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"प्राणायाम" योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह एक श्वसन अभ्यास है। इसका नियमित अभ्यास श्वसन तंत्र को सुदृढ करके श्वास रोगों से बचाता है। यह हृदय तथा फेफड़ों को स्वस्थ रखने मे सहायक होता है। इसका नियमित अभ्यास सभी के लिए लाभदायी है। लेकिन प्राणायाम-अभ्यास श्वासों की क्षमता अनुसार ही किया जाना चाहिए। प्राणायाम कैसे करें? प्रस्तुत लेख मे इस के बारे मे विस्तार से बताया जायेगा।

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प्राणायाम श्वास की स्थिति अनुसार करें

प्राणायाम का अभ्यास अपने श्वासों की स्थिति के अनुसार ही किया जाना चाहिए। इसका अभ्यास करने से पहले अपने श्वासों की स्थिति का अवलोकन करें। उसी के अनुसार अभ्यास करें। श्वास की स्थिति के अनुसार प्राणायाम-अभ्यासी की तीन श्रेणियां हैं :-

1. नियमित योग अभ्यासी व सुदृढ श्वसन वाले :
योग के नियमित अभ्यासी तथा स्वस्थ व्यक्ति सभी प्राणायाम कर सकते हैं। ऐसे अभ्यासियों को बंध व कुम्भक सहित प्राणायाम करना चाहिए। क्योंकि प्राणायाम के वास्तविक लाभ बंध व कुम्भक से प्राप्त होते हैं।

2. नए योग अभ्यासी व कमजोर श्वसन वाले :
नये योग-अभ्यासी आरम्भ मे सरल प्राणायाम करें। "कुम्भक" का प्रयोग न करें। पहले कुछ दिन बिना कुम्भक का प्राणायाम करें। धीरे धीरे इसका अभ्यास आरम्भ करे। पहले कम अवधि का कुम्भक लगाये। धीरे धीरे इसका समय बढायें। श्वास रोकने मे अधिक बल प्रयोग न करें।

3. श्वास रोगी :

श्वसन रोग से प्रभावित व्यक्ति चिकित्सक की सलाह के बिना कोई अभ्यास न करें। चिकित्सक की सलाह से तथा प्रशिक्षक के निर्देशन मे सरल प्राणायाम करे। श्वास रोकने वाले अभ्यास न करें। ऐसे अभ्यास हानिकारक हो सकते हैं। श्वसन रोगी के लिए सरल प्राणायाम लाभदायी होते हैं।

प्राणायाम का अभ्यास कैसे करना चाहिए, इस विषय को विस्तार से समझने के लिये, पहले प्राणायाम को समझना होगा। 

प्राणायाम क्या है और कैसे करें?

प्राणायाम श्वास पर आधारित एक लाभदायी योग क्रिया है। योगाभ्यास में इसका क्रम आसन के बाद रखा गया है। इसलिए प्राणायाम से पहले योगासनों का अभ्यास अवश्य करे। 

प्राणायाम की परिभाषा

योगाभ्यास में प्राणायाम एक ऊर्जादायी अभ्यास है। यह दो शब्दो, 'प्राण' और 'आयाम' से मिल कर बना है। इसका अर्थ है प्राण शक्ति को आयाम देना। प्राण को एक निश्चित उंचाई तक ले जाना प्राणायाम है।

परिभाषा पतंजलि योग में :- महर्षि पतंजलि अपने योगसूत्र मे प्राणायाम को परिभाषित करते हुए एक सूत्र देते हैं :- 

तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।

अर्थात् आसन के अभ्यास के बाद सांस लेने व छोड़ने की स्थिति को कुछ देर रोक देना प्राणायाम है। साधारण शब्दो मे यह कहा जा सकता है कि श्वास को अपनी क्षमता अनुसार कुछ देर रोकना ही प्राणायाम है। श्वास रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा गया है।

प्राणायाम पतंजलि-योग में

प्राणायाम अष्टांगयोग का चौथा चरण है। महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र मे इसको विस्तार से परिभाषित किया है। योगसूत्र 2.49 मे कुम्भक को वास्तविक प्राणायाम बताया है। लेकिन कुम्भक का प्रयोग नये अभ्यासी व श्वास रोगी को नही करना चाहिए।

नियमित योग अभ्यासी व सुदृढ श्वसन वाले व्यक्तियों को कुम्भक सहित प्राणायाम करना चाहिए। कुम्भक क्या है, आईए, इसको विस्तार से समझ लेते हैं।

कुम्भक क्या है :- श्वास रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा जाता है। ये तीन प्रकार के हैं :-
1. आन्तरिक कुम्भक :- श्वास को अन्दर रोकना।
2. बाह्य कुम्भक :-  श्वास को बाहर रोकना।
3. कैवेल्य कुम्भक :- यथा स्थिति मे कुछ देर रुकना।

पतंजलि योग मे चार प्रकार के प्राणायाम

महर्षि पतंजलि ने चार प्रकार के प्राणायाम का वर्णन किया है। एक सूत्र मे तीन प्रकार के प्राणायाम का वर्णन करते हैं :--

बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभि: परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्म:।। 2.50।।

अर्थात् बाह्य वृति, आभ्यन्तर वृत्ति व स्तम्भ वृत्ति ये तीन प्रकार के प्राणायाम है। इनका अभ्यास देश, काल व गणनापूर्वक करने से श्वास लम्बा व गहरा हो जाता है। इस सूत्र मे तीन प्रकार के प्राणायाम बताये गये हैं :-

1. बाह्यवृत्ति :- श्वास को बाहर निकाल कर कुछ देर खाली श्वास की स्थिति मे रुकना बाह्यवृत्ति प्राणायाम है। इसे बाह्य कुम्भक भी कहा गया है।

2. आभ्यन्तरवृत्ति :- श्वास को अन्दर भरके क्षमता अनुसार रुकना आभ्यन्तरवृत्ति प्राणायाम है। 

3. स्तम्भवृत्ति :- श्वास की यथा स्थिति मे कुछ देर ठहरना स्तम्भवृत्ति प्राणायाम है।

चौथा प्राणायाम

महर्षि पतंजलि अगले सूत्र मे चौथे प्राणायाम का वर्णन करते हैं :- 

बाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपि चतुर्थ:।। 2.51।।

अर्थात् :- बाह्यवृत्ति व आभ्यन्तरवृत्ति के विषयों को त्याग कर किया गया प्राणायाम चौथा प्राणायाम है।

यह प्राणायाम केवल नियमित योग अभ्यासियों के लिये है। कमजोर श्वसन तथा नये अभ्यासी इस प्राणायाम को न करें। चतुर्थ प्राणायाम क्या है, यह विस्तार से समझ लेते हैं।

चतुर्थ प्राणायाम क्या है?

महर्षि पतंजलि अपने योगसूत्र मे चौथे प्रकार के प्राणायाम का वर्णन किया है। यह केवल नियमित प्राणायाम अभ्यासियों को ही करना चाहिए। चतुर्थ प्राणायाम को समझने के लिये योग सूत्र के 2.51वें सूत्र को समझना होगा :- 

बाह्य आभ्यन्तरवृत्ति विषय: आक्षेपी चतुर्थ:।

जब हम श्वास लेने व छोड़ने की इच्छा के विपरीत प्राणायाम करते है, तो यह चौथा प्राणायाम हो जाता है। आईए  इसको विस्तार से समझ लेते हैं :-

जब हम श्वास को बाहर निकाल कर खाली श्वास की स्थिति मे रुकते है, तो कुछ देर बाद श्वास लेने की इच्छा होती है। यदि उस इच्छा के अनुसार श्वास भर लेते हैं तो यह बाह्यवृत्ति प्राणायाम हो जायेगा। लेकिन इस इच्छा (विषय) के विपरीत श्वास भरने की बजाय श्वास को और बाहर की तरफ धकेलते हैं, तो यह चौथा प्राणायाम है।

इसी प्रकार जब हम श्वास को भर के कुछ देर रुकते है। तो कुछ देर बाद श्वास को बाहर निकालने की इच्छा होती है। यदि उस इच्छा अनुसार श्वास बाहर निकल देते हैं तो यह आन्तरिक प्राणायाम हो जायेगा। लेकिन इस इच्छा के विपरीत श्वास को थोङा और अन्दर की तरफ धकेलते हैं तो यह चौथा प्राणायाम है।

विस्तार से देखें :- चतुर्थ प्राणायाम क्या है?

प्राणायाम कैसे करें?

प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति तथा श्वासों की स्थिति अलग-अलग होती है। जैसा कि लेख मे पहले बताया गया है कि प्राणायाम अपने श्वास की अवस्था को देख कर ही किया जाना चाहिए। अत: प्राणायाम-अभ्यासी पहले अपने श्वास की स्थिति का अवलोकन करे और उसी के अनुसार प्राणायाम का चयन करे।

प्राणायाम की सामान्य विधि : 

प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले "आसन" का अभ्यास.करें। आसन का अभ्यास पूरा करने  के बाद कुछ देर सीधे लेट कर शवासन मे विश्राम करें। विश्राम करने के बाद धीरे से उठ कर बैठ जाये और प्राणायाम आरम्भ करें।

बैठने की स्थिति :- बैठने की स्थिति का चयन अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार करें। पद्मासन की स्थिति मे बैठना उत्तम है। सुविधा जनक स्थिति मे बैठने के बाद दोनो हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। आँखे कोमलता से बंध करें।

श्वास-प्रश्वास :- अभ्यास का आरम्भ श्वास प्रश्वास से करें। धीरे-धीरे लम्बा व गहरा श्वास भरें और धीरे धीरे श्वास को खाली करें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार चार-पांच अन्य आवर्तियां करे। आवर्तियां पूरी करने के बाद श्वास सामान्य करे और आगे का अभ्यास करें।

• कपालभाति
• अनुलोम विलोम
• भ्रामरी
• नाड़ी शौधन

अपनी अवश्यकता अनुसार अन्य प्राणायाम भी कर सकते है। अपनी क्षमता से अधिक कोई अभ्यास न करें। सभी प्राणायाम पूरे करने के बाद श्वासों को सामान्य करे और कुछ देर शान्त मन से ध्यान मुद्रा मे बैठे।

लेख सार :

प्राणायाम एक लाभदायी योग-क्रिया है। इसका अभ्यास अपने शरीर की क्षमता व श्वास की स्थिति के अनुसार ही किया जाना चाहिए। नियमित अभ्यासी कुम्भक सहित प्राणायाम करें और नये अभ्यासी बिना कुम्भक का सरल प्राणायाम करें। श्वास रोगी को बिना चिकित्सक की सलाह के कोई योग क्रिया नही करनी चाहिए।

Disclaimer :

यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार का दावा नही करता है। इसका उद्देश्य केवल प्राणायाम की जानकारी देना है। प्राणायाम का अभ्यास अपने श्वास की क्षमता के अनुसार किया जाना चाहिए।

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