प्रकृति ने हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान की है। यह ऊर्जा हमे बाहरी वातावरण तथा मौसम को सहन करने की क्षमता देती है, और दैनिक कार्य करने की शक्ति देती है। शरीर को "रोग प्रतिरोधक क्षमता" भी प्राकृतिक तौर पर प्राप्त हुई है। इसको Immunity कहा जाता है। यह हमारे शरीर को कई प्रकार के बाहरी वायरस से बचाव करती है तथा रोगों से बचाती है। लेकिन कई कारणों से यह ऊर्जा तथा Immunity कमजोर पड़ने लगती है। योग इनका संरक्षण करता है। इसलिये योग जीवनदायी है। प्रस्तुत लेख मे इस विषय पर विचार किया जायेगा।
विषय सुची :-
क्या योग जीवनदायी है?
योग एक प्राचीन भारतीय जीवनशैली है। प्राचीन समय मे लोगों का जीवन योगमय था। इसलिये वे स्वस्थ और दीर्घायु होते थे। आज के समय मे भी योग को स्वास्थ्य के लिये एक उत्तम विधि माना जाता है। यह सरल, सुरक्षित तथा सभी के लिये है। यह एक विज्ञान सम्मत विधि है।
योग क्या है? यह जीवनदायी क्यो है?
योग केवल मात्र शारीरिक व्यायाम नही है। यह व्यायाम से अलग है। व्यायाम के लाभ सीमित हैं। योग के प्रभाव तथा लाभ व्यापक हैं। यह तन के साथ मन-मस्तिष्क को भी स्वस्थ रखता है। केवल आसन प्राणायाम कर लेना "योग" नही है। अनुशासित जीवन, उत्तम आचरण तथा नियमित योगाभ्यास योग के अंग है।
अष्टांग योग को सम्पूर्ण योग कहा गया है। इसके आठ अंग हैं। लेकिन आज के समय मे केवल आसन-प्राणायाम को ही योग मान लिया जाता है। यह पूर्ण सत्य नही है।
देखें :- अष्टाँग योग क्या है?
योग क्या है? और कैसे करें?
पतंजलि योग मे अष्टांग योग को सम्पूर्ण योग बताया है। आसन, प्राणायाम व ध्यान इसके महत्वपूर्ण अंग हैं। ये तीनो शरीर के लिये लाभदायी और जीवनदायी हैं। लेकिन हमे "यम-नियम" का भी पालन करना चाहिए। आईए इसको विस्तार से जान लेते हैं।
यम-नियम का प्रभाव :- यम व नियम अष्टांग योग का पहला व दूसरा चरण हैं। ये सामाजिक नैतिकता तथा व्यक्तिगत शुद्धि की शिक्षा देते है। ये आचरण की शुद्धि करते हैं तथा चरित्र निर्माण करते हैं। हमारा आचरण तथा व्यवहार शरीर पर विशेष प्रभाव डालते हैं। इसलिये "यम नियम" का पालन करना भी जरूरी है।
आसन, प्राणायाम व ध्यान का प्रभाव :- ये तीनों योग के महत्वपूर्ण अंग हैं। ये शरीर को सीधा प्रभावित करते हैं। 'आसन' शरीर के अंगो को सुदृढ करते हैं। 'प्राणायाम' प्राण-ऊर्जा की वृद्धि करते हैं। 'ध्यान' मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है। ये शरीर को ऊर्जा देते हैं और ये शरीर के लिये जीवनदायी हैं। आईए इन के विषय मे विस्तार से समझ लेते हैं।
योगाभ्यास कैसे करें?
नियमित योगाभ्यास मे आसन, प्राणायाम व ध्यान तीनों क्रियाओं को किया जाना चाहिए। इनको सही क्रम व नियम से करना अधिक लाभदायी होता है। पहले आसन करें, आसन के बाद प्राणायाम करें। अन्त मे ध्यान का अभ्यास करें।
सभी युवा-वृद्ध, स्त्री-पुरुष सरलता से योग कर सकते हैं। लेकिन योगाभ्यास मे कुछ सावधानियों को ध्यान मे रखा जाना चाहिए। योगाभ्यास की सही विधि, सही क्रम तथा सावधानियों के विषय मे समझ लेते हैं।
1. योगासन।
योग मे "आसन" विशेष महत्व है। ये शरीर को सीधा प्रभावित करते हैं। शरीर के अस्थि-जोड़ों व मासपेशियों को सुदृढ करते हैं।
योगासन की विधि :- योग अभ्यास का आरम्भ "आसन" से किया जाना चाहिए।
• योगासन का सही समय सुबह का माना गया है। यदि दिन मे योगाभ्यास करते है तो खाली पेट हो तब अभ्यास करें।
• दरी, चटाई या योगा-मैट बिछा कर योगाभ्यास करना चाहिए।
• पहले सूक्ष्म क्रियाएं करें, उसके बाद आसन करें।
• आरम्भ मे सूर्य नमस्कार-आसन करें। इसके बाद खड़े होकर किये जाने वाले आसन करें। ये आसन करने के बाद बैठ जाएं। कुछ आसन बैठ कर करें। बैठ कर किये जाने वाले आसनों के बाद पेट के बल लेटें, और कुछ आसन करें। इसके बाद सीधे लेट जाएं और कुछ आसन इस स्थिति मे करें। अन्त मे शवासन मे विश्राम करें।
• एक आसन करने के बाद कुछ सैकिंड विश्राम करें। लगातार व जल्दी-जल्दी आसन न करे।
• सरल आसन करें। कठिन आसन न करें। जिस आसन से शरीर को सुख का अनुभव हो वह अवश्य करें। आसन की पूर्ण स्थिति मे पहुंच कर रुकने का प्रयास करें।
योगासन का शरीर पर प्रभाव :-
"आसन" शरीर को सीधा प्रभावित करते हैं। ये शरीर के लिये ऊर्जादायी हैं।
• अस्थि जोड़ व मासपेशियां :- आसन शरीर के हड्डी-जोड़ों को सक्रिय करते है और मासपेशियों को सुदृढ करते हैं।
• रीढ :- इनका रीढ पर विशेष प्रभाव होता है। ये रीढ को लचीला बनाये रखते हैं और रीढ को मजबूती देते हैं।
• पाचन क्रिया :- पेट के आन्तरिक अंगों को एक्टिव करते हैं। आसनों से किडनी, लीवर व पेनक्रियाज प्रभावित होते है। ये पाचन क्रिया को बढाते हैं।
• सुगर का सन्तुलन :- शरीर के आन्तरिक अंगो के सक्रिय होने से शरीर के हार्मोन्स व राशायनों का सन्तुलन बना रहता है। नियमित आसन शरीर के सुगर निर्माण को नियंत्रित करते हैं।
• रक्तचाप नियंत्रण :- नियमित योगासन शरीर के रक्त संचार की स्थिति को उत्तम बनाते हैं। ये रक्तचाप को सन्तुलित रखते हैं।
योगासन की सावधानियां :
योगासन प्रत्येक आयु-वर्ग के लिये लाभदायी हैं। नियमित आसन सभी के लिये जीवनदायी हैं। लेकिन इनको कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए।
• सरल आसन करें :- पतंजलि योग मे "आसन" की परिभाषा दी गई है :- स्थिरसुखम् आसनम्। अर्थात् स्थिरता व सुखपूर्वक जिस पोज मे बैठते हैं वह "आसन" है। इसका अर्थ है कि आसन सरलता से करें। जो सुख की अनुभूति दें, वही आसन करें। कठिन आसन न करे।
• क्षमता अनुसार आसन करें :- अपनी शारीरिक अवस्था व क्षमता के अनुसार आसन करें। क्षमता से अधिक आसन करना हानिकारक हो सकता है।
- गम्भीर रोग पीड़ित।
- ऐसे व्यक्ति जिन की हाल ही मे कोई सर्जरी हुई है।
- अधिक वृद्ध व्यक्ति।
- गर्भवति महिलाएं।
2. प्राणायाम :
"प्राणायाम" एक श्वसन अभ्यास है। यह अष्टांगयोग का चौथा चरण है। इसका योग मे बङा महत्व है। यह प्राण शक्ति की वृद्धि करता है। यह लाभदायी व जीवनदायी है।( विस्तार से देखें :- कोनसे प्राणायाम लाभदायी होते हैं )
प्राणायाम की विधि :
आसन करने के बाद प्राणायाम करें। सही विधि इस प्रकार है :-
• बैठने की स्थिति :- प्राणायाम के लिये पद्मासन या सुखासन मे बैठना उत्तम है। जो व्यक्ति घुटने मोड़ कर नीचे नही बैठ सकते हैं, वे कुर्सी पर बैठ कर करें।
रीढ व गर्दन को सीधा रखें। कमर को झुका कर न बैठें। हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा या सुविधा जनक स्थिति मे रखें। आंखों को कोमलता से बंध रखें।
• आरम्भ :- प्राणायाम का आरम्भ लम्बे-गहरे श्वासों से करें। धीरे-धीरे लम्बा श्वास भरें और धीरे-धीरे पूरा श्वास खाली करें। इसी प्रकार पांच आवर्तियां करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। इसके बाद अपनी क्षमता के अनुसार अन्य प्राणायाम करें।
• सरल प्राणायाम करें :- लम्बे-गहरे श्वास क्रिया के बाद सरलता से अन्य प्राणायाम करें। कुछ मुख्य लाभदायी प्राणायाम ये हैं :-
- कपालभाति।
- अनुलोम विलोम।
- भ्रामरी।
- भस्त्रिका।
- नाड़ी शोधन।
सभी प्राणायाम अपने श्वासो की क्षमता के अनुसार करें। सभी प्राणायाम करने के बाद श्वासों को सामान्य करें।
• कुम्भक :- श्वास को अपनी क्षमता के अनुसार कुछ देर रोकने के स्थिति को "कुम्भक" कहा जाता है। प्राणायाम के वास्तविक लाभ कुम्भक से ही मिलते हैं। लेकिन श्वासो की स्थिति ठीक नही है, कुम्भक न लगाएं। श्वास रोगी को भी कुम्भक नही लगाना चाहिए।
प्राणायाम के प्रभाव :-
प्राणायाम शरीर के लिये एक प्रभावी क्रिया है। यह ऊर्जादायी व जीवनदायी क्रिया है। इसके मुख्य प्रभाव व लाभ इस प्रकार हैं :-
• श्वसन तंत्र :- यह श्वास पर आधारित क्रिया है। इस क्रिया से फेफड़े सक्रिय होते हैं। श्वसनतंत्र सुदृढ होता है। नियमित प्राणायाम शरीर को श्वसन-रोगों से बचाते हैं।
• हृदय स्वस्थ रहता है :- प्राणायाम श्वासों को सुदृढ करता है। श्वसन प्रणाली के स्वस्थ रहने से आक्सीजन पर्याप्त मात्रा मे मिलती है। यह रक्तचाप (BP) को सामान्य रखने मे सहायक होता है। इसलिये यह हृदय को स्वस्थ रखने वाली क्रिया है।
• ऊर्जादायी है :- साधारणतया हमारी ऊर्जा अधोगामी (नीचे की ओर जाने वाली) होती है। इस कारण यह क्षीण होती रहती है। प्राणायाम इसे ऊर्ध्वगामी (ऊपर की ओर उठने वाली) करता है। यह शरीर को ऊर्जावान बनाये रखता है।
• यह जीवनदायी है :- "प्राण" शरीर का जीवन है। प्राणायाम का मुख्य प्रभाव "प्राणों" पर पड़ता है। यह प्राणों की वृद्धि करता है। प्राणिक नाड़ियों का शोधन करके इनके अवरोधों को हटाता है। शरीर मे प्राणों के प्रवाह को सुचारू रखता है।
प्राणायाम की सावधानियां :
प्राणायाम सभी के लिये लाभदायी है। लेकिन प्राणायाम करते समय कुछ सावधानियों को ध्यान मे रखें।
• श्वासों की क्षमता :- प्राणायाम अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार करें। क्षमता से अधिक या बलपूर्वक कोई क्रिया न करें।
• कुम्भक का प्रयोग :- नए अभ्यासी आरम्भ में बिना कुम्भक का प्राणायाम करें। यदि श्वासों की स्थिति ठीक नही है तो कुम्भक न लगाएं। कुम्भक लगाने मे अधिक बल प्रयोग न करें।
• प्राणायाम वर्जित :- प्राणायाम क्रिया कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है। इस लिये इन को प्राणायाम नही करना चाहिए।
- हृदय रोगी :- हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति प्राणायाम न करें। रोग की आरम्भिक अवस्था मे चिकित्सक की अनुमति से सरल प्राणायाम करें। तीव्र गति वाले प्राणायाम न करें। प्रशिक्षक के निर्देशन मे क्रिया करें
- श्वास रोगी :- अस्थमा पीड़ित व्यक्ति प्राणायाम न करें। प्रारम्भिक रोगी चिकित्सक से सलाह लें। चिकित्सक की अनुमती से सरल प्राणायाम करें। कुम्भक न लगायें।
- उच्च रक्तचाप मे :- उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति के लिये कुछ प्राणायाम वर्जित हैं। ऐसे व्यक्ति तीव्र गति वाले प्राणायाम न करें। उच्च रक्तचाप वालों को "भस्त्रिका" तथा "सूर्यभेदी" प्राणायाम नही करने चाहिएं। अनुलोम विलोम तथा धीमी गति वाले प्राणायाम करें।
- आंत व पेट के रोगी :- आंतो के रोगी तथा पेट मे कोई फोड़ा है तो पेट पर दबाव डालने वाली क्रिया न करें।
- गर्भवती महिलाएं :- गर्भवती महिलाएं पेट पर दबाव डालने वाली क्रिया न करें। बैठने की स्थिति का सही चयन करें। नीचे बैठने मे असुविधा है तो नीचे न बैठें। पीठ को सीधा रखते हुए कुर्सी पर आराम से बैठे। अनुलोम विलोम, भ्रामरी जैसे सरल प्राणायाम करें।
3. ध्यान (Meditation).
आसन प्राणायाम के बाद "ध्यान" का अभ्यास करें। पद्मासन, सुखासन या किसी आरामदायक स्थिति मे बैठें। रीढ व गर्दन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बन्ध करें।
विधि :-
• ध्यान श्वासों पर :- धीरे-धीरे लम्बे-गहरे श्वास भरें और बाहर छोड़ें। श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करे। आती-जाती श्वासों को अनुभव करें। मन मे कोई विचार न आने दे। ध्यान पूरी तरह श्वासों पर रखें।
• ध्यान आज्ञा चक्र में :- कुछ देर बाद ध्यान को श्वासों से हटाएं। ध्यान को आज्ञा चक्र मे केन्द्रित करें। माथे के बीच ध्यान को ले जाये। यहां अपने किसी आराध्य को ध्यान मे लाएं।
• निर्विचार :- कुछ देर आज्ञा चक्र मे ठहरने के बाद ध्यान को यहां से हटाएं और निर्विचार हो कर बैठें। कोई विचार मन मे न आने दें।
• ध्यान से वापिस आयें :- कुछ देर निर्विचार भाव मे बैठने के बाद "ध्यान" क्रिया से वापिस आ जाएं। दोनों हाथों को उठ कर आई हुई ऊर्जा को अपने मुख-मण्डल पर धारण करें। पीठ के बल लेट जाएं। विश्राम करें।
ध्यान का महत्व :- मन (चित्त वृत्ति) शरीर को प्रभावित करता है। "ध्यान" मन को अन्तर्मुखी करने की क्रिया है। यह मानसिक शान्ति देने वाली क्रिया है।
लेख सार :-
आसन, प्राणायाम व ध्यान तीनों योग के महत्वपूर्ण अंग हैं। ये शरीर के लिये ऊर्जादायी हैं और शरीर को स्वस्थ रखते हैं। योग जीवनदायी है, अत: नियमित योग करें।
Disclaimer :-
यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार हेतू नही है। इस लेख का उद्देश्य केवल योग की जानकारी देना है। योग क्रियाएं स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। रोग-ग्रस्त व्यक्ति चिकित्सक से सलाह लें। लेख मे बताई गई सावधानियों का पालन करें।