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योग भारत की एक प्राचीन जीवन शैली है। यह जीवन जीने का एक उत्तम तरीका है। भारत के द्वारा दी गई यह एक अमुल्य देन है। आज पूरा विश्व इसे सहर्ष अपना रहा है। UNO भी इसे मान्यता दे चुका है। प्रत्येक 21 जून को योग दिवस मनाया जाता है। आध्यात्म तथा स्वास्थ्य दोनो के लिए योग जरूरी है। प्रस्तुत लेख मे बताया जायेगा कि योग कौन कर सकता है? और योग का उद्देश्य क्या है?



विषय सुची
  • योग कौन कर सकता है?
  • योग का उद्देश्य क्या है?
  • आध्यात्म।
  • शारीरिक स्वास्थ्य।
  • मानसिक शाँति।
  • नैतिकता।
  • अनुशासन।

योग कौन कर सकता है? योग का उद्देश्य।

प्राचीन भारत मे योग केवल गुरुकुलों, आश्रमों तक सीमित था। उस समय यह आध्यात्म के लिए ही किया जाता था। कालांतर मे यह राज-परिवारों मे आया। उसके बाद योग आम जन में आया। योग को आम जनमानस तक पहुँचाने का श्रेय कई ऋषि-मुनियों को जाता है। इन मे महर्षि पतंजली का योगदान मुख्य है।

आधुनिक समय मे योग आध्यात्म तथा स्वास्थ्य दोनो के लिए किया जाता है। योग करने का उद्देश्य चाहे 'आध्यात्म' हो या 'स्वास्थ्य', यह सदैव लाभकारी है। यह हमारे शरीर व जीवन दोनो को प्रभावित करता है। अब प्रश्न यह पूछा जाता है कि योग कौन कर सकता है? और योग का उद्देश्य क्या है?

योग कौन कर सकता है?

आज योग का प्रचलन पूरे विश्व मे है। पूरे विश्व मे योग 'आध्यात्म' के लिए तो किया ही जाता है। लेकिन आम जनमानस में इसे शारीरिक फिटनैस और उत्तम स्वास्थ्य के लिए ही किया जाता है। कुछ लोगों के मन मे यह प्रश्न उठता है कि क्या हम योग कर सकते है?

योग कौन कर सकता है, यह प्रश्न मुख्यत: तीन बिंदुओं पर उठता है।

  1. धर्म Religion.
  2. आयु Age.
  3. स्वास्थ Health.
आईए इन तीनों बिंदुओं को क्रमवार देखते हैं।

1. धर्म Religion.

धार्मिक आशंका :- कुछ धर्म के मानने वाले  लोगों के मन मे योग को लेकर आशंका रहती है। उनको यह आशंका रहती है कि योग करने से उनकी 'मजहबी' भावनाएँ आहत हो सकती हैं। लेकिन उनकी यह आशंका सही नहीं है। क्योकि योग किसी धर्म या मजहब का ना तो विरोध करता है, ना किसी का प्रचार करता है। योग मानव कल्याण के लिए है। यह सभी को शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य देता है।

योग सब के लिये :- कुछ लोग दुर्भावनावश योग के विरुद्ध दुष्प्रचार करते हैं। लेकिन यह गलत है। योग सब कर सकते हैं। योग सब के लिये है। योग जाति, धर्म व देश की सीमाओ से परे है।

योग 'विज्ञान' है :- यह सही है कि योग सनातन है। इसे ऋषि तथा मुनियों ने अविष्कृत और परिभाषित किया है। लेकिन योग कही भी किसी धर्म का विरोध नही करता है। यह विशुद्ध रूप से शरीर विज्ञान है। योग मे सभी क्रियाएँ शरीर, मन व प्राण को सुदृढ करने के लिये है।

मानव कल्याण :- इसलिए यदि आप किसी भी 'धर्म' या 'मजहब' को मानते हैं, आप योग कर सकते हैं। यह मजहबी नही बल्कि, शरीर विज्ञान की क्रिया है। योग आप को शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य तो देता ही है, यह मनुष्य का नैतिक उत्थान भी करता है। इसका उद्देश्य मानव कल्याण है।

2. आयु Age.

यह प्रश्न भी उठाया जाता है कि किस आयु मे योग करे, और किस आयु मे योग न करें। इस का उत्तर है कि योग हर आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं। बच्चे, युवा, प्रौढ, या वृद्ध योग सभी कर सकते हैं। लेकिन आसन और प्राणायाम करते समय जो सावधानियाँ बताई जाती हैं, उनका ध्यान रखा जाना चहाए।

बचपन :--- योग का आरम्भ बचपन से हो जाए, यह बहुत उत्तम है। 9-10 वर्ष की आयु के बच्चों को सरल आसन प्राणायाम आरम्भ करवा देना उत्तम है। आरम्भ मे सूर्यनमस्कार आसन और अनुलोम विलोम प्राणायाम बच्चों के लिए सही है। धीरे धीरे अभ्यास को बढाये।

युवा अवस्था :--- इस आयु मे योग करना बहुत जरूरी है। यदि आप युवा अवस्था मे योग आरम्भ कर देते हैं तो यह अधिक लाभकारी है। क्योकि इस अवस्था मे आप लगभग सभी आसन व प्राणायाम कर सकते है। युवाओ के लिए योग इस लिए भी जरूरी है क्योकि उनको अधिक परिश्रम करना होता है।

यदि युवा अवस्था मे योग आरम्भ कर दिया जाता है तो वृद्धावस्था तक कौई परेशानी नही आती है। आसन आपके शरीर को तथा प्राणायाम आपके प्राणों व श्वसनतंत्र को सुदृढ रखते हैं।

वृद्धावस्था :---- जो व्यक्ति युवा काल से योग करते आ रहे है उनको इस अवस्था मे योग के अभ्यास मे कोई कठिनाई नही आती है। वे आसन व प्राणायाम सरलता से कर लेते हैं। ऐसे योग साधक जानते है कि उनको कोनसे आसन व प्राणायाम करने हैं। फिर भी उनको यह सलाह दी जाती है कि आसन व प्राणायाम अपनी क्षमता के अनुसार करें।

जिस आसन को करने मे सुख की अनुभूति हो वह आसन अवश्य करें और उसकी पूर्ण स्थिति मे पहुँच कर कुछ देर रुकें।

जो व्यक्ति अपने युवाकाल मे योग न कर सके हो क्या वे योग कर सकते हैैं? 

हाँ, ऐसे व्यक्ति भी योग कर सकते हैं। लेकिन उनको कुछ सावधानियों का ध्यान रखना चहाए। जो व्यक्ति इस आयु मे योग करना चहाते है उनको कठिन आसन बिलकुल नही करने चहाए। 

सरलता से किये जाने वाले आसन करें। जिस आसन को करने से तनाव आये वह बिलकुल न करें। हाथ पैरो को धीरे-धीरे हिलाना, धीरे-धीरे आगे-पीछे झुकना, वाकिंग करना, ये आपके लिये अच्छे व्यायाम है।

(देखें--senior citizen के आसन)

यदि श्वास रोग या हृदय रोग है तो प्राणायाम मे कुम्भक न लगाये। अनुलोम विलोम आपके लिये उत्तम है। ध्यान की क्रिया आपके लिए श्रेष्ठ है। आसन व प्राणायाम अपने शरीर की अवस्था के अनुसार करे तथा प्रशिक्षक की देख-रेख में करें।

3. स्वास्थ्य Health.

तीसरा बिन्दु आता है स्वास्थ्य का। क्या एक अस्वस्थ व्यक्ति योग कर सकता है? योग करते समय अपनी शारीरिक स्थिति का अवलोकन अवश्य करें। यह ध्यान रहे कि योग "स्वस्थ व्यक्ति के लिए है" तथा "व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए है"

नियमित योग करने वाला व्यक्ति स्वस्थ रहता है। लेकिन गम्भीर रोग की अवस्था मे, शरीर की सर्जरी होने की स्थिति मे आसन नही करने चहाए। 

श्वास रोग या हृदय रोग है तो प्राणायाम मे कुम्भक न लगाएँ। यदि श्वासों की स्थिति ठीक नही है तो प्राणायाम न करें।

प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति योग कर सकता है।अस्वस्थ व्यक्ति ठीक होने के बाद ही योग करे।

योग का उद्देश्य क्या है?

योग का उद्देश्य मानव कल्याण है। योग मूल उद्देश्य आध्यात्म तो है। इसके साथ स्वास्थ्य, मानसिक शाँति, नैतिकता व अनुशासन भी योग का उद्देश्य हैं।

1. आध्यात्म।

निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि योग का उद्देश्य आध्यात्म तो है। लेकिन किसी धर्म का प्रसार या विरोध करना इसका उद्देश्य बिलकुल नही है।

मुख्यत: योग का उद्देश्य आध्यात्म ही है। यह कोई पूजा पद्यति नही है। यह क्रिया 'शरीर' को तथा 'स्वयं' को जानने की विधि है। यह 'स्वयं' को 'स्वयं' से जोङने की क्रिया है।

ध्यान और समाधी योग का अंतिम पङाव है। लेकिन इसके लिए शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है। इसी लिए पहले आसन व प्राणायाम किये जाते हैं।

योग मन को नियंत्रित (कंट्रोल) करने का काम करता है। यह मन को बहर्मुखी से अंतरमुखी करता है।

पतंजली योगसुत्र मे बताया गया है-- "योगश्चितवृति निरोध:।"  यह चित्त की वृतियो का निरोध करता है।

2. शारीरिक स्वास्थ्य।

शरीर का स्वास्थ्य ही योग का उद्देश्य है। योग मुख्य उद्देश्य मन को नियंत्रित करना और शरीर को ध्यान की स्थिति मे ले जाना है। लेकिन इसके लिए शरीर और मन का स्वस्थ होना जरूरी है।

आधुनिक समय मे यदि ध्यान और समाधी आप का उद्देश्य नही है तो भी योग आप के जरूरी है। योग आपके शरीर की रोग प्रति रोधक क्षमता (IMMUNITY) को बढाता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पहले आसन करे और आसन के बाद प्राणायाम करें।

आसन आपके शरीर को पुष्टि देते है। आसन  शरीर के सभी आंतरिक अंगो को प्रभावित करते है। इस के प्रभाव से शरीर का रक्तचाप (BP) तथा सुगर सामान्य रहते है। शरीर का राशायनिक निर्माण का बैलेंस बना रहता है।

प्राणायाम हमारे शरीर के श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। इस क्रिया से हमारे LUNGS सक्रिय होते है। शरीर को Oxygen पर्याप्त मात्रा मे  मिलती है। हृदय को पुष्टि मिलती है। इस क्रिया से प्राण शक्ति में वृद्धि होती है।

3.मानसिक शान्ति।

मन का शरीर से सीधा सम्बंध है। यदि मन स्वस्थ है तो शरीर स्वस्थ है, और शरीर स्वस्थ है तो मन स्वस्थ स्वस्थ है। मन नियंत्रित करना योग का उद्देश्य है। अस्वस्थ शरीर मन को प्रभावित करता है। चित्त की अस्थिरता मानसिक शान्ती के लिए बाधक है। योग इसी पर केन्द्रित है। योग से शारीरिक फिटनैस के साथ मानसिक शान्ती भी मिलती है।

4. नैतिकता

योग मे यम और नियम मे नैतिकता के बारे मे बताया गया है। योग मनुष्य का चरित्र निर्माण करता है। योग से क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष का त्याग होता है। योग अहिंसा अपनाने को प्रेरित करता है और बँधुत्व का भाव जागृत करता है।

5. अनुशासन

योग हमे अनुशासित करता है। योग में अनुशासन बहुत महत्व रखता है। समय पर सोना-जागना, नियमित योगाभ्यास, संतुलित खान-पान ये सब योग के पार्ट है।

यह भी देखें :- योग कैसे करें?

लेख सारांश :-

योग जाति, धर्म, व देश की सीमा से ऊपर है। योग सब कर सकते है। योग का उद्देश्य शारीरिक स्वास्थ्य है।

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