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मस्तिष्क पर योग का प्रभाव
योग शरीर को स्वस्थ रखने वाली महत्वपूर्ण क्रिया है। यह शरीर के साथ मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है। महर्षि पतंजलि ने "चित्तवृत्ति निरोध" को योग कहा है।
"आसन" "प्राणायाम" व "ध्यान" तीनो योग के महत्व पूर्ण अंग हैं। ये तीनों मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली क्रियाएं हैं। ये मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करती है? आईए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
मस्तिष्क पर "आसन" का प्रभाव :
आसनों का सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है। आसन शरीर के रक्त-संचार को व्यवस्थित करते हैं। अधिकतर आसन रीढ को स्वस्थ रखने के लिये किये जाते हैं। मस्तिष्क का जुङाव रीढ से ही है। मस्तिष्क का शरीर पर नियंत्रण रीढ के द्वारा किया जाता है। रीढ पर स्थित नाड़ी तंत्र से शरीर के सभी अंग जुड़े हुए हैं। इसी के द्वारा मस्तिष्क सभी अंगों को नियंत्रित करता है।
लेख मे आगे कुछ ऐसे आसनों का वर्णन किया जायेगा जो मस्तिष्क के लिये प्रभावी हैं।
1. हस्त पाद आसन :
यह खड़े होकर किया जाने वाला आसन है। यह मस्तिष्क, रीढ तथा रक्त-संचार के लिये उत्तम आसन है।
विधि :- आसन (योगा-मैट) पर खड़े हो जाएं। हाथों को ऊपर करें। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर खींचे। श्वास छोड़ते हुए आगे झुकें। घुटने सीधे रखें दोनो हाथों को पैरों के पास ले जाने का प्रयास करें। क्षमता अनुसार रुकें और धीरे ऊपर उठते हुए कमर को सीधा करे। हाथों को नीचे ले आएँ। विश्राम करें।
आसन का प्रभाव मस्तिष्क पर :- यह आसन रीढ तथा रक्त संचार की स्थिति को उत्तम बनाता है। इस आसन से रक्त प्रवाह मस्तिष्क की ओर हो जाता है।
2. शशांक आसन :
विधि :- आसन (योगा-मैट) पर घुटने मोड़ कर वज्रासन पोज में बैठ जाएं। दोनो घुटने व पंजे मिला कर रखें। दोनो एड़ियों के बीच मे मध्य भाग (नितम्ब) टिका कर बैठें। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर ले जाएं। श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें। हथेलियां, कोहनियां व माथा नीचे टिकाएं। श्वास सामान्य करके कुछ देर रुकें। क्षमता अनुसार रुकने के बाद धीरे-धीरे ऊपर उठें और वापिस वज्रासन पोज मे आ जायें।
शशांक आसन का मस्तिष्क पर प्रभाव :- यह रीढ के लिये लाभदायी है। आगे की ओर झुक कर माथा नीचे टिकाने से मस्तिष्क प्रभावित होता है।
3. उष्ट्रासन ।
यह रीढ व मस्तिष्क के लिए उत्तम आसन है। शशांक आसन के बाद इस आसन को अवश्य करें।
विधि :- वज्रासन पोज मे बैठें। घुटनो के बल ऊपर उठें। घुटनो व पंजों मे थोड़ी दूरी बना कर रखें। दोनो हाथ कमर पर रखें। धीरे-धीरे पीछे की ओर अपनी क्षमता के अनुसार झुकें। दोनो हाथों को बारी बारी कमर से हटा कर एड़ियों पर ले आये। स्थिति मे कुछ देर रुकें और वापिस आ जाएं। वज्रासन मे विश्राम करें।
उष्ट्रासन की सावधानी :- यह आसन अपनी क्षमता के अनुसार करें। नये व्यक्ति आरम्भ मे इस आसन की पूर्ण स्थिति मे जाने का प्रयास न करें। नये व्यक्ति केवल कमर को थोड़ा पीछे की ओर झुका कर रुकें और वापिस आ जाएं।
उष्ट्रासन का मस्तिष्क पर प्रभाव :- यह रीढ की फ्लैक्सिब्लिटी के लिये एक उत्तम आसन है। यह रीढ व रीढ पर स्थित नाड़ीतंत्र को प्रभावित करता है। यह मस्तिष्क के लिये एक उत्तम आसन है।
4. अधोमुखासन :
विधि :- आसन (मैट) पर पेट के बल लेट जाएं। कोहनियां मोड़ कर हथेलियां कंधों के पास रखें। हथेली व पंजों का सहारा लेते हुए मध्य भाग को अधिकतम ऊपर उठाएं। सिर को नीचे की और रखें। एड़ियां नीचे टिकाने का प्रयास करे। स्थिति मे कुछ देर रुकें और वापिस पूर्व स्थिति मे आ जाएं।
अधोमुखासन का मस्तिष्क पर प्रभाव :- यह रक्त संचार को व्यवस्थित करने वाला आसन है। इस आसन से रक्त मस्तिष्क की ओर प्रवाहित होता है।
5.शीर्षासन :
विधि :- आसन पर बैठ कर सिर को नीचे दीवार के साथ टिकाएं। दोनो कोहनियां मोड़ कर सिर के पास रखें। सिर को दोनो कोहनियों के बीच मे रखें। पीठ को दीवार का सहारा देकर दोनो पैरों को ऊपर करें। शरीर का भार दोनो कोहनियों पर रखें। सिर व गर्दन पर अधिक भार न आने दें। क्षमता अनुसार रुकने के बाद वापिस आ जाएं। लेट कर विश्राम करें।
सावधानी :- यह एक कठिन आसन है। रीढ व गर्दन की परेशानी वाले व्यक्ति इसको न करें। आरम्भ मे दीवार का सहारा ले कर इस आसन को करें। यदि इस आसन को करने की क्षमता न हो तो इसे न करें और सर्वांग आसन करें।
शीर्षासन का मस्तिष्क पर प्रभाव :- पैरों को ऊपर करने से रक्त का प्रवाह शीर्ष भाग की ओर हो जाता है। यह मस्तिष्क के लिये लाभदायी होता है।
6. सर्वांग आसन।
विधि :- पीठ के बल लेट जाएं। एडी, पंजे व घुटने मिलाकर रखें। दोनो हाथ सीधे शरीर के साथ रखे। हथेलियां नीचे की ओर रखें। घुटनो को सीधा रखते हुए दोनो पैरों को ऊपर उठाएं। हाथों को पीठ के पीछे रखे। हाथों का सहारा देते हुए पीठ को ऊपर उठायें। पैरों को ऊपर आसमान की ओर करें। स्थिति मे क्षमता अनुसार रुकें और धीरे-धीरे वापिस आ जाएन।
सर्वांग आसन का मस्तिष्क पर प्रभाव :- यह आसन रीढ तथा इस पर स्थित नाड़ीतंत्र को प्रभावित करता है। रक्त का प्रवाह शीर्ष भाग की ओर हो जाता है। ये सब मस्तिष्क के लिये प्रभावी होते हैं।
मस्तिष्क पर "प्राणायाम" का प्रभाव।
प्राणायाम सम्पूर्ण शरीर के लिये ऊर्जादायी होते हैं। लेकिन इनका का विशेष प्रभाव हमारे शीर्ष भाग (कपाल भाग) पर होता है। प्राणायाम हमारी ऊर्जा को ऊर्घ्वगामी (ऊपर की ओर जाने वाली) करता है। इस क्रिया से ऊर्जा नीचे से उठ कर ऊपर शीर्ष भाग की ओर जाने लगती है। मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले प्राणायाम कोन से हैं, इस को विस्तार से समझ लेते हैं।
1. कपालभाति :
यह कपाल भाग की शुद्धि करने वाली प्राणायाम क्रिया है।
विधि :- इस क्रिया को करने के लिये पद्मासन या सुखासन मे बैठें। रीढ व गर्दन को सीधा रखें। दोनों हाथ घुटनों पर रखें। पेट को पीछे की ओर दबाते हुए श्वास बाहर छोड़ें और सामान्य गति से श्वास भरें। इस क्रिया मे श्वास को झटकते हुए बाहर छोड़ें और सामान्य गति से श्वास को अंदर भरें। यह क्रिया पहले 15 सैकिंड करें। उसके बाद अभ्यास का समय बढ़ाएं।
कपालभाति का प्रभाव :- यह कपालभाग की एक शुद्धि क्रिया है। मस्तिष्क की स्थिति कपाल भाग मे होती है इसलिये यह मस्तिष्क को प्रभावित करने वाली क्रिया है।
2. अनुलोम विलोम :
कपालभाति के साथ अनुलोम विलोम प्राणायाम अवश्य करना चाहिये।
विधि :- इस प्राणायाम को करने के लिये पद्मासन, सुखासन या किसी आरामदायक स्थिति मे बैठें। रीढ व गर्दन को सीधा रखें। बांया हाथ बांए घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। दाएं हाथ की पहली दो उंगलियां मोड़ कर दांया हाथ नासिका के पास ले जाये।
अंगूठे से दाई नासिक को बंध करें। बांई नासिका से धीरे-धीरे श्वास भरें। पूरा श्वास भरने के बाद बांई नासिका बंध करे और दाईं तरफ से श्वास को खाली कर दें। श्वास पूरी तरह खाली होने के बाद दांए से श्वास भरें और बाएं से श्वास खाली करें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार पांच आवर्तियां करें।
अनुलोम विलोम का प्रभाव :- यह मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला प्राणायाम है।
3. भ्रामरी प्राणायाम
विधि :- किसी भी आरामदायक स्थिति मे बैठें। रीढ गर्दन को सीधा रखें। आंखें कोमलता से बंध करें। दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़ लें। हथेलियां चेहरे के सामने रखें। पहली दो उंगलियां आंखों के सामने रखे। दूसरी दो उंगलियां नासिका के नीचे होठों के पास रखें।
अंगूठों से दोनो कानो को इस प्रकार बंध करें कि बाहर की आवाज सुनाई न दे। लम्बा श्वास भरें। होठों को बंध रखते हुए कण्ठ से 'उँ' --- की आवाज निकालें। श्वास बाहर निकलने के बाद फिर श्वास भरें और आवाज का गुंजन करें। ये पांच आवर्तियां या अवश्यकता अनुसार करें।
भ्रामरी का प्रभाव मस्तिष्क पर :- इस क्रिया मे बाहर की आवाज को बंध कर दिया जाता है। केवल गुंजन की आवाज सुनाई देती है। यह शीर्ष भाग को प्रभावित करती है।
4. ध्यान योग
सभी आसन व प्राणायाम करने के बाद "ध्यान" का अभ्यास करें।
विधि :- पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। रीढ को सीधा रखें। दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। आँखें कोमलता से बंध कर लें।
मन मे कोई अन्य विचार न आने दें। ध्यान को अपने शरीर पर केंद्रित करें। कुछ देर बाद ध्यान को शरीर से हटा कर श्वासों पर केन्द्रित करें। आती-जाती श्वासों को अनुभव करें। कुछ देर बाद ध्यान को श्वासो से हटाएं और ध्यान को आज्ञा चक्र (माथे के बीच) में केन्द्रित करें। यहां ज्योति- पुञ्ज या किसी आराध्य का अवलोकन करें। कुछ देर यहां ठहरने के बाद ध्यान से वापिस आ जाएं।
लेख सारांश :
योग की तीन क्रियाएं- आसन, प्राणायाम और ध्यान मस्तिष्क के लिये लाभदायी हैं।
Disclaimer :
यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार हेतू नही है। किसी प्रकार के रोग की अवस्था में चिकित्सक से सलाह लें। इस लेख का उद्देश्य केवल योग की जानकारी देना है। लेख मे बताई गई क्रियाएं अपनी क्षमता के अनुसार करें। कोई भी क्रिया को बलपूर्वक करना हानिकारक हो सकता है।