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हृदय (Heart) हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसी के द्वारा शरीर मे रक्त संचार की क्रिया होती है। यह आजीवन बिना रुके कार्य करता रहता है। अनियमित जीवन शैली तथा गलत खान-पान के कारण यह प्रभावित होता है। इन कारणों से इसमे ब्लाकेज आने लगती हैं। और यह रोगग्रस्त होने लगता है।

हृदय के लिये योगासनप्राणायाम बहुत प्रभावशाली क्रियाएँ हैं। प्रस्तुत लेख मे हृदय को स्वस्थ रखने के लिये कुछ विशेष योगासन व प्राणायाम बताये  जायेगे। इस लेख मे यह भी बताया जायेगा कि "क्या हृदय रोग पीङित योग कर सकते हैं?"

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विषय सुची :-

हृदय के लिये योगासन। Yoga for Heart.

  • सूक्ष्म आसन।
  • ताङासन व हस्तपादासन।
  • कटिचक्रासन।
  • पश्चिमोत्तान आसन व पूर्वोत्तान आसन।
  • वज्रासन।
  • भुजंग आसन व धनुरासन।
  • सर्वांग आसन व मत्स्य आसन।
  • हृदयरोगी तथा वृद्धों के लिये सावधानियाँ।
हृदय के लिये प्राणायाम।
  • कपालभाति।
  • अनुलोम विलोम।
  • भस्त्रिका।
  • नाङीशौधन।
  • श्वास व हृदय रोगियों के लिये सावधानियाँ।

हृदय पर योग का प्रभाव।

योग हमारे सम्पूर्ण शरीर को प्रभावित करने वाली क्रिया है। योग मे आसन शरीर के आंतरिक व बाह्य अंगों को सक्रिय (एक्टिव) करते है। रक्त-संचार को सुचारू रखते हैं। और प्राणायाम हमारे श्वसन तंत्र, लंग्स तथा हृदय को मजबूती देता है।

"हृदय" रोगग्रस्त क्यो होता है? इसको स्वस्थ रखने के उपाय क्या हैं? तथा कोन से योगासन व प्राणायाम हृदय को स्वस्थ रखते हैं? इन सभी के बारे मे इस लेख में विस्तार से बताया जायेगा।

हृदय के लिये योगासन।

"अनियमित जीवन शैली" हृदय-रोग का मुख्य कारण बनती है। नियमित योगासन शरीर के सभी आन्तरिक अंगों को प्रभावित करते हैं। आसन हमारे Lungs तथा Heart को सुदृढ करते है। शरीर के रक्त-प्रवाह (BP) को सुचारु रखते हैं।

सभी आसन शरीर के लिये लाभकारी होते हैं। लेकिन कुछ विशेष आसन हैं, जो हृदय को स्वस्थ रखते हैं। आईए इन आसनो के बारे मे विस्तार से समझ लेते हैं।

1. खङे होकर किये जाने वाले आसन।

बिछे हुये आसन (सीट) पर खङे हो जाँये। शरीर को वार्म-अप करने के लिये कुछ सूक्ष्म आसन करें।

वार्म-अप :- खङे होकर जॉगिंग करते हुये शरीर को वार्म-अप करें। 2-3 मिनट या क्षमता अनुसार क्रिया करने के बाद विश्राम की स्थिति मे आ जाँये। दोनो पैर उचित दूरी पर रखें। श्वास सामान्य करते हुये कुछ देर विश्राम करें।

ताङासन व हस्तपाद आसन।

श्वास सामान्य होने के बाद ताङासन स्थिति मे आँये। दोनो हाथ धीरे धीरे ऊपर ले जाँये। श्वास भरते हुये हाथों को ऊपर की ओर खींचे।

श्वास छोङते हुये कमर से आगे की ओर झुकें। हाथों मे खिंचाव बनाये रखें। दोनो हाथों को नीचे टिकाने का प्रयास करें।

माथा घुटनो के पास ले जाने का प्रयास करें। "खाली श्वास" या "श्वास को सामान्य" करते हुये कुछ देर स्थिति में रुकें।

अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे- धीरे ऊपर उठें। कमर सीधी होने के बाद श्वास भरते हुये हाथों को ऊपर की ओर खींचे। हाथों को नीचे ले कर आँये। लेट कर शवासन में विश्राम करें।

2. बैठ कर किये जाने वाले आसन।

श्वासन मे विश्राम करने के बाद दाँयी ओर दोनो हाथों का सहारा लेकर उठें। दोनो पैरो को सीधा रखेें। हाथों को पीछे टिका कर रखें। गरदन को सरलता से पीछे की ओर ढीला छोङ दें। कुछ आसन बैठने की स्थिति मे करें।

कटिचक्रासन।

रक्त-चाप को सामान्य रखने के लिये यह एक उत्तम आसन है।

  • आसन पर पैर फैला कर बैठ जाँये।
  • दोनो पैरो मे अधिकतम दूरी बनाये।
  • आगे की ओर झुकते हुये बाँया हाथ दाँये पैर के पँजे के पास ले जाँये। दाँया हाथ कमर के पीछे ले जाँये। ऊपर उठें।
  • फिर आगे झुकें। दाँया हाथ बाँये पैर के पँजे के पास ले जाँये। बाँया हाथ कमर के पीछे रखें।
  • यह एक चक्र पूरा हुआ। इसी प्रकार अपनी क्षमता के अनुसार अन्य आवर्ती दोहराये।
  • अपनी क्षमता अनुसार आसन करने के बाद वापिस आ जाँये।
  • पैरो का अन्तर कम करें।
  • हाथों को पीछे टिकाये।
  • गरदन को पीछे की तरफ लटकाते हुये ढीला छोङ दें। श्वास सामान्य रखते हुये कुछ देर विश्राम करें।

पश्चिमोत्तान आसन।

बैठ कर किये जाने वाले आसनों मे यह एक महत्वपूर्ण आसन है।

आसन की विधि :-

  • पैरों को सीधा कर के बैठ जाँये।
  • दोनों पैरो को एक साथ रखें। दोनो हाथ घुटनो पर।
  • धीरे धीरे श्वास भरते हुये दोनो हाथ ऊपर उठाँये।
  • श्वास छोङते हुये आगे की ओर झुकें। दोनो हाथों से पैर के पँजे पकङने का प्रयास करें।
  • माथा घुटनों के पास ले जाने का प्रयास करें। श्वास सामान्य करते हुये इस स्थिति मे कुछ देर रुकें।
  • अपनी क्षमता अनुसार रुकने के बाद श्वास भरते हुये ऊपर उठें। हाथों को दाँये-बाँये रखते हुये नीचे ले आँये।
  • दोनों हाथ विश्राम की स्थिति मे पीछे टिकाये। पैरो मे सुविधा अनुसार दूरी रखें। विश्राम करते हुये तनाव को दूर करे। इसके बाद पूर्वोत्तान आसन करें।

पूर्वोत्तान आसन।

यह पश्चिमोत्तान आसन का विरीत आसन है। यह पहले किये गये आसन के लाभ मे वृद्धि करता है।

आसन की विधि :-

  • एङी, पँजे व घुटने एक साथ रखें।
  • हाथों को पीछे की तरफ रखें। शरीर के मध्य भाग को ऊपर उठाँये। शरीर का बैलेंस हाथों और पैर की एङियों पर रखें।
  • कुछ देर इस स्थिति मे रुकें। अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापिस आ जाँये। मध्य भाग को नीचे टिकाये।
  • दोनो हाथ दाँयी ओर रखे। दोनो पैरों को बाँयी ओर मोङ कर घुटनो के बल वज्रासन मे बैठ जाँये।

वज्रासन।

दोनो घुटनो को मोङ कर बैठें। दोनो घुटने मिला कर रखें। पँजे सीधे। एडियो मे दूरी रखें। दोनो एडियों के बीच मे मध्य भाग को टिका कर बैठें। दोनों हाथ घुटनों पर, तथा कमर व गरदन को सीधा रखें। श्वास सामान्य रखते हुये कुछ देर वज्रासन मे रुकें।

कुछ देर वज्रासन मे रुकने के बाद सीने (चेस्ट) के बल "स्थिल-आसन" मे लेट जाँये। इस स्थिति मे भुजंग आसन और धनुरासन करें।

3. लेट कर किये जाने वाले आसन।

भुजंग आसन और धनुरासन दोनो आसन सीने के बल लेट कर किये जाने वाले आसन हैं। ये हृदय को आराम देने वाले उत्तम आसन है। पहले भुजंग आसन करे उसके बाद धनुरासन करें।

भुजंग आसन की विधि :- इस आसन को करने से रक्त प्रवाह सरलता से हृदय की ओर हो जाता है। इस आसन से श्वसन क्रिया भी उत्तम होती है।

इस आसन को करने के लिये सीने (चेस्ट) के बल उल्टे लेट जाये। आसन करने से पहले "स्थिल आसन" दाँयी तरफ से लें।

स्थिल आसन दाँयी तरफ से :- 

  • सीने के बल लेटें।
  • दाँया हाथ व दाँया पैर सीधा रखें।
  • बाँया हाथ व बाँया पैर मोङ लें।
  • गरदन को घुमाते हुये दाँया कान नीचे और बाँया कान ऊपर की ओर रखें।
  • श्वास सामान्य रखते हुये कुछ देर इस स्थिति मे रुकें।
आसन की स्थिति मे आये :- कुछ देर स्थिल आसन में विश्राम करने के बाद भुजंग आसन की स्थिति मे आ जाँये।
  • सीने के बल लेट जाँये।
  • माथा नीचे आसन से लगाँये।
  • दोनो हाथ कोहनियों से मोङे। हथेलियाँ गरदन के दाँये बाँये रखें।
  • दोनो पैर सीधे, एडी पँजे व घुटने एक साथ मिले हुये। पँजे सीधे तने हुये रखें।
  • धीरे से सिर को ऊपर की ओर उठाये। गरदन को पीछे की ओर मोङते हुये सिर को अधिकतम ऊपर उठाये। कुछ देर रुकें।
  • धीरे धीरे सीना (चेस्ट) ऊपर उठाये।
  • कुछ देर क्षमता अनुसार रुके और धीरे धीरे वापिस आ जाँये। पहले सीना (चेस्ट) फिर माथा नीचे टिकाये।
  • स्थिल आसन ले बाँयी तरफ से।

( विस्तार से देखें :- भुजंग आसन के लाभ। )

स्थिल आसन बाँयी तरफ से :- 
  • बाँया हाथ व पैर सीधा करें।
  • दाँया हाथ व पैर मोङें।
  • गरदन घुमाये, बाँया कान नीचे दाँया कान ऊपर की ओर रखें।
  • श्वास सामान्य रखें। कुछ देर विश्राम करें।
  • कुछ देर विश्राम करने के बाद धनुरासन की स्थिति मे आ जाँये।

धनुरासन।



भुजंग आसन करने के बाद धनुरासन करें। यह आसन भुजंग आसन के लाभ को बढाने वाला आसन है। यह हृदय के लिये प्रभावी आसन है।

आसन की विधि :-

  • सीना (चेस्ट) के बल लेटें।
  • दोनो पैर घुटनो से मोङें।
  • दोनो हाथो को पैरो के टखनो के पास ले जाये।
  • दोनो हाथो से पैरो को पकङ कर घुटने ऊपर उठाँये। आगे से चेस्ट को भी ऊपर उठाँये।
  • स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद धीरे से वापिस आ जाँये।
  • वापिस आने के बाद स्थिल आसन मे विश्राम करे दाँयी ओर से।
  • विश्राम के बाद करवट बदलते हुये पीठ के बल सीधे लेट जाँये। इस स्थिति मे सर्वांग आसन मत्स्य आसन करें।

सर्वांग आसन और मत्स्य आसन।

ये दोनो आसन पीठ के बल लेट कर किये जाने वाले आसन हैं। सर्वांग आसन हृदय के लिये एक लाभकारी आसन है। इस आसन को करने से रक्त संचार की स्थिति हृदय की ओर सरलता से हो जाती है। "सर्वांग आसन" के बाद "मत्स्य आसन" अवश्य करें। यह सर्वांग आसन का पूरक आसन कहा गया है।

सर्वांग आसन की विधि :- 

  • इस आसन को करने के लिये पीठ के बल लेट जाँये।
  • दोनों पैरो को एक साथ मिला कर रखें। दोनों हाथ शरीर के साथ कमर के दाँये-बाँये रखे। हथेलियो की दिशा नीचे की ओर रखें।
  • धीरे-धीरे दोनों पैर ऊपर उठाँये। घुटनो को सीधा रखें। पूरी तरह ऊपर उठने के बाद पैरों को पीछे सिर की ओर ले जाँये।
  • दोनो हाथो को पीठ पर ले आँये। हाथो का सहारा लेते हुये दोनो पैरो को ऊपर की ओर ले आँये। कमर को हाथो का सहारा देते हुये ऊपर उठा दें। पैरो को ऊपर की ओर खींच कर रखें।
  • मध्य भाग ऊपर उठने के बाद कन्धों पर शरीर का संतुलन (बैलेंस) बना कर कुछ देर रुकें। क्षमता अनुसार रुकने के बाद धीरे से कमर को नीचे टिकाये। हाथों को कमर से हटाएँ।
  • धीरे-धीरे दोनो पैरो को नीचे ले कर आँये। घुटने सीधे रखें। नीचे आने के बाद दोनो पैरो मे दूरी बना कर विश्राम करें। विश्राम के बाद मत्स्य आसन करें।

मत्स्य आसन :- 

यह सर्वांग आसन का पूरक आसन है। यह पहले किये गये आसन के लाभ को बढाने वाला आसन है।

आसन की विधि 

  • लेटने की स्थिति मे दोनो पैरो से पद्मासन लगाये। दाँया पैर बाँयी जँघा पर रखें। बाँया पैर दाँयी जँघा पर रखें।
  • दोनो हाथों से पैरों के अँगूठे पकङें। घुटने नीचे टिकाये। कोहनियो का सहरा लेते हुये मध्य भाग ऊपर उठाये।
  • कुछ देर इस स्थिति मे रुकें। क्षमता अनुसार रुकने के बाद वापिस आ जाँये। पैरों को खोल कर कुछ देर शवासन में विश्राम करें

हृदय रोगियों, वृद्धों के लिये सावधानियाँ।

ऊपर बताये गये सभी आसन केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिए हैं। गम्भीर हृदय रोगी तथा अधिक वृद्ध व्यक्ति आसन न करे। ऐसे व्यक्तियों को पैदल चलना, टहलना तथा सूक्ष्म आसन करने चहाए।

सरल आसन करें :- हृदय रोग की आरम्भिक स्थिति मे केवल सरल आसन करें। आसन करते समय यदि तनाव का अनुभव हो तो उस आसन को न करे। और धीरे से वापिस आ जाँये। आसन करते समय शरीर के साथ बल प्रयोग न करें।

बल प्रयोग से हानि :- सरलता से किये गये आसन लाभकारी होते हैं। बलपूर्वक किये गये आसन हानिकारक हो सकते है। अत: सरलता से आसन करें। आसन की पूर्ण स्थिति मे जाने का अधिक प्रयास न करें।

चिकित्सक की सलाह लें :- रोगग्रस्त होने पर अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य ले। औषधी सेवन करें। कोई भी योग क्रिया चिकित्सक की सलाह लेकर ही करें। 

आहार :- खान पान का विशेष ध्यान रखें। संतुलित आहार लें। चिकनाई व तले हुये आहार को न लें।

हृदय के लिये प्राणायाम।

प्राणायाम श्वासों पर आधारित क्रिया है। यह क्रिया रक्त-चाप को सामान्य रखती है। श्वसन तंत्र को सुदृढ करती है। इस क्रिया से प्राणिक नाडियों के अवरोध दूर होते हैं। इन सब का हृदय से सीधा सम्बंध है। हृदय को स्वस्थ रखने के लिये कुछ विशेष प्राणायाम हैं। इसका वर्णन आगे विस्तार से किया जायेगा।

कपालभाति।

श्वसन तंत्र को सुदृढ करने के लिये। तथा रक्त चाप (BP) को सामान्य रखने के लिये यह एक उत्तम क्रिया है।

कपालभाति की विधि :- पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। दोनो हाथ घुटनो पर रखे। पेट को अन्दर की ओर प्रभावित करते हुये श्वास तीव्र गति से बाहर निकालें। श्वास भरने की गति सामान्य रखें।

2-3 मिनट या अपनी क्षमता के अनुसार क्रिया को करें। वापिस आने पर श्वास सामान्य करे।

(सम्पूर्ण विधि की जानकारी के लिये देखें :- कपालभाति कैसे करें? )

अनुलोम विलोम।


कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम अवश्य करें। यह कपालभाति के लाभ मे वृद्धि करता है। यह सरलता से किया जाने वाला उत्तम प्राणायाम है।

प्राणायाम विधि :-

  • पद्मासन या सुखासन में बैठे।
  • बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखें।
  • दाँया हाथ नासिका के पास इस प्रकार रखें कि अँगूठा नाक के दाँयी तरफ रहे। और तीसरी उँगली नाक के बाँयी तरफ रहे।
  • दाँयी नासिका बन्ध करके बाँयी नासिका से श्वास भरें।
  • पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका को बन्ध करें। दाँये से श्वास खाली करें।
  • पूरा श्वास खाली होने के बाद दाँये से श्वास भरें, और बाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अन्य आवर्तियाँ करें।

अपनी क्षमता के अनुसार आवर्तियाँ करने के बाद वापिस आँये और श्वास सामान्य करें।

भस्त्रिका प्राणायाम।

श्वसनतंंत्र को सुदृढ करने वाला तथा हृदय को स्वस्थ रखने वाला उत्तम प्राणायाम है। यह रक्त चाप को सामान्य रखने मे सहायक होता है।

प्राणायाम विधि :- 

  • पद्मासन या सुखासन में बैठें।
  • दोनो हथेलियाँ घुटनो पर रखें।
  • कमर व गरदन को सीधा रखें।
  • तीव्र गति से श्वास भरे और खाली करें।
  • आरम्भ मे श्वास लेने और छोङने की गति को धीमि रखें। धीरे धीरे गति को बढाते जाये।
  • श्वास लेते व छोङते समय पेट को आगे पीछे प्रभावित करें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार करने के बाद गति को धीमा करते जाँये। और वापिस आ जाँये। श्वास सामान्य करें।
(अधिक जानकारी के लिये देखें :- भस्त्रिका प्राणायाम का सही तरीका )

भस्त्रिका मे सावधानी :-

यह प्राणायाम केवल स्वस्थ व्यक्ति ही करें। हृदय के गम्भीर रोगी, श्वास रोगी इस प्राणायाम को न करें। उच्च रक्त-चाप (High BP) वाले व्यक्ति धीमि गति से प्राणायाम करें।

नाङी शौधन प्राणायाम।

यह प्राणों का प्रवाह करने वाली 72,000 "प्राणिक-नाङियों" का शौधन करता है। यह प्राणायाम श्वसनतंत्र के अवरोधों को दूर करता है। हृदय के लिये यह एक लाभदायी प्राणायाम है।

प्राणायाम की विधि :- 

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञानमुद्रा में रखें।
  • दाँया हाथ प्राणायाम-मुद्रा मे नासिका के पास रखें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। आँखे कोमलता से बन्ध करें।
  • दाँये हाथ के अंगूठे से दाँयी नासिका बन्ध करें। बाँयी नासिका से धीरे धीरे लम्बा-गहरा श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका को भी बन्ध करें। भरे श्वास मे क्षमता अनुसार रुकें।
  • भरे श्वास मे कुछ देर रुकने के बाद दाँयी तरफ से श्वास को खाली करें।
  • पूरी तरह श्वास खाली करने के बाद दाँयी तरफ से श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद दाँयी नासिका को बन्ध करें। भरे श्वास में कुछ देर रुकें।
  • भरे श्वास मे क्षमता अनुसार रुकने के बाद बाँयी तरफ से श्वास को खाली कर दें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार 2 या 3 आवर्तियाँ और करें।
  • प्राणयाम से वापिस आने के बाद श्वास सामान्य करें।
नाङीशौधन की सावधानियाँ :-

श्वास रोगी व हृदय रोगी इस प्राणायाम को करते समय कुछ सावधानियों को ध्यान मे रखें।

  • अपनी क्षमता के अनुसार प्राणायाम करें।
  • श्वास रोकने मे अधिक बल प्रयोग न करे।
  • गम्भीर रोग पीङित इस प्राणायाम को न करें। ऐसे व्यक्ति अनुलोम विलोम प्राणायाम करें।
 श्वास व हृदय रोगियों के लिये सावधानियाँ 

लेख मे बताये गये सभी प्राणायाम केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। प्रत्येक व्यक्ति के श्वासो की क्षमता अलग-अलग होती है। इस लिये अपनी क्षमता के अनुसार प्राणायाम करें।

श्वास व हृदय रोगी अपने चिकित्सक की सलाह के बिना प्राणायाम न करें। औषधियों का सेवन बन्ध न करें। चिकित्सक की सलाह से हल्के प्राणायाम ही करें।

लेख सारंश :- हृदय के लिये योगासन व प्राणायाम लाभकारी होते हैं। संतुलित आहार ले। नियमित योग करें।

Disclaimer :- यह लेख किसी प्रकार के रोग का उपचार करने का दावा नहीं करता है। योग के लाभ तथा सावधानियों की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है। कोई भी योग क्रिया करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लें।


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