ad-1

Dosplay ad 11may

pexels photo

भस्त्रिका प्राणायाम सर्दी के मौसम मे किया जाने वाला एक उत्तम प्राणायाम है। लेकिन कुम्भक सहित भस्त्रिका प्राणायाम अधिक ऊर्जादायी होता है। यह एक विशेष प्राणायाम क्रिया है। इस क्रिया को कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चहाये। Bhastrika with Kumbhaka क्या है? इसके लाभ तथा सावधानियाँ क्या हैं? प्रस्तुत लेख मे इन सभी का वर्णन किया जायेगा।

विषय सुची :-

• कुम्भक सहित भस्त्रिका का महत्व।
• कुम्भक क्या है?
• भस्त्रिका प्राणायाम क्या है?
• कुम्भक सहित भस्त्रिका के लाभ।
• कुम्भक सहित भस्त्रिका की सावधानियाँ।

कुम्भक सहित भस्त्रिका का महत्व।

यह शरीर को ऊर्जा देने वाली क्रिया है। अत: इसका अभ्यास केवल शरद ऋतु मे किया जाना चहाये। गर्मी के मौसम मे इसे नही करना चहाये। यह गतिपूर्वक किया जाने वाला प्राणायाम है। अत: इस क्रिया को केवल स्वस्थ व्यक्ति ही करें। नये व्यक्ति (Beginners) आरम्भ मे बिना कुम्भक का अभ्यास करें।

"भस्त्रिका" व "कुम्भक" क्या है।

भस्त्रिका मे कुम्भक कैसे लगाया जाता है, यह जानने से पहले "भस्त्रिका" व "कुम्भक" के बारे मे जानना जरूरी है।

भस्त्रिका :- तीव्र गति से श्वास लेने व छोङने की क्रिया को भस्त्रिका कहा गया है। इस क्रिया को पहले धीमी गति से आरम्भ करें, धीरे-धीरे गति को बढाते जायें। समापन से पहले गति को धीमा करें।

(विस्तार से देखें तीन चरणों मे किया जाने वाला :- भस्त्रिका प्राणायाम )

कुम्भक :- किसी प्राणायाम क्रिया मे श्वास को रोकना कुम्भक कहा गया है। ये दो प्रकार के होते हैं :-

1. आन्तरिक कुम्भक :- श्वास को अन्दर भरने के बाद भरे श्वास की स्थिति मे रुकना आन्तरिक कुम्भक कहा गया है।

2. बाह्य कुम्भक :- श्वास को बाहर छोङ कर खाली श्वास की स्थिति मे रुकना बाह्य कुम्भक कहा गया है।

कुम्भक सहित भस्त्रिका प्राणायाम की विधि :-

बैठने की स्थिति :- पद्मासन या सुखासन में बैठें। रीढ व गर्दन को सीधा रखें। दोनो हाथों से घुटनों को पकङें। आँखें कोमलता से बंध कर लें।

श्वास-प्रश्वास का अभ्यास :- भस्त्रिका का आरम्भ श्वास- प्रश्वास से आरम्भ करें। धीरे-धीरे लम्बा गहरा श्वास भरें। पूरा श्वास भरने के बाद कुछ देर भरे श्वास मे रुकें। और धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोङें। पूरा श्वास बाहर छोङने के बाद खाली श्वास मे कुछ देर रुकें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार दो-तीन या क्षमता अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें। आवर्तियाँ पूरी करने के बाद श्वास सामान्य करें।

कुम्भक सहित भस्त्रिका :- श्वास सामान्य करने के बाद गतिपूर्वक श्वास लेना व छोङना आरम्भ करें। धीमी गति से आरम्भ करें। धीरे-धीरे गति को बढाएँ। श्वास लेते-छोङते समय पेट को भी आगे-पीछे करें। मूलबन्ध* लगाकर रखें।

(*मूलबन्ध :- मल-मुत्र निष्कासन अंगों पर दबाव डालकर ऊपर की ओर खींचना मूलबंध कहा गया है।)

एक-दो मिनट या क्षमता अनुसार क्रिया करें। अन्त मे पूरा श्वास भरें। गर्दन को आगे की ओर झुका कर ठोडी कण्ठ से लगाएँ। भरे श्वास मे अपनी क्षमता अनुसार रुकें। यह आन्तरिक कुम्भक है।

क्षमता अनुसार आन्तरिक कुम्भक मे रुकने के बाद, धीेरे-धीरे श्वास को बाहर छोङें। पूरा श्वास खाली होने के बाद पेट को पीछे की ओर खींचे, गर्दन को आगे की ओर झुकाएँ और कुछ देर खाली श्वास मे रुकें। यह बाह्य कुम्भक है। क्षमता अनुसार बाह्य कुम्भक मे रुकने के बाद वापिस आ जाएँ। श्वासों को सामान्य करें।

यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अवश्यकता अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें। आरम्भ मे एक-दो आवर्तियाँ करें। धीरे-धीरे आवर्तियाँ बढाएँ। प्राणायाम पूरा करने के बाद कुछ देर शाँत बैठें। श्वासों को सामान्य करें।

कुम्भक सहित भस्त्रिका के लाभ।

यह एक लाभदायी प्राणायाम है लेकिन इस अभ्यास को कुम्भक के साथ करना अधिक लाभदायी होता है। इस प्राणायाम से मिलने वाले लाभ इस प्रकार हैं :-

• भस्त्रिका प्राणायाम शरद ऋतु मे ऊर्जा देने वाला प्राणायाम है। यह ऊर्जा की वृद्धि तथा संरक्षण करता है।

• यह शरद ऋतु मे मौसम के कुप्रभाव से बचाता हैै।

• रक्त-प्रवाह को संतुलित करता है।

• रक्त-चाप (BP) को सामान्य रखने मे सहायक होता है।

• हृदय के लिये लाभदायी है।

• यह फेफङों को सक्रिय रखता है। श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। श्वसन रोग से बचाव करने मे सहायक होता है।

• कफ, वात व पित्त मे संतुलन बनाये रखता है।

यह अग्नि तत्व को जागृत करता है। पाचन क्रिया को सुदृढ करता है।

• कुम्भक लगाने से ऊर्जा नीचे से ऊपर की ओर विचरण करने लगती है। अर्थात् ऊर्जा ऊर्ध्वगामी हो जाती है।

कुम्भक सहित भस्त्रिका की सावधानियाँ।

यह एक लाभदायी एवम् ऊर्जादायी प्राणायाम है लेकिन इसे कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चहाये। असावधानी से किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है। इस प्राणायाम के अभ्यास मे इन सावधानियों का ध्यान रखना चहाये :-

यह प्राणायाम योग के नियमित अभ्यासियों के लिये है। नये अभ्यासी आरम्भ मे बिना कुम्भक का प्राणायाम कर सकते हैं।

इस प्राणायाम को करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। श्वास सामान्य होने के बाद उज्जायी प्राणायाम या अनुलोम-विलोम प्राणायाम अवश्य करें। भस्त्रिका से आई ऊर्जा को ये प्राणायाम संतुलित करते हैं। 

• श्वास रोगी व हृदय रोगी इस अभ्यास को न करें।

• उच्च रक्तचाप (High BP) वाले व्यक्ति इस प्राणायाम को धीमी गति से करें।

इस प्राणायाम को अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार करें। श्वास रोकने (कुम्भक) मे अधिक बल प्रयोग न करें। सरलता से कुम्भक लगाएँ। बलपूर्वक तथा क्षमता से अधिक देर श्वास रोकना हानिकारक हो सकता है।

एक आवर्ति पूरी करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। श्वासों के सामान्य होने के बाद अगली आवर्ति करें।

लेख सार :-

कुम्भक सहित भस्त्रिका प्राणायाम ऊर्जादायी होता है। इस अभ्यास को बिना कुम्भक भी किया जा सकता है। नये अभ्यासी को आरम्भ मे बिना कुम्भक का प्राणायाम करना चहाये। नियमित अभ्यासी को कुम्भक का प्रयोग करना चहाये।

Disclaimer :- 

किसी प्रकार के रोग का उपचार करना इस लेख का उद्देश्य नही है। इस लेख का उद्देश्य केवल प्राणायाम के लाभ व सावधानियों से अवगत करवाना है। लेख मे बताई गई क्रिया केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। इस क्रिया को सावधानी से तथा अपनी क्षमता अनुसार ही करें।

Post a Comment