आज के समय में स्वास्थ्य के लिए योग सर्वाधिक किया जाने वाला अभ्यास है। योगाभ्यास मे प्राणायाम एक श्वसन अभ्यास है। इस अभ्यास मे कपालभाति एक विशेष लाभदायी क्रिया है। इसका अभ्यास योग की शुद्धि क्रियाओं मे किया जाता है। यह क्रिया कपाल (शीर्ष भाग) का शुद्धिकरण करती है। प्राणायाम मे यह अभ्यास श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। लेकिन बन्ध व कुम्भक सहित कपालभाति का अभ्यास अधिक लाभदायी होता है। यह अभ्यास कैसे किया जाता है, प्रस्तुत लेख मे इसका वर्णन किया जाएगा।
लेख की विषय सुची :
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कपालभाति मे बंध व कुम्भक का महत्व
प्राणायाम अभ्यास मे बंध व कुम्भक का विशेष महत्व है। कपालभाति के अभ्यास मे इनका प्रयोग करना विशेष लाभदायी है। लेकिन यह अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए। यह अभ्यास कैसे किया जाता है? यह जानने से पहले बन्ध व कुम्भक के विषय मे जानना जरूरी है।
प्राणायाम मे बन्ध व कुम्भक
प्राणायाम अभ्यास मे ये दोनो विशेष क्रियाएं हैं। ये प्राणायाम के लाभ मे वृद्धि करने वाले अभ्यास हैं। कपालभाति मे इनका प्रयोग अधिक लाभदायी होता है।
बन्ध क्या है :
प्राण-ऊर्जा को सही दिशा देना ही प्राणायाम है। प्राणायाम से प्राप्त ऊर्जा को "बंध कर रखना" या "लॉक कर देने" की अवस्था को बन्ध कहा गया है। ये तीन प्रकार के हैं :-
1. मूल बन्ध :- दोनो निष्कासन अंगों (मल व मुत्र निष्कासन अंग) पर दबाव डाल कर ऊपर की ओर खींचना मूल बन्ध कहा जाता है। खाली श्वास व भरे श्वास दोनो अवस्थाओं मे इसका अभ्यास करना चाहिए। इस क्रिया से ऊर्जा ऊपर की ओर विचरण करती है।
2. उड्डीयान बन्ध :- पेट (नाभि क्षेत्र) पीछे की ओर खींचना उड्डीयान बन्ध कहा गया है। खाली श्वास मे यह अच्छी तरह लगता है। भरे श्वास मे कम लगता है।
3. जालंधर बन्ध :- गर्दन को आगे झुका कर ठोडी को कण्ठ के साथ लगाना जालंधर बन्ध है। यह बन्ध भी रेचक व पूरक दोनो अवस्थाओं मे लगाया जाता है।
त्रिबन्ध :- तीनो बन्धों के एक साथ लगाने की स्थिति को त्रिबन्ध कहा गया है। यह प्राणायाम की उत्तम स्थिति है।
कुम्भक क्या है :
बन्ध व कुम्भक के साथ कपालभाति:
यह अभ्यास बिना बन्ध व कुम्भक के भी किया जा सकता है। लेकिन बन्ध व कुम्भक के साथ किया गया अभ्यास अधिक लाभदायी होता है।
कुम्भक सहित कपालभाति की विधि:
(विस्तार से देखें :- अनुलोम-विलोम। )
सावधानियां :
• इस अभ्यास को क्षमता अनुसार करना चाहिए। बल पूर्वक व क्षमता से अधिक अभ्यास हानिकारक हो सकता है।
• श्वास रोकने मे अधिक बल प्रयोग न करें। सरलता से जितनी देर श्वास को रोक सकते हैं, उतनी देर ही रोकें। श्वास की घुटन होने से पहले वापिस आ जाएँ। बल पूर्वक अधिक देर श्वास रोकना हानिकारक हो सकता है।
• एक आवर्ती पूरी करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। श्वासों के सामान्य होने के बाद दूसरी आवर्ती करें।
• श्वास रोगी, हृदय रोगी तथा कमजोर श्वसन वाले व्यक्ति इस अभ्यास को न करें।
• नये अभ्यासी पहले बिना कुम्भक का अभ्यास करें। कुछ दिन बाद बन्ध व कुम्भक सहित कपालभाति का अभ्यास करना चाहिए।
• इस अभ्यास के बाद अनुलोम-विलोम का अभ्यास अवश्य करें। यह अभ्यास कपालभाति से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सन्तुलित करता है।
कपालभाति के लाभ:
लेख सारांश :-
"कपालभाति" योग की एक ऊर्जादायी व लाभदायी क्रिया है। यह अभ्यास बिना बन्ध व कुम्भक से भी किया जा सकता है। लेकिन बन्ध व कुम्भक के साथ इसका अभ्यास अधिक लाभदायी है।
Disclaimer :-
यह अभ्यास केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिए है। इस अभ्यास को सरलता से करना चाहिए। बलपूर्वक व क्षमता से अधिक देर तक श्वास रोकना हानिकारक हो सकता है। नये अभ्यासियों को आरम्भ मे बिना कुम्भक का अभ्यास करना चाहिए।