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"योग" प्राचीन भारत की जीवनशैली है। स्वास्थ्य के लिये ऋषियों द्वारा बताई गई, यह एक उत्तम विधि है। सम्पूर्ण योग के लिये अष्टांगयोग बताया गया है। अष्टांगयोग के आठ अंग होते हैं। "आसन" इसका तीसरा चरण है। यह एक शारीरिक अभ्यास है। इसका नियमित अभ्यास शरीर को सुदृढ एवम् स्वस्थ बनाये रखता है। योग मे आसन का महत्व क्या है? प्रस्तुत लेख मे इसी विषय पर विचार किया जायेगा।

विषय सुची :

• योग मे आसन का महत्व
• योग क्या है?
• आसन क्या है?
• आसन का महत्व तथा लाभ
• सावधानियां

योग मे आसन का क्या महत्व है?

योग मे आसन शरीर को सुदृढ व स्वस्थ रखने वाला अभ्यास है। यह शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है। योग मे आसन का क्या महत्व है, यह जानने से पहले "योग" "आसन" दोनो को समझना होगा।

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pexels photo

योग और आसन

योग व आसन दोनो मे अन्तर है। योग एक विस्तृत विषय है और आसन योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। "आसन" योग का महत्वपूर्ण अंग तो है, लेकिन केवल इसे योग मान लेना सही नही है। आईए, पहले इन दोनों को विस्तार से समझ लेते हैं।

योग क्या है?

योग भारत की हजारों वर्ष पुरानी विधि है। यह प्राचीन काल से एक आध्यात्म का विषय रहा है। प्राचीन समय मे यह विधि भारत के गुरुकुलों व आश्रमों तक सीमित थी। बाद मे इसे आम-जन तक पहुंचाने का काम कई ऋषियों व योगियों ने किया। आज पूरा विश्व इसी विधि को स्वास्थ्य हेतू अपना रहा है।

प्राचीन समय मे ऋषि-मुनि ध्यान-साधना हेतू योग का अभ्यास किया करते थे। क्योंकि स्वस्थ शरीर से ही ध्यान-साधना सम्भव है, इस लिये हमारे ऋषियों ने योग क्रियाओं को अविष्कृत किया। स्वास्थ्य के लिये आज हम ऋषियों द्वारा बताये गये उसी योग का अभ्यास करते हैं।

योग की परिभाषा पतंजलि के अनुसार :- आज के समय मे योग को "आध्यात्म" तथा "स्वास्थ्य" दोनो के लिये किया जाता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार योग मन को एकाग्र करने की विधि है। वे अपने "योगसूत्र" मे इसकी परिभाषा देते हैं :- "योगश्चित्तवृत्ति निरोध:।" अर्थात्- चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है या मन को एकाग्र करना ही योग है।

सम्पूर्ण योग "अष्टांग योग" :- महर्षि पतंजलि ने चित्तवृत्ति निरोध का मार्ग अष्टांगयोग बताया है। इसके आठ अंग होते हैं :-

1. यम
2. नियम
3. आसन
4. प्राणायाम
5. प्रत्याहार
6. धारणा
7. ध्यान
8. समाधि
(विस्तार से देखें :- अष्टाँगयोग क्या है?)

ये आठ अंग सम्पूर्ण योग हैं। लेकिन आज के समय मे स्वास्थ्य के लिये केवल आसन, प्राणायाम व ध्यान का ही अभ्यास किया जाता हैं। प्रस्तुत लेख मे आसन के विषय मे ही बताया जायेगा। "प्राणायाम" व "ध्यान" का वर्णन अगले लेखों मे किया जायेगा। 

आसन क्या है?

यह योग का महत्वपूर्ण अंग है। योगाभ्यास का आरम्भ "आसन" से ही किया जाता है। इसका महत्व इतना अधिक है कि कई बार तो इसे ही योग मान लिया जाता है। लेकिन यह योगाभ्यास मे एक शारीरिक क्रिया है। यह क्रिया शरीर को सीधा प्रभावित करती है। इसका नियमित अभ्यास शरीर के अंगो को सक्रिय करता है तथा रक्त- संचार को व्यवस्थित करता है।

आसन, पतंजलि योग मे :- महर्षि पतंजलि ने आसन को परिभाषित किया है :- "स्थिरसुखम् आसनम्।" अर्थात् - स्थिरता व सुख पूर्वक जिस पोज मे बैठ सकते हैं, उसे आसन कहा जाता है। इसका सीधा अर्थ है कि जिस आसन को हम सरलता से व सुख पूर्वक करते हैं, वही लाभदायी होता है।

कोनसे आसन करें :- योगाभ्यास मे आसन का अभ्यास अपने शरीर की क्षमता व अवस्था के अनुसार किया जाना चाहिए। नये अभ्यासी केवल सरल आसन करें। जो आसन सरलता व सुख पूर्वक किया जाता है, वह लाभदायी होता है। जिस आसन की पूर्ण स्थित मे पहुंच कर सुख की अनुभूति हो, उसका अभ्यास अवश्य करना चाहिए।

कोनसा आसन नही करना चाहिए :- जिस आसन के अभ्यास मे कष्ट का अनुभव होता है, उसका अभ्यास नही करना चाहिए। कठिन आसन हानिकारक हो सकते हैं। जिस आसन की पूर्ण स्थिति मे पहुनचना सम्भव न हो तो अधिक प्रयास न करें। अनावश्यक बल प्रयोग भी हानिकारक हो सकता है।

आसन का महत्व तथा लाभ

महत्व :- योग मे आसन का विशेष महत्व है। ध्यान-साधना के लिये जब हम योग करते हैं तो मन का एकाग्र होना जरूरी है। लेकिन मन की एकाग्रता स्वस्थ शरीर से ही सम्भव है। अस्वस्थ शरीर से मन की एकाग्रता असम्भव है। अत: शरीर को स्वस्थ रखने के लिये आसन का महत्व बहुत अधिक है। यह क्रिया शरीर को स्वस्थ एवम् सुदृढ बनाये रखती है। इसका नियमित अभ्यास रोग प्रतिरोधक क्षमता Immunity की वृद्धि करता है।

लाभ :- सम्पूर्ण योगाभ्यास शरीर के लिये लाभदायी है। इसके लिये पहले आसन का अभ्यास करे, इसके बाद प्राणायाम ध्यान का अभ्यास करें। आसन शरीर को सीधा प्रभावित करते हैं। इसे लाभ एवम् प्रभाव बहुआयामी होते हैं। यह तन व मन दोनो को स्वस्थ रखने मे सहायक होता है। इसके लाभ इस प्रकार हैं :-

1. शरीर की मजबूती :- नियमित योगाभ्यास मे आसन शरीर को मजबूती देते हैं। ये शरीर की मासपेशियों को सुदृढ करते हैं। अस्थि जोड़ों को सक्रिय बनाये रखते हैं।

2. पाचन तन्त्र :- "आसन" के अभ्यास से पेट के आन्तरिक अंग जैसे- आंतें, किडनी, लीवर व पैनक्रियाज प्रभाव मे आते हैं। ये सब पाचनतंत्र को स्वस्थ रखने का काम करते हैं। इसका नियमित अभ्यास कब्ज दूर करने मे सहायक होता है।

3. रक्तचाप (BP) का सन्तुलन :- यह शरीर के रक्त-संचार को व्यवस्थित करता है। रक्तचाप (BP) को सन्तुलित रखने मे सहायक होते हैं।

4. मधुमेह (सुगर) नियन्त्रण :- आसन के अभ्यास से पेनक्रियाज प्रभाव मे आती हैं। यह सुगर नियन्त्रण करने मे सहायक होता है।

5. हृदय का स्वास्थ्य :- आसन का नियमित अभ्यास हृदय को स्वस्थ बनाये रखने मे सहायक होता है।

6. रोग प्रतिरोधक क्षमता :- आसन के अभ्यास से रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की वृद्धि होती है।यह "Immunity" शरीर को रोगों से बचाव करने का काम करती है।

आसन की सावधानियां 

योग मे आसन महत्वपूर्ण व लाभदायी क्रिया है। लेकिन इसे कुछ नियम व सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। आसन के अभ्यास मे इन सावधानियों को ध्यान मे रखें :-

1. सामान्य नियम :

• योगाभ्यास का आरम्भ आसन के अभ्यास से ही करें।
• दरी, चटाई या कपड़ा बिछा कर अभ्यास करें।
• सुबह का समय अभ्यास के लिये उत्तम है। दिन मे किसी अन्य समय मे भी अभ्यास कर सकते हैं। लेकिन खाना खाने के तुरंत बाद अभ्यास न करें।
• सही स्थान का चयन करें। पार्क जैसा प्राकृतिक वातावरण वाला स्थान उत्तम है। यदि घर पर आसन करने हैं तो खुला व हवादार स्थान का चयन करें।

2. क्षमता अनुसार अभ्यास करें :

• आसन का अभ्यास अपने शरीर की क्षमता अनुसार करें।
• कोई भी आसन बलपूर्वक न करें।
• सरल आसन करें। सरलता के साथ आसन की पूर्ण स्थिति मे जाएं। आसन की पूर्ण स्थिति मे स्थिरता के साथ कुछ देर तक रुकें। धीरे-धीरे स्थिति से वापिस आएँ।

3. सही क्रम व सन्तुलन से अभ्यास करें :

• आसन का अभ्यास सही क्रम से करें।
• पूरक-आसन या विपरीत-आसन भी करें। यदि एक आसन मे एक तरफ झुकते हैं, तो अगला आसन उसकी विपरीत दिशा मे अवश्य करें।
• एक अभ्यास करने के बाद कुछ सैकिंड विश्राम करें। विश्राम के बाद ही अगला आसन करें।
• सभी आसन करने के बाद अन्त मे "शव आसन" मे विश्राम करें।

4. नये अभ्यासी (Beginners) :

• नये अभ्यासी कठिन आसन न करें।
• आसन से पहले कुछ सूक्ष्म अभ्यास करें।
• आरम्भ मे कुशल प्रशिक्षक के निर्देशन मे अभ्यास करें।
• जिस आसन के अभ्यास मे कष्ट का अनुभव हो, उसका अभ्यास न करें।

5. वर्जित आसन :

• बिमारी की अवस्था मे अभ्यास न करें।
• शरीर के चोट ग्रस्त होने पर आसन न करें।
• शाल्य क्रिया (सर्जरी) के बाद अभ्यास नही करना चाहिए।
• गर्भवती महिलाएं आसन का अभ्यास न करें।
• महिलाएं मासिक-धर्म (पीरियड्स) मे आसन न करें।

लेख सारांश :

योग मे आसन का विशेष महत्व है। यह एक शारीरिक अभ्यास है। इसका नियमित अभ्यास शरीर को स्वस्थ रखने मे सहायक होता है।

Disclaimer :

यह लेख किसी प्रकार के रोग-उपचार हेतू नही है। केवल योग की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य  है। योग की सभी क्रियाएं अपने शरीर की क्षमता अनुसार करें। क्षमता से अधिक या बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

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