आसन और प्राणायाम योग के महत्वपूर्ण अंग हैं। योगाभ्यास में इनका विशेष महत्व है। इन दोनों का अभ्यास स्वास्थ्य के लिए लाभदाई होता है। आसन का अभ्यास शरीर के अंगों को स्वस्थ एवं सुदृढ़ करता है। प्राणायाम का अभ्यास श्वसन तंत्र को मजबूती देता है। इन दोनों का अभ्यास शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।
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शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आसन-प्राणायाम
योग भारत की एक प्राचीन विधि है। इसका अभ्यास शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक शक्ति देता है। योग एक विस्तृत विषय है। आसन-प्राणायाम इसके विशेष अंग हैं। शरीर पर इनके प्रभाव बहुआयामी होते हैं। ये सरल व सुरक्षित हैं। सभी व्यक्ति अपनी क्षमता अनुसार इनका अभ्यास कर सकते हैं।
आसन और प्राणायाम क्या हैं? ये शारीरिक स्वास्थ्य के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं? इस लेख में आगे इन विषयों पर विचार करेंगे।
आसन क्या है? कौन से आसन करने चाहिए?
यह योग का एक शारीरिक अभ्यास है। यह शरीर को सुदृढ़ एवं स्वस्थ बनाए रखता है। इसका नियमित अभ्यास शरीर के आंतरिक अंगों को सक्रिय करता है। इन अंगों के सक्रिय होने से शरीर का रक्तचाप, शुगर तथा अन्य तत्व संतुलित रहते हैं।
योगाभ्यास का आरम्भ आसन से करना चाहिए। आसन के बाद प्राणायाम करना लाभकारी होता। (अधिक जानकारी के लिए देखें :- पहले आसन क्यों?)
आसन क्या है?
महर्षि पतंजलि के अनुसार आसन की दो विशेषताएं हैं :-
कौन से आसन लाभकारी हैं?
1. अंगों को आराम देने वाले अभ्यास : जिस पोज की स्थिति में शरीर के अंगों को आराम (सुख) का अनुभव होता है, उसका अभ्यास आपके लिए लाभकारी होता है। शरीर को कष्ट देने वाले तथा तनाव वाले अभ्यास नहीं करने चाहिए।
2. स्थिति में रुकने वाले अभ्यास : योगाभ्यास करते समय आप सरलता से जिस स्थिति में अधिक देर तक रुक सकते हैं, वह आसन लाभदाई होता है।
3. क्षमता व अवस्था अनुसार अभ्यास : अपने शरीर की क्षमता अनुसार किए जाने वाले सभी आसन आपके लिए लाभकारी होते हैं। बलपूर्वक तथा कठिन अभ्यास हानिकारक हो सकते हैं।
आसन का अभ्यास कैसे करें?
(अधिक जानकारी के लिए देखें :- योगासन)
प्रत्येक पोज के बाद कुछ सेकंड का विश्राम करें। उसके बाद अगले आसन का अभ्यास करें। लगातार, बिना रुके और जल्दी-जल्दी किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है। सभी अभ्यास करने के बाद अंत में पीठ के बल लेटकर कुछ देर विश्राम करें।
आसन का प्रभाव
योगाभ्यास में यह शरीर को सीधा प्रभावित करने वाला अभ्यास है। इसके बहुआयामी प्रभाव इस प्रकार हैं :-
- शारीरिक मजबूती : यह शरीर के सभी अंगों को सक्रिय और स्वस्थ बनाए रखता है। इसका नियमित अभ्यास अस्थि-जोड़ों व मांसपेशियों को मजबूती देता है।
- आंतरिक अंगों को स्वस्थ रखता है : नियमित योगासन का अभ्यास शरीर के सभी आंतरिक अंगों, जैसे किडनी, लीवर, पैंक्रियाज तथा आंतों को प्रभावित करता है।
- रक्त संचार को व्यवस्थित करता है : यह शरीर के रक्त संचार को व्यवस्थित बनाए रखता है।
- रक्तचाप का संतुलन : यह शरीर के रक्तचाप को संतुलित करता है।
- शुगर तथा अन्य तत्वों का संतुलन : यह अभ्यास शरीर के सभी तत्वों, कफ, वात और पित्त को संतुलित करता है। यह शरीर के हार्मोन्स को भी संतुलित करता है।
- पाचन तंत्र : आंतों तथा पेट के सभी अंगों को प्रभावित करता है। कब्ज, गैस और एसिडिटी से राहत देता है। यह पाचन क्रिया को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि : आसन का अभ्यास शरीर का रोगों से बचाव करता है। यह शरीर को रोगों से लड़ने की शक्ति देता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि करता है।
सावधानियां :
1. योग के सामान्य नियम का ध्यान रखें: योगाभ्यास के कुछ सामान्य नियम होते हैं। इनका पालन किया जाना चाहिए।
- कपड़ा अथवा योगा-मैट बिछा कर अभ्यास करें।
- खाना खाने के तुरंत बाद अभ्यास न करें।
- लगातार, जल्दबाजी में अभ्यास न करें।
- एक आसन करने के बाद अगला अभ्यास करने से पहले विश्राम करें।
- मौसम को ध्यान में रखते हुए अभ्यास करें।
- सही क्रम से अभ्यास करें।
2. क्षमता अनुसार : अपने शरीर की क्षमता का ध्यान रखें। बलपूर्वक की आसन न करें।
3. अवस्था अनुसार : योगाभ्यास करते समय आने शरीर की अवस्था का अवलोकन करें। यदि आप वृद्ध हैं, तो सरलता से किए जाने वाले आसन का अभ्यास करें। शरीर में कोई पीड़ा है तो अभ्यास न करें।
4. रोग की स्थित में : रोग की स्थिति में योग के अभ्यास से बचना चाहिए। यदि हाल ही में शरीर के किसी अंग की सर्जरी हुई है तो योगाभ्यास न करें।
सभी आसनों का अभ्यास करने के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
प्राणायाम क्या है? कौनसे प्राणायाम लाभदाई होते हैं?
प्राणायाम योग का एक श्वसन अभ्यास है। यह अभ्यास श्वसन तंत्र को मजबूत करता है। श्वसन रोगों से बचाव करता है। यह शरीर को ऊर्जा देने वाला अभ्यास है। प्राणायाम क्या है? शरीर पर इसके प्रभाव तथा सावधानियां क्या हैं? लेख में आगे इन विषयों पर विचार करेंगे।
प्राणायाम क्या है?
यह श्वास पर आधारित क्रिया है। इस क्रिया में श्वास लेने, रोकने और छोड़ने की सही विधि बताई जाती है। महर्षि पतंजलि प्राणायाम को परिभाषित करते हुए एक सूत्र देते हैं :-
तस्मिन सति श्वास-प्रश्वासयोर्गति विच्छेद: प्राणायाम:।
अर्थात् आसन के सिद्ध हो जाने के बाद श्वास लेने-छोड़ने की गति को कुछ देर रोकना प्राणायाम है।
उपरोक्त सूत्र के अनुसार श्वास-प्रश्वास की सामान्य गति को कुछ देर रोकना प्राणायाम है। महर्षि पतंजलि के इस सूत्र के अनुसार प्राणायाम की तीन अवस्थाएं होती हैं :-
- श्वास :- सांस का अंदर लेना। इसे श्वास का पूरक कहा गया है।
- प्रश्वास :- सांस का बाहर छोड़ना। यह श्वास की रेचक अवस्था है।
- गति विच्छेद :- सांस को क्षमता अनुसार रोकना। इसे कुम्भक अवस्था कहा जाता है।
प्राणायाम अभ्यास में ये तीनों अवस्थाएं महत्वपूर्ण हैं। लेकिन कुम्भक का विशेष महत्व बताया गया है।
प्रभावी प्राणायाम अभ्यास :
प्रभावी प्राणायाम : सामान्यत: किए जाने वाले कुछ प्राणायाम इस प्रकार हैं :-
- कपालभाती
- अनुलोम विलोम
- भ्रामरी प्राणायाम
- शीतली (गर्मी के मौसम में)
- भस्त्रिका (सर्दी के मौसम में)
- नाडीशोधन
(देखें :- लाभदाई प्राणायाम )
प्राणायाम अभ्यास के लाभ :
- श्वसन तंत्र को सुदृढ़ करता है।
- ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।
- हृदय को स्वस्थ रखता है।
- शारीरिक तत्वों का संतुलन बनाए रखता है।
- रक्त चाप को सामान्य करता है।
- शरीर के लिए ऊर्जादायी है।
प्राणायाम अभ्यास में सावधानियां :
यह योग की एक लाभदाई क्रिया है। लेकिन यह अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए। असावधानी से किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है। प्राणायाम अभ्यास में इन सावधानियों का ध्यान रखें :-
- इस अभ्यास में बलपूर्वक श्वास न रोकें।
- सभी अभ्यास अपने श्वास की क्षमता अनुसार करें।
- श्वास रोगी व हृदय रोगी को कुम्भक प्राणायाम नहीं करने चाहिए।
- कमजोर श्वसन वाले तथा नए अभ्यासियों को सरल प्राणायाम करने चाहिए।
- नए अभ्यासी और श्वास रोगी केवल सरल प्राणायाम ही करें।
सारांश :
योगाभ्यास में आसन शारीरिक अभ्यास है। यह शरीर के अंगों को स्वस्थ रखता है। प्राणायाम का अभ्यास श्वसन तंत्र को मजबूत करता है। ये दोनों अभ्यास शरीर को ऊर्जावान बनाए रखते हैं।
Disclaimer :
यह योग की एक सामान्य जानकारी है। सभी व्यक्तियों के शरीर की स्थिति अलग अलग होती है। इस लिए योग के सभी अभ्यास अपने शरीर की स्थिति के अनुसार अभ्यास करना चाहिए। क्षमता से अधिक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।