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योगाभ्यास मे कपालभाति क्रिया और अनुलोम विलोम प्राणायाम बहुत महत्वपूर्ण है। 'कपालभाति' एक शुद्धि क्रिया है। 'अनुलोम विलोम' एक सरल प्राणायाम है। इन दोनो के प्रभाव अलग-अलग हैं। लेकिन इन दोनो को एक साथ करने से इनके लाभ और भी बढ जाते हैं। रक्तचाप (BP) के लिए कपालभाति व अनुलोम विलोम प्रभावी क्रियाएं हैं। इस लेख मे इन दोनो की विधि, लाभ व सावधानियों का वर्णन किया जायेगा।

विषय सुची :- 

• रक्तचाप के लिए कपालभाति अनुलोम विलोम
• कपालभाति की विधि, लाभ व सावधानियां
• अनुलोम विलोम की विधि, लाभ व सावधानियां
• दोनो को एक साथ करने का प्रभाव
• दोनो का सही क्रम

pranayam

कपालभाति व अनुलोम विलोम से BP नियंत्रण

ये दोनो योगाभ्यास की महत्वपूर्ण क्रियाएं हैं। दोनो को एक साथ करना अधिक लाभदायी होता है। कपालभाति और अनुलोम विलोम रक्तचाप को सामान्य करते हैं। इन दोनो की सही विधि क्या है? इन दोनों के अभ्यास का सही क्रम क्या है? पहले कपालभाति करें या अनुलोम विलोम? इन सभी के विषय में आगे वर्णन किया जायेगा। लेकिन पहले इन दोनों की सही विधि के बारे में जान लेते हैं।

कपालभाति की विधि, लाभ व सावधानियां :

कपालभाति मुख्यत: एक शुद्धि क्रिया है। योग विशेषज्ञ इसे प्राणायाम नही मानते है। इसका मुख्य प्रभाव कपाल (शीर्ष) भाग पर पड़ता है। लेकिन कपाल शुद्धि के साथ यह क्रिया श्वसनतंत्र को भी प्रभावित करती है। इसलिये हम इसे एक प्राणायाम भी मान लेते हैं।

कपालभाति की विधि :

बैठने की स्थिति :- पद्मासन या सुखासन मे बैठें। रीढ को सीधा रखें। दोनो हाथ घुटनो पर रखें। रीढ को सीधा तथा आँखें कोमलता से बन्ध करें।

क्रिया की विधि :-
• पेट को अन्दर की ओर दबाते हुए श्वास को झटकते हुए बाहर निकालें।
• सामान्य गति से श्वास भरें। केवल श्वास छोड़ने मे बल लगाये। श्वास भरना सामान्य रखें।
धीमी गति से आरम्भ करें। धीरे धीरे गति को बढ़ाए। • वापसी के लिये धीरे-धीरे गति को कम करें। वापिस आने पर श्वास सामान्य करें।

कपालभाति के लाभ :

यह कपाल भाग को प्रभावित करने वाली क्रिया है। इसके मुख्य लाभ इस प्रकार हैं :- 

यह क्रिया कपाल भाग की शुद्धि करती है।
• इस क्रिया से शीर्ष भाग प्रभावित होता है।
• श्वसनतंत्र सुदृढ होता है।
फेफड़े (Lungs) सक्रिय होते हैं।
• हृदय को मजबूती मिलती है।
• यह रक्तचाप को सामान्य करता है। 

कपालभाति मे सावधानियां :

कपालभाति एक लाभदायी क्रिया है। लेकिन इसे कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए।

• आरम्भ मे धीमी गति से करें। धीरे-धीरे गति को बढ़ाएं।
क्रिया को अपनी क्षमता के अनुसार करें।
• सरलता से करें। अनावश्यक बल प्रयोग न करें।
• उच्च रक्तचाप (High BP) है, तो तीव्र गति से न करें।
• आंत रोग या पेट मे कोई जख्म है तो पेट पर दबाव न डालें।
• गम्भीर श्वास रोगी और हृदय रोगी इस को न करें।
• गर्भवती महिलाएं केवल अनुलोम विलोम करें। 

अनुलोम विलोम की विधि, लाभ व सावधानियां :

यह एक सरल प्राणायाम है। इसे सभी व्यक्ति सरलता से  कर सकते हैं।

इस प्राणायाम को कपालभाति के बाद अवश्य किया जाना चाहिए। यह कपालभाति के लाभ मे वृद्धि करता है।

अनुलोम विलोम की विधि :

बैठने की स्थिति :- पद्मासन या सुखासन मे बैठें। बायां हाथ बाएं घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। दाएं  हाथ के अंगूठे के साथ वाली दो उंगलियां मोड़ लें। दाएं हाथ को नासिका के पास रखें। तीसरी उंगली नासिका के बांई तरफ और अंगूठा नासिका के दांई तरफ रखें।

करने की विधि :-

• रीढ व गर्दन को सीधा रखें। आंखे कोमलता से बन्ध करें।
• अंगूठे से दाईं नासिका को बन्ध करें।
• बाईं तरफ से धीरे-धीरे श्वास भरें। पूरा श्वास भरने के बाद दाईं तरफ से श्वास को धीरे-धीरे खाली करें।
• पूरा श्वास खाली होने के बाद दाईं तरफ से श्वास भरें और बाईं तरफ से श्वास को खाली करें।
यह एक आवर्ती पूरी हुई। इस प्रकार अन्य आवर्तियां करें।

अनुलोम विलोम के लाभ :

यह एक सरल तथा लाभदाई प्राणायाम है। जो व्यक्ति कपालभाति नही कर सकते वे केवल अनुलोम विलोम करें। इस प्राणायाम से मिलने वाले लाभ इस प्रकार हैं :-

अनुलोम विलोम मस्तिष्क को प्रभावित करता है।
यह चन्द्र नाड़ी (शीतलता देने वाली) और सूर्य नाड़ी (गर्मी देने वाली) को संतुलित करता है।
• श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है।
• कपालभाति से प्राप्त ऊर्जा को संतुलित करता है।
यह रक्तचाप (BP) को सामान्य रखता है।

अनुलोम विलोम की सावधानियां :

यह एक सरलता से किया जाने वाला प्राणायाम है। फिर भी कुछ सावधानियां ध्यान मे रखें।

रीढ व गर्दन सीधा करके बैठें।
पद्मासन मे बैठना उत्तम है। यदि पद्मासन की स्थिति मे नही बैठ सकते हैं तो सुविधा पूर्वक स्थिति मे बैठें।
एक नासिका से धीरे-धीरे लम्बा व गहरा श्वास भरें। पूरी तरह श्वास को दूसरी तरफ से खाली करें।
प्राणायाम के अंत मे श्वास को सामान्य करें।

दोनो को एक साथ करने का प्रभाव :

पहले कपालभाति करना उत्तम है। यह क्रिया कपाल भाग की शुद्धि करती है। यह ऊर्जादायक क्रिया है। इसके बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम करना चाहिए। यह कपालभाति से प्राप्त ऊर्जा का संतुलित करता है तथा रक्तचाप को सामान्य करता है।

पहले कपालभाति क्यों? :- कपालभाति ऊर्जा देने वाली क्रिया है। इसके करने से रक्तचाप की वृद्धि होती है। इस ऊर्जा को संतुलित करने के लिए कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम करना जरूरी भी है तथा उत्तम भी है। अत: पहले कपालभाति करें और बाद मे अनुलोम विलोम करें।

सारांश :

कपालभाति और अनुलोम विलोम रक्तचाप को सामान्य रखते हैं। "कपालभाति" कपाल (शीर्ष भाग) की शुद्धि करने वाली तथा ऊर्जा देने वाली क्रिया है। अनुलोम विलोम इसे संतुलित करता है।

Disclaimer :

योग क्रियाएं केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। अस्वस्थ व्यक्ति योग क्रियाएं न करें। अपने शरीर की क्षमता के अनुसार क्रियाएं करें। किसी प्रकार के रोग का उपचार करना इस लेख का उद्देश्य नही है। प्राणायाम के विषय मे जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है।

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