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थायराइड आज के समय मे एक आम परेशानी का कारण बन चुका है। आमतौर पर इसको एक बिमारी मान लिया जाता है। Thyroid अपने आप मे कोई बिमारी नही है, बल्कि यह अन्य बिमारियों का कारण बनता है। यह एक ग्रंथि है जो हमारे गले मे स्थित है। यह हमारे शरीर में हार्मोंन्स का निर्माण करती है। इसके असंतुलित होने पर कई रोग उत्पन्न होते है। 

आसन और प्राणायाम Thyroid के लिए लाभकारी क्रियाएं हैं। इस लेख मे हम यह जानेंगे कि थायराइड क्या है? इसके असंतुलन का क्या कारण है? और थायराइड नियंत्रण के लिए 4 योगासन और 4 प्राणायाम। Yoga for thyroid.

विषय सुची :

  • थायराइड के लिए 4 योगासन ग्रुप :
  1. उष्ट्रासन और शशांक आसन।
  2. भुजंग आसन और धनुरासन।
  3. सर्वांग आसन और मत्स्य आसन।
  4. सिंह आसन।
  • थायराइड के लिए 4 प्राणायाम :
  1. कपालभाति।
  2. अनुलोम विलोम।
  3. भस्त्रिका।
  4. उज्जायी।
  • "ओम" ध्वनी।

थायराइड पर योग का प्रभाव

हमारे गले में तितली की आकृति जैसी एक ग्रंथी है, इसे थायराइड कहा गया है। यह एक महत्वपूर्ण ग्रंथि है। यह हमारे शरीर में हार्मोंस का निर्माण करती है। "गलत खान-पान" व "अनियमित जीवन शैली" के कारण यह ग्रंथी असंतुलित हो जाती है। इस कारण शरीर मे कई प्रकार के रोग होने लगते हैं।

इसे फिट रखने के लिए संतुलित आहार ले और नियमित योगाभ्यास करें। थायराइड को संतुलित रखने के लिए योग एक प्रभावी क्रिया है। आसन और प्राणायाम दोनों इसके लिए उत्तम क्रियाएं हैं।

थायराइड के लिए 4 योगासन ग्रुप

"अनियमित जीवन शैली"  थायराइड के असंतुलित होने का कारण बनती है। थायराइड को फिट रखने के लिये संतुलित आहार लें और नियमित योग करें। योगासन का इस पर विशेष प्रभाव पड़ता है। आइए देखते है थायराइड नियंत्रण के लिए 4 योगासन ग्रुप, जो इसे संतुलित करते हैं।

(थायराइड के गम्भीर रोगी को चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए तथा अपने चिकित्सक की सलाह के बिना कोई योग क्रिया न करें)

1. उष्ट्रासन और शशांक आसन

थायराइड के लिए ये दोनो उत्तम आसन है। इन दोनो आसनों को एक साथ करना अधिक लाभकारी है। ये आसन थायराइड के साथ साथ सम्पूर्ण रीढ को भी प्रभावित करते हैं। पहले उष्ट्रासन करें। और उष्ट्रासन के बाद शशांक आसन करें। 

थायराइड के लिए योग

उष्ट्रासन की विधि :

  • घुटने मोड़ कर वज्रासन की स्थिति मे बैठें। घुटने मिला कर रखें। पैरों के पंजे सीधे रखें और दोनो एडियो के बीच मे मध्य भाग को टिका कर बैठ जाएं।
  • रीढ को सीधा रखें। दोनों हाथ घुटनों पर रखें। आंखे कोमलता के साथ बांध करें।

  • दोनो घुटनों में थोड़ा दूरी बनाएं। मुड़े हुए घुटनो पर ऊपर उठें। घुटने व पंजे समानान्तर रखें। दोनों हाथ कमर पर रखें। दोनों अंगूठे पीठ पर रीढ की तरफ रखें।
  • धीरे से सिर को थोड़ा सा पीछे की ओर झुकाए और रुकें।
  (यदि कोई परेशानी का अनुभव हो तो आगे न जाए और वापिस वज्रासन मे आ जाए )
  • अंगूठों से दबाव बनाते हुए थोड़ा सा रीढ को पीछे की ओर झुकाए। यहाँ कुछ देर रुकें। (यहां परेशानी का अनुभव हो या चक्कर आने की स्थिति हो तो आगे न जाएं। धीरे से वापिस आ जाएं।)

  • पूरी तरह रीढ को पीछे झुकाने के बाद बारी-बारी हाथों को कमर से हटा कर एङियों पर ले आएं। यह आसन की पूर्ण स्थिति है। पूर्ण स्थिति में क्षमता अनुसार रुकें।

  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापसी आरम्भ करें। पहले दाँया हाथ और उसके बाद बाँया हाथ कमर पर ले आँये। धीरे-धीरे रीढ व गरदन को सीधा करें। मध्य भाग को नीचे टिकाये। हाथ घुटनो पर रखें। कुछ देर वज्रासन मे विश्राम करें।
आसन की सावधानी :

  • यह आसन सावधानी से किया जाना चाहिए।
  • रीढ, गरदन या घुटनों मे कोई परेशानी है तो इस आसन को न करें। 
  • थायरायड के रोगी अपनी औषधियो का सेवन जारी रखें और चिकित्सक की सलाह से योगासन करें।
  • इस आसन को सरलता से जितना कर सकते है उतना ही करे। आसन को बलपूर्वक न करे। आसन करते समय जहाँ पर परेशानी अनुभव हो वहाँ रुक जाये। और धीरे-धीरे वापिस आ जाएँ।
वज्रासन की  स्थिति मे  बैठ कर कुछ देर विश्राम करें। आये हुये तनाव को दूर करें। इसके बाद शशांक आसन करें।

शशांक आसन

यह आसन उष्ट्रासन का विपरीत आसन है। पहले आसन मे रीढ व गरदन को पीछे की ओर झुकाया था। इस आसन मे उसके विपरीत आगे की ओर झुकाया जाता है। अत: यह थायराइड व रीढ के लिए लाभकारी आसन माना गया है।

आसन की विधि

  • वज्रासन की स्थिति मे बैठें। रीढ व गरदन को सीधा रखें। हाथ घुटनो पर रहें। आँखे कोमलता से बंध रखें।
  • धीरे-धीरे दोनो हाथ ऊपर उठाएँ। हाथ ऊपर उठने के बाद श्वास भरते हुये हाथों को ऊपर की ओर खींचें।
  • श्वाँस छोङते हुये कमर से आगे की ओर झुकें। हाथों मे खिचाँव बनाये रखे। पहले हथेलियाँ, फिर कोहनियाँ नीचे टिकाएँ। माथा नीचे घुटनो के पास ले आएँ। श्वाँस को सामान्य करके स्थिति मे रुकें।
  • क्षमता के अनुसार स्थिति मे रुकने के बाद श्वाँस भरते हुये उपर उठें। ऊपर उठने के बाद हाथो को ऊपर की ओर खींचें। कुछ देर रुके और वापिस पूर्व स्थिति मे आ जाये। वज्रासन मे विश्राम करें।

आसन की सावधानी

आसन को अपनी क्षमता के अनुसार करें।

2.भुजंग आसन और धनुरासन

दूसरा ग्रुप भुजंग आसन और धनुरासन का है। ये दोनो आसन भी थायरायड के लिये उत्तम आसन हैं। इन दोनो को साथ-साथ किया जाना लाभकारी हैं। पहले भुजंग आसन करें। इस के लिये दाँयी ओर स्थिल आसन मे उल्टे लेट जाये।

स्थिल आसन दायी तरफ से :-  पेट व सीने के बल लेट जाये दाँया हाथ व दाँया पैर सीधा रखें। बाँया हाथ और बाँया पैर मोङ कर रखें। गरदन को मोङ कर दाँया कान नीचे तथा बाँया कान ऊपर की ओर रखें। कुछ देर विश्राम करने के बाद भुजंग आसन की स्थिति मे आये।

भुजंग आसन

भुजंग आसन की विधि :

  • सीने व पेट के बल लेट जाँए।
  • माथा नीचे टिकाएँ।
  • हाथों को कोहनियो से मोङें।
  • हथेलियाँ गरदन के दाँये बाये तथा कोहनियाँ पसलियो के पास रखें। दोनो पैरों को सीधा रखें।
  • धीरे से सिर को ऊपर उठाएँ। गरदन को पीछे की ओर प्रभावित करें। कुछ देर रुकें।
  • कुछ देर रुकने के बाद श्वाँस भरते हुये सीना ऊपर उठाएँ। गर्दन को  अधिकतम पीछे की ओर  प्रभावित करें। सीना अधिकतम ऊपर उठने के बाद कुछ देर स्थिति मे रुकें।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे-धीरे वापिस आना आरम्भ करें। पहले सीना नीचे टिकाये। उसके बाद माथा नीचे टिकाएँ।
  • बाँयी ओर से स्थिल आसन मे विश्राम करें।
कुछ देर स्थिल आसन मे विश्राम के बाद धनुरासन करें।

धनुरासन

थायराइड नियंत्रण के लिए यह एक महत्वपूर्ण आसन है। इस आसन की पूर्ण स्थिति मे रीढ का झुकाव धनुष के आकार मे हो जाता है। इस लिए इसका नाम धनुरासन रखा गया है।


धनुरासन की विधि :

  • फिर से सीने के बल भुजंग आसन की स्थिति मे आ जाये।
  • दोनों पैर मोङें। दोनो हाथों से दोनो पैरों को टखने के पास से पकङें। दोनो घुटने मिला कर रखें। पैरो को खींचते हुये घुटने ऊपर उठाये। आगे से गरदन व सीना भी ऊपर उठाएँ। आगे व पीछे का भाग ऊपर उठने पर कुछ देर रुकें।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे से वापिस आ जाएँ। घुटने नीचे टिकाएँ, सीना और माथा नीचे टिकाएँ। दोनों पैरो को सीधा करें।
  • विश्राम करें स्थिल आसन मे दाँयी तरफ से
सावधानियाँ :
  • रीढ मे कोई परेशानी है तो ये दोनो आसन न करें।
  • आँत रोग या पेट रोग है तो ये आसन न करें।
  • हृदय रोगी, गर्भवती महिलाये तथा ऐसे व्यक्ति जिनकी अभी सर्जरी हुई है, इन आसनो को न करें।

3. सर्वांग आसन और मत्स्यासन

अगला ग्रुप सर्वांग आसन और मत्स्य आसन का है। ये दोनो आसन थायराइड को प्रभावित करने वाले उत्तम आसन हैं। सर्वांग आसन सभी अंगों पर प्रभाव डालता है। लेकिन यह थायराइड ग्रंथी को विशेष प्रभावित करता है। इस ग्रुप मे पहले सर्वांग आसन करे। इसके बाद मत्स्य आसन करें।

विधि सर्वांग आसन की :

  • पीठ के बल सीधे लेट जाये।
  • दोनो पैर सीधे। घुटने, एडी व पँजे एक साथ रखेे।
  • दोनों हाथ दाँये-बाँये कमर के साथ। हथेलियाँ नीचे की ओर रखें।
  • श्वास भरते हुये दोनो पैर धीरे-धीरे एक साथ उठाये। घुटने सीधे रखें, पँजे सीधे तने हुये। पैर पूरी तरह ऊपर उठने के बाद कुछ देर रुके।
  • श्वास खाली करते हुए दोनो पैर पीछे सिर की ओर ले जाँये। (हलासन की स्थिति)
  • अधिकतम पीछे जाने के बाद दोनो हाथ पीठ व कमर पर ले आँये। धीरे-दोनो पैरो को ऊपर की ओर ले जायें। हाथो का सहरा लेते हुये मध्य भाग को भी ऊपर उठाये। पैर और कमर पूरी तरह ऊपर उठने के बाद स्थिति मे कुछ देर रुकें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापसी आरम्भ करें।
  • धीरे से पैरो को सिर की ओर हलासन के स्थिति में ले जायें। धीरे-धीरे हाथों का सहारा लेते हुये कमर को नीचे टिकायें। हाथ कमर से हटाते हुये धीरे-धीरे दोनो पैरों को नीचे ले आँये। 
  • पैर नीचे टिकने के बाद पैरो के बीच थोङा दूरी बनाये। शरीर को ढीला छोङें। श्वास सामान्य करते हुये कुछ देर विश्राम करें।
कुछ देर विश्राम करने के बाद मत्स्य आसन करें।

सर्वांग आसन मे सावधानियां :

  • आसन को अपनी क्षमता के अनुसार ही करे।
  • आसन मे जाने और वापिस आने की क्रिया धीमी गति से करे।
  • बल पूर्वक आसन करने से हानि हो सकती है।
  • रीढ मे तनाव है, तो यह आसन न करें।
  • हृदय रोगी, श्वास रोगी तथा गर्भभवती महिलाये इस आसन को न करें।
  • पेट की सर्जरी हुई है या कोई आँत रोग है तो इसे न करें।

मत्स्य आसन

सर्वांग आसन के बाद मत्स्य आसन अवश्य करें। क्योकि इसे सर्वांग आसन का "पूरक आसन" कहा गया है। यह आसन सर्वांग आसन के लाभ मे वृद्धि करता है तथा थायराइड ग्रंथी को प्रभावित करता है।

मत्स्य आसन की विधि :

  • लेटे हुये पद्मासन लगाये।
  • दोनो हाथों से दोनो पैरो के अंगूठे पकङें।
  • घुटने नीचे टिकाएँ। गरदन को पीछे की ओर झुकते हुये सिर को आसन पर टिकाये।
  • कोहनियों का सहारा लेकर मध्य को ऊपर उठाएँ।
  • मध्य ऊपर उठने के बाद घुटनो और कंधो पर संतुलन बना कर रुकें। गरदन को पीछे की ओर प्रभावित करें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे से वापिस आ जाँये।
  • पैरो को सीधा करें। शरीर को ढीला छोङ कर विश्राम करें।

4. सिंह आसन

सिंह का अर्थ है, शेर। यह शेर जैसी आकृति वाला आसन है। इसलिये इस आसन को सिंह मुद्रा या सिंह आसन कहा गया है। यह गले व थायराइड को प्रभावित करने वाला आसन है। इस आसन को वज्रासन, पद्मासन या सुविधा जनक मुद्रा मे किया जा सकता है।

सिंह आसन की विधि :

  • इस आसन को करने के लिये पद्मासन लगाएँ।
  • पद्मासन लगाने के बाद घुटने नीचे टिका कर घुटनों के बल आ जायें। दोनो हाथों को घुटनो से थोङी दूरी पर रखें। हथेली की दिशा घुटनो की तरफ रखें। सिर को ऊपर उठाते हुये गरदन को पीछे की ओर प्रभावित करें।
  • मुहँ खोल कर जीभ को बाहर निकालें। श्वास भरें। गले को प्रभावित करते हुये आवाज निकाले। श्वास पूरा होने के बाद फिर श्वास भरे। और इसी क्रिया को दोहराएँ। आरम्भ मे 3 - 4 आवर्तियाँ करें।
  • क्षमता अनुसार आवर्तियाँ करने के बाद वापिस आ जाँए। दोनो हाथो से गले को धीरे से सहलाएँ।

सावधानी :-  जो व्यक्ति पद्मासन नही लगा सकते हैं वे घुटनो के बल इस क्रिया को करें।

सभी आसन करने के बाद शवासन मे विश्राम करे। विश्राम करते हुये तनाव दूर करे। सामान्य होने के बाद प्राणायाम करें।

थायराइड के लिए 4 प्राणायाम

प्राणायाम योग का महत्वपूर्ण अंग है। अत: आसन के बाद प्राणायाम का विशेष लाभ होता है। यह क्रिया थायराइड के लिए भी  विशेष लाभकारी होती है। थायराइड को प्रभावित करने वाले 4 प्राणायाम के बारे मे जान लेते हैं।

1. कपालभाति

यह कपाल भाग की शुद्धि के लिये किये जाने वाली क्रिया है। यह श्वसन तंत्र तथा थायराइड ग्रंथी को भी प्रभावित करती है। 

विधि :

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। 
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। दोनों हाथ घुटनो पर  रखें।
  • लम्बे गहरे श्वास ले और छोङें। यह क्रिया 3-4 श्वासो मे करे।
  • श्वास सामान्य करें।
  • पेट पर दबाव डालते हुये श्वास को झटकते हुये बाहर निकले। श्वास भरने की गति सामान्य रखें। केवल श्वास बाहर छोङने की गति तीव्र रखें। पेट को अंदर की ओर खीचते हुये श्वास बाहर छोङें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार क्रिया करने के बाद वापिस आ जाएँ। श्वासों को सामान्य करें।
सावधानी :

इस क्रिया को अपनी क्षमता के अनुसार करें। हृदय रोगी, श्वास रोगी तथा High BP वाले धीमी गति से करें।

2. अनुलोम विलोम

कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम करे। यह सरलता से किये जाने वाला लाभकारी प्राणायाम है।

विधि :

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे तथा दाँया हाथ नासिका के पास रखें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बंध करें।
  • दाँयें हाथ के अंगूठे से दाँयी नासिका को बंध करे।
  • बाँयी नासिका से श्वास भरें।
  • पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका बंध करे और दाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दाँयी तरफ से श्वास भरें। और बाँयी तरफ से खाली करे।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अन्य आवर्तियाँ करें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार करने के बाद वापिस आ जाये। श्वास सामान्य करें।

3. भस्त्रिका प्राणायाम

थायराइड को प्रभावित करने वाला यह उत्तम प्राणायाम है। यह प्राणायाम केवल शरद ऋतु मे किया जाना चाहिए। गर्मियों मे यह प्रणायाम वर्जित है।

विधि :

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बंध करें।
  • दोनो हाथों से घुटनो को पकङें।
  • तीव्र गति से श्वास ले और छोङें। पहले धीमी गति से आरम्भ करें। धीरे-धीरे गति को बढाएँ। श्वास के साथ पेट को आगे-पीछे प्रभावित करें।
  • क्षमता के अनुसार करने के बाद वापिस आ जाएँ। श्वास सामान्य करें।

(विस्तार से जनने के लिये देखें :- भस्त्रिका प्राणयाम कैसे करें?)

सावधानियाँ :

  • इस प्राणायाम को गर्मी के मौसम नही करना चाहिए।
  • उच्च रक्त चाप (High BP) वाले व्यक्ति धीमी गति से करें।
  • हृदय रोगी व श्वास रोगी चिकित्सक की सलाह से करें।

4. उज्जायी प्राणाया

यह थायराइड को प्रभावित करने वाला विशेष प्राणायाम है। यह सरलता से किये जाने वाली क्रिया है।

विधि :

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
  • हाथों को ज्ञान मुद्रा मे रखें।
  • रीढ को सीधा रखें।
  • गरदन को आगे की तरफ झुका कर ठोडी कण्ठ से लगाएँ। जीभ के आगे वाले भाग को मोङ कर तालु से लगाएँ।
  • कण्ठ को प्रभावित करते हुये खर्राटे जैसी आवाज करते हए श्वास ले और छोङें। 3-4 आवर्तियाँ करने के बाद वापिस आ जाये।
  • दोनो हाथों से गले को हल्का सहलाएँ।
(अधिक जानकारी के लिये देखें :- उज्जायी प्राणायाम कैसे करें?)

अंत मे "ओम" ध्वनि

ओम ध्वनि का शरीर पर बहुत बङा महत्व बताया गया है। योग मे भी इसे महत्व दिया गया है। योगाभ्यास के अंत मे ओम ध्वनि अवश्य करे।

विधि :

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें। 
  • आँखे कोमलता से बंध करे। 
  • ध्यान आज्ञा चक्र (माथे के बीच) मे केंद्रित करे।
  • लम्बा श्वास भरें। "ओम" की लम्बी ध्वनि करें।
  • "ओम ध्वनि" के लिये श्वास भरने के बाद होठों को गोल आकृति मे करते हुये लम्बा 'ओ' शब्द का उच्चारण करें। होठों को बंद करके 'म' शब्द का उच्चारण करें। "ओ" शब्द को लम्बा और "म" शब्द को छोटा रखें।
  • श्वास खाली होने के बाद फिर श्वास भरें। और फिर "ओम" ध्वनि करें। तीन आवर्ती के बाद वापिस आ जाएँ। (तीन से अधिक आवर्तियाँ भी कर सकते हैं।)

लेख सार :

थायराइड शरीर की एक महत्व पूर्ण ग्रंथी है। इसके असंतुलित होने पर शरीर मे कई प्रकार के रोग होने लगते हैं। संतुलित आहार तथा नियमित योग से इसे फिट रखा जा सकता है। योग मे कई आसन व प्राणायाम है जो इसे प्रभावित करते हैं।

Disclaimer :

इस लेख मे बताये गये आसन व प्राणायाम केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। अस्वस्थ व्यक्ति कोई भी योग क्रिया सावधानी से करे, तथा चिकित्सक की सलाह लें। यह लेख किसी प्रकार के रोग का उपचार करने का दावा नही करता है। केवल "योग के लाभ व सावधानियो" के बारे मे बताना ही इस लेख का उद्देश्य है।

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