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कुछ प्रशिक्षक और योग गुरू कपालभाति को प्राणायाम बता कर अभ्यास करवाते हैं। लेकिन अधिकतर विद्वान व योग गुरू इस पर आपत्ति करते हैं। वे मानते हैं कि कपालभाति एक "प्राणायाम" नही है। वे इसको एक "शुद्धि क्रिया" मानते हैं।

क्या कपालभाति एक शुद्धि क्रिया है? प्राणायाम नही है? इस आलेख में यह देखेगें कि प्राणायाम क्या है? और शुद्धि क्रियाए क्या हैं? तथा कपालभाति कोन सी श्रेणी मे आता है?

कपालभाति शुद्धि क्रिया

विषय सुची :--

  • कपालभाति प्राणायाम है, या क्रिया?
  • शुद्धि क्रिया क्या हैं?
  • प्राणायाम क्या है?
  • कपालभाति एक प्राणायाम क्यो?
  • कपालभाति मे कुम्भक।

कपालभाति प्राणायाम है, या क्रिया?

प्राय: देखा गया है कि बहुत से योग गुरु इसको को कपालभाति प्राणायाम ही बोलते हैं। और प्राणायाम कह कर ही अभ्यास करवाते हैं। लेकिन वास्तव में यह योग की एक शुद्धि क्रिया है। यदि ऐसा है, तो क्या कपालभाति एक प्राणायाम नहीं है?

क्या इसे प्राणायाम कहना उचित है या नही? क्या इसे एक क्रिया कहना चाहिए? यह जानने से पहले कुछ बाते जान लेना जरूरी हैं। आइए पहले यह देख लेते हैं कि शुद्धि क्रिया क्या है? और प्राणायाम क्या है?

(See in English language :- How to do Kapalbhati?)

शुद्धि क्रिया क्या है?

प्राचीन काल मे हमारे ऋषि मुनि योग साधना करते थे। साधना मे कोई अवरोध (रुकावट) न आये इस लिए वे पहले शुद्धि क्रियाए करते थे।

यही कारण है कि योग मे ध्यान साधना से पहले "आसन प्राणायाम" को स्थान दिया है। तथा आसन-प्राणायाम से भी पहले शुद्धि क्रियाओं को महत्व दिया गया है। 

हमारे ऋषियों ने शरीर की शुद्धि के लिए षट् कर्म बताए हैं। इस मे शरीर की छ: शुद्धि क्रियाएं बताई गई हैं। इन क्रियाओ में कपालभाति भी एक "शुद्धि क्रिया" है।

षट् कर्म क्या हैं? :--- यह हठ योग की क्रिया है। इस क्रिया से शरीर के सभी आंतरिक अंगों की शुद्धि की जाती है। षट् कर्म मे छ: क्रियाए बताई गई हैं।

1. धोति 

इस क्रिया से आहार नली की शुद्धि की जाती है। आहार नली मे आने वाले अतिरिक्त अम्लिय पदार्थ, एसिड को बाहर निकाला जाता है। यह पाचन मे सहायक है। इस क्रिया को आप दो तरह से कर सकते हैं

  1. कुंजल।
  2. वस्त्र धोती।

कुंजल क्रिया सरल है। इसे आसानी से किया जा सकता है। 

कुंजल की विधि :-- सामान्य पीने का पानी ले। घुटने मोड़ कर (उकडू) बैठ जाए। पानी को पी ले। उठ कर आगे की ओर झुकें। पहली और दूसरी उँगली को कण्ठ मे ले जा कर वमन (उल्टी) करें। उल्टी करते हुए सारा पानी बाहर निकाल दें।

इस क्रिया से भोजन नली मे बिना पचे पदार्थ तथा एसिड बाहर आ जाते है।

(यह क्रिया रोज न करें। महिने मे एक या दो बार ही करें। अधिक जानकारी के लिए हमारा अन्य लेख देखें :-- कुंजल क्रिया योग क्या है?)

2. वस्ति। 

यह क्रिया को बड़ी आँत की स्वच्छता के लिए किया जाता है। आधुनिक चिकित्सा मे इसे एनिमा विधि से किया जाता है। योग शुद्धि क्रिया मे इसे "शंख प्रक्षालन" कहा गया है।

विधि :-- मल द्वार मे नली द्वारा पानी को बङी आँत तक पहुँचाया जाता है। इस क्रिया से मल पानी के साथ बाहर आ जाता है।

सावधानी :-- यह क्रिया प्रशिक्षक या चिकित्सक की देख-रेख मे ही करनी चाहिए।

3. नेति। 

नासिका व कण्ठ क्षेत्र की शुद्धि के लिए इस क्रिया को किया जाता है। यह क्रिया नासिका के अवरोधों को दूर करती है। नेत्र रोगो मे भी यह लाभकारी है।  मुख्यत: तीन विधियाँ अधिक प्रचलित हैं।

  1. सूत्रनेति।
  2. रबड़ नेति।
  3. जलनेति।

1. सूत्र नेती :-- इस क्रिया में सूत की बनी पतली रस्सी का प्रयोग किया जाता है। इसे पहले पानी डाल कर नर्म किया जाता है। इसे धीरे-धीरे नासिका मे डाल कर मूँह द्वारा बाहर निकाला जाता है। यह क्रिया क्रमश: दोनो नासिकाओ से बारी-बारी की जाती है।

2. रबड़ नेति :-- इस क्रिया के लिए राबड़ की बनी पतली रस्सीनुमा ट्यूब होती है। इसे धीरे-धीरे नासिका मे डाल कर मूँह से निकाला जता है। यह क्रिया भी बारी-बारी दोनो नासिकाओ से की जाती है।

(सूत्रनेति और रबड़ नेति पहले प्रशिक्षक के निर्देशन व देख - रेख मे करें। स्वयं न करें)

3. जलनेति Jalneti. :-- जलनेति-पात्र मे गुनगुना पानी ले। पानी अधिक गर्म या अधिक ठण्डा न हो। एक चम्मच सादा नमक डाले। पात्र की नली से एक नासिका मे पानी डाले और दूसरी नासिका से बाहर आने दें। 

यही क्रिया दूसरी नासिका से करें। इस क्रिया को करते समय नासिका से श्वास नही लेना चाहिए। जब तक यह क्रिया पूरी हो, श्वास मुँह से लेना है।

क्रिया के अंत मे कमर से आगे की तरफ झुकें। दोनो हाथ घुटनो पर रखें। तीव्र गति से श्वास को रेचक करते हुए पानी को नासिका से बाहर निकाले। प्रयास करे कि नासिका मे पानी न रहे।

(अधिक जानकारी के लिए हमारा अन्य लेख देखें :-- "जलनेति क्रिया योग कैसे करें?")

4. त्राटक।

इस क्रिया से नेत्र के पेशियाँ सक्रिय होती हैं। ध्यान के लिए एकाग्रता बढती है। मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

विधि :--- इस क्रिया के लिए पद्मासन या सुखासन मे बैठे। कुछ दूरी पर एक बिंदू निर्धारित करें। उस बिंदू को बिना पलक झपकाए एक टक देखे। कुछ देर लगातार देखने के बाद आँखें कोमलता से बंद करे। यह क्रिया दो-तीन बार दोहराए।

5. नोली।

अपच, उदर रोग, वायु विकार के लिए इस क्रिया को किया जाता है।

विधि :-- दोनों पैरों को सुविधा के अनुसार दूरी बना कर खड़े हो जाए। कमर से आगे की तरफ झुकें। दोनो हाथ घुटनों पर रखें। पेट को आगे पीछे करे। पेट की पेशियों को घुमाने का प्रयास करे। आरम्भ मे जितना सरलता से हो सके उतना ही करें।

सावधानी :-- यदि आँत रोग है या पेट  आपरेशन हुआ है तो इस क्रिया को नही करनी चाहिए। प्रशिक्षक से सीख कर ही यह क्रिया करें।

6. कपालभाति

कपाल भाग (मस्तिष्क) की शुद्धि के लिए इस क्रिया को किया जाता है। इस क्रिया से फेफड़े (Lungs) सक्रिय होते है। श्वसनतंत्र के अवरोध दूर होते हैं। इस से हृदय को भी मजबूती मिलती है।

विधि :-- पद्मासन या सुखासन मे बैठें। पीठ व गरदन को सीधा रखें। दोनो हाथ घुटनो पर रखे।श्वास सामान्य गति से लें और तीव्र गति से छोड़े। श्वास छोड़ते समय पेट को अंदर करें। श्वास को बाहर निकालने की गति तीव्र रखे। श्वास लेने की गति सामान्य रखे।

अपनी क्षमता के अनुसार करे और श्वासों को सामान्य करे। श्वास सामान्य होने के बाद दूसरी आवर्ती करें। आरम्भ मे दो-तीन आवर्तिया ही करें। 

अनुलोम विलोम :--- कपालभाति करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। इस क्रिया से शरीर मे आने वाली अतिरिक्त गर्मी को संतुलित करना जरूरी है। इसलिए कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम अवश्य करें।

(अधिक जानकारी के लिए हमारा अन्य लेख देखें :-- कपालभाति कैसे करें?)

प्राणायाम क्या है?क्या कपालभाति एक प्राणायाम है?

आईये अब यह जान लेते हैं कि प्राणायाम क्या है? तथा इसका मूल सिद्धाँत क्या है? क्या यह कपालभाति पर यह लागू होता है? यदि हाँ, तो क्या हम इसे 'प्राणायाम' कह सकते हैं?

प्राणायाम।

यह अष्टाँगयोग का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका क्रम आसन के बाद आता है। पहले आसन करना उचित है। आसन करने के बाद प्राणायाम करना चाहिए। 

प्राणायाम से प्राणिक नाड़ियों का शौधन होता है। प्राण शक्ति की वृद्धि होती है। साधरणतया हमारी शक्तियाँ अधोगामी होती हैं। अर्थात ये ऊपर से नीचे की तरफ संचार करती हैं।

प्राणायाम से ये शक्तियाँ ऊर्धवगामी हो जाती हैं। अर्थात ये नीचे से ऊपर की ओर संचार करने लगती हैं।

यह श्वासों पर आधारित क्रिया है। इस से शरीर का श्वसनतंत्र सुदृढ होता है। प्राणायाम मे श्वासो की क्या स्थिति होती है? प्राणायाम मे श्वास कितने प्रकार के हैं?

प्राणायाम मे श्वासो की स्थिति

महर्षि पतंजलि प्राणायाम मे श्वासो की तीन अवस्थाए बताते हैं :-

1. बाह्य वृत्ति
2. आभ्यन्तर वृत्ति
3. स्तम्भ वृत्ति

बाहयाभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभि: परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्म:।।2.50।।

प्राणायाम में श्वासो की स्थिति तीन प्रकार की होती है।

  1. पूरक
  2. रेचक
  3. कुम्भक

ये तीन स्थितिया प्राणायाम का मूल हैं। ये प्राणायाम के लिए आवश्यक स्थितियाँ है। आईये इन के बारे मे विस्तार से जान लेते हैं। और यह भी देखते हैं कि क्या ये कपालभाति पर लागू होती हैं?

1. पूरक

सामान्यत: हम जो श्वास लेते हैं वे बहुत छोटे होते हैं। प्राणायाम मे लम्बा व गहरा श्वास लेने का निर्देश दिया जाता है। इसका अर्थ है कि लम्बा श्वास गहराई तक भरे। श्वास अंदर भरने की क्रिया को पूरक कहा जाता है।

श्वास का पूरक करते समय वायु को अधिकतम अंदर भरें। पूरक करने पर हमारे Lungs फैलते है।

2. रेचक

श्वास बाहर निकलने की क्रिया को  रेचक  कहा गया है। जो श्वास Lungs मे भरा था उसे पूरी तरह खाली करें। यह रेचक स्थिति है। श्वास के पूरी तरह खाली होने पर हमारे Lungs सिकुड़ कर पहले वाली स्थिति मे आ जाते हैं।

इस प्रकार पूरक व रेचक से हमारे Lungs एक्टिव रहते हैं। तथा उनमे आये अवरोध दूर हो जाते हैं।

3. कुम्भक

प्राणायाम में श्वास को रोकने की स्थिति को कुम्भक कहते हैं। पूरक व रेचक दोनो स्थितियों मे कुम्भक लगाया जाता है। यह प्राणायाम मे महत्वपूर्ण है। सामान्यत: ये दो तरह के होते हैं।

  1. आंतरिक कुम्भक
  2. बाह्य कुम्भक

आंतरिक कुम्भक :-- यह श्वास की पूरक स्थिति मे लगाया जाता है। जब हम पूरक करके भरे श्वास मे रुकते है, तो यह आंतरिक कुम्भक की स्थिति होती है।

बाह्य कुम्भक :-- यह श्वास की रेचक स्थिति में लगाया जाता है। जब हम श्वास को बाहर निकाल कर खाली श्वास में रुकते हैं, तो यह बाह्य कुम्भक की स्थिति होती है।

प्राणायाम मे बंध का प्रयोग

प्राणायाम मे बंधों का प्रयोग किया जाता है। बन्ध प्राण शक्ति को सही दिशा दे कर एक लॉक का काम करते हैं। बन्ध तीन बताए गए हैं। 

  1. मूल बन्ध
  2. जलंधर बन्ध
  3. उड्डियन बन्ध

प्राणायाम में बन्ध बहुत महत्वपूर्ण है। क्या कपालभाति में बन्धों का प्रयोग होता है?

क्या कपालभाति 'प्राणायाम' भी है?

हमने देखा कि प्राणायाम के सिद्धाँत क्या हैं। और इसकी विशेषताएँ क्या हैं? क्या ये कपालभाति पर लागू होते हैं?

प्राणायाम के मूल सिद्धाँत क्या हैं?

प्राणयाम के कुछ मूल सिद्धाँत इस प्रकार  हैं:---

  • पूरक
  • रेचक
  • कुम्भक
  • बन्ध
प्राणायाम मे ये सभी आवश्यक स्थितिया हैं। क्या कपालभाति मे उपरोक्त स्थितिया होती हैं?

कपालभाति प्राणायाम क्यों?

कपालभाति मूलत: एक शुद्धि क्रिया ही है। लेकिन यह प्राणायाम के सिद्धाँतो को भी पूरा करती है। 

पूरक-रेेचक :-- "पूरक व रेचक" प्राणायाम का मुख्य आधार है। कपालभाति मे भी ये दोनो स्थितियाँ हैं। इस क्रिया मे 'पूरक' सामान्य गति से किया जाता है। और 'रेचक' तीव्र गति से किया जाता है।

बन्ध व कुम्भक :--  प्राणायाम के अनुभवी साधक बन्ध व कुम्भक का महत्व जानते हैं। प्राणायाम के लाभ बन्ध व कुम्भक मे ही निहित हैं। 

कपालभाति मे बन्ध-कुम्भक की स्थिति क्या है? कपालभाति को बिना कुम्भक से करना भी लाभकारी है। नये अभ्यासी को कपालभाति बिना कुम्भक के ही करना चहाए। लेकिन अनुभवी अभ्यासी को इसे बन्ध व कुम्भक के साथ ही करना चाहिए।

कपालभाति में कुम्भक कैसे लगाएँ।

इस क्रिया को बिना कुम्भक लगाए भी किया जा सकता है। नये साधकों (Beginners) को इसे बिना कुम्भक के ही करना चाहिए। नियमित व अनुभवी साधकों को बन्ध तथा कुम्भक दोनो का प्रयोग करना चाहिए।

विधि :-- 

  • कपालभाति करते हुये आवर्ती के अंत में श्वास का पूरी तरह रेचक करें। 
  • रेचक करके बाह्य कुम्भक लगाएँ। कुम्भक के साथ त्रिबन्ध (मूलबन्ध, जलंधर बन्ध और उड्डयन बन्ध) भी तगाएँ। 
  • यथा शक्ति रुकने के बाद बन्ध हटाएँ। 
  • श्वास का पूरक करें और आंतरिक कुम्भक लगाएँ। 
  • कुम्भक के साथ मूल बन्ध और जलंधर बन्ध भी लगाएँ। यथा शक्ति आंतरिक कुम्भक में रुकने के बाद बन्ध हटाएँ। 
  • श्वास सामान्य करें। श्वास सामान्य होने के बाद दूसरी आवर्ती करें।

आवर्तियाँ अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। प्रत्येक आवर्ती के बाद श्वासों को सामान्य करें। श्वास सामान्य होने के बाद ही दूसरी आवर्ती करें।

कपालभाति के बाद अनुलोम विलोम अवश्य करें।  

लेख का सारांश :--

योग विवाद का विषय नही है। अत: हमे इस विवाद मे नही पङना चाहिए कि कपालभाति प्राणायाम है या क्रिया। मूलत: यह एक शुद्धि क्रिया ही है। लेकिन इसका प्रयोग दोनो तरह से किया जा सकता है। 

(लेख के विषय मे विद्वान पाठकों के सुझाव आमंत्रित हैं।)

 Disclaimer :--

किसी प्रकार के रोगों का उपचार हमारा उद्देश्य नहीं है। केवल योग के प्रति जागरूकता ही हमारा उद्देश्य है। 

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