प्राचीन काल में लोगों जीवन योगमय था। इसलिए उनकी स्वस्थ एवं लम्बी आयु होती थी। माना जाता है कि कई ऋषियों की आयु तो सैकड़ों वर्ष की रही है। क्या आज के समय में यह सम्भव है? क्या योग से आयु वृद्धि होती है? यह सही है कि आधुनिक समय में हमारे लिए उन ऋषियों जैसी साधना तक पहुंचना कठिन है। लेकिन यह भी सही है कि योग आज भी उतना ही प्रभावी है। यह शरीर को निरोग और र्दीघायु करने में सहायक होता है। इसके लिए योग का नियमित और विधिपूर्वक अभ्यास किया जाना चाहिए। यह अभ्यास हमें दीर्घायु कैसे करता है? इसके लिए कौन से अभ्यास करने चाहिए? प्रस्तुत लेख में इन सभी के बारे में जानकारी दी जाएगी।
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योगाभ्यास से आयु वृद्धि
निश्चित तौर पर योग आयु की वृद्धि करने में मदद करता है। इसका नियमित अभ्यास शरीर के आंतरिक व बाह्य अंगों को स्वस्थ और सक्रिय करता है। शरीर की रसायनिक क्रियाओं को संतुलित करता है, पाचन क्रिया को स्वस्थ रखता है और शरीर की immunity को बनाए रखता है। ये सब हमें दीर्घायु करने में सहायक होते हैं। आइए इसको और विस्तार से समझ लेते हैं।
योग कैसे दीर्घायु करता है?
यह तो हम सब जानते हैं कि एक निरोग व्यक्ति ही स्वस्थ एवं लम्बा जीवन जीता है। मानसिक तनाव, शरीर की इम्युनिटी का कम होना तथा आंतरिक अंगों का अस्वस्थ होना बीमारी का कारण बनते हैं। यही कारण मनुष्य की आयु को कम कर देते हैं। योग इन सभी कारणों को दूर करता है और हमे स्वस्थ व लंबा जीवन देता है। नियमित योगाभ्यास आयु की वृद्धि कैसे करता है, इसको क्रमवार समझ लेते हैं।
1. शारीरिक अंगो को मजबूती :
योगाभ्यास में आसन शरीर के अंगो को मजबूती देते हैं। यह रीढ़ को फ्लेक्सिबल और स्वस्थ बनाए रखता है। स्वस्थ रीढ़ हमारे लिए जीवनदाई होती है। आसन का अभ्यास किडनी, लीवर व पैंक्रियाज को स्वस्थ बनाए रखता है। आंतों को सुदृढ़ करता है और पाचन क्रिया को मजबूत करता है।
2. श्वसन तंत्र को सुदृढ़ करता है :
योग में प्राणायाम का अभ्यास लंग्स को एक्टिव करता है। यह अभ्यास श्वसन तंत्र को सुदृढ़ करता है। सुदृढ़ श्वसन के कारण ही शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में होती है।ऑक्सीजन हमारे शरीर के लिए जीवनदाई होती है। नियमित प्राणायाम का अभ्यास श्वसन रोगों से बचाव करता है।
3. मानसिक तनाव :
चित्त की वृत्तियों को संतुलित करना ही योग का मुख्य उद्देश्य होता है। चिंता और तनाव शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। मन की स्थिति शरीर को प्रभावित करती है। योग मानसिक शांति देता है और तनाव को दूर करता है। तनाव रहित जीवन शरीर को दीर्घायु करता है। इसके लिए ध्यान (Meditation) का अभ्यास प्रभावी होता है। यह मन व मस्तिष्क को स्वस्थ रखने वाली क्रिया है।
4. Immunity :
शरीर को निरोग रखने के लिए प्रकृति ने हमारे शरीर को एक शक्ति प्रदान की है, इसे Immunity कहा जाता है। यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है। जब शरीर में कोई बाहरी वायरस (रोगाणु) आता है, तो यह उस से लड़ती है और उस वायरस की खत्म कर देती है। मजबूत इम्युनिटी शरीर का रोगों से बचाव करती है और आयु की वृद्धि करने में सहायक होती है। योग शरीर की इस क्षमता का संरक्षण और वृद्धि करता है।
5. पाचन तंत्र :
शारीरिक स्वास्थ्य के लिए पाचन क्रिया का स्वस्थ रहना होना जरूरी है। कमजोर पाचन तंत्र पेट रोगों का कारण बनता है। पेट रोग के कारण शरीर में कई अन्य रोग होने लगते हैं। योग का अभ्यास पेट के आंतरिक अंगों को मजबूती देता है। यह आंतों को स्वस्थ करता है, कब्ज से राहत देता है। स्वस्थ पाचन तंत्र शरीर को निरोग और दीर्घायु करने में सहायक होता है।
6. तत्वों व रसायनों का संतुलन :
हमारे शरीर में कई रसायनों व तत्वों का निर्माण होता है। ये शरीर लिए अवश्यक है। लेकिन इनके असंतुलित होने पर शरीर रोग ग्रस्त होने लगता है। योग का नियमित अभ्यास कफ, वात और पित्त को संतुलित करता है। यह अभ्यास सुगर लेवल को सामान्य रखता है और शरीर के अन्य रसायनों को संतुलित करता है। इन सभी का संतुलन शरीर को निरोग रखने में सहायक होता है।
7. रक्त संचार व्यवस्थित करता है :
शरीर में रक्त-संचार एक महत्वपूर्ण क्रिया है। शरीर के प्रत्येक हिस्से में बिना किसी रुकावट के रक्त-प्रवाह जरूरी है। जब किसी अंग में इसकी बाधा आती है, तो वह अंग निष्क्रिय होने लगता है। योग-क्रियाएं इसको व्यवस्थित करती हैं। व्यवस्थित रक्त संचार शरीर के लिए जीवनदाई होता है। इसके लिए आसन और प्राणायाम दोनो अभ्यास किया जाना चाहिए।
8. हृदय को स्वस्थ रखता है :
हृदय शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। यह पूरे शरीर में रक्त प्रवाहित करने का काम करता है। असंतुलित आहार तथा अनियमित दिनचर्या के कारण इसमें रुकावट (ब्लॉकेज) आने लगती है। यह हृदय रोग का कारण बनता। नियमित योग का अभ्यास तथा संतुलित आहार इसको स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं। योग का अभ्यास रक्तचाप को संतुलित करता है, और हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। इसके लिए आसन और प्राणायाम दोनो लाभदाई होते हैं।
9. शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है :
प्रकृति ने हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान की है। यह शरीर को दैनिक कार्य करने में सक्षम बनाती है। यही ऊर्जा मौसम के प्रभाव से शरीर को बचाती है। लेकिन कई कारणों से यह ऊर्जा कम होने लगती है। इसका कम होना या खत्म हो जाना शरीर को प्रभावित करता है। ऐसा होने पर शरीर की कार्य-क्षमता कम हो जाती है और शरीर रोग ग्रस्त होने लगता है। योग का अभ्यास इस ऊर्जा-शक्ति की वृद्धि करता है।
10. आचार-विचार की शुद्धता :
हमारे दैनिक जीवन का आचरण तथा हमारे मन में उठने वाले विचार भी शरीर को प्रभावित करते हैं। नैतिक आचरण तथा विचारों की शुद्धता शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। अनैतिक आचरण तथा गलत विचारों से शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये हमारे मन तथा शरीर दोनो के लिए हानिकारक होते हैं। योग हमारे आचार-विचार को शुद्ध करता है। यह शरीर को निरोग और लम्बी आयु देता है।
कोन से योगाभ्यास करने चाहिए?
नियमित योग का अभ्यास शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है। शारीरिक स्वास्थ्य आयु की वृद्धि करता है। लेकिन इस के लिए संपूर्ण योग को अपनाया जाना चाहिए। केवल आसन-प्राणायाम का अभ्यास कर लेना मात्र योग नहीं है। अष्टांग योग को सम्पूर्ण योग कहा गया है।
(देखें :- अष्टांग योग क्या है?)
इसके के आठ अंग बताए गए हैं। लेकिन आज के समय में केवल आसन-प्राणायाम का ही अभ्यास किया जाता है। आसन प्राणायाम के साथ यम-नियम का पालन करना अधिक फलदायी होता है। संपूर्ण योग की विधि क्या है, आइए इसको सरल रूप से समझ लेते हैं।
1. यम-नियम का पालन करें
यम नियम हमे सामाजिक नैतिकता और व्यक्तिगत शुद्धता की शिक्षा देते हैं। हमारा सामाजिक जीवन नैतिकता पूर्ण हो तथा हमारे हमारे विचारों की शुद्धता बनी रहे, यही यम नियम है। यही योग का आरंभिक चरण है। सच बोलना, किसी को कष्ट न देना, चोरी न करना तथा अनावश्यक संग्रह न करना योग का ही अंग हैं। ये सब हमारे शरीर को प्रभावित करते हैं। योग में इनका विशेष महत्व है। इसी लिए इनको आसन प्राणायाम से पहले स्थान दिया गया है।
2. आहार तथा अनुशासित जीवन
आहार तथा अनुशासन योग के ही अंग हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ये दोनो महत्वपूर्ण हैं। हमारे इस भौतिक शरीर (फिजिकल बॉडी) को अन्नमय शरीर कहा गया है। क्योंकि यह अन्न (आहार) द्वारा पोषित होता है। इस लिए आहार का शरीर पर सीधा असर होता है।
अनुशासित जीवन शरीर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। पतंजलि योग का पहला सूत्र ही "अथ: योग अनुशासासनम्" है। इस सूत्र में महर्षि पतंजलि ने अनुशासन को ही योग बताया है। सुबह सही समय पर उठना, योगाभ्यास करना, समय पर अपना दैनिक कार्य करना और सही समय पर सोना, ये सब अनुशासित दिनचर्या है।
3. आसन का अभ्यास करें
आसन का अभ्यास शरीर के आंतरिक व बाह्य अंगों को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। यह शरीर की मांसपेशियों को मजबूती देता है और आंतरिक अंगों को एक्टिव करता है। योगाभ्यास का आरम्भ आसन के अभ्यास से ही किया जाना चाहिए।
आसन का अभ्यास कैसे :- सरलता से, शरीर के अंगो को आराम देने वाले आसनों का ही अभ्यास करना चाहिए। शरीर को कष्ट देने वाले कठिन अभ्यास नहीं करने चाहिए। आसन का अभ्यास करते समय इन नियमों को ध्यान में रखे :-
- समतल स्थान पर योगा मेट या कपड़े की सीट बिछा कर अभ्यास करें। बिना आसन बिछाएं अभ्यास न करें।
- खाना खाने के तुरंत बाद अभ्यास न करें। खाली पेट की स्थिति में ही योगाभ्यास करना चाहिए।
- एक आसन को धीरे धीरे आरम्भ करें, स्थिति में कुछ देर रुके और धीरे धीरे वापस आ जाए। आसन की स्थिति से वापस आने के बाद कुछ देर विश्राम करें।
- अपने शरीर की क्षमता अनुसार अभ्यास करें
- सभी आसन करने के बाद अंत में शवासन में विश्राम करें। विश्राम के बाद प्राणायाम का अभ्यास अवश्य करें।
महत्वपूर्ण आसन : - शरीर के लिए लाभदाई कुछ महत्वपूर्ण आसन इस प्रकार हैं :-
- सूर्य नमस्कार
- अर्ध मत्स्येंद्र आसन
- वज्रासन
- उष्ट्रासन और शशांक आसन
- भुजंगासन
- सर्वांग आसन
- मत्स्य आसन
- हलासन
- धनुरासन
- शव आसन
4. प्राणायाम का अभ्यास
प्राणायाम क्या है, इसका अभ्यास कैसे करें? :- यह योग का एक ऊर्जादायी अभ्यास है। सही विधि से श्वास का लेना, रोकना और छोड़ना प्राणायाम कहा गया है। प्राण हमारे शरीर के लिए जीवनदायी है। प्राणायाम का नियमित अभ्यास प्राण-ऊर्जा की वृद्धि करता है और श्वसन रोगों से बचाव करता है।
विधि :- आसन का अभ्यास करने के बाद बिछी हुईं सीट पर बैठ जाएं और बैठ कर प्राणायाम का अभ्यास करें।
- पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ कर अभ्यास करना उत्तम होता है। यदि ऐसा सम्भव नहीं है तो किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठें।
- रीढ़ व गर्दन को सीधा रखें। आंखें कोमलता से बंध करे।
- दोनो हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा की स्थिति में रखे।
- प्राणायाम के आरम्भ में श्वास प्रश्वास का अभ्यास करें। इसके लिए लम्बे गहरे श्वास ले और छोड़ें।
- श्वास-प्रश्वास के बाद सांसों को सामान्य करे और आगे बताए गए प्राणायाम अभ्यास करे। (देखें :- प्राणायाम का सही क्रम क्या है?)
- यह अभ्यास अपने श्वास की क्षमता अनुसार करे। नए अभ्यासी बलपूर्वक अधिक देर तक सांस न रोकें।
- एक अभ्यास करने के बाद श्वांसों को सामान्य करे, उसके बाद अगला अभ्यास करें।
मुख्य प्राणायाम :
- श्वास प्रश्वास
- कपालभाति
- अनुलोम विलोम
- भस्त्रिका
- नाड़ी शोधन
आसन प्राणायाम के बाद अंत में ध्यान का अभ्यास करें।
ध्यान Meditation
ध्यान या मेडिटेशन योग का महत्वपूर्ण अंग है। यह मन को एकाग्र करने वाला तथा मानसिक शांति देने वाला अभ्यास है। मन की एकाग्रता और मानसिक शांति स्वास्थ्य के लिए लाभदाई तथा आयु वृद्धि करने वाली होती हैं।
विधि :- शांत भाव से किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठें। पद्मासन की स्थिति में बैठना उत्तम होता है। रीढ़ को सीधा और आंखे कोमलता से बंध रखें। ध्यान श्वांसों पर केंद्रित करें। आते-जाते सांसों का अवलोकन करें। कुछ देर बाद ध्यान को आज्ञा चक्र (माथे के बीच) में केंद्रित करें। मन में कोई विचार न आने दें। निर्विचार स्थिति में कुछ देर रुकने के बाद धीरे धीरे ध्यान की स्थिति से वापस आ जाएं।
सारांश :
योग का अभ्यास शरीर को मजबूती देता है और निरोग रखता है। निरोग शरीर ही दीर्घायु होता है। इसके लिए यम नियम का पालन करें और नियमित योगाभ्यास करें। योगाभ्यास में आसन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करना चाहिए।
Disclaimer :
यह लेख किसी प्रकार के रोग का उपचार करने का दावा नहीं करता है। केवल योग की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है। सभी क्रियाएं अपने शरीर की क्षमता अनुसार ही करें। क्षमता से अधिक और बलपूर्वक किया गया अभ्यास कई बार हानिकारक भी हो जाता है।