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योग शरीर को रखता है, निरोग
'योग' भारत की एक प्राचीन-जीवन शैली है। आरम्भ मे यह आध्यात्म का विषय था। उस समय यह केवल ऋषि मुनियों तक सीमित था। वे ध्यान-साधना के लिये अपने शरीर को इसी विधि से स्वस्थ रखते थे। ऋषियों द्वारा बताई गई इसी विधि को योग कहते हैं। आज पूरा विश्व इसी विधि को स्वास्थ्य हेतू अपना रहा है।
योग शरीर को कैसे निरोग रखता है? यह जानने के लिये पहले योग के विषय मे जानना होगा।
योग क्या है, यह शरीर को कैसे निरोग रखता है?
योग क्या है? केवल 'आसन' 'प्राणायाम' योग नहीं है। ये केवल योग के महत्वपूर्ण अंग है। आहार, विचार भी योग के अंग है। संतुलित आहार, उत्तम विचार तथा अनुशासित जीवन भी योग के अंग है। सम्पूर्ण योग के लिये इनको भी ध्यान मे रखना चाहिए।
हमारा आहार संतुलित व सात्विक हो, विचार उत्तम हों तथा जीवन अनुशासित हो तब सम्पूर्ण योग है। सम्पूर्ण योग के लिये 'अष्टांगयोग' बताया गया है। आसन, प्राणायाम व ध्यान इस के अंग है। अष्टांगयोग क्या है, पहले इसको समझ लेते हैं।
अष्टांगयोग क्या है?
अष्टांग योग के आठ अंग बताये गये है :-
1. यम :- सामाजिक नैतिकता की शिक्षा।
2. नियम :- व्यक्तिगत शुद्धि की शिक्षा।
3. आसन :- शारीरिक क्रियाएं।
4. प्राणायाम :- श्वसन अभ्यास।
5. प्रत्याहार :- इन्द्रिय नियन्त्रण।
6. धारणा :- चित्त को एक स्थान पर रोकना।
7. ध्यान :- चित्त की एकाग्रता।
8. समाधि :- चित्त वृत्तियों का निरोध हो जाना।
आधुनिक समय मे स्वास्थ्य के लिये केवल आसन, प्राणायाम व ध्यान इन तीन अंगो को ही अपनाया जाता है। प्रस्तुत लेख मे इन तीनो पर विचार किया जायेगा।
इन तीनो के अभ्यास के साथ यम-नियम का भी पालन करना चाहिए।
शरीर को निरोग रखने के लिये योग :
शरीर को निरोग रखने के लिये नियमित योगाभ्यास किया जाना चाहिए। सावधानी तथा नियमपूर्वक किया गया अभ्यास लाभदायी होता है। योगाभ्यास को सही क्रम से करना जरूरी है। योगाभ्यास नीचे बताये गये क्रम से ही करना चाहिए।
देखें :- Yoga Tips.
1. आसन :
योगाभ्यास के पहले क्रम में आसन का अभ्यास करें। आसन शरीर के अंगों को सुदृढ, सक्रिय तथ स्वस्थ बनाए रखते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक क्षमता तथा अवस्था अलग-अलग होती है। अत: आसन का अभ्यास करते समय इन बातों का ध्यान मे रखें :--
• स्थान व समय :- दरी, योगा मैट या कपड़े की सीट बिछा कर अभ्यास करें। योगाभ्यास को लिये सुबह का समय उत्तम होता है। सदैव खाली पेट योगाभ्यास करें। सही स्थान का चयन करें।
• सरल आसन :- सरलता से किए जाने वाले आसन लाभदायी होते हैं। कठिन आसन हानिकारक हो सकते है। अत: जिस आसन की स्थिति मे सरलता से अधिक देर ठहर सकते हैं, उस का अभ्यास करना चाहिए।
• क्षमता अनुसार :- आसन का अभ्यास अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार करना चाहिए। क्षमता से अधिक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।
• रोग की अवस्था में :- योगाभ्यास स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। रोग की स्थिति मे योगाभ्यास न करें। यदि इस स्थिति मे कुछ सरल आसन करने हैं तो चिकित्सक की सलाह से ही करें।
• वर्जित :- कुछ व्यक्तियों के लिये आसन वर्जित हैं। अत: इन व्यक्तियों को योगासन का अभ्यास नही करना चाहिए:--
- आँत या पेट के गम्भीर रोग मे।
- किसी अंग की शाल्य क्रिया (सर्जरी) के बाद।
- रीढ के क्षति ग्रस्त या रीढ के गम्भीर रोग मे।
- गर्भवती महिलाएं।
- अधिक बुजुर्ग व्यक्ति।
आसन का स्वास्थ्य पर प्रभाव :
नियमित योगासन शरीर को निरोग रखने मे सहायक होते हैं। ये शरीर को स्वस्थ रखने मे प्रभावी हैं।
2. प्राणायाम :
आसन के बाद दूसरे क्रम मे प्राणायाम का अभ्यास करें। यह एक श्वसन अभ्यास है। यह श्वसन क्रिया को सुदृढ करता है तथा प्राण शक्ति की वृद्धि करता है। यह शरीर के लिये ऊर्जादायी है। यह ऊर्जा शरीर को निरोग रखने मे सहायक होती है।
• बैठने की स्थिति :- आसन का अभ्यास करने के बाद उठ कर बैठ जाएं। प्राणायाम का अभ्यास करें। बैठने की स्थिति का चयन अपनी क्षमता अनुसार करें। पद्मासन की स्थिति मे बैठना उत्तम है। यदि पद्मासन मे बैठना सम्भव नही है तो किसी भी स्थिति मे सरलता से बैठें। रीढ को सीधा रखें।
• एकाग्रता बनाएं रखें :- प्राणायाम का अभ्यास करते समय एकाग्रता बनाये रखें। इसके लिये आँखेंं कोमलता से बन्ध रखें।
• क्षमता अनुसार अभ्यास :- प्राणायाम का अभ्यास अपने श्वास की क्षमता के अनुसार करें। क्षमता से अधिक अभ्यास न करें।
• कुम्भक सावधानी से लगाएं :- यदि श्वास की स्थिति ठीक है तो कुम्भक का प्रयोग करें। यदि श्वास रोग है या श्वास की स्थिति ठीक नही है तो कुम्भक न लगाये।
( कुम्भक :- श्वास को कुछ देर रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा जाता है)
• बलपूर्वक अभ्यास न करें :- एक अभ्यास करने के बाद श्वासो को सामान्य करें। श्वास सामान्य होने के बाद अगला अभ्यास करें। कोई भी क्रिया बलपूर्वक न करें।
• वर्जित :- प्राणायाम का अभ्यास कुछ व्यक्तियों के लिए वर्जित है। इन व्यक्तियों को प्राणायाम नही करना चाहिए :-
- श्वास रोगी।
- हृदय रोगी।
- कमजोर श्वसन वाले।
- अधिक वृद्ध व्यक्ति।
प्राणायाम के प्रभाव :
प्राणायाम शरीर के लिये ऊर्जादायी होता है। यह शरीर को निरोग रखने मे सहायक होता है। इसके प्रभाव बहुआयामी हैं :--
3. ध्यान Meditation :
योगाभ्यास के तीसरे क्रम मे ध्यान (Meditation) का अभ्यास करें। यह मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखने वाली क्रिया है।
विधि :-
ध्यान का प्रभाव :
"ध्यान" मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखने वाली क्रिया है। 'मन' व 'शरीर' दोनो का जुङाव है। मन भी शरीर को प्रभावित करता है। यदि मन स्वस्थ रहेगा तो शरीर भी स्वस्थ रहेगा। अत: 'स्वस्थ मन' शरीर को निरोग रखने मे सहायक होता है।
लेख सार :
'योग रखे निरोग' यह सही कहा गया है। योग शरीर को सुदृढ करने के साथ रोगों से लड़ने की शक्ति भी देता है।यह शरीर को ऊर्जावान बनाये रखता है। आसन, प्राणायाम व ध्यान इसके लिये प्रभावी हैं।
Disclaimer :
यह लेख किसी प्रकार के रोग का उपचार करने का दावा नही करता है। योग की सामान्य जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है। योग की सभी क्रियाएं स्वस्थ व्यक्तियो के लिये हैं। अस्वस्थ व्यक्ति चिकित्सक की सलाह के बिना कोई अभ्यास न करें।