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"प्राणायाम" अष्टाँग योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह एक श्वसन क्रिया है। इसका नियमित अभ्यास फेफङो को सक्रिय रखता है तथा श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। इस क्रिया से श्वसनतंत्र के अवरोधो को दूर किया जा सकता है। यह हृदय को स्वस्थ रखने की उत्तम विधि है, तथा स्वास्थ्य के लिये लाभदायी क्रिया है। क्या प्राणायाम से नुकसान भी हो सकता है? प्रस्तुत लेख में इसी विषय पर विचार किया जायेगा।

विषय सुची :-

• प्राणायाम नुकसानदायी कब होता है?
• कुम्भक की असावधानी से नुकसान।
• मौसम की विपरीत प्राणायाम नुकसानदायी।
• शरीर की अवस्था के अनुसार प्राणायाम करें।

प्राणायाम नुकसानदायी कब होता है?

प्राणायाम एक लाभदायी क्रिया है। लेकिन इसे कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिये। असावधानी से किया गया प्राणायाम नुकसानदायी हो सकता है। इस क्रिया को श्वासों के स्थिति के अनुसार किया जाना चहाए। प्राणायाम करते समय अपने शरीर की अवस्था को ध्यान मे रखना चाहिये।

प्राणायाम की कोन असावधानियाँ हैं, जो हानिकारक हो सकती हैं? आगे लेख मे इसी विषय पर विचार किया जायेगा।

1. कुम्भक की असावधानी से नुकसान।

प्राणायाम मे "कुम्भक" का विशेष महत्व है। पतंजलि योग मे "कुम्भक" को ही वास्तविक प्राणायाम बताया गया है। प्राणायाम के लाभ इसी से ही प्राप्त होते हैं। लेकिन इस का प्रयोग सावधानी से करना चाहिये। कुम्भक की असावधानी से नुकसान भी हो सकता है। कुम्भक  की सावधानियाँ क्या हैं, यह जानने से पहले कुम्भक के विषय में जानना होगा।

कुम्भक क्या है?

प्राणायाम एक श्वसन क्रिया है। इसका आधार श्वास है। जीवन का आधार भी श्वास ही है। सामान्य जीवन मे इसकी दो अवस्थाएँ होती हैं :- श्वास को अन्दर लेना और बाहर छोङना। लेकिन प्राणायाम में श्वास की तीन अवस्थाएँ हैं।

प्राणायाम में श्वास की तीन अवस्थाएँ :--

• रेचक :- श्वास को बाहर छोङना।

• पूरक :- श्वास को अन्दर भरना।

• कुम्भक :- श्वास को अन्दर या बाहर कुछ देर (क्षमता अनुसार) रोकना। 

कुम्भक के प्रकार :-

नये अभ्यासियो के लिये ये मुख्यत: दो प्रकार के होते है। (तीसरा कुम्भक नियमित अभ्यासियों के लिये है।)

• बाह्य कुम्भक :- श्वास को खाली करके क्षमता अनुसार रुकना बाह्य कुम्भक है।

• आन्तरिक कुम्भक :- श्वास को अन्दर भरके क्षमता अनुसार रुकना आन्तरिक कुम्भक है।

(तीसरा कुम्भक कैवेल्य कुम्भक या स्तम्भवृति कहा गया है)

कुम्भक की सावधानियाँ।

स्वस्थ तथा नियमित अभ्यासियों के लिये कुम्भक लाभदायी है। लेकिन अन्य व्यक्तियों को इस क्रिया मे सावधानी रखनी चाहिये।

स्वस्थ व नियमित अभ्यासी :- नियमित योगाभ्यासी, या जिन व्यक्तियों को कोई श्वसन रोग नही है, वे कुम्भक का प्रयोग अवश्य करें। यह उन के लिये लाभदायी है। लेकिन इनको भी क्षमता के अनुसार ही कुम्भक लगाना चाहिये।

नये अभ्यासी :- प्राणायाम के नये अभ्यासी अपने श्वास की स्थिति का अवलोकन करें। यदि श्वास की स्थिति ठीक है तो कुम्भक लगाएँ। आरम्भ के दिनो मे कम समय का कुम्भक लगाएँ। धीरे-धीरे इसका समय बढायें।

रोग की स्थिति में :-- अस्थमा पीङित, श्वास रोगी तथा हृदय रोगी व्यक्तियों को कुम्भक नही लगाना चाहिये।कुम्भक लगाना उन के लिये नुकसानदायी हो सकता है। ऐसे व्यक्तियो को बिना कुम्भक का सरल प्राणायाम ही करें।

2. मौसम के विपरीत प्राणायाम नुकसानदायी।

कुछ प्राणायाम मौसम के अनुसार किये जाने चाहिएँ। मौसम के अनुसार अभ्यास करना लाभदायी होता है। इनको मौसम के विपरीत करना हानिकारक हो सकता है।

कुछ प्राणायाम शीतलता देने वाले होते है। इनका अभ्यास शरद ऋतु मे वर्जित है। अत: सर्दी के मौसम मे इनका अभ्यास न करें। कुछ प्राणायाम शरीर को गर्मी देने वाले होते हैं। अत: गर्मी के मौसम मे इनका अभ्यास नही करना चाहिये।

गर्मी के मौसम मे नुकसानदायी प्राणायाम।

जो प्राणायाम शरीर को गर्मी देने वाले होते हैं उनका अभ्यास गर्मी के मौसम मे नही करना चाहिये। गर्मी के मौसम मे कोन से प्राणायाम वर्जित हैं, इसके बारे मे समझ लेते हैं।

• भस्त्रिका :- यह शरद ऋतु का प्राणायाम है। गर्मी के मौसम मे इसका अभ्यास नुकसानदायी हो सकता है। अत: भस्त्रिका प्राणायाम को गर्मी के मौसम मे न करें।

• सूर्यभेदी प्राणायाम :- सूर्यभेदी शरीर को गर्मी देने वाला प्राणायाम है। अत: इसको शरद ऋतु मे करना लाभदायी होता है। गर्मी के मौसम मे इसका अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

शरद ऋतु मे हानिकारक प्राणायाम।

जो प्राणायाम क्रियाएँ शरीर को शीतलता देती हैं, उनका अभ्यास शरद ऋतु मे वर्जित है।

• शीतली व शीतकारी प्राणायाम :- इन दोनो का अभ्यास गर्मी के मौसम मे करना उत्तम है। ये दोनो शीतलता देने वाली क्रियाएँ हैं। सर्दी के मौसम मे इनका अभ्यास नुकसानदायी हो सकता है।

• चँद्रभेदी प्राणायाम :- यह प्राणायाम चंद्र नाङी को प्रभावित करता है। यह नाङी शरीर को शीतलता प्रदान करती है। अत: यह प्राणायाम केवल गर्मी के मौसम मे करें। शरद ऋतु मे इसका अभ्यास नुकसानदायी हो सकता है।

3. शरीर की अवस्था के अनुसार अभ्यास करें।

प्राणायाम करते समय अपने शरीर की अवस्था को घ्यान मे रखें। अवस्था के अनुसार प्राणायाम करें।

वृद्ध अवस्था में।

वृद्ध अवस्था मे प्राणायाम सावधानी से करें। असावधानी से किया गया प्राणायाम हानिकारक हो सकता है। वृद्ध व्यक्ति प्राणायाम करते समय इन सावधानियों को ध्यान मे अवश्य रखें।

नियमित अभ्यासी :- यदि वृद्ध व्यक्ति नियमित अभ्यासी है, फिर भी अपनी क्षमता के अनुसार प्राणायाम करें। क्षमता से अधिक कोई क्रिया न करें।

नये अभ्यासी तथा अधिक वृद्ध व्यक्ति :- अधिक वृद्ध व्यक्ति प्राणायाम न करे। यदि श्वास की स्थिति ठीक है तो सरल प्राणायाम करें।

रोग की अवस्था में।

हृदय रोग तथा श्वास रोग मे प्राणायाम न करें। इन रोगों की अवस्था मे प्राणायाम करना नुकसानदायी हो सकता है। रोग पीङित व्यक्तियो को इन सावधानियो को ध्यान मे रखना चाहिये।

• उच्च रक्तचाप में :- उच्च रक्तचाप (High BP) में तीव्र गति वाले प्राणायाम न करें। धीमी गति से क्रिया करें। सरल प्राणायाम करें।

• रोग की आरम्भिक अवस्था में :- यदि श्वास रोग या हृदय रोग की आरम्भिक अवस्था है, तो सरल प्राणायाम करें। कुम्भक न लगाये। चिकित्सक की सलाह से योग क्रिया करें। औषधि का सेवन बंध न करें। औषधि तथा चिकित्सा सहायता लेते रहें।

• गम्भीर रोग पीङित :- गम्भीर रोग पीङित व्यक्ति को प्राणायाम नही करना चाहिए।

गर्भावस्था में।

गर्भावस्था मे प्राणायाम 'माँ एवम् गर्भ मे स्थित शिशु' दोनो के लिये लाभदायी है। लेकिन एक गर्भवती को अपनी गर्भावस्था में प्राणायाम सावधानी से करना चाहिये। असावधानी से किये गये प्राणायाम से नुकसान भी हो सकता है। प्राणायाम के अभ्यास मे इन बातों को ध्यान मे अवश्य रखें।

आरम्भिक अवस्था में :- गर्भ काल की आरम्भिक अवस्था में प्राणायाम अपनी क्षमता के अनुसार करें। क्रिया करते समय बल प्रयोग न करें। सुविधाजनक स्थिति मे बैठें।

पूर्ण अवस्था में :- गर्भ काल की पूर्ण अवस्था मे बैठने की स्थिति का सही चयन करें। सुविधा जनक स्थिति मे बैठे। यदि नीचे बैठना सम्भव न हो तो कुर्सी पर बैठ कर प्राणायाम करें। पेट पर दबाव डालने वाली क्रिया न करें। बिना कुम्भक का सरल प्राणायाम करें।

(सावधानी :- चिकित्सक की सलाह से योग क्रिया करें।)

बलपूर्वक व कठिन क्रिया नुकसानदायी होती है।

सभी योग क्रियाएँ अपनी क्षमता के अनुसार करनी चहाएँ। प्राणायाम करते समय भी अपनी क्षमता का ध्यान रखें। बलपूर्वक तथा क्षमता से अधिक प्राणायाम करना हानिकारक हो सकता है।

प्राणायाम क्रियाएँ अपनी क्षमता के अनुसार करे।
अनावश्यक बल प्रयोग न करें।
नये अभ्यासी आरम्भ मे सरल प्राणायाम करें।
आरम्भ मे बिना कुम्भक का प्राणायाम करें। 

लेख सारांश :-

प्राणायाम स्वास्थ्य के लिये एक लाभदायी क्रिया है। इसे नियम पूर्वक तथा सावधानी से करना चाहिये। असावधानी से किये गये प्राणायाम से नुकसान भी हो सकता है।

Disclaimer :-

यह लेख योग की सामान्य जानकारी हेतू लिखा गया है। किसी प्रकार के रोग का उपचार इस लेख का उद्देश्य नही है। योग क्रिया केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं।

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