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कई बार केवल आसन-प्राणायाम को ही योग मान लिया जाता है। अधिकतर नये योगाभ्यासी 'योग' तथा 'योगासन' मे अन्तर नही कर पाते हैं। वे भूल वश केवल आसन-प्राणायाम को योग मान लेते हैं। यह पूर्णतया सत्य नही है। "योग" एक विस्तृत विषय है, तथा "आसन" व "प्राणायाम" इसके महत्वपूर्ण अंग हैं। योग और आसन-प्राणायाम मे अन्तर क्या है? प्रस्तुत लेख मे इस विषय को विस्तार से बताया जायेगा।

योग तथा आसन-प्राणायाम मे क्या अन्तर है?

योग को स्वास्थ्य के लिए एक उत्तम विधि माना जाता है। इसलिये आज के समय मे पूरा विश्व 'योग' को अपना रहा है। लेकिन नये अभ्यासियों (Beginners) के प्राय: कुछ ये प्रश्न होते हैं :--

• योग और योगा मे क्या फर्क है?
• योग और योगासन (आसन) मे क्या अन्तर है?
• क्या आसन-प्राणायाम ही योग है?

इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये पहले हमे पहले कुछ विषयों को समझना होगा :-

1. योग क्या है?
2. आसन क्या है?
3. प्राणायाम क्या है?

आइये इनको विस्तार से समझ लेते हैैं।

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1. योग क्या है?

भारत को योग का जनक माना जाता है। आरम्भ मे यह आध्यात्म का विषय रहा है। प्राचीन काल मे ऋषि मुनि तथा योगी "ध्यान-साधना" हेतू इसका अभ्यास करते थे। ध्यान-साधना हेतू शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमारे ऋषियों ने कुछ योग क्रियाओ को अविष्कृत किया। आज उन्ही योग क्रियाओ का अभ्यास हम अपने स्वास्थ्य के लिये करते है। इन क्रियाओ मे आसन प्राणायाम मुख्य हैं। लेकिन ये योग के महत्वपूर्ण अंग हैं, ये सम्पूर्ण योग नही हैं।

सम्पूर्ण योग :- महर्षि पतंजलि ने चित्तवृत्ति निरोध को योग कहा है। वे योग को परिभाषित करते हुये एक सूत्र देते हैं :- "योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:"। चित्त वृत्ति निरोध का मार्ग 'अष्टाँगयोग' बताया है। यह सम्पूर्ण योग है। इसके आठ अंग है। इन आठ अंगो मे आसन व प्राणायाम भी हैं।

अष्टाँग योग क्या है?

अष्टाँग योग को सम्पूर्ण योग कहा गया है। इसके आठ अंग बताये गये हैं। इसके आठ अंग ये हैं :--

1. यम।
2. नियम।
3. आसन।
4. प्राणायाम।
5. प्रत्याहार।
6. धारणा।
7. ध्यान।
8. समाधि।
(विस्तार से देखें :- अष्टाँगयोग क्या है?)

सम्पूर्ण योग के लिये अष्टाँगयोग का पालन करना चहाये। लेकिन आज के समय मे जो व्यक्ति केवल स्वास्थ्य हेतू योग करते हैं, वे केवल आसनप्राणायाम का ही अभ्यास करते हैं। योग की ये दोनो क्रियाएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं। आईये इन दोनों को विस्तार से समझ लेते हैं।

2. आसन क्या है?

आसन अष्टाँगयोग का तीसरा चरण है। यह योग का एक शारीरिक अभ्यास है। यह शरीर के अंगो व मासपेशियों को सुदृढ व सक्रिय बनाये रखता है। इसका नियमित अभ्यास पेट के आन्तरिक अंगों को स्वस्थ रखता है तथा शरीर के रक्तसंचार को व्यवस्थित करता है। यह योग का एक महत्वपूर्ण अंग है।

आसन की परिभाषा :-- आसन क्या है, यह समझने के लिये महर्षि पतंजलि का एक सूत्र बहुत महत्वपूर्ण है। आसन को परिभाषित करते हुये महर्षि पतंजलि एक सूत्र देते हैं :-- 
"स्थिरसुखमासनम्"। 
अर्थात् स्थिरता व सुखपूर्वक जिस पोज मे बैठते हैं, वह आसन है।

कोनसे आसन लाभदायी हैं?

पतंजलि योग के अनुसार जो आसन हम स्थिरतासुखपूर्वक कर सकते हैं, वही हमारे लिये लाभदायी है। अर्थात् जिस आसन के अभ्यास मे हमे सुख की अनुभूति होती है। और जिस आसन की स्थिति मे सरलता से ठहर सकते हैं, ऐसे आसन अवश्य करने चहाये। कठिन व कष्टदायी आसन का अभ्यास नही करना चहाये।

शरीर की क्षमता अनुसार आसन :- हम सब के शरीरों की स्थितयाँ व क्षमताएँ अलग-अलग है। अत: अपनी क्षमता अनुसार ही अभ्यास किया जाना चहाये। क्षमता से अधिक व बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

आसन के लाभ

• शरीर के अंगों को मजबूती मिलती है।
• शरीर के आन्तरिक अंग जैसे- आँत, किडनी, लीवर व पैनक्रियाज सक्रिय होते है।
पाचन क्रिया सुदृढ होती है।
रक्त संचार व्यवस्थित होता है।
शरीर के सभी राशायनिक तत्व सन्तुलित रहते हैं।
आसन का अभ्यास रक्तचाप को सन्तुलित करता है।
हृदय को स्वस्थ रखता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की वृद्धि करता है।

आसन की सावधानियाँ

आसन का अभ्यास शरीर के लिये लाभदायी है। लेकिन कुछ सावधानियों के साथ इसका अभ्यास करना चहाये। असावधानी से किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

  1. अपनी क्षमता के अनुसार आसन का अभ्यास करें।
  2. बलपूर्वक तथा क्षमता से अधिक अभ्यास न करे।
  3. रोग की अवस्था मे अभ्यास न करें।
  4. किसीअंग की शाल्य क्रिया (सर्जरी) के बाद अभ्यास नही करना चहाये।
  5. गर्भवती महिलाये सरल क्रिया चकित्सक की सलाह से करें। कठिन आसन न करें।
  6. लगातार आसन न करें। एक आसन करने के बाद कुछ देर विश्राम करें। विश्राम के बाद अगला आसन करें।

आसन का अभ्यास कैसे करें?

सुबह का समय योगासन के लिये उत्तम होता है।
खाली पेट योगाभ्यास करें। खाना खाने के तुरंत बाद अभ्यास न करें।
दरी, चटाई या मैट बिछा कर अभ्यास करे।
सही स्थान का चयन करें। पार्क जैसा प्राकृतिक स्थान उत्तम है। यदि घर पर अभ्यास करना है तो खुले व हवादार स्थान का चयन करें।
आसनों का चयन अपने शरीर की क्षमता अनुसार करें।
लगातार अभ्यास न करें। एक आसन करने के बाद दूसरा आसन करने से पहले कुछ सैकिंड का विश्राम करें।
सभी आसन करने के बाद सीधे पीठ के बल लेट कर शव आसन मे विश्राम करें। विश्राम के बाद प्राणायाम का अभ्यास करें।

3. प्राणायाम क्या है?

प्राणायाम योग का एक श्वसन अभ्यास है। यह अष्टाँग योग का चौथा चरण है। आसन के बाद इसका अभ्यास किया जाना चहाये। 'श्वास' इस क्रिया का आधार है। इस अभ्यास मे श्वास लेने, छोङने व कुछ देर रोकने  की सही विधि बताई जाती है।

प्राणायाम की परिभाषा :- प्राण-शक्ति को आयाम देना प्राणायाम है। महर्षि पतंजलि प्राणायाम को परिभाषित करते हुये एक सूत्र देते हैं:-- "तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।"

अर्थात् (आसन के अभ्यास के बाद) श्वास लेने व छोङने की गति को कुछ देर रोकना, प्राणायाम की स्थिति है।

इस सूत्र का भावार्थ है कि लम्बा-गहरा श्वास लेना-छोङना तथा श्वास को क्षमता अनुसार रोकना ही प्राणायाम है।

कोनसे प्राणायाम लाभदायी हैं :- प्राणायाम का अभ्यास करते समय अपनी श्वासो की स्थिति का अवलोकन करें। सरलता से किये जाने वाले अभ्यास लाभदायी होते है। श्वास को बलपूर्वक तथा क्षमता से अधिक रोकना हानिकारक हो सकता है।

प्राणायाम के लाभ

  • इस अभ्यास से श्वसनतंत्र सुदृढ होता है।
  • प्राणिक नाङियों के अवरोध हटते है।
  • प्राण ऊर्जा की वृद्धि होती है।
  • इस अभ्यास से शरीर को आक्सीजन पर्याप्त मात्रा मे मिलती है।
  • इसका नियमित अभ्यास हृदय व फेफङों को स्वस्थ रखता है।
  • यह शरीर को ऊर्जा देेने वाला अभ्यास है।
  • यह रक्तचाप को सामान्य रखता है।
  • इसका नियमित अभ्यास शरीर की इम्युनिटी को बढाता है।

प्राणायाम की सावधानियाँ

हम सब के श्वासों की स्थिति अलग-अलग होती है। अत: हमे अपने श्वास की स्थिति के अनुसार ही प्राणायाम अभ्यास करना चहाये। अभ्यास करते समय इन सावधानियों का ध्यान रखना चहाये :--

  1. प्राणायाम का अभ्यास अपने श्वासो की क्षमता अनुसार करें।
  2. नियमित अभ्यासी तथा सुदृढ श्वसन वाले व्यक्ति कुम्भक* सहित प्राणायाम करें। (*कुम्भक :- श्वास को अन्दर या बाहर कुछ देर के लिये रोकना "कुम्भक" कहा गयाहै।)
  3. नये अभ्यासी आरम्भ मे बिना कुम्भक का सरल अभ्यास करें। धीरे-धीरे कुम्भक का अभ्यास आरम्भ करें।
  4. श्वास के गम्भीर रोगी इस अभ्यास को न करें।
  5. उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति तीव्र गति से अभ्यास न करें।

प्राणायाम कैसे करें?

• आसन के बाद कुछ देर विश्राम करें। विश्राम करने के बाद प्राणायाम का अभ्यास करें।
• पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें।
• रीढ व गर्दन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बन्ध करें। दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा की स्थिति मे रखें।
पहले श्वास-प्रश्वास का अभ्यास करें। लम्बा गहरा श्वास लें और छोङें। 4 या 5 श्वास का अभ्यास करने के बाद अन्य प्राणायाम करें।

कुछ अन्य लाभदायी प्राणायाम ये हैं :--

• कपालभाति।
• अनुलोम विलोम।
• भ्रामरी।
• नाङीशौधन।

अपनी क्षमता अनुसार अभ्यास करने के बाद अन्त मे श्वासों को सामान्य करें। कुछ देर ध्यान की स्थिति मे बैठें।

योग, आसन व प्राणायाम मे अन्तर

लेख मे हम यह जान चुके हैं कि योग, आसन व प्राणायाम क्या हैं। अब जो प्रश्न प्राय: पूछे जाते हैं, उनके विषय पर विचार कर लेते हैं।

योग और योगा मे क्या फर्क है? :- योग (Yog) व योगा (Yoga) दोनो एक ही हैं। इन दोनों मे कोई अन्तर नहीं है। केवल उच्चारण का अन्तर है। योग संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है जोङना। अंग्रेजी भाषा मे इसका उच्चारण योगा किया जाता है।

योग व आसन मे क्या फर्क है? :- "योग" एक विस्तृत विषय है। "आसन" योग का एक अंग है।

क्या आसन-प्राणायाम ही योग है? :- सम्पूर्ण योग अष्टाँगयोग है। इसके आठ अंग बताये गये हैं। आसन व प्राणायाम इसके अंग हैं। अत: केवल आसन-प्राणायाम योग नहीं हैं।

लेख सारांश :

योग स्वास्थ्य के लिये एक उत्तम विधि है। आसनप्राणायाम योग के महत्वपूर्ण अंग है। "आसन" एक शारीरिक अभ्यास है। प्राणायाम एक श्वसन अभ्यास है।

Disclaimer :

यह लेख चिकित्सा हेतू नही है। यह योग की सामान्य जानकारी देने के लिये है। योग की सभी क्रियाएँ स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। अस्वस्थ व्यक्ति को योग नही करना चहाएँ।

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