणायाम मुद्रा रखते हुये नासिका के पास ले जाँये। (प्राणायाम मुद्रा :- अंगूठे के साथ वाली पहली और दूसरी उँगली मोङे और नासिका के पास इस प्रकार रखें कि अँगूठा नासिका के दाँयी तरफ और सीधी उँगली नासिका के बाँयी तरफ रहे।)


  • उँगली से हल्का दबाव बनाते हुए बाँयी नासिका बन्द करे और दाँयी तरफ से श्वास तीव्र गति से ले और छोङें। (सूर्यनाङी को प्रभावित करें।)
  • गति अपनी सामर्थ्य के अनुसार रखे।10-15 श्वास (या अपनी क्षमता के अनुसार करने) के बाद एक लम्बा श्वास भरे।
  • दाँयी नासिका बन्द करते हुए कुछ देर श्वास को अन्दर रोके और बाँयी तरफ से खाली कर दे। श्वास को सामान्य करें। नासिका को रुमाल से साफ करें।

  • श्वास सामान्य करने के बाद यही क्रिया दाँयी नासिका बंद करके बाँयी तरफ से करें। बाँयी नासिका से श्वास तीव्र गति से ले और छोङे। (चंद्र नाङी) को प्रभावित करें।
  • 10-15 श्वास (या अपनी क्षमता के अनुसार) क्रिया को करें। और लम्बा गहरा श्वास भरें।सामर्थ्य के अनुसार श्वास रोकें और दाँयी तरफ से श्वास खाली करे।
  • श्वासों को सामान्य करें। नासिका को साफ करे।

यह भस्त्रिका प्राणायाम  का पहला चरण पूरा हुआ। 

 दूसरा चरण :

दूसरे चरण में दाँयी नासिका से श्वास का पूरक और बाँये से रेचक। तथा बाँये से पूरक और दाँये से रेचक करें। इस क्रिया को गति से करें।

विधि :

  • दूसरे चरण के लिए फिर से दाँये हाथ से वही मुद्रा बनाएँ।
  • अब दाँये से श्वास भरें,बाँयी तरफ खाली करे। बाँये से भरें दाँये से खाली करे।
  • गति धीरे-धीेरे बढाएँ। सामर्थ्य के अनुसार करें और दाँयी तरफ श्वास छोङते हुए वापिस आएँ।
  • दोनो हाथ घुटनों पर रखें।

श्वासों को सामान्य करें। भस्त्रिका प्राणायाम का यह दूसरा चरण पूरा हुआ।

तीसरा चरण :

यह प्राणायाम का अंतिम चरण है। इसमे दोनो नासिकाओ से श्वास का पूरक व रेचक करें। धीमी गति से आरम्भ करे। गति को धीरे धीरे बढाते जाँये। प्राणायाम से वापिस आने की स्थिति मे गति को धीमि करते जाये। वापिस आने के बाद श्वास सामान्य करें।

विधि :

  • अन्तिम चरण के लिए दोनो हाथों से घुटनों को पकङे।
  • पीठ व गरदन को सीधा रखें।
  • आँखें कोमलता से बन्द करें।
  • दोनो नासिकोओ से श्वास गति से ले और छोङे। पहले धीमि गति से आरम्भ करे। तथा गति को बढाते जायें।
  • सामर्थ्य के अनुसार करने के बाद लम्बा श्वास भरें और श्वास को अपनी क्षमता के अनुसार रोकें। 
  • कुछ देर रुकने के बाद श्वास पूरी तरह खाली करें और खाली श्वास मे त्रिबंध लगा कर कुछ देर तक रुके।
  • वापिस आ जाएँ। श्वासों को सामान्य करे।

यह प्राणायाम का तीसरा चरण पूरा हुआ। इस प्राणायाम के बाद श्वासो को सामान्य करे। श्वास सामान्य होने के बाद उज्जायी प्राणायाम अवश्य करें। यह भस्त्रिका के लाभ मे वृद्धि करने वाला प्राणायाम है।

सावधानियाँ :

यह प्राणायाम सभी स्वस्थ स्त्री-पुरुष, युवा-वृद्ध कर सकते है। नये साधको को आरम्भ मे धीमी गति से करना चहाए। 

गति को धीरे धीरे बढाएँ । प्राणायाम के साधक को शुद्धि क्रियाओ को करना चहाए। नासिका मे कोई रुकावट ना हो इसके लिए "जलनेति" करे।

किस को वर्जित है? 

  • यह प्राणायाम केवल सर्दी के मौसम मे ही करें। गर्मियों मे इसको नही करना चहाए।
  • अस्थमा पीडित, हृदय रोगी इस प्राणायाम को न करें।
  • गर्भवती महिलाओ के लिए यह प्राणायाम वर्जित हैं।
  • ऐसे व्यक्ति जिनके पेट की हाल ही मे कोई सर्जरी हुई हो वे इस प्राणायाम को न करे।
  • उच्च रक्तचाप वाले या तो धीमी गति से करे या प्रशिक्षक, चिकित्सक की सलाह से करें। 
  • जो व्यक्ति इस प्राणायाम को नही कर सकते हैं, वे केवल अनुलोम विलोम करे।

प्राणायाम के लाभ :

  • इस प्राणायाम से कफ, वात और पित्त तीनो मे समन्वय (Balance) बना रहता है
  • ईङा, पिंगला और सुषुमना तीनो नाङी प्रभावित होती है।
  • लंग्स और श्वसन प्रणाली सुदृढ होती है।
  • आक्सीजन प्रयाप्त मात्रा मे मिलने के कारण हृदय को मजबूती मिलती है।
  • तीव्र गति से श्वास छोङते समय कार्बन्डाईऑक्साईड के साथ हानिकारक तत्व बाहर निकलते है।
  • रक्तचाप सामान्य रहता है।
  • बन्ध लगाने से शक्तियाँ उर्ध्वगामी होती है।
  • शरद ऋतु का यह सर्वोत्तम प्राणायाम है।

सारांश :

यह प्राणायाम श्वसनतंत्र को सुदृढ करने के लिए एक सर्वोत्तम क्रिया है। यह प्राणायाम शरद ऋतु मे विशेष लाभकारी है। इस प्राणायाम को गर्मी के मौसम मे नही किया जाना चहाये।

Disclaimer :- यह प्राणायाम केवल नियमित योग अभ्यासी व स्वस्थ-श्वसनतंत्र वाले व्यक्तियों के लिये है। इस क्रिया को लेख मे बताये गये नियम व सावधानियो के साथ करें। आरम्भ मे नये व्यक्ति इस क्रिया को प्रशिक्षक की देख-रेख मे ही करें।

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