ad-1

Dosplay ad 11may

हमारा शरीर असीमित शक्तियों का भण्डार है। प्रकृति ने हमें ऐसी शक्तियां प्रदान की हैं जो हमारे शरीर को रोगों से बचाती हैं। ये शक्तियां शरीर को मौसम के कुप्रभाव से भी बचाती हैं। लेकिन अधिकतर ये शक्तियां सुप्त अवस्था मे रहती हैं। योग इन शक्तियों को जागृत करता है।

आज के समय मे स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढी है। इसलिए आज पूरा विश्व योग के महत्व को समझ रहा है और योग को अपना रहा है। स्वास्थ्य के लिए योग का  महत्व क्या है? योग के स्वास्थ्य लाभ (Health Benefits of Yoga) क्या हैं? यह इस लेख का विषय है।

विषय सुची :--

  • योग और स्वास्थ्य। Yoga and health.
  • पतंजलि के अनुसार योग क्या है?
  • अष्टाँग योग।
  • आसन क्या है? आसन का महत्व, विधि।
  • प्राणायाम का महत्व। प्राणायाम की विधि।
  • ध्यान का महत्व। ध्यान की विधि।

योग और स्वास्थ्य। Yoga and health.

'योग' स्वास्थ्य के लिए एक उत्तम विधि है। यह पूरी तरह सुरक्षित है, सुलभ है तथा विज्ञान सम्मत विधि है। अपनी शारीरिक अवस्था के अनुसार योग सभी कर सकते है।प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति अलग-अलग होती है इस लिए सभी को योगाभ्यास अपनी क्षमता के अनुसार करना चहाए।

योगाभ्यास को सही तरीके से तथा सही विधि से किया जाए तो लाभकारी होता है। योग को सही विधि से कैसे किया जाए? तथा क्या सावधानी रखी जाएँ? यह जानने से पहले योग के बारे मे जान लेते है।

योग क्या है? तथा योग का महत्व।

'योग' भारत में प्राचीन काल से है। यह विश्व को भारत की देन है। प्राचीन समय मे यह आध्यात्म का विषय रहा है। उस समय यह आश्रमो व गुरुकुलों तक सीमित था। इसको आम जनमानस तक पहुँचाने का श्रेय महर्षि पतँजलि को दिया जाता है। उन्होने योग को सरल भाषा मे परिभाषित करके आम लोगो तक पहुँचाया।

प्राचीन समय मे योग केवल भारत तक ही सीमित था। विश्व को योग की जानकारी देने का कार्य कई भारतिय संतों ने किया है। योग को UN से भी मान्यता मिल चुकी है। अब प्रत्येक वर्ष 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। इसका श्रेय भारतिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को दिया जाता है।

योगसूत्र के अनुसार योग क्या है?

महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र मे "योग" को परिभाषित किया है। उनके अनुसार योग एक अनुशासन है। अर्थात् अनुशासित जीवन ही योग है। महर्षि पतंजलि योगसूत्र का आरम्भ "अथ योग अनुशासनम्" से करते हैं। इसका अर्थ है कि वे योग को एक अनुशासन मानते हैं।

योग की परिभाषा :- योगसूत्र के "समाधी पाद" के दूसरे 'सूत्र' मे योग परिभाषा दी गई है :- "योगश्चितवृति निरोध:"। इस सूत्र में महर्षि पतंजलि योग को परिभाषित करते हैं कि चित्त वृतियों का निरोध करना ही योग है। 'चित्त वृति निरोध' लिये अष्टाँग योग का प्रतिपादन किया गया है। इस को सम्पूर्ण योग बताया गया है।

अष्टाँगयोग के आठ अंग बताये गये है। लेकिन आज के समय में स्वास्थ्य के लिए तीन अंगो का ही प्रचलन है। ये तीन अंग है-- आसन, प्रणायाम और ध्यान। ये तीनो हमारे शरीरश्वास (प्राण) तथा मन को प्रभावित करते है। अत: इस लेख मे इन तीनो के बारे विस्तार से वर्णन किया जायेगा।

अष्टांगयोग सम्पूर्ण योग

महर्षि पतंजलि "योगसूत्र" मे अष्टांगयोग को विस्तार से वर्णन करते हैं। इसके आठ अंग बताए गए हैं। सम्पूर्ण योग के लिए इनका पालन करना जरूरी है। ये आठ अंग इस प्रकार हैं :--

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि

इस लेख मे आसन, प्राणायाम और ध्यान का वर्णन किया जायेगा। योग मे इन तीनों अंगो का महत्व तथा स्वास्थ्य लाभ (Health Benefits) के बारे में बताया जायेगा।

(विस्तार से देखें :- अष्टाँग योग।)

आसन क्या है? आसन के लाभ (Health Benefits).

आसन योग की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। यह अष्टाँग योग का तीसरा अंग है। यह सरलता से किये जाने वाली क्रिया है। आसन "स्थूल शरीर" (बाहरी शरीर) को प्रभावित करते हैं।

पतंजलि योग में 'आसन' की परिभाषा :- योगसूत्र मे महर्षि पतंजलि योग की परिभाषा देते हैं :-- स्थिरसुखम् आसनम्। अर्थात् स्थिरता और सुख पूर्वक जिस स्थिति (पोज) मे ठहर सकते हैं, उसे आसन कहा जाता है। इसका अर्थ है कि आसन सरलता से करने चाहिए। आसन मे स्थिरता से कुछ देर ठहरना चाहिए।

आसन का महत्व। Health benefits of Yoga.

यह योग की महत्वपूर्ण क्रिया है। यह शरीर को सीधा प्रभावित करती है। आसन हमारे शरीर के अंगों को सक्रिय रखता है। इस क्रिया से शरीर के बाहरी अंगो के साथ आन्तरिक अंग भी प्रभाव मे आते हैं।

शरीर के आन्तरिक अंग किडनी, लीवर तथा पैनक्रयाज के प्रभावित होने से शरीर के सभी राशायनिक तत्व सही मात्रा मे बने रहते है। आसन करने से रक्तचाप सामान्य रहता है। शरीर का पाचन तन्त्र, अस्थि जोङ तथा नाडी तन्त्र सुचारू एवम् स्वस्थ रहते हैं।

देखें :- योग में आसन का महत्व।

आसन कैसे करें?

आसन के बारे मे पतंजलि योगसूत्र मे बताया गया है कि आसन स्थिरता से और सुख पूर्वक किये जाने चहाएँ। अर्थात् जो आसन स्थिरता से तथा सुख पूर्वक किये जाते है, वे लाभकारी होते हैं।

स्थिरता :--- स्थिरता का क्या अर्थ है? जब आप आसन करते है, तो उसकी पूर्ण स्थिति मे पहुँचने के बाद कुछ देर तक रुकने का प्रयास करें। यही आसन की स्थिरता बताई गई है।

आसन का वास्तविक लाभ स्थिरता से रुकने मे ही है। जब हम कोई भी आसन करते है तो पूर्ण स्थिति मे पहुँचने पर शरीर का कोई न कोई अंग प्रभाव मे आता है। यही उस आसन से मिलने वाला लाभ है।

पूर्ण स्थिति क्या है :--- जब हम किसी भी आसन को करते हैं, तो उसका आरम्भ धीरे-धीरे करते हैं। आसन की जो अंतिम स्थिति बनती है वही आसन की पूर्ण स्थिति बताई गई है।

पूर्ण स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद धीरे-धीरे वापिस आ जाएँ।

नये साधक आरम्भ मे इस स्थिति नही पहुँच पाते है। इसके लिए अधिक प्रयास नही करना चहाए। पूर्ण स्थिति मे जाने के लिए शरीर के साथ बल प्रयोग न करें। आसन की जिस स्थिति तक आप पहुँच सके हैं, वहीं पर कुछ देर रुकें और धीरे-धीरे वापिस आ जाएँ।

सुख पूर्वक :--- सुखपूर्वक का अर्थ है, सरलता से। आसन वे ही करे जो सरल हो तथा जिसके करने मे सुख का अनुभव हो। यह जरूरी नही है कि कठिन आसन से अधिक लाभ मिलता है। लाभ सरल आसन मे है।

जिस आसन को करने मे अच्छा लगे और पूर्ण स्थिति मे सुख का अनुभव होता हो वह आसन अवश्य करें। उसमे ठहरने का अधिक लाभ होता है।

कोन से आसन करें?

आसन का चयन अपने शरीर की क्षमता, अवस्था तथा आयु के अनुसार स्वयं करें। कठिन आसन करने की अपेक्षा सरल आसन करें। जिस आसन मे आप अधिक देर तक रुक सकते है, वह अधिक लाभकारी है। 

क्षमता :--- आसन करते समय अपने शरीर की क्षमता का ध्यान रखें। जितना सरलता से कर सकते है उतना  ही करें।

सरलता से किये गये आसन लाभकारी होते हैं। क्षमता से अधिक प्रयास करना हानिकारक हो सकता है।

अवस्था :----  शरीर की अवस्था को ध्यान मे रख कर आसन करें। यदि आप स्वस्थ है तो सभी आसन कर सकते है।

यदि किसी बिमारी से पीङित है तो आसन करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह लें। यदि शरीर का कोई अंग किसी रोग से प्रभावित है तो ऐसा आसन न करे जो उस पर दबाव डालता हो।

आयु :--- आयु के अनुसार आसन करें। यदि आप युवा है तो आप लगभग सभी आसन कर सकते हैं। लेकिन आरम्भ मे सरल आसन ही करें और अभ्यास को धीरे-धीरे बढाये।

यदि आप वृद्ध हैं और आसन अपने युवाकाल से करते आ रहे हैं, तो आप उसी प्रकार जारी रख सकते हैं। लेकिन फिर भी आप को कठिन आसन से बचना चहाए।

जो वृद्ध व्यक्ति अभी योग आरम्भ कर रहे है वे केवल सरल आसन करें, ऐसा आसन करे जिस से शरीर को कोई परेशानी न हो। ऐसे व्यक्ति प्रशिक्षक के निर्देशन मे ही आसन करें।

देखें-- योग Senior Citizen के लिए 

पूरक आसन या विपरीत आसन भी करें

पूरक आसन क्या है? पूरक आसन पहले किए गए आसन का विपरीत दिशा मे किया जाने वाला आसन होता है। यह पहले किए गए आसन के लाभ मे वृद्धि करता है।

अधिकतर आसन हमारे दोनो तरफ के अंगो को प्रभावित करते हैं। इन आसनों से दाँये व बाँये अंग क्रमश: प्रभावित होते हैं। उनके पूरक आसन की अवश्यकता नही होती है।

लेकिन कुछ आसन है जिन के पूरक या विपरीत आसन होते हैं। जैसे सर्वांग आसन का पूरक आसन मत्स्य आसन है। उष्ट्रासन का विपरीत शशाँक आसन है। इसी प्रकार किसी आसन मे केवल पीछे की तरफ झुकना होता है तो उसे विपरीत अगले आसन मे आगे की तरफ झुकें। ऐसा करने से रीढ दोनो तरफ प्रभावित होती है।

देखें-- पूरक आसन क्या है?

प्राणायाम, और इसका महत्व

'प्राणायाम' श्वसन तंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्रिया है। यह अष्टांगयोग का चोथा अंग है। प्राणायाम का अर्थ है, प्राणों को आयाम देना। इस क्रिया से प्राणों की वृद्धि होती है। श्वसन तंत्र सुदृढ होता है। यह श्वासो पर आधारित क्रिया है।

पतंजलि योग मे प्राणायाम की परिभाषा :- योगसूत्र मे महर्षि पतंजलि प्राणायाम को परिभाषित करते हैं :- तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:। अर्थात् श्वास लेने और छोङने की सामान्य गति को अपनी क्षमता अनुसार कुछ देर रोकना प्राणायाम है।

प्राणायाम मे श्वासो  की तीन अवस्थाए हैं :--

1. पूरक :--- श्वास का अन्दर लेना पूरक होता है। 

2. रेचक :--- श्वास का बाहर छोङना रेचक कहा गया है।

3. कुम्भक :--- श्वास को अन्दर या बाहर रोकना कुम्भक होता है।

प्राणायाम मे कुम्भक का महत्व

प्राणायाम के वास्तविक लाभ कुम्भक लगाने से ही मिलते हैं। अत: प्राणायाम में कुम्भक का प्रयोग अवश्य करें।

कुम्भक के प्रकार :--- कुम्भक मुख्य रूप से  दो प्रकार के हैं।

1. आन्तरिक कुम्भक :--- श्वास को अन्दर रोकना आन्तरिक कुम्भक होता है।

2. बाह्य कुम्भक :--- श्वास को बाहर छोङ कर खाली श्वास मे रुकने को बाह्य कुम्भक कहा जाता है।

(तीसरा कुम्भक कैवेल्य कुम्भक होता है, जो स्वत: अप्रयास लगता है)

स्वास्थ्य के लिए प्राणायाम का महत्व है। लेकिन प्राणायाम मे कुम्भक का महत्व है। कुछ प्राणायाम बिना कुम्भक के किये जाते है जैसे कि अनुलोम विलोम। जिस प्राणायाम मे कुम्भक लगाने का निर्देश दिया जाता है उस मे कुम्भक अवश्य लगाएँ। कुम्भक का प्रयोग अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार ही करे। श्वास रोकने मे बल प्रयोग न करें।

प्राणायाम के लाभ। Health Benefits of Yoga.

'प्राणायाम' श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाली क्रिया है। यह एक लाभदायी क्रिया है।

  • प्राणायाम श्वसन तंत्र को सुदृढ करता है। यह लंग्स को एक्टिव रखता है।
  • इस क्रिया से शरीर को ऑक्सिजन पर्याप्त मात्रा मे मिलती है। यह हृदय को स्वस्थ रखने मे सहायक होता है।
  • इस क्रिया से प्राण-शक्ति की वृद्धि होती है। यह क्रिया 'प्राणिक नाङियों' के अवरोधों को हटाती है।
  • प्राणायाम से 'प्राण-ऊर्जा' ऊर्ध्वगामी (नीचे से ऊपर की ओर संचार करने वाली) होती है।
  • नियमित प्राणायाम 'अस्थमा' तथा हृदय रोग से बचाता है। 

प्राणायाम कैसे करें?

प्राणायाम श्वासों पर आधारित क्रिया है। अत: यह क्रिया अपने श्वासों की स्थिति के अनुसार ही करनी चहाए। यदि श्वास की स्थिति ठीक नही है, तो तीव्र गति वाले प्राणायाम न करें, तथा कुम्भक न लगाएँ। सरल प्राणायाम करें।

सरल प्राणायाम

  • आसन करने के बाद प्राणायाम करें।
  • पद्मासन मे बैठना उत्तम है। पद्मासन मे नही बैठ सकते है तो सुखासन मे बैठें। वृद्ध व्यक्ति तथा ऐसे व्यक्ति जो घुटने नही मोङ सकते वे कुर्सी पर बैठें। पीठ व गरदन को सीधा रखें।
  • दोनों हाथ घुटनो पर ज्ञान मुद्रा मे तथा आँखे कोमलता से बंद रखें।
  • लम्बे और गहरे श्वास लें और छोङे। गहराई तक पूरा श्वास भरना और पूरी तरह श्वास का रेचक करें। यदि आपके श्वासों की स्थिति ठीक है, श्वास रोग व हृदय रोग नही है तो कुम्भक का प्रयोग करें। तीन या चार आवर्तियाँ करने के बाद श्वासो को सामान्य करें। श्वास सामान्य होने के बाद कपालभाति करें।
  • कपालभाति :-- तीव्र गति से श्वास बाहर छोङना तथा सामान्य गति से श्वास का पूरक करना, श्वास के साथ पेट को आगे पीछे करना, यह कपालभाति है। यदि आपके श्वास की स्थिति मध्यम है तो इस क्रिया को धीमी गति से करें। अस्थमा पीङित तथा हृदय रोगी इस क्रिया को न करें या चिकित्सक की सलाह से करें। (देखे :-- कपालभाति क्या है?)
  • अनुलोम विलोम :--- यह सरल प्राणायाम है। इसको सभी कर सकते हैं। कपालभाति के बाद इसको अवश्य करना चहाए। इस क्रिया मे बाँयी नासिका से श्वास का पूरक करें तथा दाँयी नासिका से रेचक करें। फिर दाँये से पूरक करे और बाँये से रेचक करें। यह एक आवर्ती (एक राउँड) हुई। इस प्रकार 3 या 4 आवर्तियाँ करे और वापिस आ जाए। श्वास सामान्य करें।
  • भ्रामरी प्राणयाम :--- दोनो हाथो को मोङे, दोनो अंगूठों से दोनो कानो को बन्द करे, तथा उगलियाँ चेहरे के सामने रखें। कानो को इस प्रकार बंद करे की बाहर की आवाज सुनाई न दे। लम्बा श्वास का पूरक करें। होठों को बंद रखें, कण्ठ से ऊँ-ऊँ-ऊँ की आवाज निकालें। श्वास के रेचक होने के बाद फिर श्वास का पूरक करें और वही क्रिया दोहरायें। दो या तीन आवर्तियाँ करने के बाद वापिस आ जाएँ।
  • नाङी शौधन :--- अन्त मे यह प्राणायाम करें। इस प्राणायाम से सभी प्राणिक नाङियों का शौधन होता है। इस प्राणायाम मे कुम्भक लगाया जाता है। अत: श्वासो की स्थिति को देख कर ही इस प्राणायाम को करें। इस प्राणायाम को करने के लिये बाँयी नासिका से आरम्भ करते हैं। दाँयी नासिका बंद करके बाँये से धीरे-धीरे श्वास का पूरक करें, बाँयी नासिका भी बंद करें और भरे श्वास मे कुछ देर रुकें। दाँयी तरफ से रेचक करें। पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद फिर धीरे-धीरे दाँयी तरफ से श्वास भरें। भरे श्वास मे कुछ देर रुकें। कुछ देर रुकने के बाद बाँयी तरफ से रेचक करें। यह एक आवर्ती हई। ये दो-तीन आवर्तियाँ करें।

प्राणायाम के अन्त मे श्वासों को सामान्य करें और ध्यान की स्थिति मे आएँ।

प्राणायाम मे सावधानी

स्वास्थ्य के लिए योग मे प्राणायाम महत्वपूर्ण है। लेकिन इस क्रिया मे कुछ सावधानी रखना जरूरी है।

  • प्राणायाम अपने शरीर व श्वासो की स्थिति के अनुसार ही करें।
  • श्वास रोग या हृदय रोग है तो कुम्भक न लगाएँ।
  • गर्भवति महिलाएँ तीव्र गति वाले या पेट पर दबाव डालने वाले प्राणायाम न करे। केवल अनुलोम विलोम करें।

(प्राणायाम के बारे मे अधिक जानकारी के लिए हमारे अन्य लेखों का अवलोकन करें)

ध्यान का महत्व

योग मे ध्यान का सब से अधिक महत्व है। यह मन, मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली क्रिया है। अत: स्वास्थ्य के लिए योग मे "ध्यान" सब से अधिक महत्व रखता है।

ध्यान का प्रभाव

यह योग को अन्तिम चरण की ओर ले जाने वाली क्रिया है। मन की एकाग्रता बढती है। इस क्रिया से मन व मस्तिष्क प्रभाव मे आते है। मानसिक शाँति मिलती है।

ध्यान की विधि

ध्यान लगाने की कई विधियाँ है। लेकिन उद्देश्य एक ही है। ध्यान का मूल उद्देश्य मन को एकाग्र करके साधना तक पहुँचाना है। स्वास्थ्य के लिए भी ध्यान का महत्व है। आईये देखते है ध्यान की सरल विधि।

  • आसन और प्राणायाम के बाद ध्यान के लिए पद्मासन या सुखासन मे बैठें। आँखें कोमलता से बंद करें तथा दोनो हाथों को ज्ञान मुद्रा मे रखें।
  • लम्बे-गहरे श्वासो का पूरक व रेचक करें। ध्यान को श्वासों पर केन्द्रित करें। ध्यान केवल आती जाती श्वासो पर रखें तथा मन को निर्विचार भाव मे रखें।
  • कुछ देर बाद ध्यान को श्वासो से हटाएँ तथा  ध्यान को आज्ञा चक्र मे केंद्रित करे।
  • आज्ञा चक्र की स्थिति हमारे माथे के मध्य मे है जहाँ तिलक लगाया जाता है। बंद आँखों से प्रकास-पुञ्ज को निहारें। निर्विचार भाव मे स्थित रहें। कोई विचार मन मे न आने दे।
  • कुछ देर इस स्थिति मे ठहरने के बाद ध्यान से वापिस आएँ। दोनों हाथों के हथेलियो मे घर्षण करें तथा हाथो से चेहरे पर ऊर्जा को धारण करे। शवासन मे लेट कर विश्राम करे।

यह सम्पूर्ण योगाभ्यास की विधि है। इसे नियमित करें क्योकि स्वास्थ्य के लिए योग महत्वपूर्ण है।

सारांश :--

स्वास्थ्य के लिए योग महत्व पूर्ण क्रिया है। पहले आसन करें। आसन के बाद प्राणायाम करें। और अंत मे ध्यान की स्थिति मे बैठें।

Disclaimer :- 

योग सरलता से किये जाने वाली क्रिया है। इसे बलपूर्वक न करें। सरल योग लाभकारी है। बल पूर्वक तथा क्षमता से अधिक अभ्यास करना हानिकारक हो सकता है। योग स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। अस्वस्थ व्यक्ति चिकित्सक की सलाह लें। यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार के लिये नही है। योग की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है।

Post a Comment