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आज के समय मे अधितर लोग सर्वाइकल (Cervical) के रोग से पीड़ित हैं। अधिकतर 50 वर्ष की आयु के बाद यह पीड़ा होने लगती है। लेकिन आज कल युवा-वर्ग भी इस रोग से प्रभावित हो रहा है। इसका मुख्य कारण 'गलत खान-पान' और 'अनियमित दिनचर्या' है। योग इसके लिए एक प्रभावी क्रिया है। योगाभ्यास में कई आसन बताए गए हैं जो इसके लिए लाभदाई होते हैं। लेकिन सर्वाइकल से राहत के लिए 7 योगासन (Yoga for cervical) विशेष लाभकारी हैं। प्रस्तुत लेख में इसका वर्णन विस्तार से किया जाएगा।

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विषय सुची :

र्वाइकल के लिए 7 आसन :--

  • 1. सूक्ष्म आसन
  • 2. गोमुख आसन
  • 3. उष्ट्रासन
  • 4. शशांक आसन
  • 5. भुजंग आसन
  • 6. सर्वांग आसन
  • 7. मत्स्य आसन

सर्वाइकल के लिए 7 योगासन

सर्वाइकल क्या है :- गर्दन व कन्धो के बीच रीढ के ऊपरी भाग को सर्वाइकल क्षेत्र कहा गया है। नियमित शारीरिक अभ्यास न करने के कारण इसकी सक्रियता कम होने लगती है, और इसमें तनाव आने लगता है। इसके प्रभावित होने पर कंधों व गर्दन में पीड़ा होने लगती है। सिर में दर्द तथा चक्कर आने के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसे सर्वाइकल कहा जाता है।

इस रोग का मुख्य कारण गलत खान-पान और अनियमित जीवन शैली है। इस पीड़ा से बचने के लिए संतुलित आहार लें। दिनचर्या को व्यवस्थित करें। नियम पूर्वक योगाभ्यास इसके लिए विशेष प्रभावी होते हैं। इस पीड़ा से बचने के लिए ये 7 योगासन विशेष लाभकारी होते हैं। आगे लेख में इसको विस्तार से बताया जाएगा।

1. सर्वाइकल के लिए सूक्ष्म आसन :

इस पीड़ा से बचने के लिए कंधों, गर्दन व रीढ को प्रभावित करने वाले कुछ सूक्ष्म आसन अवश्य करें। यह अभ्यास खड़े होकर या बैठ कर किए जा सकते हैं। योगासन का आरम्भ सूक्ष्म आसन से ही करना चाहिए।

गर्दन के आसन :

इस आसन मे गर्दन को धीमी गति से आगे-पीछे, दांए- बांए तथा गोलाई मे घुमाएं। एक आवर्ती करने के बाद विराम दें। तनाव दूर होने के बाद दूसरी आवर्ती करें।

आगे पीछे :-
  • दोनो हथेलियां गर्दन के दांए़ - बांए कन्धो पर रखें।
  • धीरे से गर्दन को पीछे झुकाएं। कुछ देर रुकें।
  • धीरे-धीरे गरदन को आगे की ओर झुकाएं। कुछ देर रुकें।
  • अवश्यकता अनुसार दो-तीन आवर्तियां करे।
  • हाथ नीचे ले आएं। विश्राम करें।
दांए बांए :-
  • धीरे से गरदन को दांई ओर झुकाएं दांया कान कन्धे के पास ले जाने का प्रयास करें। 
  • धीरे से गर्दन को सीधा करे तथा बांई ओर झुकाएं। बांया कान कन्धे के पास ले जाने का प्रयास करें।
  • इसी प्रकार 3-4 आवर्तियां करें।
  • क्षमता के अनुसार क्रिया करने के बाद विराम दें।
  • दोनो हाथो से गर्दन के पीछे रीढ को सहलाये। हाथों को नीचे ले आएं। विश्राम करें।
गोलाई में :-
  • धीरे-धीरे गर्दन को गोलाई मे घुमाये। 
  • पहले चक्र मे सिर को क्लाक वाईज (घङी की दिशाा मे) घुमाये।
  • दूसरे चक्र में एंटी-क्लाक वाईज (विपरीत दिशा में) घुमाएं।
  • अपनी क्षमता के अनुसार क्रिया करने के बाद वापिस आएं और विश्राम करें। 

सावधानी :-

  • यदि गर्दन को घुमाने मे परेशानी है तो इस आसन को न करें।
  • इस आसन को धीमी गति से करे। अपनी क्षमता के अनुसार करे।
  • इस आसन को बलपूर्वक न करें। 

कन्धो के आसन :-

  • दोनो हाथ गरदन के पीछे ले जाये। दोनों हाथों की उंगलियां आपस मे ज्वाइंट करे।
  • बांए हाथ से दांए हाथ पर खिंचाव बनाये। बांई कोहनी को बांई पसली के पास तथा दांई कोहनी को गरदन के पास ले आंएं।
  • कुछ सेकिंड रुकें।
  • कुछ देर रुकने के बाद दाँये हाथ को खींच कर दाँयी कोहनी को पसली के पास ले आये। बाँयी कोहनी गरदन के पास आ जाये। 
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार दो- तीन आवर्तियाँ करने के बाद वापिस आ जाएँ। विश्राम करें।
सावधानी :- गरदन व कन्धों की परेशान है  तो इस आसन को न करें। धीमी गति से करें। इस आसन को सरलता से करें। अधिक बलपूर्वक करने से हानि हो सकती है।

2. गोमुख आसन :

इस आसन पीठ व कन्धे प्रभावित होते हैं। यह सर्वाइकल से राहत के लिये लाभकारी आसन है। यह बैठ कर किया जाने वाला आसन है।

आसन की विधि

  • मैट या कपड़े के आसन पर बैठें।
  • दांया पैर मोड़ कर बांई जंघा के नीचे रखें।
  • बाँया पैर मोङ कर दाँयी जंघा के ऊपर रखें।
  • दाँया घुटना नीचे और बाँया घुटना ऊपर रहे।
  • पीठ व गरदन को सीधा रखें।
  • बाँया हाथ ऊपर उठा कर कन्धे के पास ले जाँये।
  • दाँया हाथ नीचे से पीठ पर ले जाँये। दोनो हाथ पीठ पर स्थित होने के बाद दोनो हाथो को पकङने का प्रयास करें। कुछ देर इस स्थिति मे रुके।
  • कुछ देर रुकने के बाद वापिस आये। दोनो पैरो को सीधा करें। 
  • दूसरे चरण में हाथों व पैरों  की स्थिति बदलें।
  • दाँया घुटना ऊपर बाँया घुटना नीचे रखे। दोनो हाथ पीठ पर ले जाँये। पीठ पर दाँया हाथ ऊपर तथा बाँया नीचे रखे। दोनो हाथो को पकङने का प्रयास करें।
  • स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद वापिस आ जाँये। पैर सीधे करके विश्राम करें।
(अधिक जानकारी के लिये देखें :- गोमुखासन कैसे करें? )

आसन की सावधानी :

  • घुटने मोङने मे परेशानी है तो कुर्सी पर बैठ कर इस आसन को करें।
  • यदि कन्धों मे कोई विकार है तो यह आसन न करें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार करे। 
  • बलपूर्वक आसन की पूर्ण स्थिति मे जाने का प्रयास न करें।
  • आसन को सरलता से करें।

3. उष्ट्रासन :

यह रीढ को प्रभावित करने वाला आसन है। यह सर्वाइकल के लिये लाभकारी आसन है। इस आसन को सावधानी से करे। नये योगाभ्यासी इस आसन की पूर्ण स्थिति मे न जाये। धीरे धीरे अभ्यास को बढाये।

इस आसन को करते समय जहाँ पीङा का अनुभव हो, वहाँ रुक जाएँ। और धीरे-धीरे वापिस आ जाएँ। नये व्यक्ति आसन की पूर्ण स्थिति मे न जाएँ। धीरे-धीरे अभ्यास को बढाये।

आसन की विधि :

  • घुटने मोङ कर वज्रासन मे बैठें।
  • मुङे हुये घुटनों पर ऊपर उठें।
  • घुटनों मे थोङा गैप रखें।
  • पँजे भी घुटनों के समानान्तर रखें।
  • दोनो हाथ कमर पर रखें।
  • धीरे से गरदन को पीछे की तरफ झुकाये।
  • धीरे-धीरे रीढ को पीछे की तरफ झुकाये।
  • बारी बारी दोनों हाथ ऐडी पर लेआँये। इस स्थिति मे क्षमता के अनुसार रुके।
  • कुछ देर रुकने के बाद वापिस आये। विश्राम करें।

आसन की सावधानी :

  • आसन की पूर्ण स्थिति में धीरे-धीरे जाएँ।
  • अपनी क्षमता के अनुसार स्थिति मे रुकें।
  • धीरे-धीरे स्थिति से वापिस आएँ।
  • नये व्यक्ति जो इस आसन को पहली बार कर रहे हैं, वे सावधानी से करें।
  • ऐसे व्यक्ति बलपूर्वक आसन न करे। आसन करते समय जहाँ परेशानी लगे वहाँ रुक जाँये। और वापिस आ जाये। आसन को क्षमता से अधिक न करें।
  • रीढ की परेशानी वाले इस आसन को न करें।
  • कोई सर्जरी हुई है तो इसे न करें।

4. शशांक आसन :

यह पहले किये गये उष्ट्रासन का विपरीत आसन है। यह उष्ट्रासन के लाभ को बढाने वाला आसन है। उष्ट्रासन के बाद इस आसन को करना अधिक लाभकारी होता है।

आसन की विधि

  • इस आसन को करने के लिये वज्रासन मे बैठें।
  • धीरे धीरे दोनों हाथ ऊपर उठाये। श्वास भरते हुये हाथों को ऊपर खींचें।
  • श्वास छोङते हुये आगे झुकें।
  • हथेलियाँ, कोहनियाँ नीचे टिकायें। माथा घुटनों के पास ले जाये। स्थिति मे कुछ देर रुकें।
  • कुछ देर रुकने के बाद श्वास भरते हुये ऊपर उठें। हाथ नीचे ले आँये। विश्राम करें।

आसन की सावधानी :

  • इस आसन मे अपनी क्षमता के अनुसार आगे की ओर झुकें।
  • यदि पेट मे हार्निया है, तो इस आसन को न करें।
  • कोई सर्जरी हुई है, तो यह आसन न करें।
  • यह आसन आँत के गम्भीर रोगी को नहीं करना चहाये।
  • गर्भभवती महिलाये इस आसन को न करें।

5. भुजंग आसन :

भुजंग आसन सर्वाइकल के लिए एक प्रभावी आसन है। यह सीने के बल लेट कर किया जाने वाला आसन है।

इस आसन मे सीना व माथा ऊपर उठाया जाता है। इस आसन मे भुजंग जैसी आकृति बनती है, इस लिए इसको भुजंग आसन कहा गया है।

आसन की विधि :

  • इस आसन को करने के लिये पेट के बल लेट जाये।
  • दोनो पैर एक साथ, पँजे सीधे और घुटने मिला कर रखे।
  • दोनो हथेलियाँ गरदन के दाँये बाँये रखें।
  • माथा नीचे आसन पर रखे।
  • धीरे से सिर को ऊपर उठाये। गरदन को पीछे की ओर प्रभावित करे। कुछ देर रुकें।
  • श्वास भरते हुये सीना ऊपर उठाये।
  • सीना अधिकतम ऊपर उठने के बाद कुछ देर रुके।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे-धीरे वापिस आएँ। पहले सीना नीचे टिकाएँ, उसके बाद माथा नीचे टिकाएँ।
  • आसन के अंत मे स्थिल आसन मे विश्राम करें।
(विस्तार से देखें :- भुजंग आसन। )

6. सर्वांग आसन

यह आसन शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है। इस लिये इसे सर्वांग आसन कहा गया है। यह आसन कन्धो व गरदन को विशेष प्रभावित करता है।

सर्वाइकल से राहत के लिए यह एक महत्वपूर्ण आसन है। यह सीधे पीठ के बल लेट कर किया जाने वाला आसन है। इस आसन के बाद मत्स्य आसन अवश्य करें।

आसन की विधि :

  • इस आसन को करने के लिए पीठ के बल लेटें।
  • दोनों हाथ शरीर के साथ रखें। हथेलियों की दिशा नीचे की ओर रखें।
  • धीरे धीरे दोनों पैरों को ऊपर उठाये। घुटने सीधे रखें। पैर ऊपर उठने के बाद कुछ देर रुकें।
  • धीरे-धीरे पैरों को पीछे की तरफ ले जाँये।
  • दोनों हाथ पीठ पर रखें। हाथो का सहारा ले कर पैर व पीठ को ऊपर उठाये। पैरों को सीधा आसमान की तरफ रखें। पीठ ऊपर रहे। कन्धों पर संतुलन बना कर कुछ देर तक रुकें।
  • यह आसन की पूर्ण स्थिति है। अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापिस आना आरम्भ करें।
  • धीरे धीरे पीठ को नीचे टिकाये। हाथों को पीठ से हटाएँ।
  • घुटनों को सीधा रखते हुये पैर नीचे ले कर आये। पैर धीमी गति से नीचे लाएँ। धीरे से पैरों को नीचे टिकाये।
  • पैर नीचे आने के बाद दोनों पैरों मे कुछ दूरी रखे शरीर को ढीला छोङ दें। कुछ देर तक विश्राम करे। आये हुये  तनाव को दूर करें।

आसन की सावधानी :

  • गर्भवती महिलाएँ तथा रीढ की परेशानी वाले व्यक्ति इस आसन को न करें।
  • आँतो मे परेशानी है या कोई सर्जरी हुई है तो इस आसन को न करें।
  • आसन को धीमी गति से करें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार करे।
  • आसन की पूर्ण स्थिति मे क्षमता के अनुसार रुकें। वापिस आते समय पैरो पर नियंत्रण रखे। धीरे से नीचे टिकाएँ।

7. मत्स्य आसन :

यह गरदन व पीठ को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण आसन है। यह आसन सर्वाईकल क्षेत्र को प्रभावित करता है। यह सर्वांग आसन का पूरक आसन है। सर्वांग आसन के बाद इस आसन को अवश्य करना चाहिये।


आसन की विधि :

  • इस आसन को करने के लिये पीठ के बल लेटें।
  • दाँया पैर मोङ कर बाँयी जंघा पर रखें। बाँया पैर मोङ कर दाँयी जंघा पर रखें। लेटे हुये पद्मासन की स्थिति बनाएँ।
  • दोनों पैरों के अंगूठे पकङें।
  • गरदन को पीछे की ओर करे। कोहनियों का सहारा लेकर शरीर का मध्य ऊपर उठायें। दोनो घुटनों को नीचे टिकाने का प्रयास करें।
  • यह आसन की पूर्ण स्थिति है। इसमे अपनी क्षमता के अनुसार रुकें।
  • कुछ देर रुकने के बाद वापिस आये। पैरों खोलें। शवासन मे विश्राम करें।
आसन की सावधानी :- 

यदि गरदन मे कोई पीङा है तो यह आसन न करें। अपनी क्षमता के अनुसार आसन करें। 

लेख सारांश :-

सर्वाइकल (Cervical) पीड़ा का मुख्य कारण गलत खान-पान व अनियमित जीवन शैली है। इस के लिये योगासन बहुत प्रभावी हैं। इस पीड़ा से बचने के लिये संतुलित आहार लें और नियमित योगासन करें।

Disclaimer :- किसी प्रकार के "रोग का उपचार करना" इस लेख का उद्देश्य नहीं है। केवल योग के लाभ व सावधानियों की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है।

इस लेख मे बताये गये सभी आसन केवल स्वस्थ व्यक्तियों के  लिये हैं। कोई भी आसन करते समय नियम व सावधानियों को ध्यान मे रखें। कोई भी रोग होने पर चिकित्सक से सलाह ले। औषधि सेवन बन्ध न करें।

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