ad-1

Dosplay ad 11may

योग मे कपालभाति और भस्त्रिका दोनो उत्तम व लाभकारी प्राणायाम क्रियाएं हैं। दोनों की विधि एक जैसी दिखाई देती है। लेकिन इन दोनो क्रियाओं मे बहुत अन्तर  है। इस आलेख में हम आपको यह जानकारी देंगे कि कपालभाति और भस्त्रिका मे क्या अन्तर है? Difference between Kapalbhati and Bhastrika.


विषय सूची :--

  • कपालभाति और भस्त्रिका मे अन्तर।
  • कपालभाति करने की विधि।
  • कपालभाति का प्रभाव।
  • भस्त्रिका की विधि।
  • भस्त्रिका का प्रभाव।
  • दोनो मे अन्तर क्या है?

कपालभाति और भस्त्रिका में अन्तर। Difference between Kapalbhati and Bhastrika. 

प्राणायाम मे कपालभाति और भस्त्रिका दोनो ही महत्वपूर्ण है। बहुत से बंधुगण इन दोनो मे अन्तर नही कर पाते है और वे इन के अभ्यास करने मे गलतियाँ कर जाते है। इस लेख मे हम आप को बतायेगे कि इन दोनो मे क्या अंतर है।

दोनो मे तेज गति से श्वास लेने-छोङने का अभ्यास किया जाता है। दोनो मे कुम्भक भी लगाया जाता है। ये समानताएँ होते हुए भी इन दोनो मे काफी अन्तर भी है। 

इन दोनो मे क्या अन्तर है, यह जानने से पहले यह देख लेते है कि "कपालभाति" क्या है? और "भस्त्रिका" क्या है?

कपालभाति Kapalbhati.

कपालभाति "प्राणायाम" है या "क्रिया" है? जानकारी के अभाव मे कुछ बंधुगण इसे प्राणायाम मान कर अभ्यास करते है। प्राणायाम मान कर अभ्यास करने मे कोई बुराई भी नही है। 

लेकिन मूल रूप से कपालभाति एक प्राणायाम नही है, यह एक शुद्धि क्रिया है। शरीर की शुद्धि के लिये योग में "षट् कर्म" बताये गये है। "षट् कर्म" की छ: शुद्धि क्रियाओं मे से एक क्रिया "कपालभाति" है। (देखेें :- क्या कपालभाति एक प्राणायाम नही है?)

कपालभाति क्या है?

कपालभाति दो शब्दों को मिला कर बना है-- कपाल (Skull) और भाति (Shine)। कपाल का अर्थ है 'खोपङी' या 'शीर्ष भाग' जिसमे मस्तिष्क स्थित है। और भाति का अर्थ है माँजना या चमकाना। 

यह एक ऐसी क्रिया है जो हमारे कपाल भाग का शोधन करती है। इस क्रिया से मस्तिष्क अधिक प्रभावित होता है। यह कपाल भाग को शुद्ध करने वाली क्रिया है इस लिये इसे कपालभाति कहा गया है।

क्या कपालभाति एक 'प्राणायाम' भी है?

प्राणायाम का सिद्धांत है श्वास का पूरक, रेचक और कुम्भक। अर्थात् यदि पूरक, रेचक की स्थिति मे कुम्भक लगाया जाता है तो वह प्राणायाम है। साधारण शब्दों मे यह कहा जा सकता है कि जिस क्रिया मे कुम्भक लगाया  जाये वह प्राणायाम है।

(श्वास को रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा जाता है)

क्योकि कपालभाति क्रिया मे भी कुम्भक भी लगाया जा सकता है। इसलिये हम इस क्रिया को प्राणायाम मान कर इसका अभ्यास कर सकते है। लेकिन हमें यह मान कर चलना चहाये कि यह क्रिया मुख्यत: एक शुद्धि क्रिया है।

प्राणायाम से हमारा श्वसनतंत्र और लंग्स प्रभाव मे आते है। कपालभाति क्रिया से मुख्यत: हमारा कपाल भाग अधिक प्रभावित होता है। लेकिन इसके साथ हमारा श्वसनतंत्र भी प्रभाव मे आता है। इस लिए हम इसको प्राणायाम मान कर भी इसका अभ्यास कर सकते हैं।

कपालभाति करने की विधि।

  • इस क्रिया मे बैठने के लिए उचित आसन पद्मासन है। यदि पद्मासन मे नही बैठ सकते है तो सुविधाजनक स्थिति सुखासन मे बैठे।
  • पीठ व गरदन को सीधा रखे। रीढ सीधी रहे। हथेलियो को पलट कर घुटनो को पकङ ले ताकि क्रिया करते समय शरीर ज्यादा हिले डुले नही, स्थिर रहे।
  • आँखे कोमलता से बंद रखे। ऐसा करने से हमारा ध्यान श्वासो पर केंद्रित रहता है।
  • इस क्रिया मे श्वास तीव्र गति से  छोङा जाता है। और श्वास लेने की गति सामान्य होती है। अर्थात् श्वास को बलपूर्वक झटकते हुये बाहर छोङना है और धीरे से श्वास भरना है।
  • श्वास छोङते समय पेट को भी पीछे की तरफ खीचे। पेट को प्रभावित करते हुये श्वास बाहर निकालें।
  • क्रिया को क्षमता के अनुसार करें। अंत मे पूरा श्वास बाहर छोङे और खाली श्वास मे कुछ देर रुकें (बाह्य कुम्भक)। खाली श्वास मे त्रिबंध (मूलबंध, उड्डियनबंध तथा जालंधर बंध) भी लगाएँ।

(मूलबंध - मल निष्कासन अंग पर दबाव डालकर ऊपर की ओर खींचना मूलबंध है। (मूलबंध का अभ्यास बढाने के लिये अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करें। देखें :--  अश्विनी मुद्रा क्या है?

उड्डयनबंध-- पेट को पीछे की ओर खीँचना।

जालँधर बंध--गरदन आगे झुका कर ठुड्डी सीने से लगाना।)

  • कुछ देर रुकने के बाद धीरे से श्वास भरें और भरे श्वास मे कुछ देर रुकें।
  • श्वासों को सामान्य करे। यह एक आवर्ती हुई। अपनी क्षमता के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें। दूसरी आवर्ती करने से पहले श्वासो को सामान्य करें।

कपालभाति का प्रभाव।

नाभी से लेकर शीर्ष भाग (कपाल भाग) तक का क्षेत्र इस क्रिया से प्रभावित होता है। लेकिन मुख्य प्रभाव कपाल भाग पर पङता है। इस क्रिया से मस्तिष्क प्रभावित होता है तथा कपाल भाग मे आने वाले अवरोध दूर हो जाते हैं।

इस क्रिया से मानसिक स्थिति का संतुलन बना रहता है। मन की एकाग्रता बनती है। मनोरोग मे भी यह क्रिया सहायक हो सकती है।

भस्त्रिका प्राणायाम।

श्वसनतंत्रफेफङों (Lungs) को सुदृढ करने के लिए यह एक उत्तम प्राणायाम है। इस प्राणायाम मे श्वास लेने व छोङने की गति तीव्र होती है। अर्थात् तेज गति से श्वास भरते है और तेज गति से श्वास छोङते है।

कपालभाति और भस्त्रिका दोनो मे बैठने की स्थिति समान है। भस्त्रिका प्राणायाम के लिए पद्मासन या सुखासन मे बैठें।

इस प्राणायाम मे क्रमश: दोनो कुम्भक लगाएँ। कुम्भक के साथ बन्धो का भी प्रयोग करें।

यह प्राणायाम शीत-ऋतु में अधिक लाभकारी है। गर्मी के मौसम मे इस प्राणायाम को नही करना चहाए। प्रवीण (Expert) साधक व योगी इस प्राणायाम को प्रत्येक मौसम मे कर लेते हैं। लेकिन नये व्यक्ति इस प्राणायाम को केवल शरद-ऋतु मे ही करे।

इस प्राणायाम को अस्थमा पीङित और हृदय रोगी न करे। ऐसे व्यक्तियों के लिए यह हानिकारक है। उच्च रक्त-चाप (High BP) वाले व्यक्ति धीमी गति से करें और प्रशिक्षक की देख-रेख मे ही करें।

भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि।

  • भस्त्रिका प्राणायाम के लिए पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठे। दोनो हाथ घुटनों पर रखें। रीढ को सीधा रखे। पीठ को झुका कर न रखें। आँखे कोमलता से बँध करे।
  • गति से श्वास ले और छोङे। धीमि गति से आरम्भ करें, गति को धीरे-धीरे बढाते जाये। श्वास के साथ पेट को आगे-पीछे प्रभावित करें।
  • इस क्रिया को अपनी क्षमता के अनुसार कुछ देर तक करते रहे। अंत मे श्वास भरें और आन्तरिक कुम्भक लगाएँ। कुम्भक के साथ बंध भी लगाएँ।
  • अपनी क्षमता के अनुसार आंतरिक कुम्भक मे कुछ देर रुकने के बाद श्वास का रेचक करे। पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद बाह्य कुम्भक लगाएँ। कुम्भक के साथ तीनो बंध भी लगाएँ।
  • कुम्भक मे कुछ देर रुकने के बाद वापिस आये और श्वासों को सामान्य करें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। श्वास सामान्य करने के बाद अन्य आवर्तियाँ करें।

(विस्तार से देखें--भस्त्रिका कैसे करें?)

भस्त्रिका प्राणायाम का प्रभाव।

  • शरद ऋतु मे यह ऊर्जा देने वाला प्राणायाम है। नियमित अभ्यास से यह मौसम के कुप्रभाव से बचाता है।

  • यह प्राणायाम कफ, वात व पित्त मे सन्तुलन कायम करता है।

  • इस प्राणायाम से मुख्यत: हमारा श्वसनतंत्रफेफङे प्रभावित होते हैं।
  • Oxygen पर्याप्त मात्रा मे मिलने से हृदय को भी मजबूती मिलती है।
  • मूल बंध लगाने से ऊर्जा शक्ति ऊर्ध्वगामी (ऊपर की ओर संचालित) होती है।
  • रक्त संचार (BP) सामान्य रहता है।

दोनो मे अन्तर क्या है?

योग में दोनो प्राणायाम क्रियाएँ लाभकारी और उत्तम क्रियाएँ है। एक समान दिखने वाली इन दोनो क्रियाओ मे काफी अन्तर है। अभ्यास करते समय हमे ये सब ध्यान रखना चहाए। कपालभाति और भस्त्रिका मे मुख्य अन्तर इस प्रकार है--

  • अन्तर प्रकृति में--दोनो की प्रकृति मे अन्तर है।कपालभाति एक 'शुद्धि क्रिया' है तथा भस्त्रिका एक 'प्राणायाम' है। 
  • अन्तर विधि में--दोनो को करने की विधि मे भी अंतर है। कपालभाति का अभ्यास करते समय तेज  गति से श्वास छोङते है और श्वास लेने मे गति सामान्य रहती है। लेकिन भस्त्रिका मे पूरक व रेचक दोनो मे गति तीव्र होती है।
  • अन्तर प्रभाव में--दोनो क्रियाओ से होने वाले प्रभाव मे भी अन्तर है। कपालभाति का मुख्य प्रभाव कपाल क्षेत्र पर होता है। भस्त्रिका से मुख्यत: श्वसनतंत्र प्रभावित होता है।
  • निषेध--कपालभाति को प्रत्येक मौसम मे किया जा सकता है। लेकिन भस्त्रिका गर्मी के मौसम में निषेध है। भस्त्रिका केवल शरद ऋतु मे ही किया जाता है।

सारांश :--

देखने मे दोनो क्रियाएँ एक जैसी लगती है लेकिन दोनो मे काफी अन्तर है।

Disclaimer :-

योग क्रियाएँ केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। अपनी शारीरिक क्षमता अनुसार ही अभ्यास करें। सरल अभ्यास लाभदायी होता है। कठिन तथा बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

Post a Comment