बढ़ती उम्र में पुरुषों के लिए प्रोस्टेट का बढ़ना एक आम परेशानी का करण बन गया है। Prostate gland या पौरुष ग्रंथि की वृद्धि होना, आगे चल कर कई अन्य रोगों का करण बनता है। इस लिए बढ़ती आयु के साथ इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रोस्टेट के लिए योग का अभ्यास विशेष लाभदायी होता है। योग में इसके लिए कुछ विशेष अभ्यास बताये गये हैं। ये आसन महिलाओं के लिए भी विशेष लाभदायी होते हैं। प्रस्तुत लेख मे आगे इसका विस्तार से वर्णन किया जायेगा।
लेख की विषय सूची :
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Prostate के लिए लाभदायी योग
प्रोस्टेट पुरुषों की एक ग्रंथी है। यह पुरुषों मे शुक्राणुओं का निर्माण करती है। यह ग्रन्थी मूत्राशय के निकट होती है। इसकी साइज मे वृद्धि होने पर मूत्र-मार्ग मे रूकावट आ जाती है। इस करण मूत्र-रोग होने लगते हैं। यह किडनी तथा मुत्राशय को प्रभावित करता है। यह आगे चल कर कई अन्य रोगों का करण बन सकता है। योगाभ्यास इस के लिए एक प्रभावी क्रिया है।
प्रोस्टेट के लिए योगासन :- प्रोस्टेट को स्वास्थ रखने के लिए योगाभ्यास मे कुछ आसन, मुद्राएं तथा प्राणायाम बताये गये हैं। इनका नियमित अभ्यास पुरुष व महिला दोनो के लिए लाभदायी होता है। ये अभ्यास प्रोस्टेट की वृद्धि होने से रोकते हैँ और इस ग्रन्थी को स्वास्थ बनाये रखते हैं। ये अभ्यास महिलाओं के शरीर मे होने वाली विशेष परेशानियों को दूर करने मे सहायक होते हैं। इनका अभ्यास कैसे करना चाहिए, इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
1. बद्ध कोणासन :
यह सरलता से बैठ कर किया जाने वाला आसन है। यह प्रोस्टेट के लिए लाभदायी अभ्यास है। यह आसन महिलाओं के लिए भी विशेष लाभकारी होता है।
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विधि :
- योगा मैट या चटाई पर बैठ जाएं।
- दोनों पैरों को सीधा करें। दोनों पैरों के तलुओं को मिलाएं।
- दोनों हाथों से पंजों को पकड़ें। एडियों को अधिकतम पीछे की ओर करें।
- दोनो एडियों को जननांग के समीप लाने का प्रयास करें।रीढ़ व गर्दन को सीधा रखें।
- बद्ध कोणासन की स्थिति मे कुछ देर रुकें।
- क्षमता अनुसार कुछ देर रुकने के बाद दोनों पैरों को सीधा करें। दोनों हाथों को पीछे टिकायें और विश्राम करें।
आसान की सावधानी :- यदि घुटने मोड़ कर बैठने मे परेशानी है तो यह अभ्यास न करें।
2. तितली आसन :
यह बद्ध कोणासन मुद्रा मे बैठ कर किया जाने वाला अभ्यास है। यह आसन पुरुषों के Prostate को तथा महिलाओं के जननांगों को स्वस्थ रखता है। इसका अभ्यास स्त्री पुरुष दोनों के लिए लाभकारी होता है।
विधि :
- दोनों घुटनों को मोड़ कर बद्ध कोणासन की मुद्रा मे बैठें।
- पंजे पकड़ कर एडियां जननांग के नजदीक रखें।
- रीढ़ व गर्दन को सीधा रखें। शरीर का झुकाव आगे की ओर करें।
- जैसे तितली पँखों को गति देती है, उसी प्रकार अपने दोनों घुटनों को गति पूर्वक ऊपर नीचे करें।
- क्षमता अनुसार क्रिया करने के बाद धीरे से वापिस आएँ।
- पैरों को सीधा करें। हाथों को पीछे टिकायें। विश्राम करें।
सावधानी :- घुटनों की परेशानी में यह अभ्यास न करें।
3. जानु शिरासन :
'जानु' का अर्थ है, घुटना। शीर्ष (सिर) को घुटने के पास ले जाना, जानु शिरासन कहा जाता है। यह महिलाओं के प्रजनन अंग तथा पुरुषों के प्रॉस्टेट को प्रभावित करता है।
विधि :-
- दोनों पैरों को सामने की ओर सीधा करें।
- बायां पैर मोड़ें। बायां पंजा दाईं जंघा के पास और दोनों हाथ दाये घुटने पर रखें।
- रीढ़ को सीधा रखें। सांस भरते हुए दोनो को ऊपर उठाएं। सांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें।
- सिर को दाएं घुटने के पास ले जाने का प्रयास करें। दोनों हाथों से दायां पंजा पकड़ें।
- श्वास को सामान्य करके कुछ देर रुकें।
- क्षमता अनुसार कुछ देर रुकने के बाद सांस भरते हुए ऊपर उठें।
- कमर को सीधा करने के बाद दोनों हाथों को नीचे ले आएं। बायां पैर सीधा करें।
- यही क्रिया बाईं ओर से दोहराएं।
- आसन पूरा करने के बाद दोनों पैरों को सीधा करें। दोनो पैरों में थोड़ी दूरी बनाएं। हाथों को पीछे टिकायें। विश्राम करें।
सावधानी :- रीढ़ की परेशानी में इस आसन का अभ्यास न करें।
4. प्राणायाम :
प्रोस्टेट के लिए प्राणायाम का अभ्यास लाभदायी होता है। मूलबंध सहित किया गया अभ्यास अधिक लाभदायी होता है। अंतरिक व बाह्य कुम्भक में मल-द्वार तथा जननांग पर दबाव डाल कर ऊपर की ओर खींचना मूलबंध कहा जाता है।
(मूलबंध क्या है, इसको समझने के लिए विस्तार से देखें :- मूलबंध प्राणायाम )
लाभदायी प्राणायाम :
- कपालभाति
- अनुलोम विलोम
- भस्त्रिका
- नाड़ी शोधन
बंध व कुम्भक सहित किये गये सभी प्राणायाम लाभदायी होते हैं। लेकिन यदि श्वास की स्थिति ठीक नहीं हो तो कुम्भक का प्रयोग न करें।
विस्तार से देखें :- प्राणायाम कैसे करें?
5. अश्विनी मुद्रा :
गुदा (मल द्वार) का संकोचन और प्रसारण करना अश्विनी मुद्रा कहा गया है। यह क्रिया भी स्त्री-पुरुष दोनों के लिए लाभदायी है। यह दोनों के लिए ऊर्जादायी है। यह पुरुषों की पौरुष ग्रंथि (Prostate) के लिए लाभकारी है। यह महिलाओं के मासिक धर्म (पीरियड्स) मे लाभदायी होती है। प्राणायाम अभ्यास मे इस मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए।
विधि :
- पद्मासन, सुखासन या किसी आराम दायक स्थिति में बैठें।
- दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में, रीढ़ व गर्दन को सीधा रखें। आंखो को कोमलता से बंध करें।
- लम्बा गहरा श्वास भरें। श्वास को खाली करें।
- खाली श्वास मे गुदा द्वार को दबाव डालते हुए ऊपर की ओर शिकोड़े (संकुचित) करें। और ढीला छोड़े।
- गुदा के संकोचन और ढीला छोड़ना की क्रिया लगातार गति से करें।
- क्षमता अनुसार करने के बाद वापिस आ जाये। श्वासों को सामान्य करें।
सभी अभ्यास पूरे करने के बाद पीठ के बल सीधे लेट जाएं। श्वासों को सामान्य करके कुछ देर विश्राम करें।
सारांश :
प्रोस्टेट के लिए योग का अभ्यास लाभदायी होता है।इसके लिए कुछ विशेष आसन, प्राणायाम व योग मुद्राएं बताई गई हैँ। इनका नियमित नियमित अभ्यास करना चाहिए।
Disclaimer :
यह लेख चिकित्सा हेतू नहीं है। योग की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है। रोग की अवस्था मे चिकित्सा सहायता लें। अपने चिकित्सक की सलाह से योग का अभ्यास करें। क्षमता से अधिक अभ्यास करना हानिकारक हो सकता है।