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आधुनिक समय मे योग के प्रति लोगों का रुझान बढा है। आज स्वास्थ्य के लिए पूरा विश्व इसे अपना रहा है। इसका सबसे बङा कारण यह है कि योग सरल है, सुरक्षित है। योग भारत की एक प्राचीन जीवन शैली है। यह विश्व को भारत की एक अमुल्य देन है। लेकिन प्रश्न यह पूछा जाता है कि योग का आरम्भ कब हुआ? क्या योग के जनक पतंजलि थे? क्या पतंजली से पहले योग नही था? इस आलेख मे इसी विषय पर जानकारी दी जाएगी।

( इस लेख को English version मे देखें:- Patanjali: father of yoga. )


विषय सुची :-
  • योग का आरम्भ किसने किया?
  • पतंजलि कोन थे?
  • पतंजलि की रचनाएँ।
  • पतंजलि को योग जनक क्यों कहा जाता है?
  • पतंजलि योगसूत्र के सुप्रसिद्ध सूत्र।

योग का आरम्भ किसने किया?

यह तो सब जानते हैं कि योग भारत की देन है। प्राचीन काल मे योग केवल भारत तक ही सीमित था। यह भारत की एक उत्तम जीवनशैली रही है। लेकिन विश्व इस उत्तम विधि से अपरिचित था। हमारे अनेको योगी व सन्यासियो ने विश्व को योग से परिचित करवाया। जब महान सन्त विवेकानन्द जी ने अमेरिका मे भारतिय योग-दर्शन के विषय मे बताया तो विश्व चकित रह गया।

आज UN भी इसे मान्यता दे चुका है। प्रति वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस मनाया जाता है। लेकिन प्रश्न यह है कि योग का आरम्भ कब हुआ? क्या महर्षि पतंजलि ने योग को आरम्भ किया? क्या वे ही योग के जनक थे? क्या उनसे पहले योग नही था? यदि उस समय योग था, तो महर्षि पतंजलि को योग का जनक  क्यों माना जाता है?  

पतंजलि को योग का जनक क्यो कहा जाता हैं?

आदि योगी भगवान शिव :- योग के आरम्भ का काल-खण्ड निर्धारण करना असम्भव है। भारत मे योग बहुत प्राचीन है। ़धार्मिक ग्रंथों मे योग का वर्णन आता है। ऐसा माना जाता है कि आदियोगी (प्रथम योगी) भगवान शिव हैं। भगवान शिव से अधिक पुरातन इस सृष्टि में कोई नहीं है। जिस प्रकार शिव शाश्वत है, उसी प्रकार योग भी सनातन है। 

महर्षि पतंजलि को योग का जनक माना जाता है। क्या महर्षि पतंजलि से पहले योग अस्तीत्व मे नही था? यदि था, तो उसकी क्या स्थिति थी? ये सब जानने के लिए पहले पतंजलि के बारे मे जानना होगा। पतंजलि कोन थे, तथा योग के प्रति उनका क्या योगदान था?

महर्षि पतंजलि कोन थे? 

प्राचीन भारत में कई ऋषि, मुनि हुए हैं। महर्षि पतंजलि भी एक महान ऋषि हुए हैं। वे एक प्रसिद्ध योग विशेषज्ञ थे। संस्कृत भाषा के विद्वान और व्याकरणाचार्य थे। वे रसायनशास्त्र के ज्ञाता और एक महान चिकित्सक भी थे।

पतंजलि का काल-खण्ड।

इतिहासकार उनका काल-खण्ड आज से लगभग 2000 से 2500 वर्ष पूर्व मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे महर्षि पाणिनि के शिष्य थे। पाणिनि उस समय संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध विद्वान थे।

जन मान्यता के अनुसार पतंजलि शेषनाग के अवतार थे। वे योग के ज्ञाता, संस्कृत भाषा के विद्वान तथा सुप्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे। तीनो विषयों के लिये उनका विशेष योगदान रहा है।

महर्षि पतंजलि का जीवन परिचय।

महर्षि पतंजलि कई ग्रंथों के रचयिता थे। लेकन उन्होने अपने बारे मे कुछ नही लिखा। इतिहासकार मानते है कि महर्षि पतंंजलि का जन्म 200 ई•पू• से 150 ई•पू• मे हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म गोनार्ध (गोन्डा) उ.प्र. मे हुआ। बाद मे वे काशी मे आ गये।

ऐसा वर्णन आता है कि वे शुंग वंश के शासन काल मे थे। कहा जाता है कि शुंग वंश के राजा पुष्यमित्र का अश्वमेघ यज्ञ उन्होने ही सम्पन्न करवाया था।

वे एक सुप्रसिद्ध योग विशेषज्ञ थे। उस समय संस्कृत एक जन भाषा थी। वे व्याकरणाचार्य थे। उन्होने अष्टाध्यायी पर टीका लिखी जिसे महाभाष्य कहा जाता है। यह ग्रंथ आज भी संस्कृत भाषा के लिए प्रेरणा है।

वे रसायनशास्त्र के ज्ञाता, धातु विषेशज्ञ और एक कुशल  चिकित्सक भी थे। राजा भोज ने उनको तन के साथ मन का चिकित्सक भी माना है। उनका एक कथन आता है:- "चित्त की शुद्धि के लिए योग, वाणी की शुद्धि के लिए व्याकरण तथा शरीर की शुद्धि के लिए वैद्यकशास्त्र देने वाले मुनिश्रेष्ठ पतंजलि को प्रणाम करता हूँ।"

पतंजलि की रचनाएँ।

महर्षि पतंजलि ने संस्कृत भाषा मे कई ग्रंथों की रचना की है। इन मे तीन ग्रंथ मुख्य हैं।

  1. योगसूत्र।
  2. अष्टाध्यायी पर महाभाष्य।
  3. आयुर्वेद पर ग्रंथ।

योगसूत्र :-- यह महर्षि पतंजलि की एक महान रचना है। यह आधुनिक योग का आधार है। इस में चार पाद (अध्याय) हैं और 195 सूत्र हैं।
  1. समाधि पाद :-- (51 सूत्र)
  2. साधन पाद :-- (55 सूत्र)
  3. विभूति पाद :--(55 सूत्र)
  4. कैवल्य पाद :-- (34 सूत्र)

महाभाष्य :-- उस समय संस्कृत एक जन भाषा थी। महर्षि पाणिनि उस समय के प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य हुए हैं। उन्होने अष्टाध्यायी नाम के एक महान ग्रंथ की रचना की है। महर्षि पतंजलि ने इस ग्रंथ पर टीका लिखी है। यह महाभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। 

आयुर्वेद :-- वे एक महान रसायनशास्त्री भी थे। अयुर्वेद पर कई ग्रंथ लिखे है। चरक संहिता के लिए श्रेय उनको ही दिया जाता है। 

पतंजलि से पूर्व योग की स्थिति।

महर्षि पतंजलि से पहले भी योग अस्तीत्व मे था। लेकिन उस समय यह बिखरी हुई स्थिति में था। इसका प्रयोग केवल धार्मिक कार्यों में होता था। पतंजली से पहले योग गुरुकुलों व आश्रमों तक सीमित था। इसकी पहुँच जन साधारण तक नही थी।

महर्षि पतंजलि ने उस बिखरे हुये योग को संकलित किया। तथा परिभाषित किया। उनसे पहले और भी कई ऋषि, मुनि व योगी हुए हैं। उन सब ने योग को आगे बढाने का काम किया है। लेकिन योग का सरलीकरण करने का श्रेय पतंजलि को ही दिया जाता है।

महर्षि पतंजलि का योगदान।

यह सत्य है कि भारत मे योग बहुत पुरातन है। यह हमारे धार्मिक ग्रंथो मे पतंजलि से पहले भी था। महर्षि पतंजली से पूर्व कई योगाचार्य हुए हैं। उन सब ने योग को नई दिशा देने का काम किया है। लेकिन इसमे पतंजलि का मुख्य योगदान है। यही कारण है कि महर्षि पतंजलि को योग का जनक माना जाता है।

योग सरलता से परिभाषित किया।

महर्षि पतंजलि ने सभी योग सुत्रों को संकलित किया। और सरल भाषा मे परिभाषित किया। पहले योग केवल गुरुकुलों व आश्रमों तक सीमित था। उसे आम जन मानस तक पहुँचाने का श्रेय केवल महर्षि पतंजलि को ही जाता है।

'योगसूत्र' एक महान रचना।

योग सूत्रों को संकलित करके उन्होने योगसूत्र ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ आज भी योग का आधार माना जाता है। इस ग्रंथ मे परिभाषित करके बताया है कि योग क्या है? चित्त क्या है? चित्त कि वृतियाँ क्या हैं? तथा इन वृतियों का निरोध कैसे किया जाए?

अष्टाँग योग।

अष्टाँग योग उनकी मुख्य देन है। आधुनिक योग इसी पर आधारित है। यह सम्पूर्ण योग है। इसके आठ अंग बताये गये हैं।

  1. यम।
  2. नियम।
  3. आसन।
  4. प्राणायाम।
  5. प्रत्याहार।
  6. धारणा।
  7. ध्यान।
  8. समाधि।
(विस्तार से देखें :-  अष्टाँग योग।)

पतंजलि के सुप्रसिद्ध योगसूत्र।

महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्र मे चार पाद (अध्याय) हैं। इन चारों पाद में 195 सूत्र हैं। इनमे कुछ सुप्रसिद्ध सूत्र इस प्रकार हैं :-

।। अथ योगानुशासनम् ।। 1.1 ।।

अथ: योग अनुशासनम् ।

अर्थ :--- "अब हम योग अनुशासन का आरम्भ करते हैं।" 

प्रथम पाद के प्रथम सूत्र मे महर्षि पतंजलि कहते है "आइये अब हम योग अनुशासन को आरम्भ करते है।"

इस सूत्र मे अनुशासन को महत्व दिया गया है। केवल आसन-प्राणायाम कर लेना ही योग नही है। अनुशासित जीवन जीना योग का अंग है।अर्थात् यदि अनुशासन है तो योग है।

।। योगश्चितवृतिनिरोध: ।। 1.2 ।।

योग: चित्तवृति निरोध:।

अर्थ :-- चित्त की वृतियों का निरोध हो जाना ही योग है।

यह समाधि पाद का दूसरा सू्त्र है। इस सूत्र में योग की परिभाषा बताई है। बताया गया है कि योग क्या है? यहाँ महर्षि पतंजलि बताते है कि चित्त की वृतियों का निरोध होना ही योग है।

इसका अर्थ है कि जब वृतियों पर रोक लग जाए तो वह योग की स्थिति है।

।। अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सनसन्निधौ वैरत्याग:।। 2.35 ।।

अहिंसा प्रतिष्ठायाम् तत् सन्नधौ वैरत्याग:।

अर्थ :--- अहिंसा की दृढ स्थिति हो जाने पर उस व्यक्ति (योगी) के निकट सब प्राणी वैर भाव छोङ देते हैं।

साधन पाद के इस सूत्र मे अहिंसा का महत्व बताया गया है। इसका सरलार्थ है कि जो व्यक्ति दूसरों को कष्ट न देने का भाव मन मे रखता है, तो उसके निकट सभी प्राणी वैर छोङ देते हैं।

।। स्थिरसुखमासनम् ।। 2.46 ।।

स्थिर: सुखम् आसनम्।

अर्थ :-- स्थिरता से और सुखपूर्वक स्थिति मे ठहरना ही आसन है।

साधन पाद के इस सूत्र मे आसन के बारे में बताया गया है कि आसन क्या है। पतंजलि योगसूत्र में आसनो की संख्या या उनके पोज नही बताये हैं। यहाँ परिभाषाएँ दी गई हैं। 

इस सूत्र मे आसन के लिए दो बाते बताई हैं। ये दोनो आसन के लिए महत्वपूर्ण है।

  1. स्थिरता।
  2. सुख पूर्वक।

यहाँ यह बताया गया है कि आसन सरलता से करें। आसन की पूर्ण स्थिति मे पहुँच कर स्थिरता से सुखपूर्वक रुके। जिस आसन मे सुख की अनुभूति हो वही आसन करें। कठिन आसन न करें।

।। तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।। 2.49 ।।

तस्मिन् सति श्वास प्रश्वासयो: गति विच्छेद: प्राणायाम:।

अर्थ :-- स्थिति के सिद्ध हो जाने पर, श्वास (पूरक) तथा प्रश्वास (रेचक) की सहज गति को स्थिर कर देना या रोक देना ही प्राणायाम है।

साधन पाद के इस सूत्र में  "प्राणायाम"  को परिभाषित किया है। प्राणायाम के बारे मे सरलता से बताया है। इसका भवार्थ है कि श्वास लेने व छोङने की सहज गति रोक देना (विराम देना) ही प्राणायाम है।

लेख सारांश :--

भरत मे योग आदि काल से है। महर्षि पतंजलि से पहले यह बिखरी हुई अवस्था मे था। महर्षि पतंजलि ने इसे संकलित किया। सरल रूप मे परिभाषित किया। और इसे जन-साधारण तक पहुँचाया। इसी लिए पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है।


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