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हमारा शरीर असीमित शक्तियों का भण्डार है। ये शक्तियाँ हमारे शरीर को रोगग्रस्त करने वाले वायरस से बचाती हैं। तथा मौसम के प्रभाव से बचाती हैं। लेकिन साधारणतया ये शक्तियाँ अधोगामी (नीचे की ओर गमन करने वाली) होती हैं। और इसी कारण इनका ह्रास होता रहता है। मूलबंध प्राणायाम इस शक्ति को ऊर्ध्वगामी (ऊपर की ओर उठने वाली) करता है। Mool Bandha for Eergy. शक्ति वर्धक योग, मूलबंध प्राणायाम क्या है, इसकी विधि, लाभ व सावधानियाँ क्या हैं? प्रस्तुत लेख मे इसका वर्णन किया जायेगा।

विषय सुची :-

  • मूल बंध क्या है?
  • मूलबंध का महत्व।
  • मूलबंध कैसे लगाएँ?
  • लाभ व सावधानियाँ।

मूलबंध क्या है?

प्राणायाम मे मूलबंध एक महत्वपूर्ण योग क्रिया है। प्राणायाम के वास्तविक लाभ बंधो से प्राप्त होते हैं।बंध तीन प्रकार के हैं :- मूलबंध, उड्डियन बंध और जालंधर बंध। तीनो को एक साथ लगाना "त्रिबंध" कहा गया है।

प्राणायाम मे तीनों बंध महत्वपूर्ण हैं। इस लेख मे हम मूलबंध की चर्चा करेंगे। यह शक्ति वर्धक योग है। यह नीचे की ओर जाने वाली शक्ति (Energy) को लॉक करके ऊर्ध्वगामी करता है।

शक्ति वर्धक योग, 'मूलबंध'। Mool Bandha for Energy.

साधारणतया हमारे शरीर की शक्तियाँ ऊपर से नीचे की ओर जाती है। इस कारण इनका ह्रास (हानि) होता रहता है। 'बंध' एक प्रकार का लॉक होता है, जो शक्तियों के ह्रास (हानी) को रोकता है। यह 'प्राण-ऊर्जा' को एक सही दिशा देता है। यह नीचे की ओर जाने वाली ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाता है।

त्रिबंध मे बताये गये तीनो बंध यही कार्य करते हैं। बंध क्या है? कितने प्रकर के हैं? बंध का योग मे क्या महत्व है? इन विषयों को जान लेते हैं।

बंध का अर्थ।

"बंध" का अर्थ है 'बाँध कर रोक देना'। इसका अर्थ है बिखरी हुई शक्ति को बाँध देना। उदाहरण के लिये नदी के प्रवाह को रोकने के लिए पानी पर 'बंध' लगाया जाता है। और नदी के पानी को सही दिशा की ओर मोङ दिया जाता है।

ठीक उसी प्रकार हमारी शक्तियाँ है। इनका प्रवाह भी उस नदी के पानी की तरह ही है, जो एक गति मे बहता है और नष्ट होता रहता है। प्राणायाम मे बंध एक उत्तम क्रिया है। यह प्राणशक्ति को सही दिशा देने वाली क्रिया है। यह प्राण-शक्ति को मूलाधार से सहस्रार (नीचे से ऊपर) की ओर ले जाती है।

(देखें :- ऊर्जा के लिये योगासन)

बंध के प्रकार। त्रि बंध क्या है?

बंध तीन प्रकार के बताये गये है। योग मे तीनो बंध महत्व पूर्ण है। प्राणायाम करते समय इन बंधों को  "दोनो अवस्थाओ" :- पूरकरेचक मे लगाया जाना चाहिये। 

(पूरक :- श्वास को अंदर लेना। रेचक:- श्वास को खाली करना।)

बंध के तीन प्रकार :-

1. मूलबंध :- गुदा द्वार (Anus) तथा जननेन्द्रिय अंग का संकोचन करना, और ऊपर की ओर खींच कर रुकना।

2. उड्डियन बंध :- पेट को पीछे की ओर खींच कर रुकना।

3. जालंधर बंध :- गरदन आगे झुकाकर ठोडी को कण्ठ के साथ लगाना।

तीनों बंधो को एक साथ लगाने की स्थिति को त्रिबंध कहा गया है। योग मे तीनो बंधो का महत्व है। इनमे मूलबंध महत्वपूर्ण है। आईये इसके विषय मे विस्तार से जान लेते हैं।

मूलबंध कैसे लगाएँ?

यह योग की एक मत्वपूर्ण और लाभकारी क्रिया है। यह हमारे "मूलाधार चक्र" को प्रभावित करती है। मूलाधार चक्र रीढ के अंतिम छोर से नीचे गुदा (Anus) व जननेन्द्रिय के समीप स्थित है। प्राणायाम करते समय मूलबंध लगाने के लिये मल निष्कासन अंग (Anus) व जननेन्द्रिय अंग पर दबाव डालें, तथा ऊपर की ओर खींच कर रुकें। यह मूलबंध की स्थिति है।

इस बंध को लगाने की विधि क्या है? और इसे आरम्भिक अवस्था मे कैसे लगाया जाये? इस के बारे मे विस्तार से जान लेते हैं।

मूलबंध लगाने की विधि।

पद्मासन, सुखासन, वज्रासन या किसी आराम पूर्वक स्थिति मे यह बंध लगाया जा सकता है। "प्राणायाम" मे इस बंध को लगाने के लिये पद्मासन, सुखासन उत्तम है।

आरम्भिक विधि।

यदि आप योग की आरम्भिक अवस्था मे हैं। सुरुआती (Beginner) हैं। या मूलबंध ठीक से नही लगता है तो पहले अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करे। यह बहुत सरल और लाभकारी विधि है। इस क्रिया को नियमित करने से मूलबंध मजबूती से लगता है।

अश्विनि मुद्रा :-

  • दरी, चटाई या कपङे का आसन (सीट) बिछा कर बैठें।
  • सुखपूर्वक स्थिति मे बैठें। पद्मासन या सुखासन मे बैठना उत्तम है।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। हाथों को ज्ञानमुद्रा या सुविधा पूर्वक स्थिति मे रखें।
  • आँखें कोमलता से बंद करें।
  • लम्बा-गहरा श्वास भरें। पूरा श्वास भरने के बाद श्वास बाहर छोङें। इसी प्रकार तीन या चार आवर्तियाँ करने के बाद श्वासो को सामान्य करेें।
  • मल द्वार (Anus) को संकुचित करे और ढीला छोङें। फिर संकुचित करे और ढीला छोङे। ऐसा बार-बार करें।
  • इस क्रिया को आरम्भ मे 5 से 10 बार दोहराये।
  • उसके बाद वापिस आ जाये और स्थिति को सामान्य करें।

यह अश्विनी मुद्रा की क्रिया है। यह मूलबंध लगाने मे सहायक होती है। अधिक जानकारी के लिये देखें :- अश्विनी मुद्रा क्या है?

मूलबंध प्राणायाम।

अश्विनी मुद्रा का अभ्यास होने के बाद इस विधि से मूलबंध लगाएँ। नियमित योग साधक  इसी विधि का प्रयोग करते हैं। यदि आपके श्वासों की स्थिति ठीक है। श्वास को कुछ देर रोकने की स्थिति मे हैं, तो इस विधि से क्रिया को करें।

  • पद्मासन, सुखासन या प्राणायाम मुद्रा मे बैठें।
  • हाथों को ज्ञान मुद्रा या सुविधाजनक स्थिति मे रखें।
  • आँखें कोमलता से बंद करें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें।
  • पूरा श्वास भरें (यह श्वास का पूरक है)।
  • श्वास का पूरक करके, मलद्वार (Anus) का संकोचन करें। और बल लगाकर ऊपर की ओर खींचे। पेट को पीछे की ओर खींचें। गरदन को झुका कर ठोडी कण्ठ से लगाये। भरे श्वास मे कुछ देर रुकें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद श्वास को बाहर छोङें। गरदन को सीधा करें। पेट को सामान्य स्थिति मे ले आएँ। मूलबंध को ढीला करे। (यह श्वास की रेचक स्थिति है)
  • श्वास का रेचक करने के बाद खाली श्वास मे मूलबंध (Anus का संकोचन), उड्डियन बंध (पेट को पीछे की ओर खींचना) तथा जालंधर बंध (ठोडी को तण्ठ की पास) लगाएँ। कुछ देर खाली श्वास मे रुकें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे-धीरे श्वास का पूरक करें। गरदन को सीधा करें, पेट को सामान्य करें। मूलबंध को स्थिल (ढीला) करे। श्वास सामान्य करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार क्षमता के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।

सावधानियाँ।

इस क्रिया को करते समय कुछ सावधानियों का ध्यान रखें। असावधानी से क्रिया करने से शरीर को हानि हो सकती है।

  • बवासीर या गुदा सम्बंधी रोग है तो यह क्रिया न करें।
  • आँत-रोग, अलसर, पेट मे फोङा (हर्निया) जैसा कोई रोग है या सर्जरी हुई है, तो यह क्रिया न करें।
  • हृदय रोगी व श्वास रोगी इस क्रिया को न करें।
  • "आरम्भिक श्वास रोगी"  श्वास को प्रभावित किये बिना अश्विनी मुद्रा करें।

लाभ।

प्राणायाम के वास्तविक लाभ बंध लगाने से ही प्राप्त होते हैं। मूलबंध से मिलने वाले लाभ इस प्रकार हैं :--

  • मूलबंध लगाने से शक्तियाँ ऊर्ध्वगामी होती हैं।
  • अपान प्राण सुदृढ होता है। 
  • मूलाधार चक्र प्रभावित होता है।
  • जननेन्द्रिय व मल द्वार की पेशियाँ सुदृढ होती हैं।
  • पुरुषो मे प्रोस्टेट (मुत्र रोग) मे सहायक होता है।
  • महिलाओ मे महवारी (पीरियडस) को नियमित करता है।
  • बवासीर जैसे रोगो से बचाता है।

सारांश :-

प्राणायाम मे बंध बहुत महत्वपूर्ण हैं। बंध तीन प्रकार के हैं। मूलबंध एक प्रभावी क्रिया है। इस क्रिया में गुदा द्वार (Anus) का संकोचन किया जाता है।

Disclaimer :- किसी प्रकार के रोग का उपाचार करना हमारा उद्देश्य नही है। योग व इसके  लाभ की जानकारी देना हमारा उद्देश्य है। योगाभ्यास करते समय सावधानियो व नियमो का पालन अवश्य करे। रोग पीङित व्यक्ति चिकित्सक की सलाह से योग क्रिया करें। 

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