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अनुलोम विलोम प्राणायाम एक सरल तथा लाभकारी अभ्यास है। कपालभाति के बाद मे इस प्राणायाम के विशेष लाभ हैं, अत: इसे कपालभाति के बाद अवश्य किया जाना चहिए। यह प्राणायाम नाड़ी शोधन का ही एक रूप बताया गया है। लेकिन ये दोनो क्रियाएं अलग-अलग हैं। अनुलोम-विलोम प्राणायाम क्या है? यह कैसे किया जाना चाहिये? इसके लाभ क्या हैं? और यह प्राणायाम "नाड़ी शोधन" से अलग क्यो है? प्रस्तुत लेख में इन सभी की जानकारी दी जायेगी।

(English Version of this article :- What is Anulom Vilom?)

विषय सूची
  • अनुलोम-विलोम प्राणायाम क्या है?
  • अनुलोम-विलोम के लाभ।
  • अनुलोम-विलोम की विधि।
  • अनुलोम-विलोम व नाड़ी शोधन मे अन्तर।

अनुलोम विलोम

अनुलोम-विलोम क्या है?

अनुलोम-विलोम दो शब्दों से मिल कर बना है, अनुलोम और विलोम। अनुलोम का अर्थ है 'सीधा' और विलोम का अर्थ है 'उल्टा'। हमारे नाक मे दो नासिका द्वार है - दांया (सीधा) और बांया (उल्टा)। इस प्राणायाम मे दोनो नासिकाओं से बारी बारी श्वास लेते और छोड़ते है। यह दोनो नासिकाओं को प्रभावित करने वाला प्राणायाम हैं, इस लिये इसे अनुलोम-विलोम कहा गया है।

(यदि नासिका रुकी हुई है तो प्राणायाम करने से पहले जलनेति करके अवरोध दूर करे)

अनुलोम-विलोम का महत्व तथा लाभ

अनुलोम-विलोम एक सरलता से किया जाने वाला प्राणायाम है। सभी व्यक्ति इसको सरलता से कर सकते हैं। यह एक लाभकारी प्राणायाम है। योगाभ्यास मे इसका विशेष महत्व है।

महत्व

श्वास लेने के लिये प्रकृति ने हमे दो नासिका द्वार दिए हैं। इन दोनो का अपना महत्व है। बांए नासिका द्वार को "चन्द्र नाड़ी" और दाएं नासिका द्वार को "सूर्य नाड़ी" कहा गया है। बांई नासिका शरीर को शीतलता देती है। दांई नासिका शरीर को ऊर्जा (ताप) देने वाली होती है।

शरीर के लिये 'ताप' एवम् 'शीतलता' दोनो आवश्यक हैं। लेकिन कई बार अवरोध आने के कारण ये असंतुलित हो जाती हैं। अनुलोम-विलोम प्राणायाम इन दोनो को संतुलित करने मे सहायक होता है। यह कपालभाति के अभ्यास से आई हुई ऊर्जा को संतुलित करता है। इसलिये कपालभाति के बाद इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिये।

(देखें :-  कपलभाति कैसे करे।)

अनुलोम-विलोम से लाभ

  • श्वसनतंत्र और फेफड़े (Lungs) सुदृढ होते है।
  • पर्याप्त मात्रा मे आक्सीजन मिलने से हृदय को शक्ति मिलती है।
  • सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी के प्रभावित होने से शरीर मे शीतलता व उष्णता (गर्मी) का संतुलन (बैलेंस) बना रहता है।
  • प्राण शक्ति (एनर्जी) में वृद्धि होती है।
  • इस प्राणायाम से मस्तिष्क सक्रिय होता है।
  • यह अभ्यास श्वास रोगों मे सहायक होता है।
  • इस अभ्यास से नाड़ियों का शोधन होता है।
  • 'ईड़ा' और 'पिंगला' सक्रिय होती है। यह प्राणायाम 'सुष्मना' जागृत करने मे सहायक होता है।

अनुलोम-विलोम कैसे करना चाहिए 

अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि बहुत सरल है। इसका अभ्यास सभी व्यक्ति कर सकते हैं। इस क्रिया को बांई नासिका से आरम्भ करना होता है। बांई नासिका से श्वास भरें, बिना श्वास रोके दांई ओर से खाली करें। दांए से श्वास भरें, और बांए से खाली करे। 

 
विधि :-

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। (घुटने मोड़ कर बैठने मे परेशानी है तो कुर्सी पर बैठकर अभ्यास करें।) रीढ, कमर व गरदन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बन्द रखें।
  • बांया हाथ बांए घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। दांए हाथ की अंगूठे के साथ वाली दो उंगलियां मोड़ ले। दांए हाथ को नाक के पास इस प्रकार रखे कि अंगूठा दांई नासिका के और तीसरी उंगली बांई नासिका पास रहे। 
  • अंगूठे से दांई नासिका बन्द करें और बांई नासिका से लम्बा व गहरा श्वास भरे (यह पूरक स्थिति है)। धीमी गति से श्वास का पूरक करें। 
  • पूरा श्वास भरने के बाद उंगली से बांई नासिका बन्द करें। श्वास को रोके बिना दांई तरफ से खाली करें। (यह श्वास की रेचक स्थिति है।) श्वास का धीमी गति से रेचक करें। 
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद, दांए से धीरे-धीरे श्वास का पूरक करे और बांए से रेचक करे।
  • यह एक आवर्ती हुई। इस प्रकार आरम्भ मे पांच आवर्तियां करे। धीरे धीरे अभ्यास बढाएं।

अनुलोम-विलोम की सावधानी

  • श्वास रोगी व हृदय रोगी कपालभाति प्राणायाम न करें। केवल अनुलोम-विलोम ही करें।
  • वृद्ध व्यक्ति जो घुटने मोड़ कर बैठने मे असमर्थ हो और गर्भवती महिलाएं सुविधापूर्वक कुर्सी या सोफे पर बैठ कर केवल अनुलोम विलोम करें। कपालभाति न करें।
  • यद्यपि यह एक सरल प्राणायाम है। फिर भी नये व्यक्तियो को सलाह दी जाती है कि प्राणायाम मे अपने श्वासो की क्षमता का ध्यान रखें।

अनुलोम-विलोम व नाड़ी शोधन मे फर्क।

ये दोनो प्राणायाम एक ही तरीके से किये जाते है। कुछ प्रशिक्षक अनुलोम-विलोम तथा नाड़ी शोधन दोनो को एक ही प्राणायाम बताते है। यह सत्य नही है। दोनो महत्वपूर्ण प्राणायाम है। लेकिन दोनो मे फर्क है। दोनो की विधि मे अन्तर है। दोनो के प्रभाव भी अलग हैं।

अन्तर, विधि में :-

दोनो प्राणायाम को करने की विधि अलग हैं। समानता यह है कि दोनो क्रिया बांई नासिका से आरम्भ की जाती हैं। लेकिन अन्तर कुम्भक का है। अनुलोम-विलोम का अभ्यास बिना श्वास रोके किया जाता है। केवल एक नासिका से श्वास का पूरक करते है। और बिना श्वास रोके दूसरी तरफ से खाली करते हैं।

नाड़ी शोधन मे बांई नासिका से श्वास का पूरक करते है। क्षमता अनुसार श्वास रोक कर रेचक (खाली) करते है। दांए से श्वास भरके रुकना। क्षमता अनुसार रुक कर बांए रेचक करना। यह नाड़ी शोधन है।

अन्तर, प्रभाव में :-

दोनो प्रभावी प्राणायाम हैं। दोनो मे समानता यह है कि दोनो श्वसनतंत्र व प्राणिक नाड़ियों को प्रभावित करते है। लेकिन अनुलोम-विलोम का मुख्य प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। यह ईड़ा व पिंगला को प्रभावित करता है।

नाड़ी शोधन प्राणायाम "प्राणिक नाड़ियों" पर विशेष प्रभाव डालता है। यह प्राणिक नाड़ियों का शोधन करता है।

अन्य अन्तर :-

दोनो प्राणायाम लाभदायी हैं। अनुलोम-विलोम का अभ्यास बहुत सरल है। यह सभी व्यक्ति कर सकते हैं। लेकिन नाड़ी शोधन केवल ऐसे व्यक्ति ही कर सकते है जिनके श्वासो की स्थिति ठीक है। यह प्राणायाम हृदय रोगी व श्वास रोगी के लिये वर्जित है। 

(विस्तार से देखें :- अनुलोम-विलोम व नाङी शौधन मे अन्तर। )

सारांश :-

अनुलोम विलोम एक सरल तथा लाभदायी प्राणायाम है।
कपालभाति के बाद इस प्राणायाम को करने से लाभ बढ जाते हैं। अनुलोम विलोम व नाड़ी शोधन मे अन्तर है।


(प्राणायाम के विषय मे आपके प्रश्न और सुझाव आमंत्रित है। ब्लाग के कमेंट-बॉक्स मे अवश्य लिखें)

Disclaimer :- 

प्राणायाम एक लाभदायी क्रिया है। लेकिन यह अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही करें। इस लेख का उद्देश्य केवल योग की जानकारी देना है। यह किसी प्रकार के रोग उपचार का दावा नही करता है।


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