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"श्वसन" शरीर के लिये एक महत्व पूर्ण क्रिया है। यह प्राणों का आधार है। इस क्रिया को सुचारु रखने के लिये श्वसन तंत्र का सुदृढ होना जरूरी है। प्राणायाम श्वासों पर आधारित क्रिया है। इस क्रिया से श्वसन तंत्र तथा प्राणों को सुदृढ किया जाता है। इस लेख मे श्वसनतंत्र के लिये 4 प्राणायाम (Pranayam For Respiratory System) के बारे मे बताया जायेगा।

विषय सुची :-

  • श्वसन तंत्र और प्राणायाम।
  • श्वास क्या है?
  • श्वास की अवस्थाएँ।
  • 4 विशेष प्राणायाम श्वसन तंत्र के लिये।
  1. कपालभाति।
  2. अनुलोम विलोम।
  3. भस्त्रिका।
  4. नाङीशौधन।

श्वास रोगो के लिये प्राणयाम

श्वसन तंत्र और प्राणायाम

श्वसनतंत्र को सुदृढ करने के लिये प्राणायाम बहुत महत्वपूर्ण है। प्राणायाम का आधार 'श्वास' है। यह श्वसन प्रणाली को कैसे प्रभावित करता है? श्वसनतंत्र के लिये प्राणायाम कैसे करें? यह जानने से पहले आइए जान लेते हैं कि श्वास क्या है? तथा श्वास की कितनी अवस्थाएँ हैं?

देखें :- पतंजलि के अनुसार प्राणायाम क्या है?

श्वास क्या है?

यह प्रत्येक जीवधारी प्राणी की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। यह जन्म से लेकर मृत्यु तक लगातार चलने वाली क्रिया है। यह क्रिया जन्म से पहले माँ के गर्भ से आरम्भ हो जाती है। यह बिना रुके आजीवन जारी रहती है।

श्वसन तंत्र क्या है? :- यह शरीर का महत्वपूर्ण भाग है। इसमे नासिका द्वार, श्वास-नली तथा फेफङे (Lungs) मुख्य हैं। नासिका द्वारा ली गई वायु श्वास-नली से होते हुये फेफङों मे जाती है। और यहाँ से आक्सीजन रक्त मे मिश्रित होकर पूरे शरीर मे पहुँच जाती है।

कई बार अनियमित जीवन शैली के कारण श्वसन प्रणाली मे अवरोध (रुकावट) आ जाते है। यह अस्थमा जैसे श्वास रोग तथा हृदय रोगों का कारण बनता है। इन अवरोधों (रुकावटों) को नियमित प्राणायाम से ठीक किया जा सकता है।

श्वास की अवस्थाएँ।

सामान्यत: श्वास की दो ही अवस्थाएँ हैं- श्वास लेना और श्वास छोड़ना। लेकिन प्राणायाम मे ये तीन अवस्थाएँ बताई गई हैं।

1. पूरक :- नासिका द्वारा श्वास को अंदर लेना श्वास का पूरक कहा गया है। श्वास को नासिका व मुहँ द्वारा लिया जा सकता है। लेकिन नासिका द्वारा श्वास लेना उत्तम है। इस लिये श्वास का पूरक नासिका से ही किया जाना चहाये।

2. रेचक :- श्वास के पूरक करने के बाद वायु हमारे Lungs मे जाती है। वहाँ से Oxygen रक्त मे मिश्रित हो कर पूरे शरीर मे पँहुच जाती है। यह श्वास शरीर मे कुछ देर ठहरने के बाद कार्बनडाइ-आक्साइड के रूप मे बाहर आ जाती है। श्वास को बाहर छोङने की क्रिया को "रेचक" कहा जाता है।

3. कुम्भक :- श्वास रोकने की क्रिया को कुम्भक कहा जाता है। यह पूरकरेचक दोनों अवस्थाओ मे लगाया जाता है। अर्थत् यह भरे श्वास तथा खाली श्वास दोनो मे लगाया जाता है। कुम्भक के दो प्रकार हैं :-

आन्तरिक कुम्भक :- पूरक स्थिति मे लगाये गये कुम्भक को आन्तरिक कुम्भक कहा जाता है। 

बाह्य कुम्भक :- रेचक स्थिति मे लगाये गये कुम्भक को बाह्य कुम्भक कहा गया है।

प्राणायाम अभ्यास मे तीनो अवस्थाएँ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इस अभ्यास मे "कुम्भक" को अधिक महत्व दिया गया है। पतंजलि-योग मे कुम्भक को ही वास्तविक प्राणायाम कहा है।
(देखें पतंजलि योगसूत्र :- तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।)
यहाँ "गतिविच्छेद:" का अर्थ कुम्भक ही है।

इस अभ्यास मे कुम्भक के विशेष प्रभाव हैं, लेकिन इसका प्रयोग कुछ सावधानियों के साथ करना चहाये। यदि श्वासों की स्थिति ठीक नही है तो कुम्भक नही लगाना चहाये।

(विस्तार से देखें :- रेचक,पूरक व कुम्भक क्या हैं?)

प्राणायाम श्वसन तंत्र के लिये।

श्वसन तंत्र के लिये प्राणायाम बहुत महत्वपूर्ण है। यह श्वसन तंत्र को सदृढ करता है। और श्वसन प्रणाली के अवरोधों को दूर करता है। नियमित प्राणायाम से Lungs सक्रिय रहते है।

वैसे तो लगभग सभी प्राणायाम श्वसन प्रणाली को प्रभावित करते हैं। लेकिन यहाँ 4 विशेष प्राणायाम के बारे मे बताया जायेगा जो श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं। ये श्वास रोग के लिये लाभदायी होते हैं।

1. कपालभाति।

यह मुख्यत: एक शुद्धि क्रिया है। इस क्रिया से कपाल भाग की शुद्धि होती है। यह श्ववसन तंत्र के लिये भी यह प्रभावशाली क्रिया है। इस क्रिया से हृदय तथा फेफङे सुदृढ होते हैं।

यदि श्वासों की स्थिति अच्छी है तो इस क्रिया को बंध व कुम्भक के साथ करें। यदि आप नये अभ्यासी है। या श्वासो की स्थिति ठीक नही है तो इस क्रिया को बिना कुम्भक के ही करें।

विधि :- 

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
  • दोनो हाथ घुटनो पर रखें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें।
  • आँखे कोमलता से बंध करे।
  • श्वास के रेचक की गति तीव्र तथा पूरक सामान्य गति से करें।
  • पेट को अंदर की ओर प्रभावित करते हुये श्वास को झटकते हुये बाहर छोङे। श्वास लेने की गति सामान्य रखें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार क्रिया को करें। अंत मे पेट अंदर की ओर करते हुये श्वास को बाहर छोङे। मूल बंध (गुदा भाग का संकोचन) लगाये। ठोडी को कण्ठ से लगाएँ। खाली श्वास मे कुछ देर रुकें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद बंध हटाते हुये श्वास का पूरक करें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद भरे श्वास मे 'बंधो' के साथ 'कुम्भक' लगाये। भरे श्वास मे कुछ देर रुकें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद श्वास का रेचक करें। श्वास सामान्य करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इस प्रकार अन्य आवर्तियाँ क्षमता अनुसार करें।

सावधानी :-
  • यदि श्वासो की स्थिति ठीक नही है या क्रिया को पहली बार कर रहे है तो कुम्भक न लगाएँ
  • अस्थमा पीङित तथा हृदय रोगी इस क्रिया को चिकित्सक की सलाह से करें। धीमी गति से करें। कुम्भक न लगाये। गम्भीर रोगी इस क्रिया को न करें।
  • उच्च रक्त-चाप (High BP) वाले व्यक्ति धीमी गति से करें

2. अनुलोम विलोम।

यह सरलता से किया जाने वाला प्राणायाम है। श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला यह उत्तम प्राणायाम है। इस क्रिया मे "चंद्रनाङी" तथा "सूर्यनाङी" क्रमश: प्रभावित होती हैं। कपालभाति के बाद इस प्रणायाम को करना उत्तम है। यह कपालभाति के लाभ मे वृद्धि करता है।

इस प्राणायाम की विधि बहुत सरल है। प्रत्येक व्यक्ति इसे सरलता से कर सकता है। इस क्रिया मे बाँयी नासिका से श्वास ले, बिना रुके दाँयी नासिका से श्वास खाली करें। फिर दाँये से श्वास का 'पूरक' और बिना रुके बाँये से 'रेचक' करे। आईये विधि को विस्तार से जान लेते हैं।

विधि :-

  • पद्मासन या सुखासन में बैठें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे रखे।
  • दाँया हाथ प्राणायाम मुद्रा में नासिका के पास ले जाये। (प्राणायाम मुद्रा :- अंगुठे के साथ वाली दो उंगलियाँ मोङ लें। तीसरी उँगली नासिका के बाँयी तरफ तथा अँगूठा नासिका के दाँयी तरफ रहे।)
  • अँगूठे से दाँयी नासिका बन्ध करें। बाँयी नासिका से श्वास का पूरक करें।
  • पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका को बन्ध करें। बिना श्वास रोके दाँयी तरफ से श्वास का रेचक करें।
  • दाँयी तरफ से श्वास पूरी तरह खाली होने के बाद दाँयी तरफ से श्वास भरेंं।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद दाँयी नासिका को बन्ध करें। बाँयी तरफ से श्वास को खाली करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अन्य आवर्तियाँ करें। अंत मे श्वास सामान्य करें।

3. भस्त्रिका।

यह फेफङों (Lungs) तथा श्वसन तंत्र को मजबूती देने वाला उत्तम प्राणायाम है। यह तीव्र गति से किये जाने वाली क्रिया है। अत: इसको केवल स्वस्थ व्यक्ति ही करें। अस्थमा (श्वास रोग) तथा हृदय रोगी इस प्राणायाम को न करें।

विधि :-

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें।
  • दोनो हाथों से घुटनो को पकङें।
  • लम्बा-गहरा श्वास भरें और बाहर छोङे।
  • श्वास लेने व छोङने की गति को धीरे-धीरे बढाते जाँये।
  • श्वास के साथ पेट को भी आगे पीछे प्रभावित करें। श्वास छोङते समय पेट को अन्दर की ओर तथा भरते समय बाहर की ओर प्रभावित करें।
  • धीरे-धीरे श्वासों की गति को धीमा करते जाँये। और अंत मे श्वास का पूरक करे। भरे श्वास मे मूल बन्ध व जलंधर बन्ध लगा कर कुछ देर रुकें।
  • क्षमता के अनुसार भरे श्वास मे रुकने के बाद श्वास खाली (रेचक) करें।
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद त्रिबन्ध लगाएँ। कुछ देर खाली श्वास मे रुकें। (त्रिबन्ध;- मूलबन्ध, उड्डयन बन्ध व जालंधर बन्ध)
  • यथा शक्ति खाली श्वास मे रुकने के बाद धीरे-धीरे श्वास का पूरक करें। श्वास सामान्य करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार एक या दो आवर्तियाँ (अपनी क्षमता के अनुसार) करें।
(भस्त्रिका की अधिक जानकारी के लिये देखें :- भस्त्रिका प्राणायाम का सही तरीका। )

सावधानी :-

  • यह प्राणायाम केवल शरद ऋतु मे किया जाता है। गर्मी के मौसम मे इसे नही करना चहाये।
  • यह तीव्र गति वाला प्राणायाम है। इसे केवल स्वस्थ व्यक्ति ही करें।
  • गम्भीर अस्थमा पीडित व हृदय रोगी इसे न करे।
  • उच्च रक्त-चाप वाले धीमी गति से करें।
  • आँत रोगी या पेट के रोगी क्रिया करते समय पेट पर दबाव न बनाये। धीमी गति से करें।
  • गर्भवति महिलाएँ इसे न करें।
  • पेट की सर्जरी हुई है तो इसे न करें।
  • यदि कोई श्वास या अन्य रोग है तो चिकित्सक की सलाह लें।

4. नाङीशौधन।

बहत्तर हजार प्राणिक नाङियो का शौधन करने वाला यह उत्तम प्राणायाम है। यह प्राणिक नाडियो के अवरोधों को दूर करता है। श्वसन तंत्र को सुदृढ करता है।

इसकी विधि अनुलोम विलोम की तरह ही है। दोनो मे अन्तर यह है कि नाङीशौधन मे कुम्भक (श्वास रोकना) का प्रयोग किया जाता है। तथा अनुलोम विलोम बिना कुम्भक के किया जाता है। आईये इसकी विधि को विस्तार से जान लेते हैं।

विधि :-

  • पद्मासन या सुखासन में बैठें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें।
  • बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा तथा दाँया हाथ प्राणायाम मुद्रा मे रखें।
  • दाँयी नासिका बन्ध करे। बाँयी तरफ से श्वास भरें।
  • पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका को भी बन्ध करे।
  • भरे श्वास मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकें।
  • कुछ देर भरे श्वास मे रुकने के बाद दाँयी तरफ से श्वास को खाली करें।
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दाँयी तरफ से श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद दाँयी नासिका को भी बन्ध करें। यथा शक्ति भरे श्वास मे रुकें।
  • कुछ देर भरे श्वास मे रुकने के बाद बाँयी तरफ से श्वास को खाली करें।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार दो-तीन या क्षमता के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
सावधानी :-

  • यदि श्वास की स्थिति ठीक है तो इस प्राणायाम को करें।
  • गम्भीर श्वास रोगी कुम्भक न लगाएँ।
  • हृदय रोगी अपने चिकित्सक की सलाह से इस प्राणायाम को करें।
सारांश :-

प्राणायाम श्वास रोग के लिये प्रभावी क्रिया है। इस क्रिया से श्वसन तंत्र को सुदृढ किया जा सकता है। श्वासो की स्थिति ठीक है तो कुम्भक का प्रयोग करे। गम्भीर श्वास रोगी कुम्भक का प्रयोग न करें।

Disclaimer :- 

यह आर्टिकल किसी प्रकार के रोग को ठीक करने का दावा नही करता है। केवल प्राणायाम के लाभ से अवगत करवाना इस लेख का उद्देश्य है। लेख मे बताये गये प्राणायाम स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। गम्भीर रोगी चिकित्सक की सलाह ले। लेख मे बताये गये नियम व सावधानियों का ध्यान रखें।

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