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क्या आपने ऐसे मुनियों और साधुओं को देखा है, जो बहुत कम वस्त्र पहनते हैं या वस्त्र बिलकुल ही नही पहनते? चाहे कितनी भी सर्दी हो या गर्मी हो, वे किसी भी मौसम से प्रभावित नही होते हैं। इसका क्या कारण है?

हिमालय क्षेत्र मे आज भी ऐसे योगी-साधु मिलते है। वे बर्फीले क्षेत्र मे कम वस्त्रों मे रहते हैं। क्या कारण है कि मौसम उनको प्रभावित नही करता? इसका कारण है कि वे योगमय जीवन जीते है। तो क्या योग द्वारा यह सम्भव है? क्या योग जीवन को प्रभावित करता है? 'योग का जीवन पर प्रभाव' क्या है? इस लेख मे इसी विषय पर चर्चा करेगें।

योग का प्रभाव

विषय सुची :-

  • योग का जीवन व शरीर पर प्रभाव
  • योग का "जीवन" पर प्रभाव
  • योग का "शरीर" पर प्रभाव
  • योग से "मानसिक" शान्ति

योग का जीवन व शरीर पर प्रभाव

क्या आप जानते हैं कि प्राचीन समय में यहां भारत मे लोगों की लम्बी आयु होती थी? कई ऋषियों कि आयु तो सैकड़ों वर्षो की रही है। प्राचीन भारत मे लोगों का जीवन योगमय था। इसी लिए उनकी लम्बी आयु तथा स्वस्थ जीवन होता था। 

यह भी सत्य है कि आधुनिक समय में हमारे लिए उन उचाइयों तक पहुँचना कठिन है। लेकिन यह भी सत्य है कि योग से हम अपने शरीर को स्वस्थ और जीवन को सुखी बना सकते हैं।

प्रकृति ने हमारे शरीर को पर्याप्त ऊर्जा प्रदान की है। यह ऊर्जा हमारे शरीर को हर प्रकार के विपरीत मौसम व प्रस्थितियों से बचाव की शक्ति देती है। लेकिन साधारणतया यह ऊर्जा हमारे शरीर मे सुषुप्त (Sleeping) अवस्था में होती हैं। योग इसी ऊर्जा को जागृत करता है।

यह सत्य है कि योग शरीर पर तो प्रभाव डालता ही है, लेकिन क्या योग जीवन को प्रभावित करता है?

जीवन पर 'योग' का प्रभाव

योग हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। नियमित योग करने से हमारे जीवन मे कई सकारात्मक बदलाव आते है।

जीवन अनुशासित होता है

'अनुशासन' योग का पहला नियम है। महर्षि पतंजलि ने भी योग मे इसका महत्व बताया है। वे योगसूत्र का आरम्भ 'अथ योग अनुशासनम्' से करते हैं। अर्थात् उन्होने योग को 'अनुशासन' बताया हैं।

नियमित योग करने का अर्थ है अपने जीवन को अनुशासित करना। सही समय पर सोना, समय पर उठना, नियमित योगाभ्यास करना तथा सही समय पर खान-पान, इन सब का अनुशासन हमारे जीवन मे योग से ही आता है।

इस कारण हमारी दिनचर्या भी व्यवस्थित हो जाती है। और हम अपने दैनिक कार्य कुशलता से करते हैं।

चरित्र निर्माण

योग मनुष्य के चरित्र-निर्माण मे सहायक है। योग व्यक्ति को चरित्रवान बनाता है। 'यम'(Yama) अष्टांगयोग का पहला चरण है। इसके के पांच अंग बताए गए हैं-- 1.अहिंसा
2.सत्य
3.अस्तेय
4.ब्रह्मचर्य
5.अपरिग्रह
अष्टांगयोग का यह पहला चरण मनुष्य को चरित्रवान बनाता है। आइए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।

  1. अहिंसा :-- मन, कर्म तथा वाणी से किसी को कष्ट न देना अहिंसा है।
  2. सत्य :-- जो विचार मन मे हो वे ही वचन मे होने चाहिए। कहे गए  वचनों मे सत्यता की प्रमाणिकता हो, यह सत्य है।
  3. अस्तेय :-- दूसरे व्यक्ति की वस्तु की चोरी न करना अस्तेय है।
  4. ब्रह्मचर्य :-- इंद्रियों द्वारा प्राप्त सुखों पर नियंत्रण रखना।
  5. अपरिग्रह :-- अवश्यकता से अधिक संचय न करना।

आध्यात्मिक विकास

योग का मुख्य उद्देश्य आध्यात्म ही है। योग का अर्थ है जोड़ना। 'स्वयं' को 'स्वयं' से तथा 'आत्मा' को 'परम आत्मा' से जोड़ना योग है। 

'मै' कौन हूं? 'शरीर' क्या है? शरीर कितने प्रकार के हैं? 'प्राण' क्या हैं? इन सब के बारे मे योग से ही ज्ञान प्राप्त होता है।

विश्व बंधुत्व की भावना

योग ईर्ष्या-द्वेष को खत्म करता है। अहिंसा को अपनाने पर बल देता है। योग से शत्रुता का त्याग होता है तथा बंधुत्व (भाईचारा) की भावना आती है।

योग का सिद्धांत "वसुधैव कुटुम्बकम्" है। योग की मान्यता है कि "पूरा विश्व एक परिवार है।" योग के अनुसार कोई पराया नही है। सब अपने हैं। योग जाति, धर्म तथा देशों मे भेद-भाव नही करता है।

योग शरीर को कैसे प्रभावित करता है?

योग हमारे शरीर पर सीधा प्रभाव डालता है। आज आधुनिक"चिकित्सा पद्यति" तथा "शरीर-विज्ञान" भी यह मानने लगे हैं कि योग हमारे शरीर को प्रभावित करता है। आज सभी जाने-माने चिकित्सा-विशेषज्ञ भी शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग को महत्व दे रहे हैं।

योग शरीर को स्वस्थ रखने की एक उत्तम विधि है। यह सभी के लिए आसानी से सुलभ है, सुरक्षित है। आज पूरा विश्व भारत द्वारा दिए गए योग को अपना रहा है। आईए देखते है कि यह शरीर को कैसे प्रभावित करता है?

स्थूल शरीर (Physical Body) पर प्रभाव

योग मुख्य उद्देश्य ध्यान और साधना है। लेकिन ध्यान और साधना तभी सम्भव है जब शरीर स्वस्थ रहेगा। इसी लिए हमारे ऋषियों ने अष्टांगयोग का प्रतिपादन किया है। और इसी कारण आसन तथा प्राणायाम को पहले रखा गया है।

आसनों का प्रभाव

अंग सक्रिय रहते हैं :---  स्थूल शरीर (Physical Body) पर आसनों का सीधा प्रभाव पड़ता है। आसन से हमारे शरीर के अंग सक्रिय रहते हैं। आसन करने से शरीर के सभी स्थूल अंग जैसे अस्थिया, अस्थि जोड़ तथा रक्त वाहिकाए प्रभाव मे आते हैं।

आन्तरिक अंगो पर प्रभाव :--- आसन करने से हमारे शरीर के आंतरिक अंग जैसे किडनी, लीवर तथा पैंक्रियाज प्रभावित होते है। इन के सक्रिय होने से हमारे शरीर के सभी रसायन उचित मात्रा में रहते हैं। यदि शरीर के सभी रसायन उचित मात्रा मे रहते हैं तो हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।

हार्मोन्स :---  शरीर के रसों तथा हार्मोंन्स का निर्माण करने वाली ग्रंथियाँ क्रियशील रहती है। आसन करने से हमारे शरीर के हार्मोन्स उचित मात्रा मे बने रहते हैं।

रक्तचाप(BP) :---  शरीर के स्वास्थ्य के लिए रक्तचाप (BP) का सामान्य रहना जरूरी है। आसन करने से शरीर का रक्तचाप सामान्य रहता है। BP के सामान्य रहने से हृदय को पुष्टि मिलती है।

रीढ (Spine) पर प्रभाव :---- रीढ (Spine) हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। शरीर सम्पूर्ण नाड़ी तंत्र रीढ से ही जुड़ा है। आधुनिक शरीर-विज्ञान भी रीढ को महत्व देता है और योग में भी इसे अधिक महत्व दिया गया है। 

देखें :- रीढ का महत्व

रीढ ही योग का आधार है। शरीर की तीन मुख्य नाङियाँ, ईड़ा, पिंगला, और सुष्मना की स्थिति रीढ पर ही हैै। योग में आसनो द्वारा रीढ की फिटनेस पर अधिक ध्यान दिया जाता है। 

प्रणायाम का प्रभाव

प्राणायाम का शरीर पर एक विशेष प्रभाव है। आसन के बाद प्राणायाम का क्रम आता है। अत: आसन करने के बाद प्राणायाम अवश्य करें। आगे देखते हैं कि प्राणायाम शरीर को कैसे प्रभावित करते हैं।

श्वसनतंत्र :-- प्राणायाम से शरीर का श्वसनतंत्र सुदृढ होता है। श्वसनतंत्र मे आने वाले अवरोध प्राणायाम से दूर किए जा सकते है। प्राणायाम से फेफड़े (Lungs) सक्रिय होते हैं।

प्राण शक्ति की वृद्धि :---  प्राणायाम हमारे शरीर की प्राण शक्ति को बढाता है। इस क्रिया से शरीर की 72,000 प्राणिक नाडियो का सोधन किया जाता है।

Oxygen लेवल :-- प्राणायाम करने से शरीर को Oxygen पर्याप्त मात्रा मे मिलती है। कुम्भक लगाने से आक्सीजन शरीर मे अधिक देर तक रुकती है। इस से हृदय तथा फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। शरीर में Oxygen का लेवल सही मात्रा मे बना रहता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता मे वृद्धि

योग हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को बढाता है। इम्युनिटी हमारे शरीर को रोगों से बचाने का काम करती है। आसन और प्राणायाम दोनो से प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि होती है।

Immunity आसन से :--- आसन करने से शरीर के आंतरिक अंग प्रभाव मे आते हैं। आंतरिक अंग सक्रिय होने से शरीर का सुगर तथा अन्य राशायन नॉर्मल रहते है। ये सब Immunity की वृद्धि मे सहायक हैं।

Immunity प्राणायाम से :---  प्राणायाम   श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है, प्राण-शक्ति को बढाता है। प्राणायाम से शरीर मे आक्सीजन की आपूर्ति होती है। तथा ऑक्सीजन लेवल उचित मात्रा मे बना रहता है। ये सब शरीर की इम्यूनिटी में वृद्धि करते हैं।

मानसिक शान्ति

योग से शारीरिक मजबूती के साथ मानसिक शान्ति भी मिलती है। "योगश्चितवृति निरोध:" अर्थात् चित्त की वृतियों का निरोध ही योग है।

योग 'मन' को अंतर्मुखी करता है। अर्थात् 'मन' जो बाहर की तरफ भागता है। योग उस पर नियंत्रण करके उसे अंतर्मुखी करता है।

'मन' सीधा शरीर को प्रभावित करता है। शान्त मन शरीर को स्वस्थ रखता है। और अशान्त मन शरीर को अस्वस्थ करता है। अत: शारीरिक स्वास्थ्य के लिए मानसिक शान्ति जरूरी है।

सारांश :-

योग हमारे जीवनशरीर दोनो को प्रभावित करता है। योग जीवन को अनुशासित करता है। यह मनुष्य के चरित्र निर्माण मे सहायक है। ईर्ष्या-द्वेष को खत्म करके बंधुत्व की भावना को जागृत करता है। 

योग हमारे स्थूल शरीर को स्वस्थ रखता है। श्वसन तंत्र तथा प्राण शक्ति को सुदृढ करता है। योग शरीर की Immunity को बढाता है। योग मानसिक शान्ति देता है।

Disclaimer :- आसन व प्राणायाम अपने शरीर की क्षमता के अनुसार करें। बलपूर्वक कोई क्रिया न करें। क्षमता से अधिक तथा बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

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